कहानी:जीवन की राजनीति-आरती पांड्या
जीवन की राजनीति
चाय पीते पीते अपर्णा की नज़र टी वी पर चल रहे समाचार पर गई “ आज श्री उत्कर्ष साँघवी ने गुजरात के मुख्य मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर ली” l अपर्णा हल्के से बुदबुदाई “ बधाई हो उत्कर्ष “ और टीवी बंद करने के लिए पास में पड़ा रिमोट उठाया ही था तभी टीवी स्क्रीन पर शपथ ग्रहण समारोह के चित्र आने लगे और अपर्णा की आँखें जैसे स्क्रीन पर चिपक कर रह गईं l शपथ ग्रहण करते हुए उत्कर्ष के चेहरे पर दंभ और संतुष्टि भरी मुस्कुराहट थी l चेहरा तो वही था पर सफलता की चर्बी चढ़े चेहरे में वह पहले वाला उत्कर्ष कहीं नज़र नहीं आरहा था l चेहरे पर उम्र की हल्की लकीरें और बालों में चांदी सी सफेदी आ गई थी और अंदर तक उतर जाने वाली गहरी नीली आँखों पर चश्मा चढ़ गया था l अपर्णा ने टीवी बंद करके रिमोट एक तरफ पटका और आँखें बंद करके सिर सोफ़े की पीठ से टिका लिया l सामने रखा टी वी तो बंद हो गया था लेकिन अपर्णा की यादों का टीवी अपने समाचारों को फ्रेम दर फ्रेम जीवंत करने लगा था l
विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनावॉ की सरगर्मी थी और चारों तरफ चुनाव प्रचार lका शोर था l अध्यक्ष पद के प्रत्याशियों के चमचे कक्षाओं में जा जा कर अपने अपने प्रत्याशी को वोट देने के लिए छात्र और छत्राओं से सिर्फ अनुरोध ही नहीं कर रहे थे बल्कि वोट देने के लिए धमका भी रहे थे और ऐसे ही एक अवसर पर जब पुस्तकालय में नोट्स बनाते समय कुछ लड़कों ने आकर अपने प्रत्याशी को वोट देने के लिए अपर्णा पर दबाव डालना शुरू किया तो लड़कों के उद्दंड व्यवहार से चिढ़कर अपर्णा ने उनलोगों को यह कह कर वहाँ से जाने को कहा कि वो विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए आती है और उसे किसी तरह की राजनीति में कोई रुचि नहीं है l एक लड़की के टेढ़े तेवर उन लड़कों से बर्दाश्त नहीं हुए और वे लोग अपर्णा के इर्दगिर्द कुर्सियाँ खींचकर बैठ गए l लायब्रेरी में उस समय दो चार लोग ही थे और उनमें से शायद कोई भी उन लड़कों से उलझने के मूड में नहीं था इसलिए एक एक करके सभी वहाँ से खिसक लिए थे l यहाँ तक कि लायब्रेरियन ने भी अपनी कुर्सी छोड़कर किताबों की एक शेल्फ के पीछे जाकर स्वयं को व्यस्त कर लिया था l अपर्णा ने अपने डर पर काबू पाते हुए अपनी किताबें समेटीं और उठकर जाने लगी तो एक लड़के ने रास्ता रोक कर कहा “ चलीं कहाँ ? पहले हमारी पूरी बात तो सुन लो l अगर हमारे भावेश भाई को वोट देने नहीं पँहुचोगी तो वह तुम्हें पढ़ने लायक नहीं छोड़ेंगे “ लड़का कुछ और कहता उससे पहले ही अपर्णा ने अपने पास रखी कुर्सी उठाकर लड़कों के ऊपर फेंकी और भाग कर लायब्रेरी से बाहर निकलने लगी l गुंडे भी उसके पीछे भागे तभी सामने से एक मजबूत हाथ ने अपर्णा का हाथ पकड़ कर अपने पीछे किया और उसको परेशान कर रहे लड़कों को ऐसी गिरी हुई हरकत करने के लिए डाँटते हुए वहाँ से जाने को कहा l
लड़के गालियां देते हुए वहाँ से चले गए तब अपर्णा ने उस युवक को अपनी मदद करने के लिए धन्यवाद दिया और चुनाव प्रचार के नाम पर विश्वविद्यालय में हो रही गुंडागर्दी के बारे में उसे बताने लगी l उस युवक ने कुछ हैरानी से कहा “ मुझे पता नहीं था कि मेरे साथी भी सबके साथ जोर जबरदस्ती कर रहे हैं l मैँ आपसे उनलोगों की तरफ़ से माफी माँगता हूँ और आपसे एक रिक्वेस्ट है कि कल सुबह 11 बजे आर्ट फेकल्टी के ग्राउंड में आजाइएगा l “ अपर्णा ने सवालियाँ नज़रों से उसकी ओर देखा तो उसने अपना