आलोक, गरिमा और सुहास का तिगड्डा पूरे कालेज में मशहूर था। वो लोग कालेज के पहले दिन से ही दोस्त बन गये थे। इस दोस्ती की बुनियाद उनके सीनियर्स के सामने पड़ी थी। सीनियर्स आलोक और सुहास की क्लास लगाये बैठे थे, तभी गरिमा उधर से गुज़री। ये उसकी बदकिस्मती ही थी, क्योंकि फर्स्ट ईयर की दूसरी लड़कियां सीनियर्स को देखते ही छिप जाती थीं या स्टॉफ रूम के कॉरीडोर की ओर चली जाती थीं, ताकि सीनियर्स इंट्रोडेक्शन के बहाने उनकी खिंचाई ना कर पाएं।
पर गरिमा ने ध्यान ही नहीं दिया। वो अपनी धुन में मगन थी और सीधे वहीं पहुँच गई, जहाँ सीनियर्स बैठे थे। उसे देखते ही सीनियर्स ने अपना सारा ध्यान गरिमा पर लगा दिया। पहले तो एक सीनियर लड़की ने ’सिट अप्स’ करवाए, फिर दो चार सीनियर लड़कों ने लड़कियों से कुछ कहा और गरिमा को नाचने का आदेश मिला। गरिमा ने अनसुना कर दिया। ये देख सीनियर्स काफी भड़क गए। उसे सारे दिन धूप में रहने की सज़ा सुना दी।
गरिमा की आँखों से आंसू निकले, तो सुहास से रहा नहीं गया। वो सीनियर्स से उलझ गया। जब बात बिगड़ने लगी तो आलोक भी गरिमा और सुहास का पक्ष लेने लगा। तेज़ आवाज़ें आती देख वहां दूसरे विद्यार्थी आ गये। आलोक दौड़कर टीचर को बुला लाया। लिहाजा उन सभी को सजा दी गई और एक महीने क्लास में नहीं बैठने दिया गया।
इससे दो बातें हुईं, एक तो सीनियर्स का आतंक कम हुआ, दूसरे आलोक, गरिमा और सुहास की दोस्ती हो गई। ये दोस्ती इतनी पक्की थी कि तीनों हमेशा साथ रहते।
गरिमा एक सरकारी ऑफ़िसर की बेटी थी, तो सुहास के पिता शहर के बड़े बिजनेसमैन थे। आलोक का परिवार गांव का था। उसके पिता एक किसान थे। आलोक शहर पढ़ने आया था और यहाँ एक कमरा किराए पर लेकर पढ़ाई कर रहा था। तीनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि अलग थी, पर दोस्ती में इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। इस घटना के बाद तीनों साथ देखे जाते। साथ ही कालेज आते और क्लास में भी साथ ही बैठते।
कुछ समय बाद आलोक को अपने गांव जाना पड़ा। उसके पिता बीमार थे। वहां जाकर उनकी देखभाल और इलाज़ करते डेढ़ महीने हो गये। आलोक जब वापिस लौटा तो उसकी पढ़ाई काफी पिछड़ चुकी थी। गरिमा और सुहास उसकी भरपूर मदद करते। कई बार सुहास रात में उसके कमरे में रूककर पढ़ाई में उसकी मदद करता।
वो अपने दोस्तों का कृतज्ञ था और एक बात उसने गौर की थी कि गरिमा और सुहास के बीच कुछ ऐसा था जो दोस्ती से ज़्यादा दिखाई देता था। एक दिन उसने बातों-बातों में सुहास से पूछा, तो उसने बता दिया कि वो और गरिमा एक दूसरे को पसंद करते हैं।
आलोक कुछ नहीं बोला, पर उसके चेहरे से लग रहा था कि उसे ये बात अच्छी नहीं लगी। उस दिन से उसने गरिमा और सुहास के साथ रहना कम कर दिया। कालेज साथ आते, पर जाते समय गरिमा और
सुहास बाद में जाते, जबकि आलोक पहले चला जाता। पर जितनी देर भी वो उनके साथ रहता उसकी यही कोशिश होती कि गरिमा और सुहास के बीच उसकी मौजूदगी का आभास दोनों को रहे। वो हर बात पर सुहास की तारीफ़ करता। सुहास और गरिमा के बीच कोई बहस होती तो वो सुहास का पक्ष लेता। गरिमा ये सब देखती और मुस्कुरा देती।
