नीली शाल – कहानी (‘वातायन’ से)

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नीली शाल (कहानी)

श्रेया ने चेक इन कर लिया था और इस वक़्त वो लाउंज में फ्लाइट का इंतज़ार कर रही थी। बार-बार उसकी नज़र बगल की कुर्सी पर रखे पैकेट पर जा रही थी जो चलते वक़्त दीपक फूफू पकड़ा गए थे, जिसे देखकर पहले तो श्रेया को झटका लगा था ’क्या दीपक फूफू को पता है कि वो सब जानती है?’ ये ख़याल आते ही श्रेया ने सकुचते हुए उनके चेहरे की ओर देखा था। वो जैसे कहीं शून्य में देखते हुए कह रहे थे, ’कब से रखा है, किसी के काम भी नहीं आता, इससे तो अच्छा है कि उसे किसी ऐसे को दे दिया जाए जो उसका इस्तेमाल करे। उसका भी भला होगा और विनी को भी शांति मिलेगी।’

श्रेया चुप खड़ी थी और वो बोलते जा रहे थे, ’पहले सोचा था मणि से कहूँगा, वो आयी नहीं तो अब तुम ही ले जाओ। मणि के साथ तुमसे भी विनी की गहरा लगाव था, इसे रख लो श्रेया, बस बुआ को पता ना लगने देना वरना वो आफ़त कर देगी।’

श्रेया को धक्का लगा ’बुआ आफ़त कर देगी?’ उसे अपनी निरीह बुआ याद आ गईं और श्रेया चाहकर भी मना नहीं कर सकी थी। कभी बुआ ने इसे देख लिया तो दुखी होंगी। क्या पता देखा भी हो और अकेले में रोई भी हों। बुआ की जिन आँखों में उसने कुछ देर पहले चमकते सितारे देखे थे, उनमें अब वो दोबारा आँसू तो नहीं आने देगी। बुआ ने चलते समय मीठा दही खिलाया था, पैकेट हाथ में लेते ही उसकी जुबान कड़वा गई। चेक इन से पहले मिल जाता तो ये पैकेट सूटकेस में डाल देती, अब तो इसे रास्ते भर ढोना पड़ेगा। इसी की वजह से उसे एक कुर्सी पर बैठना पड़ा था, वरना एयर पोर्ट पर आकर चेक इन के बाद वो कभी नहीं बैठती। घूम घूमकर आसपास की दुकानें देखती है, ख़ासतौर से किताबों की दुकान पर तो ज़रूर जाती है।

उसे दीपक फूफू पर गुस्सा आ रहा था। मन हुआ आज उनसे खुलकर बात कर लेती तो अच्छा रहता, लेकिन क्या फ़ायदा बात करने का। गुज़रा वक़्त फिर लौट आता और लौट आतीं वो तमाम उदास, गीली शामें, जिसमें मणि का उतरा चेहरा और आँसू इकट्ठा थे। फिर फूफू भी तो वापिस चले गए थे। कहती तो किससे कहती और क्या कहती?

कितने अच्छे मन से आयी थी, लेकिन वापसी में स्मृतियों की सींवन कितनी बेदर्दी से उधड़ गई थी। बुआ फूफू की शादी की स्वर्णजयंती वर्षगाँठ थी। माँ ने बड़े मन से बुआ के लिए सुनहरे रंग पर लाल बॉर्डर की साड़ी भेजी थी। उसने बुआ को सजा धजाकर वो साड़ी पहना दी थी। बुआ ’ना ना’ करती रहीं, लेकिन तैयार होकर जब उन्हें फूफू के सामने ले गई तो उनके गालों पर कैसे गुलाब खिल आए थे और आँखों में सितारे चमकने लगे थे। बुआ ख़ुश लग रही थीं।  देखते देखते उसके साथ अजय, सुदीप, सोना और रूपा सभी बुआ को घेर कर खड़े ही गए थे। बस एक मणि की कमी थी।

’मणि होती तो … ।’ बुआ को अपनी दुलारी मणि याद आ गई थी, लेकिन बात पूरी करते करते वो रुक गईं थीं। ’उसका काम भी तो ज़रूरी है।’

उधर दीपक फूफू भुनभुना रहे थे ’तुम सब लड़की वाले बन जाओगे तो मैं क्या अकेला बारात लेकर आऊँगा।’

