हास्य – व्यंग 

ननकू की होली

चारों ओर होली की मस्ती है। सब एक दूसरे को रंग लगा रहे हैं और गले मिलकर बधाइयां बांट रहे है। पर ननकू चुपचाप अपने कमरे में लेटा है, जैसे होली की इस मस्ती से उसका कोई लेना देना नही।

ननकू का पूरा नाम नंद किशोर है, लेकिन घर में सबसे छोटा होने के कारण सब उसे ननकू पुकारते हैं। वैसे उसके करीबी उसे नंदू कहकर भी बुलाते हैं।

ऐसा नही है कि ननकू को होली में रस नही आता, या उसने कभी होली खेली ही नही। वो तो इस त्योहार का इतना दीवाना रहा है कि हर साल वसंत पंचमी से ही होली की तैयारियां शुरू कर देता था। बाज़ार में शायद ही कोई ऐसा रंग हो जो होली में उसके पास न हो।

होली जलते ही उसका रंगोत्सव शुरू हो जाता था। उसके गले में सरस्वती मैया ने सुर भी ग़ज़ब का दिया हुआ था। रात भर वो अपने संगी साथियों के साथ फाग की मस्ती में डूबे रहते। पास पड़ोस के टोले मोहल्ले वाले भी उनके साथ शिरकत करने आ जाते। रंग-राग की खूब महफिल जमती।
पौ फटते ही ननकू अपनी टोली के साथ पूरे शहर को रंगने निकल पड़ते। जान पहचान हो न हो, ’होली है’ के उद्घोष के साथ ननकू की टोली हर किसी को होली के रंग में रंग देती। रंगे पुते चेहरों में अपने पराए का भेद तो वैसे भी मिट जाता है।

इस तरह दिन के तीन पहर तक होली खेलने के बाद ननकू उबटन से रंग छुड़ाकर, नया कुर्ता पाजामा डाटकर ’होली मिलन’ के लिए निकल पड़ते हैं। इसी ’होली मिलन’ के चक्कर में दो साल पहले उन्हें एक कुत्ते ने दौड़ा लिया था। संगी साथी तो भाग निकले, लेकिन ननकू का पाजामा कुत्ते की पकड़ में आ गया, और फिर जब तक उन्हें साथियों की मदद मिलती, खींचतान में दो दांत ननकू के पैर में लग ही गये।

ननकू को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाया गया। प्राथमिक चिकित्सा के बाद उनका असली इलाज़ शुरू हुआ, जिसका दर्द, वो इंजेक्शन का कोर्स पूरा होने के बाद भी भूल नही पाए।

बात इतनी ही होती तो कुछ दिनों में वो इस दर्द से उबर जाते, लेकिन मिजाजपुर्सी करने वालों ने ननकू के दिल में कुत्ते की ऐसी दहशत भर दी कि उन्हें कुत्ते के नाम से ही नफरत हो गई।

ये इंसानी फितरत है कि वो जिस जगह, जिस वजह से जाता है, वहां उसी से संबंधित बातें करता है। इसलिए ननकू से मिलने जो आता, वो कुत्ते के आतंक की घटना पूरे स्क्रीन प्ले के साथ इस अंदाज़ से सुनाता जैसे अभी – अभी वो खुद भुगतकर आया हो।

कुत्ते के किस्से सभी के पास होते। हालांकि, इनमें से अधिकतर किस्से मन की उपज होते, जो ननकू से हमदर्दी जताने के लिए गढ़े जाते। ये अलग बात है कि इस ’हमदर्दी’ से ननकू का दर्द और बढ़ जाता। लोग किस्सा सुनाकर कुत्ते को कोसते, पर होता ये, कि आतंक के अंधेरे में ननकू का दिल डूब जाता।

अगले साल ननकू सारा दर्द, सारी पीड़ा भूलकर होली की तैयारियों में फिर से मशगूल हो गए। होली करीब आने लगी। कुत्ते के काटने की घटना को ननकू पूरी तरह भूल चुके थे, पर उनके ’चाहने वाले’ नही भूले थे। चूंकि उन्हें ननकू की फिक्र थी, इसलिए जब मिलते, कुत्ते से बचने के ’टिप्स’ देने लगते। ननकू का ’दर्द’ फिर उभरने लगा। कुत्ते का आतंक दिलो दिमाग पर फिर हावी होने लगा। लोगों ने तो ये चेतावनी भी दे डाली कि रंगे पुते चेहरे देखकर कुत्ते और भी खतरनाक हो जाते हैं।

पर ननकू आसानी से हार मानने वालों में से नही थे। होली वाले दिन रंग लेकर वो हमेशा की तरह पूरी तैयारी के साथ जैसे ही घर से निकलने को हुए, दूर किसी गली में कुत्ते के भौंकने का हौलनाक स्वर सुनाई दिया। ननकू का पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हो गया, बदन में इंजेक्शन का दर्द ताज़ा हो गया, कानों में लोगों द्वारा सुनाए गए कुत्तों के ’एडवंचरेस’ किस्से गूंजने लगे, कांपकर गिरने को हुए। दरवाजे़ का सहारा लेकर कुछ देर वहीं खडे रहे, फिर धीरे से चारपाई पर आकर लेट गए। बस उसी दिन से ननकू होली के दिन चारपाई पर लेटे हुए दिखते हैं।

  • अशोक हमराही

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