इसी बीच सुहास के पिता ने एक रिसोर्ट खोला। उसके उद्घाटन में सुहास के साथ आलोक ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। हर समय सुहास के साथ लगा रहा।
उद्घाटन के बाद एक दिन उसने सुहास से कहा, ’मैं इस बार तुम्हारी बर्थडे पर ऐसा जश्न करना चाहता हूँ कि सभी याद रखें। अगर रिसोर्ट में पार्टी दी जाए तो मज़ा आ जाए।’ सुहास पहले तो टाल गया, लेकिन आलोक के बार-बार जोर देने पर वो तैयार हो गया। सुहास ने अपने दोस्तों को रिसोर्ट में बुलाने के लिए पिता से इजाज़त मांगी। सुहास के पिता तैयार हो गये।
सुहास का जन्मदिन पास था। इससे अच्छा मौका और भला क्या हो सकता था। सुहास ने गरिमा और आलोक के साथ अपने दो चार दोस्तों को पार्टी में बुलाने की योजना बनाई। जब उसने ये बात आलोक को बताई तो उसने सुहास को समझाया कि क्यों ना इसी बहाने कालेज के अलावा भी कुछ और दोस्तों को बुला लिया जाए। इससे सुहास का रुतबा और बढेगा। सुहास मान गया। उसने आलोक को गेस्ट लिस्ट बनाने की ज़िम्मेदारी सौप दी।
पार्टी बहुत शानदार हुई। कालेज के अलावा भी बहुत सारे लड़के लड़कियां शामिल हुए, जिन्हें आलोक ने आमंत्रित किया था। उन सभी से आलोक ने सुहास का परिचय करवाया। पहले तो औपचारिक बातें होती रहीं, पर जल्द ही एक लड़की सुहास से बहुत घुलमिल गई। गरिमा ये सब चुपचाप देख रही थी। वो कालेज के दूसरे दोस्तों से बातें करने लगी। ये देख आलोक गरिमा के पास आकर खड़ा हो गया। कुछ देर बाद उसने गरिमा का ध्यान आकर्षित किया कि सुहास वहां नहीं था। गरिमा ने जब सुहास को ढूंढना चाहा, तो आलोक उसे लेकर एक कमरे में गया। वहां सुहास, वो लड़की और कुछ अन्य लोग थे। उन सभी के हाथ में ड्रिंक्स थे। गरिमा ने पहली बार सुहास के हाथ में सिगरेट देखी। गरिमा को धक्का लगा। उसने सुहास के हाथ से सिगरेट छीननी चाही, तो आलोक ने उसे रोका, ’क्यों पार्टी का मज़ा ख़राब कर रही हो?’ गरिमा चुप रह गई।
आलोक ने कुछ देर बाद गरिमा से बाहर चलने की पेशकश रखी तो वो मान गई। बाहर जाते ही आलोक ने गरिमा का हाथ पकड़ लिया और अपना दिल खोलकर सामने रख दिया। उसने कहा कि वो कालेज के पहले दिन से ही गरिमा पर मर मिटा था। उसने ये भी कहा कि वो गरिमा को सुहास से कहीं ज़्यादा प्यार करता है। गरिमा ने ये सुनकर उसके हाथ से अपना हाथ हटाया और कहा, ’मैं सोचती थी, तुम सुहास के सच्चे दोस्त हो। मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी।’ आलोक का चेहरा उतर गया। उसने बात बनाकर कहा, ’सुहास की दोस्ती से बढ़कर वाकई मेरे लिए कुछ नहीं है। तभी तो मैंने तुमसे कभी अपने दिल की बात नहीं की। वो तो तुम्हे उदास देखकर बहक गया था।’ ये कहकर वो वहां से चला गया। पार्टी काफी देर चलती रही। गरिमा सुहास के साथ ही रही।
