कहानी : बिदाई की रुलाई – पूनम पाठक
बिदाई की रुलाई
आज तैयार होकर आ ही गयी नीतू की शादी की सीडी। पगफेरे के दौरान मायके आयी नीतू अपनी बेस्टी रिंकू के साथ शादी की सीडी का मज़ा ले रही है। बीच बीच में उन दोनों के कहकहों से पूरा घर गूंज उठता है।
“सच्ची कितना मजा आ रहा है। एक एक रीति रिवाज़ को अब एन्जॉय कर पा रही हूं। और सबसे आखिरी में ये विदाई की रस्म। यार इतनी हाय तौबा के बाद आखिरकार कितने अच्छे से रोयी हूँ मैं….है न?” कहते हुए नीतू का बावला मन शादी के मंडप के नीचे जा खड़ा हुआ।
“देख, अभी से समझाये दे रही हूँ बिदाई के वक्त तेरा रोना बहुत ज़रुरी है नहीं तो हमारी बड़ी बदनामी होगी, लोग तो यही कहेंगे की बेटी को कभी प्यार न दिया तभी तो जाते वक्त बिलकुल ना रोई। अच्छे से समझ ले वरना पता चला उस वक्त भी खीखी करके हँस रही है।”मंडप के नीचे किसी बात पर नीतू के ज़ोर से हँसने पर माँ का प्रवचन चालू था।
“पर क्यों माँ, अकेला लड़का वो भी मेरी पसंद का। अच्छी जॉब और पैसे वाला। सास ससुर इतने सीधे की अगर मैं रोई तो वे भी मेरे साथ ही रोने लगेंगे। फिर क्यूँ न हंसते हँसते बिदा हो जाऊं।” उसने कहा था।
“अरी नाक कटवायेगी क्या? हमारे यहां लड़कियाँ बिदाई के समय पूरा मोहल्ला सिर पर उठा लेती हैं। देखा नही था कुछ सालों पहले हुई शादी में तेरी बुआ कितना रोई थीं?”
“अरे माँ, बुआ तो इसलिए रोई थीं कि तुम लोगों ने उनकी शादी उनकी पसंद से न करवा के दुहाजू बूढ़े खड़ूस से करवा दी थी। बेचारी बुक्का फाड़ के न रोतीं तो क्या करतीं?”
“अपनी माँ की सीख गाँठ में बाँध ले लड़की, हमारे खानदान में बिदा में नही रोने को अपशकुन मानते हैं।” दादी ने भी माँ का समर्थन करते हुए आँखें तरेरीं।
क्या करूँ, कैसे रोऊँ? बिदाई का तो नहीं मालूम पर फिलहाल नीतू को यही सोचकर रोना आ रहा था कि वो बिदा पर कैसे रोएगी।
“बता न रिंकू, क्या करूं जिससे मुझे रोना आये।” उसने अपनी सहेली को झिंझोड़ा।
“अरे ये भला मैं कैसे बता सकती हूँ। थोड़ी सी प्रैक्टिस कर, शायद काम बन जाय।”
“क्या बताऊँ, कई बार आईने में देख कर रोने की प्रैक्टिस कर चुकी हूँ। मग़र हर बार नाक़ाम रही। क्या करूँ यार, नही रोई तो बड़ा बवाल मच जाएगा। दादी, बुआ, चाची यहाँ तक की मम्मी ने भी ख़ास इंस्ट्रक्शन दिए हैं कि स्टेज पर बैठी ख़ाली खीसें न निपोरती रहूँ, बल्कि बिदाई पर क़ायदे से रोऊँ भी।”
“ओफहो, ये क़ायदे से रोना क्या होता है, रोना तो रोना होता है और फिर मैंने कोई पी एच डी थोड़े ही कर रखी है इस विषय पर, जो तुझे टिप्स दे दूँ।” रिंकू चिढ़ चुकी थी।
“कुछ तो कर यार, अगर बिदाई में न रोई तो बड़ी जगहंसाई होगी। मेरे यहाँ जब तक मोहल्ले के आख़िरी घर तक रोने की चीखें न पहुंच जाए तब तक बिदाई की रस्म पूरी नही मानी जाती। मेरी मामी की लड़की तो पिछले साल इतना रोई थी की सुबह की बारात दोपहर तक बिदा हो पायी थी। हाँ ये बात अलग है कि उसका अफेयर कहीं और चल रहा था और शादी कहीं और। पर मैं क्या करूँ, मेरी तो शादी भी मेरी पसंद से हो रही है।कहीं कोई रुकावट नही, कोई ज़बरदस्ती नही। तो आख़िर कैसे रोऊँ मैं?” नीतू ने उसे अपना दुखड़ा सुनाते हुए विनती की। “उफ़्फ़ क्या मुसीबत है, ठीक है देखती हूँ कि क्या किया जा सकता है।” रिंकू ने थोड़ा सीरियस होते हुए कहा।
