अब मुझे फ़र्क नहीं पड़ता- डॉ अनिल त्रिपाठी

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अब मुझे फ़र्क नहीं पड़ता

अब मुझे फ़र्क नहीं पड़ता
प्यार या मनुहार से नफ़रतों के वार से
जीत से या हार से, शब्द की तलवार से
अब मुझे फ़र्क नहीं पड़ता

भीड़ से तनहाई से ,रिश्ते की गहराई से
अपनी ही रुसवाई से वफ़ा बेवफाई से
अब मुझे फ़र्क नहीं पड़ता

अपने या बेगाने से रूठने मनाने से
पास दूर जाने से खोने और पाने से
अब मुझे फ़र्क नहीं पड़ता

विगत भूल जाने से आगत के आने से
रोने मुस्कराने से कदम डगमगाने से
अब मुझे फ़र्क नहीं पड़ता

 

डॉ0 अनिल त्रिपाठी हिंदी भाषा के

जाने माने पत्रकार एवं कवि होने के साथ – साथ

गायक और संगीतकार भी हैं


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