कहानी : अनकहा सच – रश्मि रविजा
अनकहा सच
दोनों बच्चे शोर कर रहे थे , आपस में उनका कुछ ना कुछ बहस, झगडा चल रहा था . शालिनी ने मुश्किल से उन्हें, आँखें दिखा कर चुप कराया ,उसकी तो सारी इन्द्रियाँ सिमट कर बस कान बनगए थे . फ्लाईट के पायलट का नाम अनाउंस होने ही वाला था और धड़कन एक पल को रुक गई और फिर थकी सी ठंढी सांस वापस निकल गई . वो नाम नहीं था. पता नहीं कभी यह रुकी सांस उल्लासित होकर बाहर आ पाएगी भी या नहीं. वापस शिथिल हो कर शालिनी ने सर पीछे को टिका दिया
जब से यहाँ वहाँ से उड़ती हुई खबर उसके कानों तक पहुंची है कि मानस ने डोमेस्टिक एयरलाइन्स ज्वाइन की है. हर बार कैप्टन का नाम ध्यान से सुनती है कि शायद वही हो जबकि उसे पता भी नहीं कौन सी एयरलाइन्स ज्वाइन की है.एयरपोर्ट भी ट्राली और बच्चे सम्भालते निगाहें इधर उधर भटकती रहतीं . हर सोशल नेट्वर्क पर भी उसे ढूंढ्ने की कोशिश की पर निराशा ही हाथ आयी. पर क्यूं, किसलिए उसे ढूँढने की कोशिश कर रही थी?? यह सवाल खुद से भी कई बार पूछ चुकी पर जबाब कोई नही मिलता.
और अपनी बेवकूफी पर हंस भी पड़ती है. मानस का छठी कक्षा वाला चेहरा ही सबसे पहले ध्यान में आता है. जब वह पहली बार उस पर इतना हंसा था. पर तब तो वह कित्ता रोई थी.
इंग्लिश के नए टीचर आए थे. आते ही डस्टर पटका और रौबीली आवाज़ में सबको नोटबुक निकालने के लिए कहा. फिर बहुत सारे कठिन ग्रामर के लेसन हल करने को दिए. चेक करने के लिए सबकी कापियाँ जमा कर लीं. सब उनसे डर तो गए थे पर दस-बारह साल के बच्चे कितनी देर शांत रह पाते. धीरे धीरे बातें शुरू हो गयीं. शालिनी, रीता और शर्मीला भी सर जोड़े नई फिल्म की कहानी सुनने लगीं जो पिछले हफ्ते ही शर्मीला अपने नए जीजाजी और दीदी के साथ देख कर आई थी.
. अचानक जोर का एक चॉक का टुकड़ा उसके सर से टकराया. उसने सर उठाया और सर चिल्ला पड़े,”क्या गपाश्टक हो रहा है,चलो बेंच पर खड़ी हो जाओ” तब , इंग्लिश के सर भी हिंदी में ही बाते करते थे और कई बार तो लेसन भी हिंदी में ही एक्सप्लेन कर जाते. उसे तो काटो तो खून नहीं. आजतक कभी डांट भी नहीं पड़ी और सीधा बेंच पर खड़ी हो जाओ. वो हतप्रभ मुहँ खोले देखती रही तो फिर से चिल्लाये, “मुहँ क्या देख रही हो.स्टैंड अप ऑन द बेंच (इस बार अंग्रेजी में बोले)
वो सर झुकाए खड़ी हो गयी. और आँखों से धार बंध चली. पूरा क्लास सकते में था. इसलिए नहीं कि सर चिल्ला रहे थे. इसलिए कि क्लास में हमेशा फर्स्ट आने वाली , कभी कोई शरारत ना करने वाली सारे टीचर की चहेती शालिनी बेंच पर खड़ी थी. क्लास के सारे बच्चे ,मुहँ खोले उसे देख रहे थे.
सर, वापस कॉपियाँ चेक करने में लग गए थे. एक एक कॉपी चेक करते, बच्चे का नाम पुकारते. उस बच्चे को डांटते और फिर कॉपी उसकी तरफ फेंक देते. किसी ने अच्छा नहीं किया था. यह देख शालिनी का रोना और बढ़ता जा रहा था .अब सर के सामने शालिनी की कॉपी थी. उनका बडबडाना बदस्तूर चालू था, “कोई भी नहीं पढता…किसलिए स्कूल आते हो तुमलोग, माँ-बाप के पैसे बर्बाद करने ?” .फिर माथे पर चढ़ी भृकुटी थोड़ी शिथिल हुई..”अँ.. ये तो सही हैं. हम्म ये भी सही है…ओह ये भी सही..” अब आश्चर्य का भाव था,चेहरे पर. “हम्म क्या बात है…ये भी राईट..हम्म..पंद्रह में से बारह राईट” अब थोड़ी सी मुस्कान तिर आई थी उनके चहरे पर. नाम देख पुकारा, “शालिनी कौन है ?” वो चुप रही.
” हू इज शालिनी? ” (फिर से अंग्रेजी पर आ गए )
इस बार मानस ने हँसते हुए कहा..’सर वो जो बेंच पर खड़ी रो रही है,ना..वही है शालिनी”
“ओह्ह!! सिट डाउन.. सिट डाउन..ले जाओ अपनी कॉपीगुड़, यू हैभ डन बेल “
वो उतर तो गयी थी. पर इतने अपमान के बाद कॉपी लेने नहीं गयी. वे स्वर को कोमल बना कर
बोले..”ले जाओ अपनी कॉपी”
वो भी हठी की तरह खड़ी रही.
इस बार मानस उठ कर बोला..”सर मैं दे आऊं??” और हंस पड़ा.
“क्यूँ”
वो नहीं जा रही ना”
“तुम्हार क्या नाम है?.”
“मानस”
“कितने नंबर मिले तुम्हे?”
“पांच”..मुस्कराहट अब भी वैसे ही जमी थी उसके चहरे पर.
“और हंस रहे हो..शर्म नहीं आती. खड़े हो जाओ बेंच पर” डांट कर कहा
. पर मानस बेंच पर खड़ा भी हँसता ही रहा.
घंटी बजी और सर के जाते ही,सब दरवाजे की तरफ. भाग लिए अंतिम पीरियड था. वो शर्म से सर झुकाए, धीरे धीरे दरवाजे की तरफ बढ़ रही थी कि आवाज़ आई ‘रोनी बिल्ली” खूनी आँखों से देखा तो मानस और उसके चार-पांच शैतान दोस्त हंस रहे थे. बस वहीँ विष बेल के बीज पड़ गए.
फिर तो मानस कोई मौका नहीं छोड़ता, उसे चिढाने का. उसी की कॉलोनी में चार घर छोड़ कर रहता था. साथ खेलने वाले सारे बच्चों को पता चल गया था. शालिनी को बेंच पर खड़े होने की सजा मिली थी और वह रोई थी. खेल में भी मानस इतना तंग करता कि वह रो ही देती. लुक्का-छिपी खेलते तो पता नहीं कहाँ छुपा रहता और फिर उसे धप्पा कर देता. बार-बार शालिनी को ही चोर बनना पड़ता अंत में तंग आ वह रो देती. तो फिर मानस को चिढाने का बहाना मिल जाता. कोई भी खेल शुरू करने के पहले कहता..’मैं नहीं खेलता, हारने पर लोग रोने लगते हैं”
सबकी आँखें उसकी तरफ उठ जातीं. फिर सब मानस को मनाने में लग जाते और शालिनी गुस्सा पीते हुए खुद में ही सिमट जाती.
वह उसे गुस्से मे घूरती और वह दाँत दिखाता रह्ता. पर इस बार गुस्से मे घूरने की बारी मानस की थी जब छमाही परीक्षा में वह फ़र्स्ट आई थी और मानस को बहुत कम नम्बर मिले थे. हर शाम की तरह वह शोभा के साथ बाहर टहल रही थी. मानस के घर के सामने से गुजरते हुए, शोभा ने बताया कि आज अचानक वह मानस के घर गयी तो देखा, चाची मानस को आंगन में दौडा दौडा कर मार रही हैं और बोलती जा रही हैं “वह लड़की होकर भी फर्स्ट आ गयी, इतने अच्छे नंबर लेकर आई और तुम मुश्किल से पास हुए…अब भागते किधर हो?.”
उस दृश्य की कल्पना कर वह दोनो हंस पड़ीं..उसी वक्त मानस घर से बाहर आ गया. दोनो अचकचा कर चुप हो गयीं पर मानस समझ गया कि वे दोनों उसी पर हंस रही थीं. उसे इतने गुस्से से घूरा कि अगर किसी देव ने कभी प्रसन्न होकर मानस को कोई वर दिये होते तो वो वहीं भस्म हो जाती. उस विषबेल पर अब पत्ते निकल आये थे.
और अब माँ की मार का बदला वह रोज उसे स्कूल में तंग कर के लेता. धीरे धीरे मानस ने शाम को उन सबके साथ खेलना छोड दिया. अब वह मैदान में बडे बच्चों के साथ क्रिकेट और फ़ुटबाल खेलने जाता. क्लास पर क्लास बढते गये पर स्कूल मे शालिनी को तंग करना वैसे ही जारी रहा.
फ़ेयरवेल के दिन परम्परानुसार सबने साडी पहनी. उसने भी ढेर सारे पिन लगाकर माँ की आसमानी साड़ी पहनी. पडोस की बीना दी ने छोटे छोटे नग वाले इयररिंग्स और पतली सी नेकलेस पहना दी थी . बाल खुले छोड़ दिए थे, हल्की सी लिपस्टिक लगा दी थी. पडोस की चाची ने देखते ही कहा, ‘शालिनी की माँ, इसकी नजर जरूर उतार दीजियेगा. सहेलियाँ भी उसे देखते ही, मुंह पर हाथ रकः कर बोलीं थीं, ‘हाss …पहचाना में नहीं आ रही तू “ पर उस पर नजर पड़ते ही मानस ने मुंह बना कर बोला, “कोई शादी है क्या…लोग इतना सज धज कर आ रहे हैं.” उसका सारा तैयार होना व्यर्थ हो गया.
और इसी डर के मारे, कॉलोनी में अनीता दी की शादी मे जब शालिनी ने सब की ज़िद पर साडी पहनी तो पूरे समय मानस के सामने पडने से बचती रही. एक बार जब एकदम से सामने आ गया तो शालिनी ने जल्दी से मुहँ फ़ेर लिया. और वह धीमे से उसे सुना कर बोला “पता नहीं इतना घमंड किस बात का है?”
शालिनी सोचती रह जाती , कब किया उस ने घमंड ? फ़र्स्ट आना क्या घमंड करने जैसा है ? अब वह उसकी खुशी के लिये फ़ेल तो नहीं हो सकती. और उस ने मुहँ बिचका दिया. खाता रहे जितनी मार खानी हो अपनी माँ से. उसकी बला से.
वह गर्ल्स कॉलेज में आ गयी तो मानस से पीछा छूटा. पर कहीं उसके तानों की इतनी आदत पड गयी थी कि क्लास मे सब सूना सूना लगता. मानस के घर के बिल्कुल बगल मे एक शर्मा अंकल ट्रांस्फ़र हो कर आये थे. उनकी तीन लड्कियाँ थीं, तीनों का मानस के घर मे आना जाना था. उनसे हमेशा मानस को हँस कर बातें करते देखती तो शालिनी को थोड़ी सी कसक होती फिर खुद से ही कहती. पर उसे क्या, जिस से मर्जी हो उस से बात करे.
एक बार शर्मा अंकल के यहाँ गयी थी. बाहर ही उनकी बेटी निशा मिल गई. वो ऊन की सलाइयाँ, मानस की माँ को देने जा रही थी. उसे भी कहा, “चल मेरे साथ”
“मैं नहीं जाती मानस के यहाँ”
“क्यूँ?”
“ऐसे ही उस के यहाँ कोई लडकी भी नहीं.”
“तो क्या हुआ. वो तो स्कूल में तुम्हारे ही क्लास मे था, ना ? पर तुम लोग कभी बात भी नहीं करते….झगडा है क्या, उस से?”
“नहीं, झगड़ा क्यूँ होगा.?”
“अरे..झगडा तो किसी भी बात पर हो सकता है. वैसे मानस घर पर है नही..अभी अभी उसे बाहर जाते देखा है..बता ना झगडा है उस से??
“नहीं बाबा..कोई झगडा नहीं, चलो चलती हूँ..” उसकी बातों से बचने को शालिनी उसके साथ चल दी.”
निशा हर कमरे मे चाची चाची कह्ती घूमने लगी पर चाची कहीं नहीं थीं. ‘तुम यहीं रुको, मै छ्त पर देख कर आती हूँ,’ कहती निशा छत पर चली गई . शालिनी ने पाया,चाची को ढूंढते वे लोग मानस के कमरे में आ गई थी. मानस का कमरा बिखरा हुआ था . किताबें बिस्तर पर, मेज पर सब तरफ फैली हुई थीं. शालिनी को उत्सुकता हुई ,’ ’देखूं कुछ पढ़ता भी है या सब वैसे ही कोरी हैं. वह उसकी मेज़ पर आकर मानस की किताबें-कॉपियां , उलट पलट कर देखने लगी.
पहली नोटबुक जो खोली , नोटबुक करीब करीब भरी हुई थी .पिछले पेज पर सुन्दर सा एक फ़ूल बना हुअथा . ’ह्म्म ठीक ही सोचा था उसने ,अब भी उसका पढने में मन नहीं लगता ,.यही ड्राइंग करता रह्ता है’ पर फूल बहुत सुंदर बनाया था , पेंसिल से सुंदर शेडिंग की हुई थी तभी शालिनी ने देखा, फ़ूल के बीच मे बड़ी खूबसूरती से लिखा हुअ है, ’शालिनी’. उस के दिल की धड़्कन अचानक बढ़ गई. फ़िर तो जल्दी जल्दी कई नोटबुक पलट डाले और तकरीबन सबमे, फ़ूल पत्ती, बेल बने हुये थे और बीच बीच मे लिखा हुअ था, शालिनी.
एकदम से डर गई वह. पसीने से नहा गई. जल्दी से बाहर निकल आई. चेहरा , लाल पड़ गया था और दिल इतनी जोर जोर से धड़क रहा था कि उसे खुद ही अपनी धडकनें सुनाई पड़ रही थीं. निशा के सामने पड़ने की हिम्मत नहीं थी उसमें . आंगन से ही आवाज़ लगाई शालिनी ने ,”निशाss…मैं जा रही हूँ”
“अरे रुक मैं बस आ ही गई ” निशा की आवाज़ भी उसने बाहर निकलते निकलते सुनी.
घर आकर सीधा छ्त पर भाग गई, निशा क्या किसी का सामना करने की हिम्मत नहीं थी, उसमें . साँसें जब सम पर आई तब दिमाग कुछ सोचने लायक हुआ. पर वह इतना घबरा क्यूँ रही है,क्या अकेली वही ‘शालिनी’ है इस दुनिया मे ? उसके कॉलेज मे लड़्कियाँ भी तो पढ़ती हैं. उन मे से ही कोई होगी या क्या पता, जिन प्रोफ़ेसर के यहाँ ट्यूशन पढने जाता है, उनकी बेटी का नाम हो
‘शालिनी’ का नाम कैसे लिख सकता है ? शालिनी के पढाई मे तेज़ होने के कारण. उस से तो मानस बचपन से ही नफ़रत करता है. स्कूल मे रीता, शर्मिला सबसे बातें करता है. कॉलोनी में भी शोभा, निशा से कितना खुलकर बात करता है. एक सिर्फ़ उस से दूर रहता है. दूर ही नहीं हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश , कभी भी व्यंग्य करने, ताने मारने से बाज नहीं आता. अब उसका नाम कैसे लिख सकता है ??नामुमकिन. उस विष-बेल में अमृत धारा कैसे बह सकती है?
और अगर सच मे लिखा हो तो. ना ना मानस इतना हैंन्डसम है, इतन स्मार्ट. और वह कितनी छुई मुई सी है, बस कीताबी कीड़ा. ना..मानस को तो कोई अपने जैसी कोई स्मार्ट लड़की ही पसन्द आयेगी. जो जिसे चाहे मुहँ पर जबाब दे दे ,किसी से ना डरे . उसकी तो किसी को देखते ही जुबान तालु से चिपक जाती है. बेकार मे सपने बुन रही है वह.
और फ़िर जैसे खुद को ही पहली बार जाना. सपने?? तो क्या, उसे मानस से कोई नराज़गी नहीं. पहले तो उसे मानस पर बड़ा गुस्सा आता था,. हाँ आता तो था,पर जब से कॉलेज अलग हुये हैं. उसकी कमी बहुत खलती है. शालिनी ने अपना दिल टटोला ..तो क्या वह मानस को मन ही मन पसंद करती है? पर एक गहरी सांस निकल गई, पसंद करती भी हो तो क्या, ये सोचने का भी क्या फ़ायदा…वो कभी मानस की पसन्द हो ही नहीं सकती. ये जरूर कोई और ‘शालिनी’ होगी , नहीं तो क्या अब तक मानस एक बार भी नज़र उठा उसे देखता नहीं ? इतनी सारी लड़कियों से बात करता है, सिवाय शालिनी के . इसका मतलब वो उसे पसंद नहीं करता. हाँ, शालिनी को तो उसके जैसा ही कोई पढ़ाकू पसंद करेगा. मोटी कांच के चश्मेवाला, चिपके बाल, पूरी बाहँ की शर्ट, गले तक बंद बटन. यsक और जैसे अपनी कल्पना से ही घबराकर उठ कर नीचे भाग गयी.
