कहानी:सम्मान-आरती पांड्या
सम्मान
मैं एक लंबी अंधेरी गुफा में दौड़ी जा रही हूँ l सांस फूल रही है ,पैर लड़खड़ा रहे हैं लेकिन मैं रुक नहीं रही हूँ क्योंकि कुछ दूरी पर गुफा के दूसरी तरफ रौशनी नज़र आरही है और मैं जल्द से जल्द वहाँ पंहुचना चाहती हूँ l मगर पीछे से कुछ आवाज़ें मुझे रुकने को कह रही हैं और सहसा मेरी आँख खुल जाती है l मैं सपने के उस डरावने माहौल से निकल कर चैन की सांस लेती हूँ पर यह क्या ? मैं क्या वाकई किसी अंधेरी गुफा मैं हूँ ? क्योंकि अंधेरा तो अभी भी घिरा हुआ है ! जल्दी से अपने आसपास की चीजों को टटोलटी हूँ तब एहसास होता है कि मैं अपने कमरे में हूँ और शायद कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो गई थी और तभी वह डरावना सपना दिखाई दिया था l उठ कर लाइट जलाई और खुद पर नज़र डाली तो खुद को दुल्हन के जोड़े में देख कर याद आया कि आज तो मेरी शादी थी l पिछले दो दिनों से घर में मेहमानों की गहमागहमी और तैयारियों की रौनक लगी हुई थी l कभी मेंहदी तो कभी हल्दी और कभी संगीत का शोर l
आज शाम को दीदी और मीना चाची जब मुझे तैयार कर रही थीं तब ना जाने कितनी नसीहतें दे रही थीं कि ‘ससुराल में ऐसे करना, वैसे करना , सुबह जल्दी उठा करना वरना सास कहेगी कि पीहर से अच्छे संस्कार लेकर नहीं आई है’ उनलोगों कि बातों से खीजी मैं अपना भारी ज़री का लहंगा निहारे जा रही थी जिसे पिछले एक हफ्ते से मैं रोज़ हाथों से छू कर अलमारी में रख देती थी l शादी का यह जोड़ा मैंने ना जाने कितने अरमानों से , सेंकड़ों डिज़ाइन देखने के बाद पसंद किया था l मगर अभी तो इस पर जगह जगह मिट्टी लगी हुई है और सूखी मेंहदी का चूरा बिखरा हुआ है l अरे ! लहंगा तो थोड़ा फट भी गया है l उठ कर खिड़की से नीचे झाँक कर देखा तो आँगन में बंधा शादी का मंडप औंधा पड़ा हुआ था l दीदी के दोनों बच्चे मंडप में बंधी गेंदे की लड़ियों को तोड़ तोड़ कर उनसे खेल रहे थे और केटरर के नौकर मेज़ और कुर्सियाँ उठा कर बाहर लेजा रहे थे l
शाम को जहां खुशियों का शोर था वहीं इस समय सन्नाटा पसरा हुआ था l इतने सारे जो मेहमान आए हुए थे लगता है वापिस चले गए हैं l मैंने चारों तरफ़ नज़र घूमा कर आपने परिवार वालों को ढूंढना शुरू किया मगर पापा , माँ , चाचा … दीदी ……कोई भी तो नज़र नहीं आरहे थे l आकर फिर से कुर्सी पर बैठ गई और सामने दीवार घड़ी पर नज़र डाली तो कुछ साफ दिखाई नहीं दिया l मेरी आँखों को क्या हो गया है ? इतना धुंधला क्यों दिखाई दे रहा है ? उँगलियों से आँखों के कोनों को हल्के से छू कर देखा तब एहसास हुआ कि मेरी आँखें तो आंसुओं से भीगी हुई हैं l हथेलियों से आँखें पोंछ कर दोबारा घड़ी की तरफ देखा तो पता चला कि रात के दो बज रहे थे l आँगन के सूनेपन को महसूस करने के बाद अपने मन को टटोलने की कोशिश करनी चाही तो सबसे पहले शादी के जोड़े और शृंगार से छुटकारा पाने की इच्छा हुई जो कि शाम को जितना अच्छा लग रहा था इस समय एक बोझ से ज्यादा कुछ भी नहीं लग रहा था l मैंने जल्दी से हाथ मुंह धोकर कपड़े बदले और फिर जाकर मम्मी पापा से बात करने के लिए अपने कमरे से बाहर निकली तो मम्मी को अपनी तरफ आते देख कर वहीं ठिठक गई l मम्मी ने पास आकर मेरे कंधे झकझोर कर भरे गले से कहा , “अक्कू , तूने ऐसा क्यों किया ?”
