तू शहर बनो बनारस की – करुणा शंकर दुबे

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तुम शहर बनो बनारस की

 

मैं सांझ- सवेरे भटकूं तुझमें
तुम गली बनो घाटों की
मैं सांझ- सवेरे भटकूं तुझमें
तुम शहर बनों बनारस की

तुम फूल बनो बगिया की
मैं भंवरा बन बस जाऊं तुझमें
तुम मृगदांव बनो तथागत की
तुम शहर बनों बनारस की

तुम लहर बनो नदिया की
मैं गंगा बन जनजीवन में
तुम असी बनो बनारस की
तुम शहर बनों बनारस की

तुम नंदी बन जा भोले की
मैं बेलपत्र रखूं करतल में
तुम घंटी बन जा मंदिर की
तुम शहर बनों बनारस की

रमता – जपता फ़कीर भी
कूंच गलियों से घाटी की
धमक धूप और मंजीर की
तुम शहर बनों बनारस की

मैं सांझ- सवेरे भटकूं तुझमें
तुम शहर बनों बनारस की

करुणा शंकर दुबे 

  • Director of ProgramsAugust 5, 1989 to presentAlmora
    Head
  • Director
    Incharge Head Of Office All India Radio Gairsain-Champavat, All India Radio Pithauragadh,All India Radio Bageshwar Also.
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2 thoughts on “तू शहर बनो बनारस की – करुणा शंकर दुबे

  1. वाह बहुत सुंदर रचना ।बनारस जैसी ही अद्भुत और निराली ।साधुवादश्रीमान करुणा शंकर जी ।

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