कहानी : कबाड़-आलोक कुमार दुबे

0

कबाड़



‘बाबा जी, आपको कौन सा रंग अच्छा लगता है?‘
नन्हें मुदित ने अचानक केदारनाथ जी के कमरे में प्रवेश करते हुए पूछा? आज मुदित लाल रंग की टी शर्ट व काला नेकर पहने था। केदारनाथ जो समझे शायद उसकी रंग की पसंद से आशय उसके कपड़ो से है उन्होंने उसे प्यार से गोद में उठाते हुए कहा – ‘तुम जो भी रंग पहन लेते हो मुझे वही अच्छा लगने लगता है।‘
‘पर मैंने तो रेड और ब्लैक दोनों रंग पहने हुए हैं फिर आपको कौन सा रंग अच्छा लग रहा है ?‘ चार वर्षीय मुदित ने अपना दूसरा प्रश्न पूछा।‘
‘आपके इस लाल और काले में मुझे लाल रंग अच्छा लग रहा है‘ उन्होंने प्यार से कहा। अगर आप को लाल रंग अच्छा लगता है फिर आप सफेद कपड़े क्यों पहनते हैं?‘
हाँ यह तो ठीक है, मैं खुद अपने लिए सफेद रंग ही पसंद करता हूँ इसीलिए मैं सफेद कुर्ता पजामा पहनता हूँ।‘ ‘आप तो मुझे कन्फ्यूज कर रहे हैं अभी आप ने कहा रेड कलर अच्छा लगता है और अभी आप व्हाइट कलर को अच्छा बता रहे हैं मैं पापा को क्या आन्सर दूँगा कि आप को कौन सा रंग अच्छा लगता है ? मुदित ने प्रश्नवाचक निगाह से केदारनाथ जी की आँखों में झाँका। ये अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाले बच्चे अपने उच्चारण में अंग्रेजी शब्दों का ही प्रयोग करते हैं, चाहे सामने वाला हिन्दी में ही क्यों न बात कर रहा हो।
‘तुम्हारे पापा को मेरे रंग के पसंद की क्या जरूरत पड़ गई ? इतने वर्षों से उसे मेरी पसंद न पसंद का पता नहीं है जो तुम्हें भेज दिया मेरे पास कि मुझे कौन सा रंग पसंद है।‘ केदार जी ने कुछ नाराज होते हुए कहा -‘बाबा जी अरे पापा ने थोड़े ही मुझसे पूछने को कहा ये तो मैं आप से पूछ रहा हूँ। आप को पता नहीं घर में पेन्टर आने वाला है वह सारे कमरों में व्हाइट वाश करेगा और पापा ने उसे नेट पर दिखाया था मेरे कमरे में तो दीवारों पर मिकी और डोनाल्ड और कई सारे कार्टून भी बनायेगा और हॉ एक दीवाल पर पानी और मछली भी मुझे बनवानी है मुझे कलर फिश अच्छी लगती हैं न।‘
‘अच्छा तो यह बात है।‘ मकान की पुताई होने जा रही है मुझे क्या पता तुम किस लिए रंगों की बात कर रहे हो ? कब से आ रहा है पुताई वाला केदारनाथ जी ने मुदित से पूछा।‘
‘पता नहीं!‘ मुदित ने संक्षिप्त उत्तर दिया।
‘अरे तुम्हें पता नहीं तुम तो प्रायः कहते हो मुझे सब पता है‘ केदारनाथ ने हँसते हुए मुदित को दुलारते हुए कहा।
इस पर वह चुप ही रहा फिर कुछ सोच कर गोद से उतरने के लिए मचलने लगा और नीचे खिसकते हुए उसने अपने दोनों हाथ सीधे कर लिए और फिसल कर केदारनाथ की गोद से उतर गया। किसी एक स्थान पर ज्यादा देर रुकना बच्चों की आदत में नहीं होती वह कमरे से दौड़ लगा कर बरामदे में खड़े पुराने स्कूटर पर खड़ा हो गया और हैंडिल घुमाते हुए मुँह से स्कूटर के चलने की आवाज निकालते हुए खेलने लगा।
केदारनाथ ने पीछे से आवाज लगायी – ‘सँभल कर कहीं चोट न मार लेना नहीं तो अभी तुम्हारी माँ मुझे ही ताना मारने लगेगी।‘