मैंने हैरानी से उनकी तरफ देखा और पूछा, “ मम्मा , आपको भी लगता है कि मैंने गलत किया ? अपने पापा की इज्ज़त को दुनियादारी से ज़्यादा अहमियत देना अगर आपकी नज़रों में भी गुनाह है तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा मगर मैं अपने पापा की बेइज्जती होते हुए नहीं देख सकती हूँ l”
मम्मी मुझे पकड़ कर कमरे के अंदर ले आईं और बोलीं “ बेटा , हम लड़की वाले हैं l हमको दब कर ही चलना पड़ता है l अगर उस समय तू बीच में ना पड़ी होती तो तेरे पापा किसी भी तरह से तेरे ससुर को मना लेते और यह शादी हो जाती l” मम्मी ने सिसकते हुए फिर कहा , “ तूने अपनी एक गलती से आगे के सारे रास्ते बंद कर दिये बेटा l अब तेरा क्या होगा मेरी बच्ची l” मम्मी फूट फूट कर रो रही थीं और मैं उनको एकटक देखे जा रही थी और सोच रही थी कि आज भी हमारे समाज में कुछ नहीं बदला है l वही पुरानी बातें और वही बासी सोच !
मम्मी की बातों ने मेरी आँखों के सामने शाम का वो दृश्य जीवन्त कर दिया जब मेरी बारात घर के दरवाजे पर आई थी और मम्मी पापा मेरे होने वाले पति और उसके परिवार का स्वागत करने के लिए उनके सामने ऐसे बिछे जा रहे थे जैसे किसी गरीब के सामने किसी ने कुबेर का ख़जाना लाकर रख दिया हो l मैं आँखों में भविष्य के ढेरों सपने सजाये हुए ऊपर बालकनी में अपनी सहेलियों के साथ खड़ी अपने दूल्हे की एक झलक पाने के लिए बेचैन हो रही थी और मेरी सहेलियाँ मुझे अपनी बातों से परेशान कर के हंस रही थीं l तभी नीचे से कुछ ऐसी आवाज़ें सुनाई देने लगीं जो कानों को अच्छी नहीं लगीं क्योंकि वे आवाजें खुशी की नहीं बल्कि किसी को अपमानित करने वाली थीं l मैंने अपनी एक सहेली से नीचे जाकर पूरे मामले की जानकारी लेने को कहा लेकिन तब तक मेरी दीदी हाँफती हुई आईं और मुझे कोने में लेजाकर बोलीं “ अक्कू , यह तेरे अभय के परिवार वाले तो गाली गलौच पर उतर आए हैं और वो तेरा दूल्हा मुंह में दही जमाये खड़ा सब सुन रहा है लेकिन मजाल है जो अपने बाप को रोकने की कोशिश करे l यह लोग तो बड़े ही लालची और बदतमीज़ निकले अक्कू l क्या अभय ने तुझे पहले बताया नहीं था नकदी की मांग के बारे में ? ”
“कैसी नकदी दीदी ?” मैंने चौंक कर पूछा तो दीदी ने बताया कि अभय के पिताजी नकद रुपये की मांग कर रहे हैं और अभय चुपचाप उनकी बातें सुन रहा है l मुझे अभय से यह उम्मीद नहीं थी l पिछले चार सालों से हम एक दूसरे को जानते हैं , एक साथ एक कंपनी में काम करते हैं और उसी दौरान एक दूसरे को पसंद करने लगे थे l पिछले दो सालों से अभय शादी के लिए मेरे पीछे पड़ा हुआ था और फिर एक दिन अपने माता पिता को लेकर वो हमारे घर आ गया था l पहले तो हम सब एक साथ बैठ कर बातें कर रहे थे पर कुछ देर बाद