रेत सी ज़िन्दगी : कवि और कविता – सुधा त्रिपाठी शुक्ला
रेत सी ज़िन्दगी
यूं ही रेत सी …..…
बिखरती जा रही ज़िन्दगी
मरूभूमि की मरीचिका सी
सुनहरी चमक भरी ज़िन्दगी
यूं ही रेत सी फिसलती
जा रहीज़िन्दगी ….
चमकने की आस लिए
भटकती और गुज़रती
जा रही ज़िन्दगी
कब तक आस की छांव
में बैठ कर जिएं ज़िन्दगी
रेत सी फिसलती-बिखरती
जा रही ज़िन्दगी …..
समुद्र तट पर बैठ, मन सोचे
रेत के घरौंदे बनाने में लगे हुए
बालकों की ख़ुशी देख ,
ख़ुद भी ख़ुशी से झूम उठा
पर पलभर में ही फिर दर्शन
आ खड़ा हुआ ….
तभी आई एक लहर
बहा ले गई उस घरौंदे को
दे गई मासूमियत भरी हंसी
लहर तो पत्थर दिल निकली
अपना काम कर लौट गई
सच का सामना भी करा गई,
लिखा हुआ नाम संग में मिटा गई
यूं ही क्षण भर में ही
सब रेत में मिला गई
और ज़िंदगी को फिर
बिखरा गई
रेत सी फिसलती बिखरती
ज़िन्दगी रेत में समा गई
कवियित्री सुधा त्रिपाठी शुक्ला
Thanks sir