कवियित्री सुधा त्रिपाठी शुक्ला की तीन रचनाएँ – कवि और कविता

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कवियित्री सुधा त्रिपाठी शुक्ला की तीन रचनाएँ :-

मातृ देवो भव

ये दो आँखें मां की

जिनमें ममता ही देखी है मैंने

मैं जब नन्ही बच्ची थी

मेरे संग संग‌‌ हंसती – रोती थी

मेरी हर तकलीफ़ का अहसास वो तब से अब तक

बिना कुछ कहे ही कर लेती और झट समाधान भी कर देती

अपनी तकलीफ़ और नाराज़गी जो मुस्कान और शांति से निकाल दे – वो ही मां है

हर जन्म में मुझे मां की ममता का सानिध्य मिले

मां के चरण ही शांति प्रदान कर सकते हैं

हर दिन की सुबह मां के प्रणाम से हो

मातृ देवो भव

                       

एक महाग्रंथ है नारी

कोई पुस्तक – उपन्यास नहीं नारी,

नारी के अन्तस में झांक कर देखो

एक महाग्रंथ है नारी

अनन्त है नारी,

श्वास है –  विश्वास ‌है,

एक अनमोल अहसास है नारी

हर परिस्थिति में उपस्थित है नारी,

शक्ति का भंडार है नारी,

नर में नारायण और नारायणी है नारी

प्रभु की अद्भुत – अनुपम संरचना है नारी,

जिस रूप में चाहोगे उस रूप में दिख जाएगी नारी

कोई पुस्तक – उपन्यास नहीं नारी

नारी के अन्तस में झांक कर देखो

एक महाग्रंथ है नारी

 

जय जय गंगे मां

जय जय गंगे मां
पतितों की उद्धारिणी मां
तन मन विशुद्ध करनी मां
जय जय गंगे मां
जल स्वरुपा पावनी अम्बा
जीवन प्रदायिनी जगदम्बा
जय जय गंगे मां
सबको प्रेम से अंक बिठाकर
जीवन तारती मां
भेद भाव नहीं कोई रखती
शुद्ध निर्मल भाव धरे मां
सबको पावन कर देती
जय जय गंगे मां
अपने चरणों में शरण दो मां
यही अंतिम अभिलाषा
मांगती एक पुजारिन
जय जय गंगे मां

कवियित्री सुधा त्रिपाठी शुक्ला

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