माँ ने मुझे अपने कमरे में जाने को कहा क्योंकि वो लोग शादी के बारे में कुछ ज़रूरी बातें अभय के माता पिता से करना चाहते थे l मैं उठकर अपने कमरे में चली आई तो मेरे पीछे पीछे अभय भी आ गया था और बोला था कि ‘हमारे पेरेंट्स को वहाँ दुनियादारी की बातें करने दो , हम लोग बैठ कर अपने हनीमून की जगह तय करते हैं l’ उसके बाद हम दोनों अपने भविष्य की सुखद कल्पनाओं में खोये हुए यही मना रहे थे कि हम दोनों के परिवार इस रिश्ते के लिए राज़ी हो जाएँ और लगभग दो घंटों की बात चीत के बात हम दोनों के माँ बाप इस रिश्ते के लिए मान भी गए थे l मैं उस दिन बहुत खुश थी क्योंकि मम्मी और पापा ने भी मेरी पसंद की तारीफ करते हुए कहा था कि इतना अच्छा रिश्ता तो अगर वे लोग बिरादरी में ढूंढते तो भी ना मिलता l सुंदर कमाऊ लड़का , रईस और सभ्य परिवार ऊपर से शादी के बाद नौकरी करते रहने की मेरी इच्छा से भी उन्हें कोई एतराज़ नहीं था l बात चीत के दौरान मम्मी के मुंह से मेरे सामने निकल गया था कि अभय के पिताजी दहेज कुछ ज़्यादा ही मांग कर रहे हैं जिसे सुन कर पापा ने उन्हें टोकते हुए कहा था ,” अक्कू की माँ , ज़रा सोचो, अगर हम अपनी बिरादरी में भी कोई लड़का देखते तो दहेज तो वहाँ भी देना ही पड़ता और फिर इतना अच्छा परिवार और हमारी अक्कू की टक्कर का लड़का ना मिलता l तुम चिंता मत करो मैं सारा इंतज़ाम कर लूँगा l”
अगले दिन मैंने औफिस पंहुच कर अभय से दहेज की मांग के बारे में बात करनी चाही तो उसने यह कह कर मुझे चुप कर दिया कि , “ यह कोई दहेज की मांग नहीं है बल्कि हमारे रीति रिवाजों के अनुसार सबको उपहार लेने देने की बात है इसलिए हमारे बुज़ुर्गों को ही यह सब तय करने दो , अपना दिमाग मत खराब करो l वैसे भी मेरे पापा कह रहे थे कि तुम्हारे फादर इस मांग को खुशी खुशी पूरा करने को तैयार हैं क्योंकि तुम्हारी शादी के लिए उन्होने इतना इंतज़ाम कर रखा है” अभय की बात से अपने मन को एक झूठी तसल्ली देकर मैं भी शायद उस समय अपने भविष्य को लेकर कुछ स्वार्थी हो गई थी इसीलिए दहेज के मामले को मैंने गंभीरता से नहीं लिया था l
एक साल पहले हमारी सगाई हुई तो मेरे पापा ने दिल खोल कर अभय और उसके परिवार वालों को उपहार दिये l उनलोगों की तरफ से भी मेरे लिए कीमती जेवर और कपड़े आए थे और मैं अपलक अपनी उंगली पर जड़े हीरे के उस अटूट बंधन को निहारती रही थी जो अभय ने अंगूठी की शक्ल में पहना दिया था l अभय की माँ चाहती थीं कि हमारी शादी जल्दी कर दी जाये लेकिन अभय अपने प्रमोशन के बाद शादी करना चाहता था l मेरे पापा भी उसकी बात पर इस लिए राज़ी हो गए थे क्योंकि उनको भी दहेज के रुपयों का इंतज़ाम करने के लिए इतना वक़्त चाहिए था l
