इक्कीसवीं सदी के आगमन का सन्देश लेकर सन 2000 आया, तो दुनिया नयी उम्मीद से भर उठी। वहीं शगुन ने उस साल से भविष्य का एक सुनहरा सपना उधार लेकर आँखों में बंद कर लीं। इस सपने में उसकी कामयाबी का रंग था। उधर अविनाशजी का संग था।
अविनाश जेजे स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में प्रशिक्षक थे। पहले दिन ही उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व ने कई विद्यार्थियों को आकर्षित किया था। उनमें शगुन भी थी। वो देखती, अविनाशजी कितनी अच्छी तरह समझाते। फाइन आर्ट्स की जटिल से जटिल बारीकियां भी उनकी सुलझी हुई भाषा में बहुत सरल हो जाती। वो उसके बनाए चित्रों की काफी प्रशंसा करते थे।
उनके खुले व्यवहार और दूर देखती आँखों से शगुन काफी प्रभावित हुई थी। कई बार कुछ पूछने जब वो उनके पास गई तो उनकी आत्मीय बातों ने शगुन का संकोच मिटा दिया।
विद्यार्थी और शिक्षक के अलावा अब शगुन और अविनाश में एक और रिश्ता बनने लगा था। अविनाश और शगुन अक्सर लाइब्रेरी और कैफ़े में साथ जाते। ये बात क्लास के अन्य विद्यार्थियों तक भी पहुंच चुकी थी। शगुन की सहेलियों ने तो बाकायदा उसे चिढ़ाना भी शुरू कर दिया था।
उसी के साथ अमित भी पढता था। शगुन का दोस्त था। कभी-कभी शगुन को लगता अमित उसे चाहता है, पर उसने कभी बात आगे नहीं बढ़ाई थी। जब अविनाश और शगुन की नजदीकियों के चर्चे होने लगे, तब एक दिन अमित उसके पास आया।
उसने कहा, ’शगुन, बुरा मत मानना, पर मैं तुम्हारा वेल विशर हूँ। इसलिए तुमसे इतना ज़रूर कहूंगा कि जिस रास्ते पर तुम बढ़ रही हो, वो सही नहीं है।’ शगुन ने अनजान बनकर पूछा, ’किस रास्ते की बात कर रहे हो?’ अमित ने कहा, ’वही रास्ता जो तुम्हारे दिल से अविनाशजी की तरफ जाता है।’
शगुन ने हंसते हुए कहा, ’मै जानती हूँ तुम ये क्यों कह रहे हो, पर फ़िक्र मत करो। मैं जानती हूँ मुझे कहाँ जाना है।’ अमित ने फिर कहा, ’शगुन,मैं बस इतना कहूँगा कि संभल जाओ, क्योंकि ये रिश्ता तुम्हें सिर्फ दुःख ही देगा। तुम जानती हो ना अविनाशजी और तुम्हारी उम्र में कितना अंतर है?’ शगुन ने तुनककर जवाब दिया, ’मैं बच्ची नहीं हूँ अमित, जो इतना भी ना समझूं। आज एक बात तुम भी सुन लो अगर दुःख मिलेगा तो मैं रो लूंगी, पर तुम्हारे पास अपने आंसू लेकर नहीं आऊंगी।’
उस दिन के बाद से अमित ने दोबारा उससे बात नहीं की। वो सामने से आती दिख जाती, तो अमित रास्ता बदल देता। शगुन ये देख मुस्कुरा देती। उसे लगता ’काश! अमित समझ पाता कि वो कितनी खुश रहती थी, जब अविनाश उसके साथ होते थे। उम्र में अंतर है तो क्या, अविनाश की बातों और व्यवहार में तो बच्चों जैसी मासूमियत है।’
वो साल गुज़रा और अविनाशजी किसी सेमीनार के सिलसिले में विदेश चले गये। जाते समय शगुन की भीगी आँखों में सीधे देखते हुए उन्होंने कहा था, ’सिर्फ एक साल की बात है। मैं जब तक लौटूंगा तुम आर्किटेक्ट बन चुकी होगी। अच्छा शगुन, अगर मुझे काम नहीं मिला, तो अपनी फ़र्म में मुझे रख लोगी ना?’ अविनाशजी की बात पर सर हिलाते हुए वो मुस्कुराने लगी।
एक साल बड़ा भारी पड़ गया शगुन पर। शुरू-शुरू में वो आदतन सुबह अविनाश को फोन करती, तो उसे पता लगता कि अविनाश सोने जा रहा है। धीरे-धीरे अविनाश की बातें संक्षिप्त होने लगीं। शगुन भी अब पहले की तरह फोन के लिए उत्सुक नहीं रहती। उसने अपने भविष्य पर ध्यान देना शुरू किया।
इस बीच फिर अमित उसके नज़दीक आने लगा। शगुन को अमित की बातें अच्छी लगती। वो दोनों अक्सर समुद्र किनारे बैठकर शाम बिताते, पर अभी भी वो अविनाश से हफ़्ते में एक बार फोन पर बात ज़रूर करती।
एक दिन अमित ने उससे शादी की बात की। शगुन बिना कुछ कहे वहां से चली आई। उसने लौटकर अविनाश को फोन किया। वो गुस्से में थी कि उसके और अविनाश के बारे में जानने के बावजूद अमित ऐसा सोच भी कैसे सकता है। उसने अविनाश से सारी बात बताई, पर अविनाश का जवाब सुन, वो जैसे आसमान से गिरी।
अविनाश ने कहा, ’हमारे बीच दोस्ती है शगुन। ये प्यार बीच में कहाँ से आ गया? हमारी शादी तो वैसे भी नहीं हो सकती। मैं तुमसे उम्र में काफी बड़ा हूँ।’ शगुन ने अपने प्यार का हवाला दिया तो अविनाश ने कहा, ’नहीं शगुन, ये प्यार नहीं, दरअसल तुम एक कॉम्प्लेक्स का शिकार हो। ऐसे लोग अपनी उम्र से बड़े लोगों में अपना जीवनसाथी तलाश करते हैं। तुम अमित से मिलो। अपनी उम्र के दूसरे लडकों से मिलो। मैं उम्र में तुमसे बड़ा हूँ। तुमसे ज्यादा परिपक्व हूँ, इसलिए जानता हूँ कि ये ठीक नहीं रहेगा।’ ये कहकर अविनाश ने फोन रख दिया, पर शगुन को अपने कानों पर विशवास नहीं हो रहा था।
उस दिन के बाद शगुन कई दिन तक बाहर नहीं निकली। अमित का एसएमएस आया कि वो इंटर्नशिप के लिए एक बड़े आर्टिस्ट के साथ विदेश जा रहा है।
साल ख़त्म होने तक शगुन का कोर्स समाप्त हो चुका था। शगुन के मन से अविनाश की तस्वीर धुंधली पड़ने लगी थी।
इसी बीच अमित भी विदेश चला गया। शगुन का मन कभी-कभी बहुत विचलित होता, तो वो अविनाश की बात याद कर लेती। शायद वो सही कहता था। शायद उसके मन के किसी कोने में बड़ी उम्र वाले व्यक्तियों के लिए आकर्षण रहा होगा, तभी तो वो कभी अमित के नज़दीक नहीं जा पाई और अमित उसके पास आने की कोशिश करके आखि़र हार ही गया।
ग़लती उसी की थी, जो अमित के साथ उसका रिश्ता वहां तक ना पहुंच सका, जहाँ एक नई ज़िन्दगी शुरू होती है।