कहानी:परों वाली लड़की-दीप्ति मित्तल
परों वाली लड़की
पात्र- तीन महिला, एक पुरुष
जब से बाबू जी का स्वर्गवास हुआ था, बेटे
निकुंज ने अम्मा को नीचे के कमरे में शिफ़्ट कर दिया था. वे अपने जीवन के 72 बसंत
देख चुकी थीं. सीढ़ियां चढ़ने-उतरने में दिक़्क़त होने लगी थी. जब बाबूजी थे तो
उनका ज़्यादातर समय बाल्कनी में बैठ पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने और सामने पार्क की
चहलपहल देखने में ही गुज़रता इसलिए उनके रहते अम्मा को भी ऊपरवाले कमरे में ही
रहना पड़ता मगर अब वे अकेली थीं सो उन्हें नीचे शिफ़्ट कर दिया गया. ऊपर के ख़ाली
कमरे के साथ अटैच बाथरूम और किचन भी था,
बहुत सोच-विचार
कर निकुंज ने वहां एक किराएदार रखने की सोची. वैसे भी गुड़गांव के उस कमर्शल एरिया
में ऐसे कमरों के लिए बहुत ऊंचे किराए मिल रहे थे, अतः
उन्होंने कॉलोनी के किराना स्टोर और सोसायटी के नोटिस बोर्ड पर एक विज्ञापन लगा
दिया. विज्ञापन में साफ़-साफ़ लिखा गया था कि कमरा किसी लड़की को ही दिया जाएगा, बैचलर
लड़के को नहीं.
यह शर्त अम्मा
की ही थी, क्योंकि निकुंज की 16 वर्षीया
बेटी यानी उनकी पोती रश्मि सयानी हो रही थी. जवान किराएदार के साथ मकान मालिक की लड़की
के भागने की ख़बरों को बाबूजी ने उन्हें कितनी बार चटखारे लेते हुए अख़बार से
पढ़कर सुनाया था, इसलिए वे पोती के साथ कोई रिस्क नहीं लेना चाहती
थीं. विज्ञापन को ही पढ़ कर ही आज सिया आई थी. चुस्त-दुरुस्त आधुनिक लिबास, हाई
हिल, क्लचर में फंसे उलझे से बाल, मुंह
में च्यूइंगम, इधर-उधर दौड़ती लापरवाह-सी नज़रें… बिल्कुल
बिंदास रवैया… वह पास ही की एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऐक्ज़िक्यूटिव थी.
‘‘देखिए मैं अकेली
ही रहूंगी. साथ ही यह भी क्लियर कर दूं कि मेरी शिफ़्ट्स में भी ड्यूटी रहती है. वर्किंग
ऑवर ऑड हैं, सो रात को अक्सर लेट भी हो जाता है. अगर आप लोग
इस बात को माइंड करेंगे तो पहले ही बता दें. पिछली जगह मेरे लेट आने से उन लोगों को
प्रॉब्लम था. यू नो दिस मिडिल क्लॉस मेंटैलिटी. लड़की के लेट आने को सीधा कैरेक्टर
से जोड़ते हैं,’’ सिया आंखें चढ़ाते हुए बोली. सुनते ही अम्मा के
कान खड़े हो गए.
सिया अम्मा और
उनकी बहू गौरी की उपस्थिती लगभग नकारते हुए सारी बात निकुंज से ही कर रही थी और ये
बात अम्मा को ज़रा भी अच्छी नहीं लग रही थी. उसके हिसाब से तो लड़की होने के नाते
सिया को सभी पूछताछ उनसे या बहू गौरी से ही करनी चाहिए थी.
‘‘नहीं हमें कोई
प्रॉब्लम नहीं है… वैसे भी ऊपर का अलग ऐंट्रेंस है,’’ निकुंज
ने कहा.