वो बोल पड़ी थी। ’क्यूँ फूफू, अपनी शादी में तो ये दूल्हा अपनी बारात लेकर अकेला ही आया था।’ वो बुआ-फूफू की मुँहलगी थी। बोल तो गई फिर ख़ुद ही ज़ुबान भी काट ली। माँ ने बताया था, कैसे बुआ से शादी का प्रस्ताव लेकर फूफू घर आ पहुँचे थे। पापा तो राज़ी ही नहीं थे, कहते थे ’सुमन पढ़ने में तेज़ है, अभी से उसे घर गृहस्थी में नहीं झोकूँगा, फिर लड़के की माली हालत भी ठीक नहीं लगती, अभी-अभी तो नौकरी शुरू की है।’ लेकिन फूफू अड़ गए थे। बुआ भी उदास हो गई थीं। ये देखकर आखि़र पापा ने शादी के लिए हामी भर दी। फूफू की तरफ से शादी में कोई नहीं था। उनका एक भाई पागलखाने में दिन गुज़ार रहा था और दूसरा घर से भाग गया था। ले देकर माँ थीं, तो वो बहु के स्वागत के लिए घर में ही रुक गईं थीं। फूफू की बारात में उनके दो चार दोस्त ही आए थे।

श्रेया को लगा उसने ग़लत वक़्त पर मज़ाक़ कर दिया था। लेकिन दीपक फूफू ने बात को हल्का कर दिया। ’तब की बात और थी, अब तो तुम हो ना, फिर क्यूँ अकेला आऊँ।’ सुनकर वो फूफू की ओर चली गई थी। ख़ूब धूमधाम हुई, मेहमान आए। नाचते गाते बुआ फूफू ने पचास सालों के साथ का जश्न मनाया।

उसे विदा करते वक़्त बुआ की आँखें नम हो गईं थीं।  चलते वक़्त हमेशा की तरह उसके हाथ में उन्होंने कुछ दबा दिया। कार में बैठकर उसने मुट्ठी खोली तो जड़ाऊ टॉप्स की डिब्बी थी। बुआ का स्नेह याद कर श्रेया मुस्कुरा दी थी। श्रेया ने इन टॉप्स की तारीफ़ की थी, तो चलते समय बुआ ने वोही टॉप्स उसे दे दिए थे। फूफू के हाथ का पैकेट देखकर उसने सोचा था शायद वो भी उसके लिए कोई उपहार लाए हैं।

पैकेट की याद आते ही उसकी नज़र फिर से बगल की कुर्सी पर चली गई।  फ्लाइट लेट थी। अब लाउंज तेज़ी से भर रहा था और वो दो कुर्सियाँ हथियाकर बैठी थी। उसने पैकेट गोद में रख लिया और जगह ख़ाली कर दी। ’अगर वो ये पैकेट एयरपोर्ट पर ही छोड़ दे तो!’ तसल्ली सी महसूस हुई। लेकिन फिर फूफू, बुआ और विनी के चेहरे याद आ गये। वो फिर बेचैन हो गई। उसने आसपास नजरें घुमाईं। कुछ लोग मोबाइल पर व्यस्त थे, तो कुछ बार-बार घड़ी देख रहे थे। तीन चार बच्चे भी थे, जिन्हें माँओं ने जबरन कुर्सी पर बैठा रखा था। एक छोटी बच्ची लगतार ठुनक रही थी और बार-बार माँ के बैग की जिप खोलने की कोशिश कर रही थी।

श्रेया ध्यान से देखने लगी। माँ उसे लगातार कुछ कह रही थी, लेकिन बच्ची सुनने को तैयार ही नहीं थी। आखि़रकार जिप खुली और माँ ने अंदर से निकालकर उसकी गुड़िया दे दी। गदबदाये बदन और घुंघराले बालों वाली गुड़िया हाथ में लेकर बच्ची खुश हो गई थी और मगन होकर खेलने लगी थी।

श्रेया ने ठंडी सांस ली। ’कितना सुनहरा और निश्चिन्त होता है बचपन!’ एक गुड़िया में ही बहल जाता है? नहीं, कई बार गुड़िया भी होती है, खेल में रोकने टोकने वाला भी कोई नहीं होता, लेकिन नन्हा सा मन अचानक सहम जाता है। उसे मणि की आँखों में चमकते आंसू याद आ गए। मणि, बुआ की सबसे बड़ी बेटी, उससे कुछ ही साल छोटी थी लेकिन उनके बीच दोस्ती का रिश्ता बड़ा गहरा था। तभी उसकी गोद से पैकेट गिर गया। श्रेया ने चौंककर देखा। बच्ची के हाथ से गुड़िया गिर गई थी, उसे उठाते हुए वो श्रेया के पाँव से टकराई थी और पैकेट नीचे गिर गया था। बच्ची की माँ उसे डाँट रही थी। श्रेया ने मुस्कुराकर उसकी असहजता दूर की और झुककर पैकेट उठाया। पैकेट थोड़ा खुल गया था। अंदर से आसमानी रंग झाँक रहा था।