परिचय देते हुए बताया कि उसका नाम उत्कर्ष साघवी है और वह भी अध्यक्ष पद का एक प्रत्याशी है लेकिन दूसरे प्रत्याशी भावेश की दादागिरी से डर कर छात्र उसको ही वोट देंगे और एक गलत व्यक्ति छात्र संघ का नेता बन कर अपनी मनमानी करेगा l “ क्या आप आज की घटना के बारे में बताकर उस भावेश गांधी और उसके गुंडे दोस्तों की असलियत सबके सामने रखना चाहेंगी ?” अपर्णा ने कोई जवाब नहीं दिया तो उत्कर्ष बोला “ हमारे यहाँ यही दिक्कत है , लड़कियां चाहे कितना पढ़ लिख लें लेकिन अपनी जुबान नहीं खोलेंगी l आपने कुछ देर पहले जिस ढंग से उन लड़कों का मुकाबला किया था उसे देख कर मुझे लगा था कि आप दूसरी लड़कियों की तरह डरपोक नहीं हैं l “ और अपनी बात कह कर उत्कर्ष पलट कर जाने लगा था तब अपर्णा ने उसे आवाज़ देकर कहा था कि वो अगले दिन सही समय पर सभा में पँहुच जाएगी l
अगले दिन अपर्णा ने जिस आत्मविश्वास के साथ भीड़ को संबोधित किया उससे चुनाव प्रचार में उत्कर्ष का पलड़ा भारी हो गया और अपने प्रत्याशी भावेश को हरा कर उत्कर्ष छात्र संघ का अध्यक्ष घोषित हुआ l इतना ही नहीं , उसने सबके सामने अपनी जीत का श्रेय अपर्णा को देते हुए उसका आभार व्यक्त किया तो विश्वविद्यालय के सभी छात्र और छात्राएं पूरी तरह से उत्कर्ष के मुरीद हो गए l
चुनाव का शोरशराबा तो समाप्त हो गया लेकिन अपर्णा और उत्कर्ष अक्सर साथ में नज़र आने लगे थे l अपने पद की जिम्मेदारी के प्रति उत्कर्ष का समर्पण अपर्णा को अच्छा लगता था और वो उसमें एक सफल भावी नेता को देखती थी l उत्कर्ष भी अपर्णा की वाक पटुता और जनसेवा की भावना से प्रभावित था और उसे राजनीति में जाने की सलाह देता था l एक दिन उसका हाथ थाम कर वह बोला था “ अप्पू , चल हम लोग लगन कर लेते हैं फिर तू और मैं मिलकर गुजरात की राजनीति से सारी गंदगी साफ कर देंगे l “ और अपर्णा इस अचानक कही गई बात से ना जाने क्यों घबरा गई थी और अपना हाथ छुड़ा कर वहाँ से भाग गई थी l पलक झपकते एक साल बीत गया और एक दिन उत्कर्ष ने बताया कि परीक्षा के बाद वह अपने घर वापिस चला जाएगा क्योंकि उसके पिताजी गुजरात के असेंबली एलेक्शन में भाग लेने वाले थे और उत्कर्ष को उनके चुनाव प्रचार का काम सम्भालना था l उत्कर्ष के जाने की बात सुनते ही अपर्णा के शरीर से जैसे किसी ने प्राण निचोड़ लिए थे और वो लड़खड़ाकर पास रखी बेंच पर बैठ गई थी और रुँधे गले से सवाल किया था “ उत्कर्ष , तुम तो मुझे अपने साथ लगन करने को कह रहे थे और अब मुझे छोड़ कर जाने की बात कर रहे हो ? “ तब उत्कर्ष हंसकर बोला था कि उसकी शादी तो राजनीति से तय हो गई है इसलिए अब अपर्णा को कोई और दूल्हा ढूँढना पड़ेगा l उत्कर्ष के जवाब से आहत अपर्णा ने भी उसे पलट कर कहा था कि वो भी समाज सेवा के प्रति समर्पित है और उसे किसी जीवनसाथी की जरूरत नहीं है l अपर्णा इतना तो जानती थी कि उत्कर्ष का परिवार राजनीति से जुड़ा हुआ है और उसके पिताजी उत्कर्ष को भी आगे चल कर सक्रिय राजनीति में भाग लेने के लिए तैयार करेंगे लेकिन उसने यह कभी नहीं सोचा था कि उसका दूर जाना अपर्णा को इतना दर्द देगा l लेकिन जिस सहजता से उत्कर्ष अपने जाने के बारे में अपर्णा को बता रहा था तो लग रहा था जैसे उसने कभी भी अपर्णा के बारे में गंभीरता से सोचा ही नहीं था l अपर्णा उसके लिए केवल एक दोस्त थी जिसने छात्र संघ के चुनाव में उसको विजय दिलवाने में सहयोग दिया था और उत्कर्ष की यह बात उसे अंदर तक छलनी कर गई थी l
