आख़िर ग़लती किसकी थी Break up Story

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ब्रेक अप स्टोरी

आख़िर ग़लती किसकी थी

राजुल अशोक

सोहम और शैला पहली बार जब टाटा इंस्टीटयूट के कैम्पस में टकराए, तो दोनों को ही पता नहीं था कि उनके बीच इतनी अच्छी दोस्ती हो जाएगी। दरअसल बात टकराव से शुरू हुई थी। बारिश में भीगी शैला ने कसकर अपने बाल झटके तो पानी सोहम पर आ गिरा। वो उसी वक़्त हॉस्टल से तैयार होकर आया था। शैला के गीले बाल और उसके पैरों से टपकते पानी की बूंदों से उसके कपड़े खराब हो गये। उसने झल्लाकर कहा, ’सारे कपड़े ख़राब कर दिए।’ शैला ने हँसते हुए कहा, ’बारिश के दिनों में साफ़ कपड़े पहनना और किसी के कपडे साफ़ रहने देना, शैला की रूल बुक में नहीं है।’ सोहम ने उसे जलती आँखों से देखा और फिर दोनों अपने-अपने रास्ते चल दिए।

क्लास में शैला को बैठा देख सोहम का मूड खराब हो गया, पर शैला ने उसे देखा और वो मुस्कुरा दी। उसकी मुस्कान में ना तो कोई तंज था और ना ही कोई शिकवा, पर सोहम जल गया। ’कैसी बेशरम लड़की है। गलती करके मुस्कुराती है।

इसके बाद कई हफ़्ते गुज़र गये। सोहम और शैला के बीच कोई बात नहीं हुई। सोहम उसे देख रास्ता बदल देता, पर उसने देखा था कि शैला की दोस्ती क्लास के काफी लोगों से हो चुकी थी, पर इससे सोहम को क्या फर्क पड़ना था। उसे शैला में दिलचस्पी ही नहीं थी।

दरअसल सोहम अपने में मगन रहने वाला लड़का था। वो एक संपन्न परिवार का लड़का था। पुश्तों से उसका घर गांव में एक विशेष प्रतिष्ठित परिवार के रूप में देखा जाता था। उनकी एक गरिमा मय छवि थी, जिस पर सोहम को नाज़ था। वो मुंबई पढ़ने ज़रूर आया था, लेकिन मुंबई की खोखली चमक-दमक भरे जीवन पर अक्सर उसे कुंठा होती और वो इसे जताने में ज़रा भी नहीं हिचकता। शायद यही वजह थी, क्लास में कोई उससे ज़्यादा बात नहीं करता था। हालांकि उसे यहाँ आए दो हफ़्ते बीत चुके थे।

तभी सोहम को तेज़ बुखार आया। वो इंस्टीट्यूट नहीं जा पा रहा था। एक दिन बुखार तेज़ हुआ, तो उसके रूम मेट ने उसे डॉक्टर को दिखाया, दवा दी और क्लास में चला गया। उस दिन दोपहर में दरवाज़े पर दस्तक हुई। सोहम से उठा नहीं जा रहा था, पर किसी तरह उसने उठकर दरवाज़ा खोला और हैरान रह गया। सामने शैला खड़ी थी। शैला कब अंदर आई। कब उसने उसके माथे पर ठन्डे पानी की पट्टियाँ रखीं ये तो सोहम को याद नहीं, पर इतना ज़रूर याद है कि उस बुखार के बाद उसकी और शैला की दोस्ती हो गई।

