अब खोजनी है आमरण – कवि भारत भूषण अग्रवाल
अब खोजनी है आमरण
अब खोजनी है आमरण
कोई शरण कोई शरण
गोधुली मंडित सूर्य हूँ
खंडित हुआ वैदूर्य हूँ
मेरा करेंगे अनुसरण
किसके चरण किसके चरण
अभिजात अक्षर- वंश में
निर्जन हुए उर- ध्वंस में
कितने सहेजूँ संस्मरण
कितना स्मरण कितना स्मरण
निर्वर्ण खंडहर पृष्ठ हैं
अंतरकथाएं नष्ट हैं
व्यक्तित्व का ये संस्करण
बस आवरण बस आवरण
रतियोजना से गत प्रहर
हैं व्यंग्य- रत सुधि में बिखर
अस्पृश्य सा अंत:करण
किसका वरण किसका वरण