अभी पिछले महीने की तो बात है मुदित इसी प्रकार केदारनाथ के कमरे के बाहर खड़ी साइकिल का पैडल हाथ से घुमा रहा था फिर न जाने उसे क्या सूझा कि पैडल पर पैर रख कर खड़ा होने लगा, परिणामतः साइकिल उसके ऊपर गिर पड़ी थोड़ी बहुत चोट भी लगी और मुदित के रोने पर बहू मीनाक्षी देर तक बड़बड़ाती रही थी – ‘न जाने क्यों ये सब कबाड़ की चीजें घर में इकट्ठा कर रखी हैं अभी बच्चे को कुछ हो जाता तो ? ये भी नहीं सोचते हैं घर में आने-जाने वाले लोग क्या सोचते होंगे। घर में कार होते हुए पुरानी साइकिल, पुराना स्कूटर, पुराना रेडियो आदि न जाने क्या-क्या इकट्ठा कर रखा है मुझे तो शर्म आती है जब कोई मिलने वाला या रिश्तेदार ड्राइंगरूम से उठ कर बाबू जी के कमरे में उनसे मिलने चल देता है‘ उसकी बातों से परेशान होकर केदारनाथ का बेटा अनूप उठ कर उनके कमरे में आ कर बोला – ‘बाबू जी मीनाक्षी ठीक ही कर रही है आप क्यों यह साइकिल रखे हुए हैं मुदित को आखिर चोट लग गयी कि नहीं। केदारनाथ भी प्रतिउत्तर में बोल पड़े थे। खुद तो लड़का सम्भाला नहीं जाता है चली है तुम्हारी बहू मुझ पर आरोप लगाने अरे छोटे बच्चे शैतानी करते ही हैं और उन्हें देखना और टोकना भी पड़ता है तुम भी तो कभी छोटे बच्चे थे और तब भी यह साइकिल घर में थी इसी से तुमने भी साइकिल चलाना सीखा था अब तुम्हारे अनोखा लाल हुआ है जो घर को सारा सामान हटा दो। अनूप चुप हो कर कमरे से चला गया था।‘ वह समझ गया था कि केदारनाथ जी को समझाना उसके बस से बाहर है।
केदारनाथ उठ कर कमरे के बाहर बरामदे में आ गये और मुदित पर नजर रख कर उसे स्कूटर से खेलने में सहयोग करने लगे उन्होंने मुदित को स्कूटर की गद्दी पर बैठा कर पकड़ लिया और वह दोनों हाथों से स्कूटर का हैंडिल घुमा कर टी0टी0 की हॉर्न की आवाज मुँह से निकाल कर खुश हो रहा था। कुछ ही देर में उसका मन इस खेल से भर गया। केदारनाथ ने उसे नीचे उतार कर खड़ा कर दिया। मुदित ने फिर केदारनाथ से प्रश्न किया – ‘बाबा आप को स्कूटर चलानी आती है ?‘
हाँ क्यों नहीं! तुम्हारे पापा जब छोटे थे तो वे तुम्हारी तरह आगे खड़े हो जाते थे और तुम्हारी दादी पीछे बैठ जाती थीं और हम लोग पूरा शहर घूम आते थे।
‘तो दादी अब कहाँ चली गई हैं मुझे आप के और दादी के साथ स्कूटर पर घूमना हैं।‘
‘काश ऐसा होता‘ – ठंडी साँस लेकर केदारनाथ बोले- ‘तुम्हारी दादी बहुत दूर भगवान के घर चली गई हैं इसीलिए तो यह स्कूटर यूँ ही खराब खड़ा है।‘
‘तुम्हारे पापा के पास इसे न तो ठीक कराने का समय और न मुझमें इतनी ताकत है कि इसे खींच कर मैकेनिक के पास तक ले जा पाऊँ।‘
‘मैं पापा से कहूँगा वे इसे ठीक करा देंगे।‘ मुदित ने बड़प्पन से कहा।
‘नहीं बेटा अब मुझे स्कूटर की जरूरत नहीं है।’
मीनाक्षी को लगता है अब टी0वी0 सीरियल या फोन पर बात करने से फुरसत मिली होगी तभी उसने मुदित को आवाज लगा कर बुलाया। मुदित तुरन्त दौड़ लगा कर घर के अन्दर भाग गया।
केदारनाथ को सेवानिवृत्त हुए लगभग सात वर्ष हो गए थे। सेवा काल के अंतिम वर्षों में उन्होंने अपनी बेटी और बेटे अनूप की शादियाँ कर दी थीं फिर अपने तीन कमरों के मकान में दो कमरे और बनवाये ताकि बहू बेटे व बेटी दामाद आदि को आने में कोई परेशानी न हो। किन्तु सेवानिवृत्ति के दो वर्षों के बाद ही उनकी पत्नी उनका साथ छोड़ गई तभी से उन्होंने अपने आप को घर के पिछले हिस्से में बने कमरे में समेट लिया था। बहू मीनाक्षी ने अब अपने हिसाब से मकान को व्यवस्थित कर घर के अनुपयोगी सामानों को केदार के कमरे में व उनके कमरे के बाहर बने बरामदे में रख दिया था। किसी रिश्तेदार के यह कहने पर कि मृत सास की तस्वीर ड्राइंगरूम में क्यों लगा रखी है यह अशुभ होता है वह फोटो भी केदारनाथ के कमरे में लगा दी गई। उनके लिए तो यह अच्छा ही हुआ उठते-बैठते सोते-जगते वह अपनी पत्नी की फोटो से मन ही मन बातें जो कर लिया करते थे।
