जिस पल तेरी याद सताए – कवि भारत भूषण अग्रवाल

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जिस पल तेरी याद सताए

जिस पल तेरी याद सताए, आधी रात नींद जग जाये

ओ पाहन! इतना बतला दे उस पल किसकी बाहँ गहूँ मै

अपने अपने चाँद भुजाओं

में भर भर कर दुनिया सोये

सारी सारी रात अकेला

मैं रोऊँ या शबनम रोये

करवट में दहकें अंगारे, नभ से चंदा ताना मारे

प्यासे अरमानों को मन में दाबे कैसे मौन रहूँ मैं

गाऊँ कैसा गीत की जिससे

तेरा पत्थर मन पिघलाऊँ

जाऊँ किसके द्वार जहाँ ये

अपना दुखिया मन बहलाऊँ

गली गली डोलूँ बौराया, बैरिन हुई स्वयं की छाया

मिला नहीं कोई भी ऐसा जिससे अपनी पीर कहूं मैं

टूट गया जिससे मन दर्पण

किस रूपा की नजर लगी है

घर घर में खिल रही चाँदनी

मेरे आँगन धूप जगी है

सुधियाँ नागन सी लिपटी हैं, आँसू आँसू में सिमटी हैं

छोटे से जीवन में कितना दर्द-दाह अब और सहूँ मैं

फटा पड़ रहा है मन मेरा

पिघली आग बही काया में

अब न जिया जाता निर्मोही

गम की जलन भरी छाया में

बिजली ने ज्यों फूल छुआ है, ऐसा मेरा हृदय हुआ है

पता नहीं क्या क्या कहता हूँ, अपने बस में आज न हूँ मैं

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