चिराग और अनु की मुलाकात पैशन हाउसिंग सोसायटी के कम्पाउंड में हुई थी। अनु ने वहां किराए पर घर लिया था। वो इंदौर से यहाँ नौकरी करने आई थी। उसकी सहेली ने इस फ़्लैट का पता अनु को बताया था।
अनु के पास दो सूटकेस थे। वही ऑटो से उतार रही थी कि तभी उसके सर पर जोर से बॉल लगी। बिल्डिंग के बच्चे वहीं खेल रहे थे। अनु की कनपटी से खून निकल आया। चिराग वहीं खड़ा था। वो दौड़कर अनु के पास पहुंचा। उसकी कनपटी पर कसकर रुमाल बाँधा। ऑटो वाले को पैसे दिए और उसका सामान वॉच मैन के पास रखवाकर उसे सीधे डॉक्टर के पास ले गया। इस तरह अनु के गृह प्रवेश से पहले बिल्डिंग में उसके आने की खबर फैल चुकी थी।
अनु को उसके घर में प्रवेश करवाने लगभग आधी सोसायटी आई। किसी ने पुराना पलंग दिया, तो कोई घर की एक्स्ट्रा कुर्सी ले आया। इस तरह पहले ही दिन अनु का फ़्लैट फुल फर्निश्ड हो चुका था। अनु सबकी कृतज्ञ थी, पर सबसे ज्यादा एहसान तो चिराग का था, जिसने उसे एक पल भी अकेलेपन का एहसास नहीं होने दिया। जब अनु को झपकियाँ आने लगीं तब चिराग और उसके दोस्त अनु के घर से गये।
चिराग और उसका परिवार शुरू से ही उस बिल्डिंग में रहता था। उन्हें सब जानते थे। उसी दिन से अनु और चिराग की दोस्ती हो गई। चिराग का ऑफिस पास ही था। अनु जब ऑफिस से लौटती तब चिराग घर आ चुका होता। वो और उसके दोस्त नीचे ही चौकड़ी जमाये होते। अनु भी वहीं बैठ जाती। चिराग की उस मंडली में लड़के भी थे और लड़कियां भी। वो सब नीचे कम्पाउंड में साथ-साथ बैठ जाते और बातों का सिलसिला शुरू हो जाता।
अनु ने शाम के लिए टिफिन लगवाया था। उसका टिफिन वाला आता, तो अनु नीचे ही रख लेती और वहीं सब मिलकर अनु को टिफिन खिलवाते। बातें करते और हंसी के कहकहे गूंजते रहते। शाम रात में बदल जाती, लेकिन वो लोग तभी उठते जब किसी के घर से आवाजें लगने लगती।
चिराग बहुत बेतकल्लुफ था। अनु संकोची थी, लेकिन उसे चिराग का खुला व्यवहार अच्छा लगता। अनु को मज़ा आता। चिराग की चुलबुली बातें और जोक्स सुनकर उसकी सारी थकान उतर जाती। पर जब बात करते-करते चिराग अचानक उसका हाथ पकड़ लेता या उसका कन्धा दबा देता तो अनु संकोच से भर जाती, लेकिन चिराग को देखकर लगता ही नही कि ये उसके लिए कोई अजीब बात है ’बड़े शहर में रहने वाले ये सब बातें कहाँ मानते हैं।’ ये सोचकर वो कुछ नहीं कहती।
उस ग्रुप में वो अकेली लड़की नहीं थी। चिराग के साथ दूसरी लड़कियां भी बैठती थीं। वो सबसे हंसी-मज़ाक करता। कभी-कभी तो लड़कियां खुद उसका हाथ पकड़ लेतीं। खासतौर से रिंकी चिराग से बहुत खुलकर बोलती। दोनों बचपन के दोस्त थे। बाकी सब तो यहाँ बाद में आये थे, पर चिराग और रिंकी वहां शुरू से ही साथ खेले थे, पढ़े थे, तो बचपन की ये दोस्ती आज भी कायम थी।
अनु के दिन मज़े से कट रहे थे। वो जब से यहाँ आई थी, तब से हर रविवार को वो मुंबई में रहने वाले अपने रिश्तेदारों से मिलने निकल जाती। एक-एक करके सबसे मिलना मिलाना हो चुका था। इस रविवार को उसका कहीं जाने का मन नहीं था, इसलिए वो घर में ही बिस्तर पर लेटी थी। सुबह ही उसने इंदौर फोन करके माँ से बात की थी। घर में सब ठीक थे।
लेटे-लेटेे अनु आज के दिन की प्लानिंग कर रही थी। सोच रही थी कि नहाने के बाद नीचे किसी रेस्टोरेंट में चाय पीने जाएगी। तभी चिराग का फोन आया ’कहाँ हो?’ अनु ने बताया ’वो घर पर है’। चिराग ने कहा, ’आधे घंटे में तैयार हो जाओ, पिकनिक पर चलना है।’ अनु जब तक कुछ पूछे चिराग ने फोन रख दिया। अनु ने सोचा घर में पड़े रहने से अच्छा है कि बाहर घूम लिया जाए। वो यही सोचकर तैयार हो गई।