मीनाक्षी के कमरे में जब से नया एल0ई0डी0 टी0वी0 आया पुराना टी0वी0 भी केदारनाथ के कमरे में आ गया यह कह कर कि आप को बोरियत न हो इसलिए आप के कमरे में टी0वी0 लगा दे रहे हैं। पुराना टू इन वन जिसके कैसेट तो आने ही बंद हो गये सिर्फ आकाशवाणी के कार्यक्रम सुनने लायक रह गया था केदारनाथ के कमरे में आ गया था। बहू के लिए नया एफ0एम0 का रेडियो सेट आ गया था। केदारनाथ इससे संतुष्ट थे क्योंकि उन्हें आकाशवाणी के कार्यक्रम ही सुनना अच्छा लगता था। एफ0एम0 पर बेहूदे गाने उन्हें नहीं सुहाते थे।
केदारनाथ अपने पलंग पर आ कर लेट गए। मुदित का प्रश्न उनके मन में घुमड़ने लगा – ‘आपका कौन सा रंग अच्छा लगता है ?‘
यही प्रश्न तो उनकी पत्नी ने किया था जब वह साड़ी की दुकान पर अपने ऊपर साड़ी के पल्लू डाल कर देख रही थी। उन्होंने तब भी यही कहा था -‘तुम जो भी पहन लो वही रंग अच्छा लगता है।‘
‘धीरे बोलिये, दुकानदार क्या सोचेगा?‘
अरे इसमें क्या ? मैं तो तुम्हारे प्रश्न का ही उत्तर दे रहा हूँ।
घर में पुताई कई वर्षों बाद होने जा रही थी। पहले तो लगभग हर वर्ष दीवाली के पहले घर की पुताई चूने से हो जाया करती थी। जब से यह महंगे इनैमल पेण्ट लगने लगे और एक-एक कमरे में रेगमाल से घिसाई फिर पुट्टी फिर घिसाई और फिर पेण्ट का रिवाज चल पड़ा। प्रत्येक वर्ष की पुताई के लिए सोचना ही कठिन हो गया है।
ढाई वर्ष के मुदित के हाथ में जब से चाक और कलर आ गये उसने सारे घर की दीवारों को ही स्लेट बना डाला था। अब वह कुछ समझदार हुआ है और सिर्फ कागज पर ही लिखना और रंगना शुरू कर दिया है। शायद इसीलिए अनूप और बहू ने घर में पुताई कराने की सोची होगी।
‘‘और का ! जरूर जई बात होय्ये’’ अरे फिर वही देहाती भाषा। पर मन में उठ रहे उत्तर में भाषा पर कैसे रोक लगायी जा सकती है।‘‘ केदारनाथ ने खुद को समझाया।
मुदित जब छोटा था तो उसे घुमाने और बहलाने के लिए मीनाक्षी अक्सर केदारनाथ के पास छोड़ जाती थी। फिर जब वह दो वर्ष के आस-पास था तो अचानक मुदित का केदारनाथ के पास आना कम होने लगा एक दिन जब उन्होंने इसका कारण जानना चाहा तो बहू मीनाक्षी का उत्तर सुनकर आवाक रह गए थे – ‘कल को इसका एडमीशन कान्वेंट स्कूल में करवाना है आप के पास रह कर देहाती भाषा सीख रहा है आगे चल कर परेशानी होगी।‘ कई दिन तक बिलकुल चुप रहे थे केदारनाथ। यह सच था कि उनका बचपन गाँव में बीता था इस कारण बोलचाल में कुछ तथाकथित देहाती भाषा का प्रयोग अनजाने में ही हो जाता था अपने पूरे सेवाकाल में उन्हें कभी किसी ने नहीं टोका जबकि वह सेक्शन अफसर के पद से सेवा निवृत्त हुए थे। किन्तु अब घर पर उन्हें सोच-सोच कर बोलना होगा। इसकी तो कभी कल्पना उन्होंने नहीं की थी।
‘बाबा यह कबाड़ क्या होता है ?‘