दो दिन बाद ही रिंकू ने चहकते हुए घर में एंट्री ली।
“ले भई, खुशखबरी है तेरे लिए, मिल गई रोने की जादुई चाभी। चल मेरे साथ, वैसे तो सात दिन की ट्रेनिंग है। पर मैंने बात की है कि हमे थोड़ी जल्दी है लिहाज़ा डबल चार्जेस पर वे हमारा रजिस्ट्रेशन कर लेंगी।”
“क्या बात कर रही है, ट्रेनिंग!! और वो भी रोने की…?” नीतू का मुंह खुला का खुला रह गया था।
“हाँ मेरी जान, हँसी से रिंकू दोहरी हुई जा रही थी…” बिदाई में सही से रोने की ये समस्या अब सिर्फ़ तुम्हारी नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय समस्या है। आजकल दुल्हनो को उनके मनपसंद दूल्हे जो मिलने लगे हैं, अब उन्हें रुलाई आये भी तो कैसे? इसी समस्या से निजात दिलाता ये ट्रेनिंग सेंटर है जो दुल्हन के साथ उसकी सखियों को भी बिदाई पर कैसे रोना है ये सिखाएगा।”
“इसका मतलब मैं सही से रो सकूंगी अब। तू नही जानती तूने मेरी कितनी बड़ी प्रॉब्लम साल्व कर दी। सच्ची कितनी अच्छी है तू।” नीतू उछलकर अपनी सहेली के गले जा लगी। “लेकिन …. “
“अब ये लेकिन वेकिन बीच मे कहाँ से आ गया? अभी तो तेरी खुशी का ठिकाना न था।”
“नही नही। खुश तो बहुत हूं पर डबल चार्जेस! मेरा मतलब क्या कुछ कम नही हो सकता? अगर कुछ कम में काम हो जाय। बात ये है अभी मुझे दूसरे भी बहुत से खर्चे हैं। कुछ मैचिंग जूलरी लेनी है, बाकी पार्लर का भी पूरा खर्च बचा हुआ है। मम्मी से मांग नही सकती। वे पहले ही कह चुकी हैं कि जो रुपये उन्होंने दिए हैं उसी मे मुझे अपना सारा काम चलाना है।”
“लो देख लो इनको, अरे भई बडी मुश्किल से तो पता किया है। पर इन्हें इसमें भी मोलभाव करना है।” रिंकू चिढ़ गयी “देख अब तू ज्यादा टालमटोल मत कर। डिसाइड कर ले चलना है कि नही। पहले वहां चलकर देखते हैं, फिर बारगेनिंग वगैरह देखा जाएगा।”
“ठीक है ठीक है। चलना क्यों नही, तू तो खामख्वाह नाराज हो रही है। चल बाबा।” कहते हुए नीतू ने कान पकड़े। कुछ ही देर में वे दोनों शहर के प्रतिष्ठित मॉल के बाहर खडी थीं।
“देखिये, सबसे पहले इस चार्ट को अच्छे से स्टडी कीजिये, इसमें रोने के कई तरीकों का उल्लेख है। हर रुलाई का अलग चार्ज है।” रिसेप्शन पर बैठी मैडम ने मुस्कुराते हुए उन्हें एक चार्ट पकड़ाया। उनकी आँखें चौड़ी होती चली गयीं रोने के तरीक़ों को देखकर।
सिंपल रुलाई…शालीनता से धीरे धीरे रोना…5000/-
मगरमछी रुलाई…बिना एक भी आंसू टपकाए रोने की सिर्फ़ आवाज़ निकालना…4000/-
सैलाबी रुलाई…ऐसे जोरों से रोना मानो सैलाब आ गया हो…3500/-
दहाड़ेमार रुलाई…रुक रुक कर दहाड़े मारना, जैसे कहीं बम के धमाके हो रहे हों…3000/-
सिसकी रुलाई…सिसकते हुए रोना…2500/-