श्रेया को याद आ गया। विनी के पास इसी रंग की एक शाल थी, जो उसे बहुत पसंद थी। उसने देखने के लिए शाल बाहर निकाल ली। ’हाँ, वही शाल थी।’ किनारे पर कश्मीरी कढ़ाई का सुन्दर सा बॉर्डर था।

श्रेया अनायास ही उस पर हाथ फेरने लगी। पहली बार जब ये शाल उसे दिखा था, तब भी बरबस वो हाथ फेरने लगी थी। शाल तो आकर्षक थी ही, लेकिन उसे पहनने वाली भी बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी। उस दिन विनी को पहली बार साड़ी में देखा था। कटे हुए केश गुच्छ बड़े सलीक़े से कंधे पर लहरा रहे थे। गले में पड़ा हीरे के पेंडेंट वाला चोकर और मैचिंग टॉप्स उस पर जँच रहे थे। हल्के से मेकअप भी किया था।

वो घर में घुसी तो सामने ही बैठी थी विनी और उसके बगल में ही फूफू बैठे थे। बुआ वहाँ नहीं थीं। फूफू उससे कुछ कह रहे थे और विनी मुस्कुरा रही थी। श्रेया को विनी इतनी अच्छी लगी कि वो उसके पास बैठकर शाल पर हाथ फिराने लगी। फूफू उसे देख वहाँ से उठ गए थे और विनी ने उससे पूछा था, ’हाय डार्लिंग, आज तुम्हारी र्फ़्रेंड नज़र नहीं आ रही। कहाँ है मणि?’ तब श्रेया को याद आया ’अरे! वो दोनों तो साथ ही घर में घुसी थीं, लेकिन मणि जाने कहाँ चली गई थी।’ विनी ने भी ये सवाल शायद ऐसे ही पूछा था, क्यूँकि अगले ही पल वो एक बॉक्स उसके हाथ में थमाकर खड़ी हो गई थी। ’कप केक्स फोर यू एंड योर फ्रेंड’।

वो दरवाजे़ से निकल रही रही थी कि तभी ना जाने कहाँ से फूफू भी आ गए। ’आओ तुम्हें छोड़ देता हूँ।’ विनी के स्कूटर की चाभी उन्होंने हाथ में ले रखी थी। फूफू के पीछे विनी बैठ गई। उसने कमर में हाथ डाला और स्कूटर चला गया।

फूफू और विनी के जाने के बाद जब श्रेया अंदर आई तो मणि को ड्राइंग रूम के दरवाज़े पर खड़ा पाया। उसने परदे को मुट्ठी में भींच रखा था और बेहद चुप नज़र आ रही थी। श्रेया ने पूछ लिया था, ’अरे, तुम कहाँ चली गईं थीं? विनी आंटी तुम्हंे पूछ रही थीं। ये देखो कप केक दे गई हैं।’

मणि कुछ नहीं बोली थी, लेकिन जब श्रेया कप केक खाने के लिए बुआ से प्लेट लेने गई तब उसने देखा बुआ की आँखें लाल थीं। श्रेया उस दिन समझ नहीं पाई थी लेकिन बाद में उसने ध्यान दिया था कि जब भी विनी आंटी घर आतीं, मणि बुलाने पर भी उनके आसपास नहीं फटकती थी और बुआ घर के अंदर ही रहती थीं।

उस दिन भी बुआ अंदर ही थीं। वो और मणि बाहर ड्राइंग रूम में सीडी लगाकर डांस कर रही थीं कि तभी कालबेल बजी थी। म्यूजिक प्लेयर ऑफ करके मणि ने झट से दरवाज़ा खोला था। सामने स्कर्ट पहने एक सुन्दर सी छरहरी लड़की खड़ी थी। मणि को देखते ही उसने झट से हाथ आगे बढ़ा दिया था, ’हेल्लो डार्लिंग!’ मणि ने हाथ मिलकर कहा था, ’मेरा नाम मणि है, आपको किससे मिलना है?’

उसने पूछा था, ’मिस्टर सक्सेना घर पर हैं?’ तब तक रसोई से हाथ पोछती हुई बुआ बाहर आ गईं थीं। ’जी नहीं, वो घर पर नहीं हैं, आप बैठिये।’ उस लड़की ने बुआ से बड़े तपाक से हाथ मिलाते हुए कहा था, ’मेरा नाम विनी डिसूजा है एंड आई गेस, आप उनकी भाभी हैं?’