आखिर आज का दिन भी आ पन्हुचा और घर में चहल पहल और मेरे मन में हलचल शुरू हो गई l शाम के सात बजे से बारात के आने का इंतज़ार शुरू हो गया और जब बारात दरवाजे पर आई तो मेरी सहेलियों का हंसी मज़ाक और मेरा उनकी बातों पर शर्म से लाल होना शुरू हो गया l लेकिन फिर वो पल आया जिसने मेरे सपने को एक पल में टुकड़े टुकड़े कर दिया l
जब दीदी ने बताया कि अभय के पापा और दूसरे रिश्तेदार मेरे पापा की बेइज्जती कर रहे हैं और अभय उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं रहा है तो मैं खुद को नहीं रोक पाई और दीदी के माना करने के बावजूद दौड़ कर नीचे पंहुच गई l तभी मेरे कानों में अभय के पापा की आवाज़ पड़ी , “ वर्मा साहब , आपकी किस्मत बहुत तेज़ है जो आपको अभय जैसा दामाद मिल रहा है l मेरा बेटा कोई ऐरा गैरा नहीं है , बहुत ऊंची पोस्ट पर काम करता है l इतनी आसानी से वो घोड़ी से नीचे नहीं उतरेगा l वह आपकी देहरी तभी चढ़ेगा जब आप उसके हाथ में नकद पाँच लाख रखेंगे वरना हम बारात वापिस ले जाएंगे l” और उसके बाद मैंने जो देख उसे देख कर मैं खुद को नहीं रोक सकी और दौड़ कर अपने पापा के पास पंहुच कर उनको रोक लिया l मेरे पापा , जिन्होने हमेशा मुझे सिर उठा कर जीने की सीख दी थी वो ही आज मेरे लिए अपना सिर उस लालची आदमी के पैरों में रख कर गिड़गिड़ा रहे थे l
मैंने अपने पापा के कंधे पर हाथ रख कर उन्हें उठने को कहा तो पापा ने अपना आंसुओं से भीगा चेहरा उठा कर मेरी तरफ देखा और मुझे वहाँ से जाने को कहा लेकिन मैंने उनको पकड़ कर उठाते हुए कहा , “ पापा , मुझे ऐसे परिवार में शादी नहीं करनी है जो दहेज के नाम पर दूसरों की पगड़ी उछालते हैं l” मम्मी, पापा, दीदी सभी मुझे वहाँ से जाने के लिए कहने लगे पर मैं अपनी जगह से नहीं हिली और अपनी उंगली से सगाई की अंगूठी उतार कर अभय की हथेली पर रख कर उससे कहा “ अभय भारद्वाज , तुम्हारे जैसे भिखमंगे के साथ मैं अपनी ज़िंदगी नहीं गुज़ार सकती हूँ इसलिए यहाँ से दफा हो जाओ और कभी भी अपनी सूरत मुझे मत दिखाना l”
वहाँ खड़े सभी लोग मेरे इस व्यवहार से हैरान और परेशान नज़र आरहे थे और बारातियों के बीच में मेरी तेज़ जुबान को लेकर काना फूसी हो रही थी l अभय के पिता ने भी मेरे पापा को अपनी बेटी को बदतमीज़ और बदज़ुबान बनाने के लिए जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया और मुझे चालू और बदचलन जैसे शब्दों से इज्ज़त बख्शनी शुरू कर दी तब मैंने उनको भी नहीं छोड़ा , “ मिस्टर भारद्वाज , मेरे पापा ने मुझे अपने दम पर और सिर उठा कर जीना सिखाया है l आपकी तरह हम अपने बेटे और बेटियों की बोली नहीं लगाते हैं l आप तमीज़ और संस्कारों की क्या बात कर रहे हैं , आप तो दहेज के नाम पर खुले आम अपने बेटे