जिस दिन भी बिछड़ गया प्यारे – कवि भारत भूषण अग्रवाल
जिस दिन भी बिछड़ गया प्यारे जिस दिन भी बिछड़ गया प्यारे ढूँढते फिरोगे लाखों में फिर कौन सामने बैठेगा बंगाली भावुकता पहने दूरों दूरों से लाएगा केशों को गंधों के गहने ये देह अजंता शैली सी किसके गीतों में सँवरेगी किसकी रातें महकाएँगी जीने के मोड़ों की छुअनें फिर चाँद उछालेगा पानी किसकी समुंदरी आँखों में दो दिन में ही बोझिल होगा मन का लोहा तन का सोना फैली बाहों सा दीखेगा सूनेपन में कोना कोना किसके कपड़ों में टाँकोगे अखरेगा किसकी बातों में पूरी दिनचर्या ठप होना...