GHAZAL ग़ज़ल – जो दिल के आईने में सच न देख पायेगा : अशोक हमराही
जो दिल के आईने में सच न देख पायेगा
जो दिल के आईने में सच न देख पायेगा वो दोस्ती का फ़र्ज़ किस तरह निभायेगा
रिश्ते शर्तों से नहीं दिल से बंधा करते हैं बात इतनी सी है पर वो न समझ पायेगा
वफ़ा नहीं न सही पर कोई इल्ज़ाम न दो दिल है नाज़ुक वहम की चोट न सह पायेगा
हाथ मिलते ही बिछड़ने का डर सतायेगा तो ज़िन्दगी का साथ किस तरह निभाएगा
तेरा वजूद है तो तू है तेरी दुनिया है इसे खोकर तुम्हारे पास क्या रह जाएगा
प्यार लैला नहीं शीरीं नही सोहनी भी नहीं ये वो नग़मा है जो कल वक़्त भी दोहरायेगा
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अशोक हमराही
बेहद अच्छी ग़ज़ल
💖🙏
Jo kal vakt bhi dohrayega…. Wah