मुदित ने आकर उनकी तन्द्रा भंग की। ‘ऐसी वस्तु जो किसी के काम की न हो उसे कबाड़ कहते है। परन्तु तुम क्यों ऐसा पूछ रहे हो?‘
मम्मी-पापा से कह रही थी, ‘पूरा घर कबाड़खाना बना रखा है। व्हाइट वॉश के साथ सारा कबाड़ भी बेंच डालना।‘
‘बाबा! अपने घर में क्या-क्या कबाड़ है ?’
‘अरे बेटा मुझसे क्यों पूछ रहे हो अपनी माँ से ही पूछो। सबसे बड़ा कबाड़ तो मैं ही हूँ अब किसी काम का नहीं रहा।’
‘फिर आप को कौन खरीदेगा?‘ भोलेपन से मुदित ने पूछा।
‘कोई नहीं!’ केदार नाथ ने उदासी से कहा।
‘अच्छा बाबा जी ! यह बताइये आप तो कह रहे हैं जो चीज काम की नहीं होती वह कबाड़ होती है फिर कोई इसे खरीद कर क्या करता होगा ?’ मुदित ने फिर प्रश्न किया।
‘क्यों बाबा को परेशान कर रहे हो चलो अपने कमरे में’ पीछे आकर अनूप ने मुदित को डाँटा।
‘नहीं यह मुझे परेशान नहीं कर रहा है। अच्छी बातें कर रहा है। बच्चों के प्रश्न का उत्तर भी मिलना चाहिए।’ केदान ने कहा।
‘आप ही ने इसे सिर पर चढ़ा रखा है तभी निरर्थक प्रश्न किया करता है।’ अनूप बड़बड़ाया।
‘बच्चों के प्रश्न कभी निरर्थक नहीं होते यह बात और है कि तुम्हें उसका उत्तर न आता हो।’ केदारनाथ ने कहा।
‘अच्छा आप इसके प्रश्न का उत्तर दे।’ अनूप बोला
‘हाँ मैं दे रहा हूँ इसको उत्तर, जो वस्तु किसी एक की नजर में कबाड़ होती है वही वस्तु किसी दूसरे के लिए उपयोगी हो सकती है। क्या तुम चण्डीगढ़ का राक गार्डेन भूल गए किस तरह कबाड़ की चीजों से पूरा गार्डेन गुलजार है नित्य ही टिकट खरीद कर हजारों लोग उसे देखने आते हैं। तुम भी तो घूमने गए थे और वहाँ की फोटो खींच कर लाये थे। जरूरत है सिर्फ अपने सोच का दायरा बढ़ाने की कल्पना शक्ति का सही उपयोग करने की। जिस रूई के बिनौले को और जिस चावल की भूसी को पहले बेकार समझ कर नष्ट कर दिया जाता था आज उसी से निकाले गये रिफाइण्ड आयल को देश की बहुत बड़ी जनसंख्या के लिए तेल की कमी पूरी होती है। ऐसी ही बेकार की वस्तुओं से हार्डबोर्ड और प्लाई आदि का निर्माण हो रहा है बोलते-बोलते उन्हें खाँसी आ गई।’
अनूप ने मीनाक्षी को पानी लाने के लिए आवाज दी। वह जल्द ही पानी का गिलास ले कर आ गयी।
अचानक मुदित जो केदारनाथ की बातें ध्यान से सुन रहा था बोला- ‘बाबा मेरे पास एक रुपया है आप कह रहे थे आप कबाड़ हो गए हैं और आप को कोई नहीं खरीदेगा, मेरा रुपया आप ले लो मैं आप को खरीदूँगा।‘
‘मैं इतना सस्ता नहीं हूँ जो तुम्हारे एक रुपये के बदले बिक जाऊँ ?‘
‘तो फिर अब क्या होगा ? मेरे पास तो एक ही रुपया है आप कितने रुपये में बिकोगे? मैं और रुपये पापा से ले लूँगा।‘ मुदित ने अनूप की ओर देखते हुए कहा।
‘पापा से रुपए लेने की कोई जरूरत नहीं है मेरी कीमत तो तुम्हारे पास है।’ केदारनाथ ने पोते को गोद में उठा लिया।
‘वो कैसे ?’ मुदित ने प्रश्न किया।
‘मेरे गाल पर एक मीठी पप्पी दे दो बस मैं बेमोल बिक जाऊँगा।‘ बस इतनी सी बात और मुदित बाबा के गले में झूल गया।
मीनाक्षी और अनूप भी केदारनाथ के चरणों में झुक गये।

  • आलोक कुमार दुबे

इन्दिरा नगर, लखनऊ

-                                                                                
                               

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *