प्रिया के प्रति – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
प्रिया के प्रति
एक बार भी यदि अजान के
अंतर से उठ आ जातीं तुम
एक बार भी प्राणों की तुम-
छाया में आ कह जातीं तुम
सत्य हृदय काअपना हाल
कैसा था अतीत वह, अब यह
बीत रहा है कैसा काल
मैं न कभी कुछ कहता ,बस तुम्हें देखता रहता!
चकित थकी चितवन मेरी रह जाती
दग्ध हृदय के अगणित व्याकुल भाव
मौन दृष्टि की ही भाषा कह जाती
(२ )
तप वियोग की चिर ज्वाला से
कितना उज्ज्वल हुआ हृदय ये
पिष्ठ कठिन साधना-शिला से
कितना पावन हुआ प्रणय यह
मौन दृष्टि सब कहती हाल,
कैसा था अतीत मेरा, अब
बीत रहा यह कैसा काल।
क्या तुम व्याकुल होतीं?
मेरे दुःख पर रोतीं ?
मेरे नयनों में न अश्रु प्रिय आता
मौन दृष्टि का मेरा चिर अपनाव
अपना चिर-निर्मल अंतर दिखलाता ।