प्रिय यामिनी जागी – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
प्रिय यामिनी जागी
प्रिय यामिनी जागी ।
अलस पंकज-दृग अरुण- मुख
तरुण-अनुरागी।
खुले केश अशेष शोभा भर रहे,
पृष्ठ-ग्रीवा-बाहु-उर पर तर रहे,
बादलों में घिर अपर दिनकर रहे,
ज्योति की तन्वी, तड़ित-
द्युति ने क्षमा माँगी।
हेर उर-पट फेर मुख के बाल,
लख चतुर्दिक चली मंद मराल,
गेह में प्रिय-नेह की जय-माल,
वासना की मुक्ति, मुक्ता
त्याग में तागी।