‘‘मुझे अपनी कार
के लिए पार्किंग अरेंजमेंट भी चाहिए,
मैं उसके लिए
एक्स्ट्रा पे करने को तैयार हूं,’’
सिया की इस
डिमांड पर अम्मा के भीतर स्वसंवाद चलने लगे,‘ओह
पैसे का बड़ा रौब है इसे. अकेली रहती है. देर से घर लौटती है. पिद्दी भर की छोकरी
और अभी से कार में चलती है. ऊपर से तेवर तो देखो… पता नहीं निकुंज क्यों इस
तेज-तर्रार लड़की से इतने अच्छे से बात कर रहा है? चलता
क्यों नहीं कर देता इसे?
वैसे भी ऐसी
लड़की के घर में रहने से रश्मि पर गलत असर पड़ेगा.’
‘‘हमारे पास तो टू
व्हीलर है, हमारी पार्किंग में ही गाड़ी पार्क हो जाएगी. और
हां, रूम के साथ किचन भी है,’’ निकुंज
ने कहा.
‘‘वेल… उसकी
मुझे ज़रूरत नहीं, मैं बाहर या टिफ़िन से ही खाती हूं,’’ सिया
बेपवाही से बोली.
‘अरे राम रे, कैसी
लड़की है… इतनी बड़ी हो गई,
मगर खाना भी
नहीं पकाती. क्या करेगी ये अगले घर जा कर. ऐसी लड़कियां ही तो वापस मायके में पटक
दी जाती हैं,’ अम्मा के स्वसंवाद जारी थे. अम्मा के नाक-मुंह
सिकोड़ने के बावजूद निकुंज ने फ़ाइनल कर लिया. ‘‘क्या
ख़राबी दिखती है अम्मा तुम्हें इस लड़की में, पढ़ी-लिखी
है, नौकरी करती है.’’
‘‘मगर देर रात तक
बाहर रहेगी…’’
‘‘अरे इसमें नया
क्या है अम्मा… आज कल ज़्यादातर मल्टीनैशनल कंपनियों में नाइट शिफ़्ट रहती है, 24 घंटे
काम चलता है. लड़का हो या लड़की,
काम सबके लिए बराबर
रहता है.’’
‘‘मगर…’’
‘‘बस अब ये
अगर-मगर छोड़ो अम्मा…,’’
कह कर निकुंज
ऑफ़िस चला गया लेकिन उस दिन से अम्मा की नींदें हराम हो गईं. सिया उनके घर शिफ़्ट
हो चुकी थी. उसका आधुनिक,
बिंदास, बेपवाह
रवैया अम्मा की आंखों की किरकिरी बना हुआ था.
आज सूरज की पहली
किरण के साथ अम्मा का स्नान-ध्यान,
जप-तप आरंभ हो
चुका था, मगर सिया अभी तक घर नहीं लौटी थी. पूजा करते हुए
अम्मा की नज़रें अपने बांके बिहारी की मनोहारी चितवन पर कम और घड़ी की ओर ज़्यादा
लगी हुए थी. तभी बाहर कार रुकने की आवाज़ आई. इस पर जर्जर काया अम्मा बड़ी फुर्ती
से उठकर खिड़की की ओर दौड़ीं. देखा तो सिया कार में बैठे दो लड़कों को हंस-हंस कर
सीयू, बाय कह रही थी. अम्मा के दुखते घुटनों ने भले उस
वक़्त उनका साथ दिया हो,
मगर नज़रें दगा
दे गईं. कार में कौन लड़के बैठे थे वे नहीं देख पाईं. रिया ने आकर उड़ती-सी नज़र
खिड़की की ओट से झांक रही अम्मा पर डाली और उन्हें इग्नोर कर कुछ गुनगुनाते हुए सीढ़ियां
चढ़ गई.