नीचे आई तो पूरी बस तैयार थी। बिल्डिंग के सभी नौजवान पिकनिक पर जा रहे थे। सभी अपने घरों से खाने का सामान लेकर आए थे। अनु संकोच में पड़ गई। वो तो खाने के लिए कुछ भी नहीं लाई है, लेकिन चिराग ने उसे आश्वस्त किया कि उन सबके पास खाने का काफी सामान है। फिर भी अनु ने बाज़ार से नमकीन के पैकेट्स खरीदे। बस से वो सभी चर्च गेट पहुंचे। दरअसल एलिफैंटा केव्स जाने का प्रोग्राम था, इसलिए उन्होंने एक बड़ी सी मोटर बोट किराए पर ली।
अनु ने ध्यान दिया कि चिराग आज उसी के पास बैठ रहा है। बस पर भी वो दोनों एक ही सीट पर बैठे थे और बोट में भी चिराग ने उसके बगल वाली जगह रखी। बोट से सब केव्स पहुंच गये। घूमे-फिरे और गोल बनाकर बातें कीं। पिकनिक मजे़दार थी। सबने जी भरकर मस्ती की। डांस हुआ, तो सबने अनु को भी खींच लिया। अपने कालेज की बेस्ट डांसर अनु उस दिन झूमकर थिरक उठी। उसने गौर किया कि नाचते समय चिराग उसे बहुत ध्यान से देख रहा है। लौटते समय भी चिराग उसके पास ही बैठा। अनु मन ही मन गुनगुना रही थी।
उस दिन के बाद अनु और चिराग आँखों से बातें करतें उनकी शामें अब भी साथ गुज़रती, लेकिन अनु को लगता वहां चिराग के अलावा कोई और ना हो। वो हमेशा चिराग के साथ रहे। वो रिंकी को चिराग से सटकर बैठे देखती तो उसका ख़ून जल जाता। वो कोशिश करती, किसी बहाने रिंकी वहां से उठे तो वो वहां बैठ जाए। वैसे अनु ने ध्यान दिया था कि रिंकी के पास आते ही चिराग अब खुद वहां से हट जाता था।
अब अनु का मन शाम होते ही बहकने लगता। उसे बिल्डिंग और चिराग की याद सताती। वो कोशिश करती कि जल्दी से घर पहुंचे और नीचे बैठकर चिराग के साथ शाम गुज़ारे। इसी चक्कर में कई बार घर आने की जल्दी में वो बस के बजाय ऑटो पकड़ लेतीं ऐसे ही एक दिन ऑफिस से निकलकर ऑटो पकड़ने चली, तो उसने सामने चिराग को देखा।
वो हैरान रह गई। उस दिन वो घर नहीं गये, बल्कि समुद्र के किनारे बैठे रहे। चिराग ने अनु का हाथ अपने हाथ में ले रखा था। वो उसे सहला रहा था। उस शाम कब रात आई, अनु को पता ही नहीं लगा। वो और चिराग बाहर से खाकर लौटे। नीचे वाचमैन ने उसका टिफिन दिया, जो उसने वाचमैन को ही दे दिया।
उस दिन जो सिलसिला शुरू हुआ वो चलता रहा। अब वो दोनों अक्सर बाहर मिलते। शाम को अगर बिल्डिंग में बैठक जमती, तो अनु चिराग के पास ही बैठती। वो जब साथ नहीं होते तो एसएमएस से बातें करते।
अनु को अब अक्सर रिंकी की जलती निगाहों का निशाना बनना पड़ता। वो कभी-कभी अनु से बहुत बेरुखी से बोल देती। चिराग के कुछ करीबी दोस्त अब अनु को अकेले में भाभीजी कहने लगे थे। चिराग कहता शादी नहीं हुई तो क्या, वो तन और मन से तो एक दूसरे के हो ही चुके हैं। अब किस बात की शर्म।
खुद चिराग उससे कभी कुछ कहने में नहीं हिचकता। कभी-कभी उसका मैसेज आता फोन में बैलेंस नहीं है। अनु तुरंत रिचार्ज करवा देती। कई बार तो अनु ने अपना एटीएम कार्ड भी उसे यूज़ करने के लिए दे दिया। चिराग कहता ’जब वो घर आएगी, तब उसी के हाथ में सारी तनख़्वाह रख देगा, क्योंकि उससे पैसे जल्दी ख़र्च हो जाते हैं। अनु मुस्कुरा देती। उसे लगता सिर्फ छः महीनों में उसकी ज़िन्दगी कितनी बदल गई है। वो जून में यहाँ आई थी और अब दिसंबर चल रहा है।
नए साल के लिए बिल्डिंग में ज़बरदस्त तैयारियां चल रही थी। पार्टी का प्रोग्राम था। 31 तारीख को अनु ऑफिस से लौटी तो सब बिल्डिंग के टैरेस पर इकट्ठे थे। चिराग ने उसे पहले ही बता दिया था। वो घर आकर तैयार हुई और ऊपर जाने के लिए सीढियां चलने लगी। रास्ते में ही उसे रिंकी मिल गई। उस दिन रिंकी उससे बहुत अपनेपन से मिली। वो ज़बरदस्ती चाय पिलाने अनु को अपने घर ले गई।