सम्मिलित रुलाई…सभी सखियों सहित एक साथ रोना…2000/-
बहुत देर विचार विमर्श करने के बाद नीतू ने मगरमछी रुलाई का चुनाव किया क्योंकि उसका तो लक्ष्य ही आवाज़ करके रोने का था। अपने कीमती आंसू तो वो एक भी बर्बाद नहीं करना चाहती थी।
“सुनिए, हमने मगरमच्छी रुलाई का चुनाव कर लिया है।”
“फिर ठीक है। आपने बताया था आपको जल्दी है तो रुपये आठ हजार यहां काउंटर पर जमा कर अपनी रसीद ले लें और आज से ही अभ्यास शुरू कर दें।”
“मैडम बुरा न माने तो एक बात पूछनी थी। क्या हमें कुछ डिस्काउंट वगैरह नही मिल सकता।”
“देखिए हँसना हँसाना बहुत आसान है, मुश्किल है तो रुलाना। वैसे भी जिंदगी में एक बार का ही तो खर्च है ये। और फिर आपके नाते रिश्तेदार, जाना पहचान वाले सखी सहेलियां सबके सामने आपको आपकी परफॉर्मेंस देनी होगी। तो ऐसे ख़ास मौके के लिए कुछ खास खर्च भी तो बनता है। वैसे मेरी माने तो ज्यादा कॉस्टली नही है यहां। फिर भी अगर आपको प्रॉब्लम है तो सराउंडिंग में पता करके आ सकती हैं। सब जगह इससे ज्यादा ही चार्जेस हैं।” रिसेप्शन पर बैठी मैडम का मूड उखड़ने लगा था।
“अजी नही, हमे तो आप पर पूरा भरोसा है। कहीं और जाने की जरूरत क्या है?” नीतू को चुप रहने का इशारा करते हुए रिंकू ने बात संभाली।
“हुँह! जाने कहाँ कहाँ से चले आते हैं। शादी में लाखों रुपये लगा देंगे पर बिदाई में रोने की तो जैसे कोई वेल्यू ही नही। इतनी कंजूसी दिखाएंगे कि बस….।” रिसेप्शन वाली मैडम का धीमे स्वर में बड़बड़ाना चालू था।
मरती क्या न करती, आखिरकार रुपये 8000/- जमा कर नीतू ने रोने का अभ्यास करना शुरू कर दिया। अब रिंकू ने इत्मीनान से सोफे पर पैर पसारे और बैठे बैठे चारों तरफ नजर घुमाई। एक बड़े हॉल में ग्लास पार्टीशन थे होने वाली दुल्हनें उसमे अपने अपने तरीके से रोने में लगी थीं। एक बात तो पक्की है कईयों की फूहड़ रुलाई देख सामने वाले की हँसी छूटना तय है…ख़ैर मुझे इससे क्या।” रिंकू मन ही मन बुदबुदाई।
करीब आधे घंटे बाद वे दोनों वहां से निकलीं तो ट्रेनिंग सेंटर की सीढियां उतरते वक्त नीतू के बाएं पैर की एड़ी हल्की लचक के साथ मोच खा गयी। “हाए इसे भी अभी ही चोट खानी थी।” पैर को पकड़े हुए नीतू दर्द से बेहाल थी।
“अरे कोई नही, कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है।” न चाहते हुए भी रिंकू के होठों पर दबी दबी सी हँसी तैर गयी।
“अच्छा मुझे अच्छी खासी चोट लग गयी और तुझे मजाक सूझ रहा है।” नीतू ने उसे घूरते हुए कहा।
“अरे नही यार ऐसी बात नही है। दरअसल मैं नही चाहती कि तू अभी रोकर अपने आंसू बेकार जाने दे। सोच अगर यही आँसू बिदाई के लिए बचाकर रख लेगी तो बिदाई कितनी बढ़िया हो जाएगी…है न।”
“हां बात तो तू सही कह रही है। कितना भी दर्द हो अब मैं नही रोने वाली।” कहते हुए नीतू एक लंबी कराह के साथ उठ खड़ी हुई।