उसके बाद शुरू
हुआ उनका बड़बड़ जाप. ‘नाम कैसा पावन और करम कैसे कुलच्छिनियों वाले! सच
कहते हैं गुरु जी कलजुग पूरे जोर पर है. मां-बाप ने भी लाज-सरम बेच खाई है. ऐसी
परकटियों को खुली गाय की तरह छोड़ रखा है. रात-रातभर पराए मर्दों के साथ
उठती-बैठती हैं. क्या जमाना आ गया है,
राम राम राम…’
वे ठहरीं
बुज़ुर्ग अनुभवी महिला. भला एक अदना-सी छोकरी को यूं सस्ते में कैसे छोड़ देतीं सो
शाम को उन्होंने सिया को सीढ़ियों से उतरते हुए थाम लिया,‘‘क्यों
बेटी घर में कुछ तंगी है क्या,
जो मं-बाप ने
इतनी दूर एक जवान-जहान लड़की को अकेले नौकरी करने भेज दिया? इस
उम्र में तो तुम्हारे हाथ पीले होकर बाल-बच्चे हो जाने चाहिए थे.’’ सुनकर
रिया का पारा चढ़ गया मगर उसने अम्मा की उम्र का लिहाज़ कर ख़ुद को संयत कर लिया.
उसे चुप देख
अम्मा की हिम्मत और बढ़ी,‘‘वैसे ऐसा कौन-सा काम करती हो, जो
रात-रातभर घर से बाहर रहना पड़ता है और जवान लड़के घर तक छोड़ने आते हैं?’’
अब तो सिया ने
भी अम्मा की बोलती बंद करने की ठान ली,‘‘ऑटी जी,
मैं कस्टमर केयर
का काम करती हूं. यानी ग्राहकों की सेवा… और ग्राहक तो कोई भी हो सकता है… जवान
या बूढ़ा,’’ सिया ने आंखें मटकाते हुए जिस अंदाज़ से जवाब
दिया उसे सुन अम्मा का ख़ून ऐसा खौला कि क्या बताएं. शाम को बहू से बीपी नपवा रही
थीं.
उस दिन के बाद
से अम्मा की पैनी नज़रें और तेज़ कान सिया के आए-जाए की ख़बर रखने में लग गए. कब आ
रही है, कौन छोड़ कर जा रहा है, क्या
पहना है… सिया भी सब समझने लगी थी. अब तो वह भी जानबूझ कर मस्ती के लिए अम्मा के
संग तफ़री लेने लगी थी. कोई शॉर्ट ड्रेस पहनती तो अम्मा से पूछती,‘‘क्यों
अम्मा अच्छी लग रही हूं ना… कहो तो एक आपके लिए भी ला दूं…’’ कभी
उनके सामने से ऐसे लड़खड़ाती हुई निकल जाती जैसे पीकर आई हो. अम्मा का त्यौरियों
चढ़ा चिढ़ा चेहरा देखने में उसे मज़ा आने लगा था. अम्मा जब-तब उसकी चुगली बेटे-बहू
से करतीं, मगर वे दोनों अम्मा की बातों को उम्र का तकाज़ा
समझ अनसुना कर देते.
कुछ दिनों से
अम्मा नोटिस कर रही थीं कि उनकी पोती रश्मि की सिया से ख़ूब छनने लगी थी. वह सिया
दी, सिया दी… कह कर उसके आगे-पीछे घूमने लगी थी. वे
उसे रोकतीं-टोकतीं मगर रश्मि न सुनती.
उस दिन तो आग
में मनभर घी पड़ गया, जब रश्मि ने अपने लम्बे घने बालों को शॉर्ट लेंथ
लेयरकट करा लिया. अम्मा भभक पड़ीं,‘‘क्या इसी दिन के लिए मैं तेरे सिर में देसी घी की
मालिशें किया करती थी? यह ज़रूर उस परकटी का असर है…’’
आज भुनभुनाई
अम्मा ने आपा खोकर बेटे से दो टूक कह दिया,‘‘देख
निकुंज, अगर अपनी छोरी को बचाना चाहता है तो ऐसी परकटी को
निकाल बाहर कर. अगर वो इसके नक्सेकदम पर चलने लगी तो कहे देती हूं, नाक
कट जाएगी तेरी. जब देखो उसी के आगे पीछ घूमती रहती है. आज तो गजभर लम्बे बाल भी
कटा आई.’’
‘‘बस करो अम्मा
बहुत हुआ. बिना सोचे-समझे किसी के बारे में कुछ भी बोलती रहती हो. तुम्हें अपनी
पोती की इज़्ज़त की बड़ी चिंता है तो थोड़ी इज़्ज़त दूसरों की बेटी को भी देना
सीखो.’’ सालों बाद बेटे की तेज़ आवाज़ सुन अम्मा सकते में
आ गईं.