रिंकी का घर ख़ाली था। सब लोग ऊपर पार्टी में थे। रिंकी ने उसे बैठाया और पुराने फोटोग्राफ्स देखने के लिए एक एलबम उसके हाथ में पकडा़कर खुद चाय बनाने किचन में चली गई। अनु फोटो देख रही थी। रिंकी और चिराग के फोटो। दोनों कितने पास थे। उन्ही फोटोग्राफ्स में वो तस्वीर भी थी, जिसमें दुल्हन सी सजी रिंकी के बगल में बैठा चिराग मुस्कुरा रहा था।
अनु के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। तब तक रिंकी चाय लेकर आ चुकी थी। उसने अनु से कहा कि वो दोनों दो साल पहले चुपचाप शादी कर चुके हैं। अनु यकीन करने को तैयार नहीं थी। उसने कहा कि वो अनु को चिराग से दूर करना चाहती है। तब रिंकी ने उसे बताया कि उसे यूं भी चिराग से दूर ही होना होगा, क्योंकि चिराग की शादी उसके साथ बचपन में तय हो चुकी है।
उनके बीच बहस बढ़ने लगी और बात एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाने से आगे पहुंच गई। शोर सुनकर पहले बिलिं्डग के बच्चे आए और फिर बड़े भी आ गये। रिंकी लगातार रो रही थी। अनु पर इल्ज़ाम लगा रही थी कि वो उससे चिराग को छीन रही है और अनु को लग रहा था, काश वहां चिराग आ जाये और उसे इस नाटक से बचा ले।
तभी उसने देखा वहां चिराग कोने में खड़ा था। रिंकी तब तक अपने हाथ में चाकू ले आई थी। उसने कहा कि अगर चिराग ने अभी सच नहीं बोला तो वो अपना हाथ काटकर जान दे देगी। तभी चिराग ने आगे बढ़कर रिंकी के हाथ से चाकू छीना और उसे गले लगा लिया। वो कह रहा था, ’तुम गलत समझ रही हो। मेरे और अनु के बीच कुछ ऐसा नहीं है। हम सिर्फ दोस्त हैं।’ अनु को यकीन नहीं हो रहा था कि उसका चिराग उसके सामने ये कह रहा है।
अनु ने देखा रिंकी के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी। अनु और चिराग के बीच जो रिश्ता बन रहा था उसकी खबर चिराग के घरवालों को नहीं थी। वो तो अनु और चिराग को दोस्त ही समझते थे, इसलिए सबने मिलकर रिंकी को ही समझाना शुरू किया। चिराग की माँ ने उसे अपने हाथ के कंगन निकालकर पहना दिये और कहा कि वो ही उनके घर की बहू बनेगी।
अनु चुपचाप वहां से चली आई। लेकिन उसका मन अपने साथ हुए इस धोखे को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। उसने चिराग से बात करने का फैसला किया और ऑफिस के बाद मिलने का मेसेज दिया। अनु को जिसका डर था, वही हुआ। चिराग नहीं आया।
आखिरकार एक दिन बिल्डिंग में ही अनु ने चिराग को पकड़ा। पहले तो चिराग इधर-उधर की बातें करता रहा। पर जब अनु ने उससे पूछा ’उस समय उसने सबके सामने अनु और अपने रिश्ते का सच क्यों नहीं बताया,’ तो उसने कहा ’उसे डर था कि रिंकी कहीं सचमुच जान ना दे दे। इससे कितनी परेशानी होती और फिर उसके घरवाले ही जब रिंकी को अपनी बहू माने बैठे हैं, तो वो क्या कर सकता है।’
अनु ने जब चिराग के घर जाकर अपनी बात बताने का प्रस्ताव रखा, तब चिराग ने ये तक कह दिया कि ’उसके घरवाले कभी एक ऐसी लड़की को बहू नहीं बनाएंगे जो घर से दूर सिर्फ नौकरी करने के लिए अकेली रह रही हो।’ अनु ने जब उससे कहा कि ’ये सारी बातें थीं तो वो उसके करीब क्यों आया।’ तो चिराग का जवाब था, ’थोड़ी मस्ती ही तो की, कोई ग़लत फायदा तो नहीं उठाया। और फिर मैं अकेला दोषी नहीं हूं, तुमने मुझेे कभी रोका ही नहीं। मैं तो यही सोचता था कि घर से दूर रहकर तुम भी आज़ादी से जीने के लिए यहाँ आई हो।’ ये कहकर वो चला गया।
अनु ठगी सी देखती रही। चिराग की ये मस्ती उसे कहाँ से कहाँ ले आई थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कहाँ गलती हुई है। उसके साथ जो कुछ गुज़रा था, उसके पीछे चिराग का मनचला स्वभाव था या खुद अनु ने अपनी सीमाएं तोड़ दी थीं।