बुआ हंसते हुए बोली थीं, ’नहीं, मैं उनकी वाइफ हूँ।’ विनी एकदम हड़बड़ा गई थी। ’ओह, मुझे पता नहीं था।’

बुआ से दो चार बातें करने के बाद वो फूफू से मिले बिना चली गई थी। फूफू जब घर लौटे तो बुआ ने उन्हें हंसते हुए पूरी बात बताई और पूछा, ’क्या मैं सचमुच तुम्हारी भाभी लगती हूँ?’

फूफू कुछ बोले बिना वहां से अपने कमरे में चले गए थे। ये तो सच था कि फूफू जहाँ सजीले जवान की तरह बने ठने रहते, वहीं बुआ घर के कामों और पांच बच्चों को सँभालने में ही लगी रहतीं। ख़ुद को संवारने या आईने में देखने की फुरसत ही उनके पास नहीं थी, लेकिन उनकी बड़ी बड़ी आँखें, मुस्कुराते होठ और चम्पई रंग आज की तरह उस वक़्त भी हमेशा चमकते रहते।

उस दिन के बाद विनी अक्सर आने लगी। फूफू शहर के नाट्î संस्थान में अधिकारी थे, इसलिए कलाकारों का आना कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन ये कलाकार सबसे अलग थी। ज़्यादातर फूफू के आने से पहले ही आ जाती। मणि के लिए खिलौने लेकर आती। बुआ से बतियाती, लेकिन जैसे ही फूफू आते उसकी आँखें उनका पीछा करने लगतीं। बुआ कभी हँसकर कहती भी थीं, ’ये लड़की तो तुम्हारी भक्त बन गई है।’ फूफू गंभीर मुंह बनाये वहां से हट जाते। कोई हो न हो, लेकिन श्रेया और मणि तो विनी की भक्त बन ही गईं थीं।  उसके आते ही दोनों खुश हो जातीं। विनी ऑन्टी उनसे खेलती जो थीं।

एक शाम श्रेया घर पर अपना प्रोजेक्ट तैयार कर रही थी कि मणि हांफती हुई आयी। ’पापा  का एक्सीडेंट हो गया है।’ श्रेया और उसकी माँ तुरंत बुआ के  साथ चल पड़ीं। हॉस्पिटल पहंुचकर देखा, फूफू बेहोश थे। उन्हें काफी चोटें आयी थीं। पता लगा था कि स्कूटर ट्रक से टकरा गया था।  ’स्कूटर! लेकिन टूर पर तो ये ऑफिस की कार से गए  थे,’ बुआ ने पूछा था। तब पता लगा था कि फुफु स्कूटर पर ही थे, उनके साथ एक लड़की भी थी, जो इन्हें यहाँ तक लाई थी। उसे ज़्यादा चोट नहीं लगी थी, इसलिए उसे डिस्चार्ज कर दिया गया था, लेकिन फूफू को रोक लिया गया था।

बुआ हैरान सी बार बार बुदबुदाती, ’ये स्कूटर पर क्यों गए थे।’ इसका जवाब तो सिर्फ फूफू ही दे सकते थे, इसीलिए ठीक होने के बाद घर आने पर बुआ ने उनके सामने भी ये सवाल दोहराया होगा और फूफू से उनकी बहस हुई होगी। क्योंकि मणि ने उसे बताया था कि रात में पापा-मम्मी से बहुत तेज़ आवाज़ में कुछ कह रहे थे, जिसकी वजह से वो बहुत डर गई थी। हो सकता है बुआ को इससे भी पहले पता लग चुका हो या हो सकता है उस रात पहली बार उसने सच जाना हो। लेकिन श्रेया की प्यारी सी छोटी बहन उस रात के बाद ही शायद बड़ी होने लगी थी। उसकी शरारतें जाने कहाँ गायब हो गई थीं। पिता का गुस्सा, आंसू उससे उसका बचपन छीने ले रहे थे।

कई बार वो श्रेया से लिपटकर कहती, ’दीदी, पापा इतना गुस्सा क्यों करते हैं?’ तब नहीं, लेकिन कुछ साल बाद श्रेया फूफू के गुस्से की वजह जान गई थी।