‘‘जाने क्या जादू
कर दिया है उसने सब पर… उस दिन तेरी आंख खुलेगी, जब
रश्मि भी उसकी तरह बन जाएगी.’’
‘‘काश ऐसा हो जाए अम्मा… अगर रश्मि भी उसकी तरह बन जाए तो मुझे उस पर बहुत गर्व होगा. तुम्हें पता है, देश के टॉप मैनेजमेंट स्कूल से एमबीए किया है उसने. बहुत होशियार और आत्मनिर्भर लड़की है. इतनी-सी उम्र में इतने अच्छे पद पर है वह. मैंने ही रश्मि से कहा था कि सिया दीदी से करियर गाइडेंस लो. वह रश्मि को बहुत अच्छे से समझा रही है और उसकी पढ़ाई में भी मदद कर रही है. रही बात बालों की तो रश्मि ने बाल कटाने से पहले हमारी इजाज़त ली थी. उसके बाल हैं, वह जैसे रखना चाहे रखे. बच्चों को इतनी छूट तो देनी ही चाहिए,’’ कहकर निकुंज चलते बने.
बस, उस दिन के बाद अम्मा ने मौनव्रत धारण कर लिया. यानी मौन भी और व्रत भी. बेटे से बातचीत बंद कर दी और बहू के हाथ का पका खाना छोड़ दिया. ख़ुद पकातीं खातीं. मां-बेटे के कोल्डवॉर को ख़त्म करने के लिए गौरी ने निकुंज को समझाया,‘‘एक किराएदार के पीछे क्यों अम्मा को दुखी करते हो? जानते हो कितनी ज़िद्दी हैं वे. घर की शांति भंग हो गई है सिया के पीछे. मैं तो कहती हूं उसे निकाल बाहर करो, तभी अम्मा का फूला मुंह उतरेगा. हम कोई नया किराएदार ढूंढ़ लेंगे.’’
इस पर निकुंज भी अड़ गए,‘‘घर की शांति सिया के कारण नहीं बल्कि अम्मा की ओछी मानसिकता के कारण भंग हो रही है. ज़रा सोचो गौरी, कल को हमारी बेटी को भी पढ़ने-लिखने या नौकरी करने घर से दूर किसी दूसरे शहर जाना पड़ सकता है. कहीं किराए के घर में रहना पड़ सकता है. तब उसके ऊपर भी कोई ऐसे ही उंगली उठाए तो तुम्हें कैसा लगेगा? हमें तो चाहिए कि हम सिया को एक परिवार जैसा सौहार्दपूर्ण सुरक्षित माहौल दें ताकि वह ख़ुद को अकेली न समझे. तभी तो हम भी भविष्य में किसी और से अपनी बेटी के लिए ऐसी ही उम्मीद कर सकते हैं.’’ बात सही थी अतः गौरी चुप हो गई.
निकुंज कुछ दिनों के लिए ऑफ़िस टूर पर गए हुए थे और रश्मि मामा के घर. अम्मा रसोई में चाय बना रही थीं तभी अचानक से गौरी के कराहने की तेज़ आवाज़ें आईं. अम्मा ने जाकर देखा तो पाया गौरी बाथरूम में फिसल गई थी. उसकी कमर में असहनीय दर्द था. वो ख़ुद से उठ भी नहीं पा रही थी.
घर में गौरी के अलावा बस अम्मा ही थीं. वे सन्न रह गईं, कुछ नहीं सूझ रहा था, क्या करें. तभी सिया गौरी की चीख सुनकर भागी-भागी आ गई. दोनों ने किसी तरह सहारे से गौरी को उठाकर बिस्तर पर लिटाया. घबराहट में अम्मा के दिमाग़ ने काम करना ही बंद कर दिया था. उधर गौरी दर्द से बेहाल हो रही थी.