शुक्र है,माँ घर में नहीं थीं..वरना उसका बदहवास चेहरा देख पूछ ही बैठतीं,क्या हुआ? शालिनी ने सोफे
पर लेट, टी.वी. ऑन कर दिया. कुछ तो ध्यान बंटे. पर स्क्रीन पर तो एक सुन्दर सा फूल दिख रहा था, जिसके अंदर लिखा था, शालिनी. घबरा कर आँखें बंद कीं तो पलकों में भी वही फूल मुस्करा उठा. उसने कुशन उठा कर जोरो से आँखों पर भींच लिया.
पर इसके बाद से वह काफी डर गयी थी. बालकनी में खड़ी रहती और दूर से भी मानस को आते देखती तो धडकनें तेज़ हो जातीं और वह झट से छुप जाती. लगता जैसे, सबकी नज़रें उन दोनों को ही देख रही हैं. निशा कितनी बार बुलाने आती..चलो बाहर टहलते हैं..पर वो उसे छत पर ले जाती, कहीं मानस से सामना ना हो जाए. कभी आते-जाते मानस सामने पड़ भी जाता तो पसीने से नहा उठती और जल्दी से कतरा कर निकल आती
मानस दिखता भी कम. निशा बताती, बहुत मेहनत से पढ़ाई कर रहा है..उसका मन होता कहे, ‘जरा उसकी कॉपियाँ पलट कर देखो..पढता है या ड्राइंग करता है’ पर जब बारहवीं का रिजल्ट आया तो सब हैरान रह गए, मानस को ८७% मार्क्स मिले थे. जबकि दसवीं में मुश्किल से फर्स्ट कला आया था. अब वह शालिनी के समकक्ष आ गया था . जो पापा को शायद अच्छा नहीं लगा था, बार बार कहते..”लड़कों का कुछ पता नहीं, कब पढने की लगन जाग जाये..”
माँ बहुत खुश थी,कहतीं..” मानस की माँ की चिंता दूर हो गयी. हमेशा कहती थीं”. तुम्हारी तो बिटिया है..वो भी इतनी तेज है..और मानस तो ..लड़का होकर भी नहीं पढता. कैसे मिलेगी, नौकरी?”
मानस का अच्छा रिजल्ट उसे इस शहर से भी दूर ले गया. वह बड़े शहर में पढने चला गया. जाने के एक दिन पहले, शालिनी ने कई बार मानस को अपने घर के सामने से आते-जाते देखा. कई बार दिल में आया, जाकर बधाई दे दे. दूर से उसे आते देख, साहस कर आगे बढती भी पर फिर हर बार वह ओट में हो जाती. हिममत ही नहीं हुई सामने आने की.
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शालिनी ने भी खुद को पढ़ाई में झोंक दिया. अपने भविष्य की रूपरेखा भी तय कर ली, ग्रेजुएशन के बाद कम्पीटीशन देगी और फिर एक बढ़िया सी नौकरी. बड़ी सी मेज़ होगी, फाइलों से लदी. सामने चपरासी हाथ बांधे खड़ा रहेगा. वाह क्या रुआब होगा.
पर उसे कहाँ पता था, वह तो परीक्षा की तैयारियों में उलझी है और घर वाले किसी और तैयारी में. यूँ ही पढ़ाई से ब्रेक लेने के लिए किचन में कुछ डब्बे टटोलने आई तो बरामदे में बैठी माँ और पड़ोस वाली, सिन्हा चाची का स्वर कानो में पड़ा. ” अब लड़की के भाग्य हैं और क्या..घर बैठे तुम्हे इतना अच्छा लड़का मिल गया ” सिन्हा चाची थीं.
“हाँ , वो तो है. हमने अभी कहाँ कुछ सोचा था, वो तो इसकी बुआ आई थीं उन्होंने ही बताया उनकी पड़ोस में एक बहुत अच्छा लड़का है. उनलोगों को बस अच्छे घर की गोरी,पढने में तेज़ लड़की चाहिए”
“अरे तेज़ लड़की…मतलब?..नौकरी करवाएंगे क्या?? लड़का अच्छा कमाता तो है?”
“सच कहूँ तो मैं भी ऐसे ही हैरान हो गयी थी, पर सुषमा जी ने जब बताया सुन कर कुछ अजीब ही लगा. लड़की पढने में तेज़ होनी चाहिए..ताकि बच्चे मेधावी हों. क्या क्या नखरे होते जा रहें है लड़केवालों..के. पर इनकी दहेज़ की ज्यादा मांग नहीं और शालिनी को तो दूर से बाज़ार में देख कर ही पसंद कर लिया. वरना आप शालिनी को तो जानती हैं , ना?? वह कभी तैयार होती ‘लड़की दिखाने को?? दिमाग में क्या फितूर भरा हुआ है. बहुत पढना है. कम्पीटीशन देना है. ऑफिसर बनना है. पर हमें तो ,बिना चप्पल घिसे अच्छा लड़का मिल गया. हम तो गंगा नहा लिए. अभी तो शालिनी को बताया भी नहीं है. परीक्षा होने वाली है उसकी. क्या पता रोना धोना शुरू कर दे कि नहीं करनी शादी
शालिनी घड़े से पानी ले रही थी, मन हुआ ग्लास दे मारे घड़े पर और सारा पानी फ़ैल जाए. किचन के साथ साथ उनके मंसूबों पर भी.
