दिन बचपन के : कवि और कविता : सुधा त्रिपाठी शुक्ला
दिन बचपन के
दिन लौटा दे मेरे बचपन के कोई
याद आते हैं दिन बचपन के
दिन बचपन के गुजर जाने के बाद
कोई मेरा बचपन लौटा दे
वो गली और चौबारे लौटा दे
मेरे दादा दादी लौटा दे
नानी और नाना लौटा दे
जीने की इच्छा फिर से लौटी है
बचपन को जीने की
कैसे और किस क्षण कहां
और कैसे गुम गया बचपन
वो मेरी कपड़े की गुड़िया
और एक चिरैया दादी ने जिसे बनाया था
सावन का झूला बाबा ने निंबिया पर डाला था
हम झूम-झूम कर झूलते खूब
दादी को भी संग बिठाते
फिर गुड़िया का त्योहार भी मनाते
वो सज -संवर कर मेला जाना
फिर से कोई लौटा दे
मुझको मेरा बचपन
दिन लौटा दे बचपन के कोई
सावन
आज सावन की छाई बदरिया
संग काली घटा घिर आई
बरखा की फुहार आई
पुरवइया चले झकझोर
कोई घूमे मस्ताना बन के
कोई के मन मा शूल समाई
कोई राह तके बलमा की अपने
जो ठहरे जा…..परदेस
कोई विरहणी बन थामे अंसुअन को
कहे कहां कौन से देस गए मोरे बालमा
ये सावन विरहा का गीत बन किसी को रुलाए
तो, श्रृंगार कर किसी को हंसाए
संग दिल बनाए
गीत गवाए सावन
किसी को रुलाए
Very nice
बचपन का सुंदर चित्रण