आखिर बिदा का वो शुभ दिन आ गया. लेकिन शादी की तमाम रस्में निभाने और रात भर जागते रहने के कारण नीतू की हालत पहले ही इतनी खराब हो चुकी थी कि उसे रोना आने लगा था। अगर उसी वक्त बिदा का समय तय होता तो कसम से वो बेपनाह रोती और उसकी शादी की ये आखिरी रस्म भी आराम से निपट जाती। लेकिन बिदाई के मुहूर्त में अभी कुछ समय शेष था। इसलिए उसने अपने आप को बहुत कंट्रोल किया हुआ था। एहतियातन उन्होंने तय किया कि बिदाई के वक्त नीतू का घूँघट खूब लंबा रहेगा ताकि वो आराम से रोने की आवाज़ निकाल सके। अब एन बिदा के वक्त माँ रोती हुई उससे लिपटकर उसे भी रोने के लिए उकसाने लगीं। उसने भी भरपूर आवाज़ में अचानक रोना शुरू कर दिया पर वोल्यूम कुछ अधिक होने से लोगों के साथ उसे भी अपनी आवाज़ थोड़ी अजीब लगी अतः एक दो लोगों से मिलकर थोड़ी देर बाद वो चुप हो गयी।
“अभी तो इतनी ज़ोर से रो रही थीं अब क्यों नही रो रहीं।” तभी आठ दस साल के एक लड़के ने कमेंट किया। शायद उसके रोने पर उसे मज़ा आ रहा था। आस पास खड़े लोग उसके इस मासूम सवाल पर हँस दिए। नीतू को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वक्त की नजाकत देख उसने जैसे तैसे अपने को रोक लिया और कोई प्रतिक्रिया न दी।
तभी अचानक चाची ने खींचकर उसे अपने सीने से चिपटा लिया, “इतना ना रो मेरी लाडो, हम जल्द ही तुझे बुलवा लेंगे।” कहते हुए देर तक उन्होंने उसे अपने से लिपटाए रखा, बिना ये ध्यान दिए कि उनके कपड़ों से आती परफ्यूम की उस महक से नीतू को एलर्जी है। जैसे तैसे कसमसाते हुए नीतू उनके चंगुल से छूटी। तो सामने कुर्सी पर बैठी दादी जैसे उसी का इंतजार कर रही थीं। जोर जोर से रोती हुई बोलीं, “हाए हमाई नाजों में पली बिटिया आज पराई हो गयी। अब हम किसके सहारे जिएंगे।” दादी से गले लगने नीतू थोड़ा झुकी ही थी कि ऊंची हील की नई सैंडिल ने गच्चा दे दिया और उसका पैर स्लिप हो गया। भरभराकर वो दादी के घुटनों पर आ गिरी।
आईईई… एक जोर की चीख उसके मुंह से निकली और वो सिसकियां लेने लगी। आंखों में अचरज का भाव लिए दादी ने उसे चुप करवाने की बहुत कोशिश की पर उसे न चुप होना था और न वो हुई। असल में गिरने से उसकी उसी एड़ी में फिर से चोट लग चुकी थी जो पहले से ही तकलीफ़ में थी। तमाम रीति रिवाजों से थककर वो पहले ही चूर थी ऊपर से चोट भी काफी लग चुकी थी और उसमें दर्द भी बहुत हो रहा था। इसलिए अब उसे असली का रोना आ चुका था। लोग आते गये और गले लगाकर उसे चुप कराते गये पर जितना उसे चुप कराया जाता वो उतनी ही जोर से दहाड़े मारने लगती।
“सच सबसे ज्यादा आश्चर्य तो मुझे इस बात का हो रहा था कि सबके रोने पर ठहाका लगाकर हँसने वाली तू अपनी बिदाई पर इतना रियल कैसे रो रही थी?”
“हां यार मैंने भी सोचा नही था कि परिस्थितियां कुछ ऐसी बन जाएंगी कि एक्टिंग करते करते मुझे सच्ची का रोना आ जायेगा।”
“लेकिन उस वक्त जो भी हुआ भला हो उस ट्रेनिंग सेंटर का जहाँ जाने से लगी चोट तुझे इतना दर्द दे गयी कि तेरी बिदाई सबके लिए यादगार बन गयी और फिर तेरी शादी की सीडी भी क्या खूब बनी।”
हाहाहा…. दोनो के ठहाकों से एक बार फिर पूरा घर गुंजायमान हो चुका था।
पूनम पाठक