मैं स्वयं – शहज़ादी खातून
मैं स्वयं परिभाषित नहीं करना अब तुम मुझे क्षण शब्दों में मैं स्वयं परिभाषा बनूंगी वर्ण-वर्ण कर नहीं अब...
मैं स्वयं परिभाषित नहीं करना अब तुम मुझे क्षण शब्दों में मैं स्वयं परिभाषा बनूंगी वर्ण-वर्ण कर नहीं अब...
असीर-ए-ज़िंदगी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी में ही क़ैद होकर रह गई ख़्वाहिशें समझौतों के कंधे पर बोझ हो गईं लड़कपन जवानी...
वो पेड़ आरे में मेट्रो कार शेड नहीं बनेगा , ये ख़बर मिलते ही जश्न सा माहौल हो गया...
तुमने मुझे दिल से उतारा नहीं है जानता है दिल, तुमने मुझे दिल से अभी तक उतारा नहीं...
दिल के रिश्तों को अजनबी होते देखा है सब बदलते देखा है, छलते देखा है, दिल के...
रात को आफ़ताब देखा है रात को आफ़ताब देखा है, ...
ख़्वाहिश मैंने कहा -'' ऐ ज़िन्दगी, बस करना इतनी सी इनायत हर बात में हो सनम और हर...
जीवन का सफ़र जीवन जीवन का सफ़र, इस सफ़र में कभी एक वो पड़ाव आता है, जब हम अकेले...
कापुरुष वो पौरुषहीन मन ही मन कुछ सोच रहे थे चुपचाप बैठ कर तात..। देख प्रश्न किया सुता ने, क्या...
तुम्हारे बिन है ज़िन्दगी ऐसे तुम्हारे बिन है ज़िन्दगी ऐसे कोई सीलन भरा हो घर जैसे जहाँ न...