को बेच रहे हैं और आपका यह ऊंचे ओहदे पर काम करने वाला नामर्द बेटा चुपचाप बिकने को खड़ा हुआ है ? मिस्टर भारद्वाज , दौलत के लालची और मेरे पापा की बेइज्जती करने वालों के साथ मैं संबंध नहीं जोड़ सकती हूँ इसलिए शराफत से कह रही हूँ कि अपने बेटे को लेकर यहाँ से चले जाइए वरना अभी पुलिस को बुला कर आपको ‘एंटी डाओरी एक्ट’ के तहद गिरफ्तार करवा दूँगी l”
इतना सुनने के बाद और मेरा रौद्र रूप देख कर वहाँ रुकने की उनमें से किसी की भी हिम्मत नहीं रही और बारात वापिस लौटने लगी यह देख कर मेरे पापा उन्हें रोकने के लिए उनके पीछे दौड़ने लगे तो मैंने उनका हाथ कस कर पकड़ लिया , “ पापा ! आपने ही मुझे सिर उठा कर जीना सिखाया है फिर आप इन लालची लोगों की खुशामद क्यों कर रहे हैं ?”
पापा ने गुस्से से मेरा हाथ इतनी ज़ोर से झटका कि मैं पास रखे एक गमले पर गिर पड़ी l पापा ने यह देख कर मुझे सहारा देकर उठाया तो ज़रूर मगर उनका गुस्सा अभी भी नहीं उतारा था और वो लगातार मुझे दोषी ठहराए जा रहे थे ,“बेवकूफ लड़की , आज तूने मुझे समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रखा l क्या ज़रूरत थी बीच में पड़ने की ? मैं बात कर रहा था ना ! तेरी बदज़ुबानी की वजह से आज दरवाजे से तेरी बारात वापिस चली गई अब कौन करेगा तुझसे शादी ? समाज में सब कहेंगे कि विशंभर वर्मा ने अपनी बेटी को अच्छे संस्कार नहीं दिये हैं l” और पापा गुस्से में घर के अंदर चले गए थे l मेरे परिवार के बाकी लोग भी मुझे अकेला छोड़ कर पापा के साथ चले गए जिससे साफ ज़ाहिर था कि सभी की नज़रों में अपने पापा की इज्ज़त को सर्वोपरि मानने वाली उनकी बेटी ही दोषी थी वो दहेज का भूखा और घमंडी भारद्वाज नहीं l मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या दुनियादारी और समाज का डर इतना बड़ा है कि उसकी वजह से लोग अपने आत्मसम्मान को कुचलने के लिए तैयार हो जाते हैं और कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाने को जुर्म समझते हैं !
अगर आज इस इक्कीसवीं सदी में भी इस समाज में अपना और अपने माता पिता का अपमान चुपचाप सहने वाली लड़की को ही सुशील और संस्कारी माना जाता है तो ऐसे समाज को धिक्कार है l लड़की बचाओ लड़की पढ़ाओ किस लिए ? शादी के नाम पर की जाने वाली इस खरीद फरोख्त के लिए ? एक तरफ तो लड़कियों को बराबरी का दरजा देने की बात करी जाती है और दूसरी तरफ उनको दहेज के तराजू में तौला जाता है ! अगर लड़के के परिवार को अपने बेटे की हैसियत और ओहदे की इतनी अकड़ रहती है तो आजकल तो लड़कियां भी पढ़ाई और ओहदों में लड़कों से कम नहीं हैं फिर भी लड़कों को ही ज्यादा अहमियत क्यों दी जाती है ? यह कैसी प्रगति है ?
Very nice and need of today