शैला गुजराती परिवार की थी, लेकिन सोहम को इससे फर्क नहीं पड़ता था। उसे शैला बहुत पसंद आने लगी थी। उसकी हंसी, उसकी बातें, हर चीज़ सोहम को अच्छी लगती। शैला भी उससे खुलकर बातें करती।
इसी बीच सोहम दिवाली की छुट्टियों में घर गया, तो उसका मन नहीं लगा। घर आते ही शैला कुछ ज़्यादा याद आने लगी। उसे लगता शैला को यहाँ लाकर अपने खेत दिखाए। उसे यहाँ की सैर कराये और ट्यूबवेल के पानी में उसे सराबोर कर दे। सोहम ने फोन पर शैला से बात की। शैला की चहकती आवाज़ सुनकर सोहम खुश हो गया। वो उससे दूसरे दोस्तों के हालचाल पूछता रहा। शैला ने कहा सब ठीक हैं फिर उसने पूछा कि सोहम कब आ रहा है। सोहम ने गोलमोल जवाब देकर उसे टाल दिया। वो उसे सरप्राइज़ देना चाहता था। कल शाम ही तो उसे यहाँ से चल देना है। परसों वो शैला के सामने होगा।

इन्हीं सपनों में खोए सोहम को वक़्त का पता ही नहीं लगा। चलते समय उसने बाग़ से कुछ अम्बिया (कच्चे आम) तोड़ी और शैला के लिए सबसे छिपाकर रख लीं। उसने सोच लिया था कि वो शैला को अपने मन की बात बता देगा। वो बता देगा कि उसे शैला से प्यार है। वो उसके बिना नहीं जी सकता, पर शैला मान तो जाएगी ना? देखा जाएगा।
मुंबई पहुंचकर सोहम उतावला होकर शैला का इंतज़ार करने लगा। उसका घर पास ही है, पर आज तक वो कभी शैला के घर नहीं गया तो अब कैसे जाए। यही सोचकर वो इंस्टीट्यूट के गेट के चक्कर लगाता रहा। तभी शैला आती दिखी। सोहम दौड़कर उसके पास पहंुचा। शैला ने हंसकर उससे बात की। सोहम का तो दिन बन गया। उसे लगा वो ख़ुशी से नाचने लगेगा, लेकिन अपने मन की बात कहे, उसके पहले ही शैला को दूसरे दोस्तों ने चारों ओर से घेर लिया। बातें करते हुए सब क्लास की ओर चल दिए। सोहम के मन की बात उसके मन में ही रह गई और वो प्यार भरी नज़रो से शैला को निहारता हुआ उसके बगल में चलने की कोशिश करने लगा। शैला ने उससे पूछा कि उसकी ’ट्रिप’ कैसी रही। सोहम ने कहा, ’कुछ ख़ास मज़ा नहीं आया। तुम सब तो यही थे,। भला मेरा मन कैसे लगता।’

उस दिन शाम को सोहम शैला को काफी पिलाने ले गया। एस्प्रेसो की उड़ती भाप के बीच उसने शैला का चेहरा देखा। वो और खूबसूरत लग रही थी। सोहम ने उसका हाथ पकड़कर कहा, ’शैला एक बात कहूँ बुरा मत मानना।’ शैला अपने चिरपरिचित अंदाज़ में खिलखिलाई और बोली, ’तुम तो ऐसे कांप रहे हो, जैसे मुझे प्रपोज़ करने वाले हो। वैसे तुमसे एक बात करनी थी।’ सोहम को लगा शायद शैला ही उसके मन की बात कह दे। उसने अपनी ख़ुशी दबाते हुए उसके हाथ में पैकेट दिया और कहा, ’बातें बाद में, पहले ये देखो, मैं क्या लाया हूँ।’ शैला ने पैकेट खोला। उनके बीच दूसरी बातें होने लगीं और वो कॉफ़ी शॉप से निकल आए।

रास्ते में बातों-बातों में उसने शैला से अपने दिल की बात कह ही दी। शैला ने उसे गहरी नज़रों से देखा और कहा, ’तुम तो वाकई सीरियस हो गये,। मैं मानती हूँ कि तुम मेरे अच्छे दोस्त हो, पर मैं अभी कुछ नहीं कह पाऊँगी। अभी हमारे लिए प्यार से ज्यादा ज़रूरी काम है हमारा करियर। पहले भविष्य बना लें, फिर देखेंगे।’