पर कुछ नहीं कर सकी और अनजान बन वापस कमरे में लौट आई. बस किताब उठा जोर से दूर फेंक दी ..और बरसती आँखें ,तकिये में छुपा लीं.
पढने का भी मन नहीं होता. नोटबुक खोलती तो बार-बार मानस के उकेरे फूल पत्ती दिखने लगते. पर खुद को ही डांट देती. पता नहीं, किस शालिनी का नाम वह लिखता रहता है.. और वह दिवास्वप्न देख रही है.
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इम्तहान ख़त्म हो गए और माँ ने सीधे सीधे ही खबर सुनाई , “ अमुक दिन को लड़के वाले गोद भराई के लिए आ रहे हैं.” शालिनी ने रोना धोना तो नहीं किया. लेकिन स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘अभी शादी नहीं करेगी, आगे पढेगी ‘ अखबार पर नज़रें गडाए पापा ने फैसला सुनाया, , “ पढने से कौन रोक रहा है…पढ़ती रहना. पर इतना अच्छा लड़का हम हाथ से नहीं जाने देंगे.” पापा का फैसला पत्थर की लकीर .उसके विरुद्ध कहीं कोई सुनवाई नहीं. वह थी भी भीरु टाइप. बहस की हिम्मत ही नहीं हुई.
जोर शोर से शादी की तैयारियां शुरू हो गयीं. शादी का दिन भी नज़दीक आ गया . घर जिस तेजी से मेहमान से भरने लगा,उतनी तेजी से ही उसके दिल में खालीपन घर करने लगा. कोई उत्साह,उमंग मन में जागती ही नहीं. शालिनी ने इस जीवन की कल्पना तो कभी नहीं की थी?? उसके मन की इच्छा को भली-भांति जानते हुए भी अगर माता-पिता एक बोझ समझ दूसरे हाथ में सौंप गंगा नहा लेना चाहते हैं..तो ऐसा ही सही.
मन इतना अवसाद से घिर चुका था, मानस का भी ख़याल नहीं आता. आता तो यही कि उसे कम से कम जिसकी चाहना है वो,उसे मिल जाए.
आज शालिनी की शादी थी और उसे पीली साड़ी पहना, आँखों में काजल लगा, एक कमरे में बिठा दिया गया था. सारे भाई-बहन, मेहमान, चहकते हुए रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे इधर से उधर दौड़ते रहते. पल भर को हमउम्र बहने पास आ बैठतीं फिर ही ही करती हुई बाहर चल देतीं. वो वीतराग सी चुपचाप एक चटाई पर बैठी रहती. तभी माँ का तेज़ स्वर कानों में पड़ा, “अरे मानस की माँ कहाँ,जा रही हैं?? खाना खा कर जाइये. ” कुछ दिनों से घर में सब चिल्ला चिल्ला कर बातें करते. धीरे बोलना सब भूल ही गए थे
” बस थोड़ी देर में आती हूँ. मानस की ट्रेन का टाइम हो चला है.वो आने ही वाला होगा”
“अच्छा.. मानस आ रहा है?? आप तो कह रही थीं, उसकी छुट्टी नहीं”
“हाँ पहले तो उसने यही कहा था. पर कल फोन किया कि दो दिनों के लिए आ रहा है”
“बहुत अच्छा किया मानस ने . कॉलोनी के लड़के ही काम नहीं संभालेंगे तो कौन संभालेगा..जल्दी आइये उसे साथ लेकर”
शालिनी को जैसे जोर का चक्कर आ गया. क्यूँ आ रहा है मानस ? क्यूँ उसके लिए सब कुछ इतना मुश्किल बना रहा है ?.क्या पहले ही यह राह कम दुष्कर नहीं. पर रोक नहीं सकी खुद को. खिड़की पर जा खड़ी हुई. कोई घंटे भर, खड़े रहने के बाद, जब पैर दुखने लगे तब जाकर, उसकी नज़रों के फ्रेम में एक आकृति नमूदार हुई और वह घबराकर चटाई पर आकर वापस बैठ गयी. सर घुटनों में छुपा लिया.
बरामदे में मानस के पदचाप के साथ उसकी आवाज़,’ नमस्ते चाची..प्रणाम दादी..सुन रही थी. जरूर ,छोटू को ढूंढ रहा होगा. पर उसकी पदचाप तो शालिनी के कमरे तक आती जा रही थी और परदा उठा वह भीतर दाखिल हो गया..शालिनी की झुकी गर्दन और झुक गयी.
‘शालिनीs”…इतने दिनों में पहली बार मानस ने बिना किसी व्यंग्य के उसका नाम पुकारा था . पर शालिनी का झुका सर उठ नहीं सका.
“शालिनी” इस बार मानस की आवाज़ थरथरा रही थी. और शालिनी की आँखों से दो बूँद पानी टपक गए.
“शालिनी…क्या हमेशा नाराज़ ही रही होगी” गीली हो आई थी मानस की आवाज़ और शालिनी की आँखों से आंसुओं की धार बंध चली.
“हम्म ठीक है…दैट्स फाईन…बहुत बधाई हो…खूब खुश रहो तुम और बहुत ही भारी थके क़दमों से वह बाहर निकल गया.
शालिनी ने जल्दी से सर उठा भरे गले से .’माs नस ‘ पुकारना चाहा.. पर तब तक मानस परदे उठा बाहर कदम रख चुका था. शालिनी की थमती रुलाई दूने वेग से उमड़ पड़ी.
