निःशब्द से तुम, शब्द सी मैं

निःशब्द से तुम, शब्द सी मैं
ख़ामोश से तुम, चीखती सी मैं
हवा से तुम, जड़ सी मैं
चलायमान से तुम, ठहराव सी मैं
श्याम से तुम, मीरा सी मैं
राम से तुम, अहिल्या सी मैं
माला से तुम, बिखरी सी मैं
रूप से तुम, निखरी सी मैं
शांत से तुम, अग्नि सी मैं
सूर्य से तुम, रात सी मैं
चन्दन से तुम, ताप सी मैं
हृदय में तुम, धड़कन सी मैं
मैं शब्द भली, निःशब्द से तुम हो
फिर भी मेरी ख़ामोशियों में चीखते से तुम हो..

 

क्या लिखूं

उसने कहा है कि आज मैं कोई अच्छी कविता लिखूँ
क्या लिखूं
पिया का प्यार लिखूँ
सावन की बहार लिखूँ
या फिर सोलह श्रृंगार लिखूँ
क्या लिखूं
उसने कहा है कि मैं आज अच्छी कविता लिखूँ

क्या लिखूं
क्या मैं माँ का दुलार लिखूँ
आसमाँ जैसा पिता का प्यार लिखूँ
या फिर भाई-बहन की मीठी तकरार लिखूँ
क्या लिखूं
उसने कहा है कि मैं आज अच्छी कविता लिखूँ

क्या लिखूं
देश प्रेम से शब्द सरोबार लिखूँ
वीर शहीदों की गाथा बारंबार लिखूँ
या फिर लहराते तिरंगे की हसीं झंकार लिखूँ
क्या लिखूं
उसने कहा है कि मैं आज अच्छी कविता लिखूँ

क्या लिखूं
बेटियों पर हो रहे अत्याचार लिखूँ
मासूमों की देह से खिलवाड़ लिखूँ
या फिर वहशीपन की सीमा पार लिखूँ
क्या लिखूं
उसने कहा है कि मैं आज अच्छी कविता लिखूँ

क्या लिखूं
ये सब होता देखकर भी हम ज़िंदा हैं ये लिखूँ
हमारी रगों का सूखा लाचार ख़ून लिखूँ
या फिर आंखों के कोरों से बहते पानी की धार शर्मसार लिखूँ
क्या यही होती है अच्छी कविता
आज क्या मैं अपनी ज़बान को एक भयंकर ललकार लिखूँ

 

हां मैं लिख सकती हूँ तुम्हें

हां मैं लिख सकती हूँ तुम्हें
शब्दों में, जज़्बातों में
और दिल के वर्क पर भी
तुम सिर्फ़ अहसास नही हो
तुम श्वास हो, जीने की आस हो
मैं चाहूं या ना चाहूं
पर तुम लब्ज़ों में छलकता विश्वास हो
हां मैं लिख सकती हूँ तुम्हें
क्योंकि तुम तुम हो
मुझसे समाए से कहीं
मुझमें ढूंढे तुम्हे कोई
तो तुम ही मिलोगे
हाँ मैं तुम्हे लिख देती हूँ
साफ़ सादे से लब्ज़ों में कभी कभी

 

मेरे मन का शब्द कोष

मेरे मन के शब्द कोष में तुम छुपे हुए से हो
जैसे किसी पूरी वर्णमाला से बने हुए हो
तुम्हारे प्यार का हर अक्षर मेरे लिए
एक कविता जैसा है
जिसे मैं सुनती हूँ
गुनगुनाती हूँ
और उन अक्षरों से एक नया
सृजन करती हूँ
जो विभक्त है संधि विच्छेद की तरह
पर जुड़ा है संयुक्ताक्षरों की तरह
मेरे मन का शब्द कोष तुम्हीं से अक्षरित है
तुमसे ही परिभाषित है मेरे मन का शब्द कोष

 

कवियित्री अर्पणा गर्ग 

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