सभी के हाथ मे ख़ंजर बचे कैसे कहाँ जाएँ : डॉ अनिल त्रिपाठी
सभी के हाथ मे ख़ंजर बचे कैसे कहाँ जाएँ
सभी के हाथ मे ख़ंजर बचे कैसे कहाँ जाएँ
अभी कुछ हसरतें बाकी है जी लें या कि मर जायें
सुना है तीर नज़रों के उतर जाते हैं सीने में
हमें भी देख लो गर तुम निजाते ग़म ही पा जायें
किसी की आंख के काजल किसी के हाथ की मेंहदी
खिलौनें हैं बड़े अच्छे अगर इनसे बहल जायें
किसी नें हमको रोका था कभी दहलीज़ से सटकर
वो आंसू आज भी पीछा करें चाहे जहां जायें
उमर नें छीनकर बचपन कहीं का भी नही रक्खा
वो बचपन आज भी सहमा खड़ा है कैसे समझायें
मुकम्मल लफ़्ज़ थे शायद जो तूनें रोक रक्खे थे
सजायें कर दिया तजवीज तो आंसू किधर जायें
मां केवल एक शब्द नहीं है पूरी एक कहानी है
मां केवल एक शब्द नहीं है पूरी एक कहानी है
जो जीवन भर याद रहे मां ऐसी एक निशानी है
पांच सितारा होटल का खाना कुछ दिन तो अच्छा है
मां के हाथों की वो रोटी याद तुम्हें फिर आनी है
पैसों के पीछे मां छोड़ी और पिता से दूर हुये
सब कहते हैं मैल हाथ का माया आनी जानी है
चाहें भी तो उस आंचल की छांव नही वह गन्ध नहीं
आंखों से जो छलक रहा मां की आंखों का पानी है
बाहर हंसी मुलम्में सी है भीतर धारा बहती है
नहीं करूंगा जाहिर कुछ भी मां की सीख पुरानी है
वह उसके हाथों की लाठी वह चश्मा डोरी वाला
आज अचानक हाथ आ गई मां की वही मथानी है
चुपके चुपके आंख पोछ कर पोतों से बतियाते जो
मुझे पता है उन बाबू को मां की चिता जलानी है
Sabhi ke haath me khanjar ……bahut hi achcha likha sir ji aapne………
..Dusra. Maa Shabd par bhi aapne bahut hi achcha likha hai sir ji aapne……… Aap kahiye to ise gaa kar face book par daal du…..