बाहर माँ की आवाज़ सुनाई दी..” आ गए बेटा..बहुत अच्छा किया. तुमलोगों को ही तो सब संभालना है. पर तुम मेरा एक काम करो. मेरा कैमरा तुम संभालो. फोटोग्राफर तो हैं ही..पर वो सबको पहचानता नहीं ना..तुम मेरे कैमरे से, सारे करीबी लोगों की अच्छी अच्छी फोटो लेना…”
और माँ कमरे में आ गयीं..”शालिनी जरा आलमारी से कैमरा निकाल दो तो”
उसने बिजली की फुर्ती से कैमरा निकाल कर दे दिया
मानस के हाथों में कैमरा थमाते एक पल को आँखें मिलीं .मानस की आँखों में ऐसी कशिश,ऐसे भाव थे कि उन नज़रों की ताब सह नहीं सकी .नजरें झुका लीं, आँखें फिर उमड़ आईं.
मानस के हाथों में कैमरा देखना था कि बच्चों की फरमाईश शुरू हो गयी, एक हमारी फोटो लो ना भैया..” उधर से लड़कियों का झुण्ड खिलखिलाता हुआ आया, “भैया एक फोटो हमारी भी” तभी मामियों ,चाचियों का ग्रुप टोकरी में कुछ सामान लिए शालिनी के कमरे तक आता दिखा,और साथ में मानस को हिदायत, “अंदर चलो…रस्म होने वाली है. उसकी फोटो ले लेना”
कैमरा संभालता मानस अंदर दाखिल हो गया. इसके पहले भी इन चाची,मौसी,मामी, का ग्रुप शालिनी को अक्सर घेरे रहता और अजीब अजीब सी रस्में करवाता रहता, ‘यहाँ चावल चढाओ’ .’यहाँ टीका करो.’ वह कठपुतली सी बिना किसी अहसास के रस्म निभाये जाती पर आज थोड़ी सी असहज थी पूरे समय लगता रहा,एक जोड़ी आँखें उसपर टिकी हुई हैं. रस्म ख़त्म होते होते उसके पैर सुन्न पड़ गए थे. शालिनी ने आशा भरी आँखों से उनलोगों की तरफ देखा, पर वे लोग खुद में ही मगन थीं, “अरे ये तो लाल कपड़े में बाँधा जाता है…सुपारी नहीं रखी?…पान के पत्ते भी चाहिए थे….क्या जीजी अभी तो आपने बेटी की शादी की है और सब भूल गयीं “
किसी का ध्यान उसकी तरफ नहीं था. और एक हाथ उसकी आँखों के सामने आया. नज़रें उठाईं तो देखा, ‘मानस ने सहारे के लिए हाथ बढाया है’ वह उसकी आँखों का आग्रह समझ गया था. कैसे नहीं समझता ,’बचपन से बस आँखों की भाषा ही तो जानी है’
मानस का हाथ थाम, उठते हुए लड़खड़ा सी गयी..और मानस ने एकदम से थाम लिया,..’अरे संभल के’ ..कितना स्वाभाविक सा लग रह है सब कुछ जैसे कितने पुराने ,गहरे दोस्त हों. वो बीच में फैली विष-बेल कहाँ विलीन हो गयी थी.
महिलाओं का सारा ग्रुप कोई मंगल गीत गाते हुए ,आँगन की तरफ चला गया और जैसे उसे होश आया, अपनी पसीजती हथेली उसने मानस के हाथों से छुड़ा ली.
अब कमरे में सिर्फ मानस और शालिनी थे, और थी बड़ी ही असहज करती हुई सी चुप्पी.
शालिनी ने ही चुप्पी तोड़ी..”खाना खाया?”
“हाँ”
“झूठ”..हंसी आ गयी उसे “जब से आए हो कैमरा संभाले खड़े हो, खाना कब खा लिया?”.फिर से एकदम सहज हो उठा सब कुछ.
मानस भी मुस्कुरा पड़ा.फिर थोड़ा रुक कर पूछा, “तुमने खाया?”
“नहीं.मेरा उपवास है,मुझे कुछ भी नहीं खाना..”
“अरे क्यूँ?”
“लड़कियों को शायद पहले से ही ट्रेनिंग दी जाती है कि आदत बनी रहे. क्या पता ससुराल जाकर कुछ खाने को मिले या नहीं…या पता नहीं कब मिले..” हंस दी वह.
“बेकार की बातें हैं सब..मैं ले आऊं? कुछ खाओगी?..भूख लगी है?”
“नहींssss.” उसने जरा जोर से ही कह दिया..मानो ये थोड़ा सा एकांत मिला है, इसे गंवाना नहीं चाहती हो.
फिर से दोनों चुप हो गए. इस बार मानस ने ही थोड़ी देर अपनी हथेलियों को घूरते हुए कहा, “बड़ी जल्दी थी, तुम्हे शादी की”
शालिनी ने एक नज़र मानस को देखा, और नज़रें खिड़की से बाहर टिका दीं, “किसी ने कहा ही नहीं इंतज़ार करने को..”
“कैसे कहता, वह? कुछ बन तो जाता पहले …तुम कहाँ इतनी तेज़..टॉपर.और मैं नकारा..किसी तरह पास होने वाला.तुम तो ऊंची डाली पर लगी एक फूल के समान थी .मैं वहाँ पहुँचने के लिए सीढ़ी बना ही रहा था कि वह फूल टूटकर किसी और…मानस ने बात अधूरी छोड़ दी.
“तुम स्कूल के..कॉलोनी के. कॉलेज के हीरो थे” एक एक शब्द पर जोर देते हुए कहा,शालिनी ने .
“मुझे सिर्फ एक का हीरो बनना था”
“तुम उसके हीरो थे” जरा जोर देकर कहा शालिनी ने तो मानस एकदम से पूछ बैठा
“सच??..” मानस के दिल की धड़कन बढ़ गयी थी.
