कवि पंडित जगतनारायण शर्मा
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बचपन गांव में पैदा हुआ था...बहुत बड़ा घर था.मोटी मोटी मिट्टी की दीवारों पर भारी भारी लकड़ियों और पटरों पर...
दिन बचपन के दिन लौटा दे मेरे बचपन के कोई याद आते हैं दिन बचपन के दिन बचपन के...
नदियों का जल प्रतिक्षण प्रतिपल, करता कल कल, हो चिर चंचल बहता निश्छल, नदियों का जल। हिम अंचल से, निकल...
उजाले उन सबकी यादों के इसमें कत्तई संदेह नहीं कि अपने देश में वैचारिक स्वतंत्रता पिछले कुछ महीनों से चरम...
सावन की मन मानी है ये सावन की मन मानी है ये आग भरा इक पानी है ये बारिश...
ज़िन्दगी के पन्नों से ... ग़म और ख़ुशी या ख़ुदा! ज़िन्दगी इतने ग़मों से न भर देना जो हम अपनों...
मुक्तक अंबर से छत की मुंडेर पर आते हो जन-जन को सावन के गीत सुनते हो सच कहती हूँ बहुत...
ये जो तबस्सुम है तबस्सुम भी एक शादाबी का निशाँ होती है, कभी मौजूं-ए-गुफ़्तगू, कभी दिल का सामां होती...
सुगना हरियाला देख सुनहरी किरणें दूर जब निकल गया मोम का खिलौना था धूप में पिघल गया ।...