उस दिन के बाद से आलोक ने गरिमा से सीधे बात करना बंद कर दिया, पर सुहास के वो और भी ज़्यादा नज़दीक रहने लगा। उसकी बातों और व्यवहार से लगता सुहास के लिए वो जान भी दे सकता है। सुहास उस पर बहुत विश्वास करता। यही नहीं सुहास के माता-पिता भी आलोक को बहुत मानते।
आलोक का बर्थडे आया, तो सुहास ने फिर अपने रिसोर्ट पर पार्टी रखी। इस बार पार्टी का आयोजन और भी बड़े स्तर पर किया गया था। गरिमा जब पार्टी में पहुंची तो उसे मेहमान कुछ अजीब से लगे। जल्द ही वो समझ गई कि वो लोग किसी नशे के प्रभाव में हैं। उसने सुहास से बात करनी चाही, पर वो ख़ुद भी नशे में था। उसने आसपास देखा, तो आलोक कहीं नज़र नहीं आया। वो सोच ही रही थी कि क्या करे। तभी वहां पुलिस की रेड पड़ी। सभी को पकड़ लिया गया।
गरिमा को भी वो रात ’लॉक अप’ में बितानी पड़ी। उसके माता-पिता ने उसकी जमानत तो करवा दी, पर सुहास से दूर रखने के लिए उसे बाहर भेज दिया। सुहास के पिता की काफी बदनामी हुई और सुहास को कालेज से निकाल दिया गया। इन सबके बीच अलोक का कहीं पता नहीं था।
गरिमा अपनी नानी के यहाँ रह रही थी। उसने सुहास से संपर्क करने की कोशिश की पर सुहास फोन ही नहीं उठाता था। गरिमा को कालेज के दोस्तों से पता लगा कि सुहास अब किसी से बात नहीं करता।
कुछ दिन बाद गरिमा के पिता ने उसके पास एक रजिस्टर्ड लेटर भेजा। गरिमा देखकर हैरान रह गई कि ये लेटर उसे सुहास ने नहीं बल्कि आलोक ने लिखा था। उसने फिर सुहास की बुराइयां लिखी थीं और सुहास के उसकी ज़िन्दगी से निकल जाने पर ख़ुशी जताई थी, और अपने प्यार की दुहाई दी थी।
गरिमा ने वो ख़त फाड़ दिया, पर उसे बहुत गुस्सा आया।
उसने सुहास को फोन किया। उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब सुहास ने फोन उठा लिया, पर हमेशा उसे प्रिन्सेज़ कहने वाले सुहास ने जब उसे धोखेबाज़ और फ्लर्ट कहा तो वो हैरान रह गई। जब उसने आलोक के लेटर के बारे में बताया तो सुहास ने उसे जली-कटी सुनाई। उसने यहाँ तक कह दिया कि वो शुरू से ही आलोक और सुहास दोनों से फ्लर्ट कर रही थी। आलोक ने उसे कई बार इशारा भी किया था, वो तब नहीं समझा था, पर अब सच जान चुका है। आलोक और गरिमा अपनी दुनिया में रहें। वो उनकी दुनिया में कभी दख़लंदाजी नहीं करेगा।
गरिमा ने सुहास को समझाने की बहुत कोशिश की, पर वो कुछ सुनने को राज़ी नहीं था। गरिमा ने पूरी बात आलोक से साफ़ करने का निश्चय किया और सीधे आलोक को फोन किया। आलोक पांच मिनट तक उसकी डांट सुनने के बाद बोला, ’जिस सुहास के लिए तुम मुझे भला-बुरा कह रही हो वो तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहता, और मैं आज भी तुम्हारे लिए आँखे बिछाए बैठा हूँ।’
गरिमा ने फोन रख दिया। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके और सुहास के बीच ग़लतफ़हमी कहाँ से आई। क्या सुहास कभी आलोक की असलियत नहीं जान सका। वो खुद को भी कोसती रही कि क्यों उसने आलोक की सच्चाई सुहास को उस समय नहीं बताई थी, जब उसने पहली बार उससे प्यार का इज़हार किया था। वो सोच रही थी, उसके और सुहास के बीच रिश्ता टूटने का कारण आलोक था या खुद उसकी चुप्पी?