शालिनी ने एक नज़र मानस को देखा और नज़रें खिड़की के बाहर आम के पेड़ की फुनगी पर टिका दीं. जहाँ कुछ गुलाबी कोमल पत्ते उग आए थे. ऐसा ही कुछ कोमल सा उनके बीच भी उग रहा था. पर इन नवजात कोंपलों की उम्र कितनी कम थी. वो पेड़ के कोंपल की तरह प्रौढ़ हरे पत्ते में नहीं बदल पायेंगे कभी.
“हाँ सच…पर तुम तो पता नहीं किस शालिनी के नाम की माला जपते रहते थे. अपनी नोटबुक में उसका नाम ही लिखते रहते थे” उलाहना भरा स्वर था शालिनी का
“व्हाटssss ???? ..” बुरी तरह चौंक गया वह.
मानस की असहजता पर मुस्कुरा पड़ी वह, “हाँ मानस एक बार निशा के साथ मैं तुम्हारे घर गयी थी. देखा..नोटबुक में फूल-पत्तियों के बीच किसी शालिनी का नाम लिख रखा है. मैं देखते ही भाग आई”
“ये…ये तो बहुत गलत है. यूँ चोरी..चोरी किसी की किताब कॉपियाँ..देखना..बैड मैनर्स.. वेरी वेरी बैड, मैनर्स ” मानस का चेहरा लाल पड़ता जा रहा था, बोला, “और मैं दूसरी किस शालिनी को जानता हूँ? “
फिर एकदम से शालिनी की नज़रों में सीधा देखते हुए कहा “अगर ऐसा होता तो आज मैं यहाँ आता?? पहले तो सोचा नहीं आऊंगा, फिर लगा ‘मुझे यहाँ पहुंचना है..हर हाल में..क्यूँ, कैसे मैं कुछ नहीं जानता था. दो कपड़े बैग में डाले और सीधा स्टेशन आ गया. रात भर जाग कर टॉयलेट के पास एक रुमाल बिछा कर बैठ कर आया हूँ. और तुम कह रही हो..कोई और शालिनी होगी” दर्द से उसका स्वर भीग आय था.
शालिनी की भी आँखें भर आयीं. अब क्या फायदा मानस .तुमने जरा सी हिम्मत नहीं की और कोई संकेत भी नहीं दिया..उल्टा उसे हमेशा चिढाते,खिझाते ही रहे , और चिढाने की बात से सब पिछला याद आ गया, रोष उमड़ आया.आज उसे सारा हिसाब लेना ही होगा. एकदम से बोल पड़ी”तुम मुझे इतना चिढाते, रुलाते क्यूँ थे?”
“तुम्हारी अटेंशन पानेके लिए….इतना भी नहीं समझती थी तुम”
“हाँ, नहीं समझती थी और जब समझने की उम्र आई तो तुम दूर चले गए “..हताश होकर बोली वह.
“पता नहीं, मुझे क्यूँ तुम हमेशा डरी-सहमी सी लगती थी. लगता था तुम्हे किसी की सुरक्षा की जरूरत है. तुम्हे याद है..हमेशा मैं तुम्हारे पीछे आता था और किसी को आवाज़ देकर जता देता था कि मैं तुम्हारे पीछे ही हूँ.पर तुमने कभी एक बार मुड कर भी नहीं देखा”
“क्या देखती..मैं तो डर जाती थी..अब फिर कुछ चिढ़ाओगे और मैं कदमों की चाल तेज कर देती “
“बुध्दू हो तुम..बिलकुल. स्कूल में और किसी लड़के ने कभी तुमसे कुछ कहा? तंग किया? परेशान किया??नहीं ना…क्यूं कि सब जानते थे, तुम्हे परेशान करने का अधिकार सिर्फ मेरा है..वरना वो तुम्हारी सहेलियाँ रीता, शर्मीला..याद है..कितना परेशान करते थे लड़के, उन्हें??” और जैसे उसे कुछ याद आ गया, हंस पड़ा.”वो उचक उचक कर बोर्ड पर ‘सम’ बनाती तुम और वो बेंच पर खड़ी हो कर रोती हुई. एकदम रोनी बिल्ली लगती थी..”
“अच्छा और क्लास में मुर्गा बने तुम कैसे दिखते थे. शर्मा सर तो तुम्हारी पीठ पर किताबें भी रख देते थे और तुम उन्हें गिरा देते. सर तुम्हे आधे घंटे और खड़ा रखते.” उसके भी होठों पर मुस्कान तिर आई.
“उन्हीं सब से तो दूर जाना था., मैं तुम्हारे काबिल बनना चाहता था. जी-जान लगा दी थी मैने पढ़ाई में. अब क्या पढूंगा…सब छोड़ दूंगा” झुंझला गया वह.
“बेवकूफी की बातें मत करो. मेरी पढ़ाई तो अकारथ गयी. तुम बहुत बड़े आदमी बनना ,मानस..मुझे अच्छा लगेगा.”
“तुमने इतनी जल्दी शादी के लिए ‘हाँ’ क्यूँ कहा,शालिनी.??” मानस ने आजिजी से कहा.
“किसने पूछा मानस ?? हम लड़कियों से कभी पूछते हैं ??.बता देते हैं,बस..कई बार तो तुरंत बताते भी नहीं..दूसरों से पता चलता है कि उनकी शादी ठीक हो गयी है.” गला भर आया उसका.
मानस भी चुप हो आया, फिर शायद
“वैसे , हू इज दिस लकी चैप . “
“क्या पता “
“व्हाट डू यू मीन क्या पता….मिली नहीं हो?”
“बिना देखे ,अंगूठी पहना देने और चम्मच से मिठाई खिला देने को मिलना कहते हैं तो इतना मिली हूँ “
“बातें नहीं होतीं ?”