उस दिन के बाद अपर्णा ने उत्कर्ष से बात तक नहीं करी l कभी आमना सामना होता भी था तो वो आँखें चुरा लेती थी और उत्कर्ष पुकारता रह जाता था l उत्कर्ष के जाने के बाद अपर्णा ने अपनी पढ़ाई पूरी करके एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली लेकिन वहाँ उसका मन नहीं लगा और उसने एक स्वयंसेवी संस्था से जुड़ कर समाज के पिछड़े वर्ग के लिये काम करना शुरू कर दिया और स्वयं को पूरी तरह से समाज सेवा के कार्य में डुबो दिया l इस बीच कई बार उसकी इच्छा हुई कि अहमदाबाद जाकर उत्कर्ष से मिले पर ना जाने क्यों खुद को रोक लिया ,लेकिन पेंतीस साल बाद भी शायद उसके दिल से उत्कर्ष का ख्याल नहीं गया था क्योंकि जब भी उत्कर्ष साँघवी के बारे में समाचार पत्रों और टीवी पर कुछ समाचार नज़र आता है तो बिसरी यादों के कांटे अपर्णा को लहूलुहान करने लगते हैं और वो खुद को समाज सेवा के कार्यों में झोक कर अपने अतीत को भुलाने की कोशिश करने लगती है l आज भी कुछ ऐसा ही हुआ l टीवी समाचार सुनने के बाद खुद को उत्कर्ष नाम के भ्रम से बाहर निकालने के लिए वो सामने मेज पर रखी ‘आदिवासी विकास’ की फाइल उठा कर पलटने लगी l तभी उसकी सहयोगी कांता बेन का फोन आया और उसने बताया कि कार्यालय में अभी एक सूचना आई है जिसके अनुसार आदिवासियों के विकास के लिए किये गए अपर्णा के अथक प्रयासों के लिए उसको गुजरात की सर्वश्रेष्ठ समाज सेविका के इस वर्ष के सम्मान के लिए चुना गया है l कार्यक्रम अगले महीने की 7 तारीख को गांधीनगर में है l
“मोटी बेन , तमने आ आदर तो पहले थी ज मलि जावू जोइए l तमे आदिवासियों माटे बउ प्रयत्न करयु छे l “ कांता बेन ने कहा तो अपर्णा ने कोई जवाब नहीं दिया और फोन रख दिया l मन में कहीं एक तसल्ली सी थी कि उसने जीवन में कुछ तो हासिल किया l अगले दिन सम्मान समारोह की जानकारी के साथ उसके लिए एक निमंत्रण पत्र डाक से आया और उसमें जब समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में मुख्य मंत्री का नाम देखा तो इतने वर्षों बाद उत्कर्ष से आमना सामना होने की बात सोच कर ही उसके पसीने छूटने लगे और उसने कार्यक्रम में उपस्थित ना हो पाने की अपनी मजबूरी के लिए क्षमा याचना करते हुए एक पत्र लिख कर रवाना कर दिया l
सम्मान समारोह में उसके ना जाने के बारे में सुन कर सभी सहकर्मियों ने अपर्णा को समझाने का प्रयत्न किया पर वो नहीं मानी और समारोह की तिथि से पहले ही अपने आदिवासी इलाके के निवास पर चली गई और वहाँ के अधूरे कामों को पूरा करवाने में जुट गई l गाँधीनगर के सम्मान कार्यक्रम के विषय में पूरी रिपोर्ट अगले दिन के समाचार पत्र में थी और यह भी लिखा गया था कि राज्य की सुविख्यात समाज सेविका सुश्री अपर्णा गरेखान अस्वस्थ होने के कारण कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सकी थीं इसलिए उनका पुरस्कार और सम्मान पत्र उनके निवासस्थान पर पँहुचा दिया जाएगा l
एक गहरी सांस लेकर अपर्णा ने मेज़ पर फैले अपने बिस्तर को लपेट कर एक तरफ रखा और मेज पर फ़ाइलें और अन्य कागज व्यवस्थित करके कमरे को कार्यालय का रूप देकर उस इलाके में बन रहे सरकारी अस्पताल की प्रगति देखने के लिए बाहर निकल गई l कुछ देर बाद जब अपने कमरे पर वापिस आई तो बाहर एक बड़ी सी कार खड़ी देख कर उसने वहाँ सफाई कर रहे कार्यालय के एक मात्र कार्यकर्ता नट्टू भाई से उसके बारे में पूछा तो पता चला कि मोटी बेन यानि कि अपर्णा से मिलने कोई मोटा भाई आए हैं l अपर्णा ने सोचा शायद इस क्षेत्र की सड़क के निर्माण के बारे में बात करने कोई शहर से आया होगा l कमरे में पंहुची तो कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को देखकर अपर्णा ने सम्हलने के लिए दीवार का सहारा ले लिया l “तु …. तुम मेरा मतलब आप.. यहाँ ?” अपर्णा ने हकलाते हुए पूछा तो व्यक्ति उठकर अपर्णा के पास आया और बोला “ तुम तो आईं नहीं पुरस्कार लेने तो मुझे ही आना पड़ा l जब तुम्हारा नाम पुरस्कृत लोगों की लिस्ट में देखा था तब सोचा था कि अपर्णा गरेखान नाम की कोई और महिला होंगी लेकिन जब कार्यक्रम में उस महिला को नहीं देखा तब यकीन हो गया कि तुम्हारे अलावा मुझसे ना मिलने की यह हरकत कोई और नहीं कर सकता हैं इसीलिए तुम्हें सम्मानित करने यहाँ तक आ गया l “अपर्णा के हाथ में सम्मान पत्र और चेक देते हुए उत्कर्ष ने कहा l
“ इस साधारण समाज सेविका पर इतना अहसान करने की क्या जरूरत थी मुख्य मंत्री जी ? अपने किसी चपरासी के हाथ भिजवा देते मेरा पुरस्कार l “ अपर्णा ने सम्मान पत्र पर निगाह दौड़ाते हुए आगे कहा “ और यह चेक मुझे ना देकर यदि आप इस आदिवासी क्षेत्र को शहर से जोड़ने वाली सड़क का निर्माण करवा देंगे तो बड़ी कृपा होगी l “
उत्कर्ष साघवी अपलक अपर्णा की तरफ देखता रहा तो अपर्णा खीज कर बोली “ ऐसे घूर क्या रहे हो ? वही पुरानी वाली अपर्णा हूँ l “ और बात पूरी करते हुए हल्की सी हंसी उसके चेहरे पर खिल गई जिसे देख कर उत्कर्ष ने एक लंबी सांस ली और बोला “ गनीमत है मेरी अप्पू हंसी तो l “
“ मुझे अप्पू कहने का हक तुम बहुत पहले खो चुके हो उत्कर्ष l वैसे भी एक राज्य के सम्मानित मुख्य मंत्री को किसी महिला के साथ इतना अनौपचारिक व्यवहार शोभा नहीं देता है इसलिए यहाँ से चले जाओ l “ और अपना सम्मान पत्र मेज पर रखने के बाद अपर्णा अपनी कुर्सी पर बैठ गई l उत्कर्ष कुछ पलों तक असमंजस की स्थिति में खड़ा रहा फिर आकर अपर्णा के सामने बैठते हुए बोला , “ जानता हूँ मुझसे बहुत नाराज हो लेकिन एक बार मेरी पूरी बात सुन लो अप्पू वर्ना मुझे शान्ति नहीं मिलेगी l मेरे सामने उस समय दो रास्ते थे , एक राजनीति की तरफ जाकर मेरे बापूजी के सपने को पूरा करता था और दूसरा तुम्हारे साथ एक प्यारभरी दुनिया में ले जाता था l मेरे लिए उस समय उचित निर्णय ले पाना बहुत मुश्किल था पर अंत में अपने प्यार को छोड़ कर बापूजी के सपने को साकार करने का निर्णय लिया क्योंकि व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए अपने माता पिता को दुखी नहीं कर सकता था l मेरे बापूजी ने तत्कालीन पार्टी के अध्यक्ष की बेटी के साथ मेरा विवाह तय कर दिया था इसलिए उनकी आज्ञा मान कर झरना से विवाह कर लिया लेकिन सच मानो अपर्णा , हर पल तुम्हें खोने के एहसास से तड़पता रहा हूँ l “
अपर्णा ने निगाहें उठा कर उत्कर्ष की तरफ देखा और एक फीकी सी हंसी के साथ बोली “ जो तुम्हारे उपयुक्त था वही तुमने चुना उत्कर्ष इसलिए मेरे सामने फिजूल की सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है l तुम्हें मुख्य मंत्री बनाने वाली क्षमता मुझमें नहीं झरना मोदी में थी इसलिए तुमने सही फैसला लिया l मेरे लिए परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि मैं अपने कर्म के प्रति पूरी तरह से समर्पित हूँ और अपनी दुनिया में संतुष्ट हूँ l मैं फायदे के सौदे नहीं करती हूँ उत्कर्ष , जो भी किया है सच्चे दिल से किया है l तुम भी अपने राजनैतिक और व्यक्तिगत जीवन को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाओ यही मेरी कामना है l “
और हाथ जोड़ते हुए उसने मुख्यमंत्री उत्कर्ष साँघवी को वहाँ से जाने का संकेत दे दिया l
- लेखिका – आरती पांड्या