सोहम को शैला की ये बात बहुत अजीब लगी। उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि शैला उससे ज्यादा महत्त्व अपने करियर को देगी। लेकिन उसने खुद पर काबू किया और कहा, ’तुम बाद में देखना, पर मुझे तो जो करना है मैं अभी करूंगा।’ ये कहते हुए उसने शैला को अपनी बाहों में भरकर उसके होठो पर होठ रख दिए। शैला कसमसाई और फिर उसने खुद को ढीला छोड़ दिया। सोहम को लगा शैला उसकी हो गई।

आने वाले दिनों में उसने अपना सारा ध्यान शैला पर लगा दिया। वो साए की तरह उसके साथ रहने लगा। शैला पढ़ाई की याद दिलाती, तो वो उसे बाहों में खींचकर कहता, ’क्या ज़रूरत है पढ़ने की। इससे ज्यादा पढ़ाई ज़रूरी नहीं है।’ इम्तिहान होने वाले थे। शैला ने कालेज आना बंद किया, तो सोहम उसे बार-बार फोन करने लगा। एक दिन शैला ने उसे सख़्त आवाज़ में कहा कि अभी वो अपना ध्यान पढ़ाई पर लगाए और उसे भी पढने दे। सोहम ने उस वक़्त तो चुपचाप फ़ोन रख दिया, पर इम्तिहान देते व़क्त भी उसका सारा ध्यान शैला पर लगा रहता। नतीज़ा ये हुआ कि वो फर्स्ट ईयर में फेल हो गया। पर शैला पास हो गई थी।

अगला साल सोहम के लिए बहुत भारी था। शैला का क्लास उससे अलग क्या हुआ, अब तो शैला भी उससे अलग होती जा रही थी। नए दोस्त बन गये थे। अब वो सोहम को देखकर भी अनदेखा कर देती थी। एक दिन सोहम अपने क्लास में जाने के बजाय शैला के क्लास के बाहर खड़ा हो गया। लेक्चर ख़त्म होते ही वो क्लास में घुसा और शैला का हाथ पकड़कर कहा, ’ये सब क्या हो रहा है?’ उसकी मजबूत पकड़ से शैला अपना हाथ नहीं छुड़ा पा रही थी।

तभी एक लड़के ने सोहम का हाथ खींचा। उसके हाथ से शैला का हाथ छूट गया। शैला उस लड़के को देखते ही बोली, ’मैंने तुमसे बताया था ना मुकुल, ये मुझे ऐसे ही तंग करता है।’ उस लड़के ने सोहम का गिरबान पकड़ धकेलते हुए कहा, ’दोबारा शैला की तरफ देखा भी तो ठीक नहीं होगा, वो मेरी मंगेतर है, जाओ यहाँ से।’
सोहम धक्का सा खाकर लौट रहा था। तभी उसके कानों में मुकुल और शैला की आवाज़े पड़ी दोनों गुजराती में बात कर रहे थे। सोहम फिर पलटकर गया और शैला से बोला, ’तुमने मुझे बताया भी नहीं, और सगाई कर ली?’ शैला ने कोई जवाब नहीं दिया, पर मुकुल ने उसकी पिटाई कर दी।

सोहम हॉस्टल लौट आया, पर उसका मन मानने को तैयार नहीं था, लेकिन उस रात उसके रूम मेट ने उसे बताया कि इंस्टीटयूट में चर्चा है कि सोहम शैला को परेशान कर रहा है। लोग शैला को उसकी पुलिस कम्प्लेंट करने की सलाह दे रहे हैं। उसके रूम मेट ने सलाह दी कि उसे शैला को भूल जाना चाहिए।

सोहम सारी रात सोचता रहा और अगले दिन वो अपने गांव चला आया। उसके बाद सोहम वापिस नहीं लौटा। शैला से उसकी कभी मुलाकात नहीं हुई और वो ये नहीं जान सका की क्यों अचानक बनते-बनते उसके और शैला के रिश्ते में दरार आ गई। उसे सारा दोष शैला का लगता है, लेकिन क्या वाकई ग़लती शैला की थी या उसका गवांरपन उनके बीच आ गया?

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