“हाँ हूँ में …अब बरामदे में फ्रिज पर फोन रखा है,घर के बीच में .जैसे ही फोन आता है. माँ चिल्ला कर कहती हैं,’शालिनी के लिए फोन है..टी वी बंद कीजिये और सब घर में स्टैच्यू बन जाते हैं…ऐसे में कोई क्या बात कर पायेगा और सच कहूँ तो मेरा मन भी नहीं होता. दिल उदासी में डूब जाता है…जाने क्यूँ “
“अरे चाचा जी ने बहुत अच्छा लड़का ढूँढा होगा…मस्ट बी अ गुड़ कैच..वरना तुम्हारी पढ़ाई ,तुम्हारा कैरियर यूँ बीच में नहीं छुडवा देते.. बहुत काबिल होगा”..उदासी घिर आई थी मानस के स्वर में , जिसने शालिनी को भी कहीं गहरे छू लिया.
“मानस, मुझे बहुत डर लग रहा है..” अनायास ही थरथरा आई आवाज़ उसकी.
मानस का मन हुआ उसे आगे बढ़ ,गले से लगा कर उसके अंदर का सारा डर सोख ले. एक आवेग सा उमड़ा पर शालिनी की पीली साड़ी और मेहंदी रचे हाथ दिख गए, जो किसी और के नाम के थे. वैसे ही जड़ बना बैठा रहा.
और तभी निशा और शोभा ने कुछ कहते ,कमरे में कदम रखा और मानस को देखकर एकदम से चौंक गयी.
“अरे तुम कब आए…हम्म बेस्ट फ्रेंड की शादी में तो सब आते हैं .पर पक्के दुश्मन की शादी में आते पहली बार देखा ” शोभा की आवाज़ में चुहल थी.
मानस और शालिनी की नज़रें मिलीं.और सारा अनकहा सिमट आया, क्या थे वे?..दोस्त..दुश्मन..या क्या.
निशा की नज़र मानस के हाथ में थमे कैमरे पर पड़ी और वह मचल उठी..’मानस शालिनी के साथ हमारी फोटो लो ना”.
दोनों उससे लग कर खड़ी हो गयीं और जब निशा ने उसे कंधे से घेर गीली आवाज़ में कहा, “कितना मिस करेंगे तुम्हे… तुम्हारे बिना कैसे रहेंगे हमलोग ” शालिनी का इतनी देर से रुका आंसुओं का सैलाब बह चला.दोनों सहेलियाँ भी आँखें पोंछने लगीं और उसे पता था कैमरे के पीछे भी किसी की आँखें गीली हैं.
वह मानस से पहली और आखिरी आत्मीय बातचीत थी. बड़ी दीदियाँ, उसे तैयार करने.., संवारने ले गयीं. मानस भी नहीं दिखा फिर. जब स्टेज पर जयमाल के लिए, सब लेकर जा रहे थे. शालिनी ने देखा,मानस कैमरा लिए बिलकुल सामने खड़ा है. नज़रें मिलीं और वहीँ जम कर रह गयीं. एक टीस सी उठी दिल में, अब वह किसी और के पहलू में बैठने जा रही है. शालिनी के कदम लड़खड़ा से गए, ‘अरे संभालो” सबको लगा, भारी लहंगा पैरों में फंस गया है.
स्टेज पर तो सब यंत्रवत करती रही. लोगों की तालियाँ, हंसी ठहाकों , कैमरे के लिए बार बार वो माला पकड़ना , सबके आग्रह पर मुस्काराना सब मशीनवत चलता रहा पर जब कन्यादान के समय उसे माता-पिता के बगल से उठा उस अजनबी के पास बिठाया जाने लगा तो जैसे अंदर कुछ जोर का दरक गया. सामने निगाहें उठाईं तो पाया, मानस की नज़रें उस पर ही जमी हैं. उसने मानस की ओर देखा और उसकी नज़रों में इतनी शिकायत, इतना उलाहना भरा था कि मानस उसके नज़रों की ताब सह नहीं सका. उसने गर्दन झुका कैमरा किसी और को पकडाया और वहाँ से चला गया. और वह एक अनजान व्यक्ति के पास बिठा दी गयी, अब उसका हाथ किसी और के हाथों में सौंप दिया गया था.
शालिनी को पता था, अब मानस नहीं आएगा. और वह उसकी विदाई तक नहीं आया.
शालिनी के पापा, सिर्फ शालिनी की पढ़ाई की वजह से अपना ट्रांसफर कई बार रुकवा चुके थे. अब शालिनी की शादी के बाद, उन्होंने भी ट्रांसफर दूसरी जगह ले लिया और मानस फिर कभी नहीं मिला.
‘प्लीज़ टाई योर सीट बेल्ट’ की उद्घोषणा से शालिनी की तन्द्रा भंग हुई. बच्चों को जगाया उनकी सीट बेल्ट बाँधी. प्लेन लैंड होने वाला था .
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शालिनी को कहाँ पता था, उसी समय देश के किसी दूसरे एअरपोर्ट पर यूँ ही एक जोड़ी निगाहें उसके लिए भटक रही थीं. जब से मानस की माँ को वाया वाया किसी से पता चला था कि शालिनी अब छुट्टियों में बच्चों को लेकर प्लेन से ही मायके आती है. उन्होंने यूँ ही मानस से एक बार पूछ लिया, “तुम्हे कभी मिली शालिनी?” और आगे खुद ही जोड़ दिया, “मिल भी गयी तो पहचानेगा कहाँ .अब तक कितनी बदल गयी होगी.”
मानस ने मन ही मन कहा, “माँ, वो अस्सी साल की भी हो जाए तब भी पहचान लूँगा उसकी आँखें और मुस्कुराहट तो नहीं बदलेंगी. और तब से स्कूल की छुट्टियां शुरू होते ही, मानस की नज़रें, एयरपोर्ट पर किसी को ढूंढती रहती हैं.
पर क्यूँ…किसलिए…. जबाब कोई नहीं मिलता .