सिया ने गौरी को तुरंत अस्पताल ले जाने का निर्णय लिया. उसने बड़ी सावधानी से कार की बैकसीट पर गौरी को लिटाया और अम्मा को आगे बैठने का निर्देश दिया. इस वक़्त लाचार अम्मा किसी भी तरह के सवाल जवाब करने में असमर्थ थीं. सिया धीरे-धीरे गाड़ी ड्राइव करते हुए अस्पताल की और चल दी.
गौरी को सिया ने ऐडमिट कराया. एक्स-रे, एमआरआई… सब हुआ. स्लिप डिक्स हुआ था. पंजे में भी फ्रैक्चर था. अम्मा के हाथ-पांव फूल गए, उन्हें तो फ़ॉर्म भरना तक नहीं आता था. अस्पताल की सारी फ़ॉर्मैलिटीज़, सारे टेस्ट वगैरह सिया ही निपटा रही थी. घर के किसी बड़े ज़िम्मेदार व्यक्ति की तरह उसने बड़ी ही कुशलता से स्थिति संभाली.
पैसों की सोच अम्मा को याद आया कि ग़फ़लत में घर से निकलते हुए वे पैसे लेना भी भूल गई थीं. उन्होंने घर जाकर पैसे लाने की बात की तो सिया बोली,‘‘घर जाने की कोई ज़रूरत नहीं. आप टेंशन मत लीजिए मैंने अपने कार्ड से सब पेमेंट कर दिए हैं.’’ अम्मा दम साधे खड़ी रहीं और सिया सब व्यवस्थाएं करती गई. ऑफ़िस से छुट्टी लेकर वह पूरे दिन वहीं बनी रही और उन दोनों का हर तरह से ख़्याल रखती रही.
अम्मा दोहरे सदमे में थीं. पहला तो इस आकस्मिक दुर्घटना का था और दूसरा सिया के आगे छोटी पड़ जाने का था. जिस सिया के लिए उसके मन में ज़रा भी सम्मान नहीं था, जिसे वे आजकल की बिगड़ैल, लापरवाह, परकटी लड़की समझती थीं, आज वही उनके लिए किसी देवदूत से कम ना थी. अम्मा बैठी-बैठी सोच रही थीं,‘कितने अच्छे से इसने सारी स्थिति संभाल ली. हज़ारों रुपए का पेमेंट तक कर डाला. एक मिनट नहीं लगाई सोचने में. ऐसे तो हम कोई सगे रिश्तेदार भी नहीं हैं, मकान मालिक ही तो हैं. कौन करता है आजकल किसी के लिए इतना…’
गौरी की ख़बर सुन शाम तक निकुंज और रश्मि दोनों लौट आए थे. निकुंज ने सिया को तहेदिल से धन्यवाद दिया. जब उन्होंने अम्मा की ओर देखा तो उन्होंने नज़रें झुका लीं. झुकी नज़रें कह रही थीं कि आज उन्होंने सिया की योग्यता के आगे अपने हथियार डाल दिए. गौरी को कुछ दिन अस्पताल रहना पड़ा. सिया इस दौरान किसी मज़बूत स्तंभ की तरह उनके साथ खड़ी रही.
धीरे-धीरे समय के साथ सब सामान्य होता जा रहा था. गौरी की तबीयत भी सुधर रही थी. आज निकुंज जब ऑफ़िस से घर लौटे तो अम्मा के कमरे से आ रही आवाज़ पर उनके कान लग गए. वे रश्मि को समझा रही थी,‘‘देख बिटिय तू पढ़ाई-लिखाई में ख़ूब मन लगा और अपनी सिया दीदी जैसी बन. इससे तेरा यह घर भी तरेगा और अगला भी.’’ सुनकर निकुंज अंदर चले गए,‘‘अरे अम्मा क्या ग़ज़ब कर रही हो! क्यों रश्मि को उस परकटी की तरह बनने की सलाह दे रही हो?’’
‘‘अरे ना… ना… वह परकटी नहीं है. वह तो परोंवाली लड़की है. बिल्कुल परी जैसी. मैं तो चाहूं कि तेरी ये लाड़ो भी उसकी तरह परी बन ऊंची उड़ान भरे.’’
अम्मा का बदला सुर सुन सभी खिलखिलाकर हंस पड़े.
- लेखिका- दीप्ति मित्तल