एक दिन मणि ने उससे कहा, ’विनी आंटी गन्दी हैं, वो मम्मी को रुलाती हैं। श्रेया ने अचकचाकर मणि को देखा था। ’कुछ भी कहती है मणि, अच्छी भली सुन्दर विनी आंटी बुआ को भला कैसे रुला सकती हैं। कितना तो अच्छा डांस करती हैं, हरदम हंसती रहती है।’

लेकिन बुआ के साथ ही मणि भी सच जान गई थी। बिना बोले उसने माँ का दुःख महसूस कर लिया था। बुआ की तरह वो भी विनी से दूर रहने लगी थी, विनी जब घर आती तो बुआ रसोई में और मणि किताबों में छिपने की कोशिश करते। सिर्फ़ फूफू ही उससे बात करते। उस वक़्त उनका चिड़चिड़ापन जाने कहाँ चला जाता। घर को संन्नाटे का घुन खाने लगता। सिर्फ बीच-बीच में  मणि के छोटे भाई-बहनों का शोर सुनाई देता, जिन्हें समझ ही नहीं थी कि घर में कैसा भूचाल आया है।

ऐसे दिनों में मणि ज़रूरत से ज़्यादा चुप हो जाती, लेकिन उसकी आंखें चुप नहीं रहतीं। उसकी आँखें ही तो थीं जिन्हें देख श्रेया कई बार चौंक जाती। उसके कंधे पर हाथ रखती और मणि अपना दिल खोल देती। कई बार वो तमाम जतन करने के बावजूद चुप ही रहती और तब श्रेया जान लेती कि आज कुछ ऐसा गुज़रा है जिससे मणि अंदर तक टूट गई है।

मणि जितना तो नहीं, लेकिन श्रेया भी इस टीस को महसूस करने लगी थी। कई बार तो उसने बुआ को बिलखते और फूफू को गिड़गिड़ाते हुए भी देखा। एक रात जब बुआ की बीमारी की वजह से वो वहीं रुक गई थी तो अचानक ड्राइंग रूम से आती आवाज़ सुनकर उसे ताज्जुब हुआ था। इतनी रात में कौन आया है? उसने देखा, मणि और सारे बच्चे गहरी नींद में थे, बुआ भी सो गई थी। उसे कुछ डर लगा, लेकिन हिम्मत करके वो दरवाज़े तक आई। फूफू अँधेरे में फ़ोन पकडे़ खड़े थे। वो उन्हीं की आवाज़ थी, ’तुम समझती क्यूँ नहीं। ऑफ्टर आल शी इज़ माई वाइफ़।’

श्रेया वहीं जड़ हो गई थी। उधर से जाने क्या कहा गया कि फूफू का याचना भरा स्वर सुनाई दिया, ’लिसन विनी, प्लीज़ ऐसा मत कहो, मेरी बात समझने की कोशिश करो।’ शायद उधर से फ़ोन रख दिया गया था। फूफू चुपचाप फ़ोन के पास खड़े रहे। श्रेया तुरंत वहाँ से लौट आयी। बुआ से उसने कुछ नहीं पूछा, लेकिन मणि ने बताया था कि विनी फूफू से शादी करना चाहती है। उसे आश्चर्य हुआ। ’फूफू से शादी! लेकिन क्यूँ?’ इसका जवाब जिनके पास था, उनसे श्रेया कभी पूछ नहीं पायी। बुआ ने अपना दर्द कभी किसी के साथ साझा नहीं किया, लेकिन कानों कानों ये ख़बर श्रेया के माता-पिता को भी मिल चुकी थी। कई बार लगता कि शायद आज पापा फूफू से कुछ कहेंगे, लेकिन श्रेया देखती कि अचानक बीच में बुआ आ जातीं और पापा चुपचाप घर लौट आते।

बुआ अपने दुःख में सिमट गई थीं। माँ और पापा विवाहित बहन की चिंता में घिर गए थे और फूफू, जैसे एक सम्मोहन में जी रहे थे।

उस दिन रविवार था। श्रेया नहाकर बाल सुख रही थी कि उसे मणि छोटे बच्चांे का हाथ पकडे़ आती दिखी। श्रेया को लगा शायद आज कोई बड़ी बात हुई है।  वो दौड़कर नीचे आ गई। वाकई बड़ी बात थी। विनी घर आयी थी और ज़ार-ज़ार रोते हुए उसने बुआ के पैर पकड़कर कहा था, ’मिसेज सक्सेना, अब आप ही मुझे बचा सकती हैं।’

मणि ने घृणा से मुंह सिकोड़कर कहा, ’पक्की ड्रामा आर्टिस्ट है। माँ को शीशे में उतारने के लिए ग्लीसरीन लगाकर आयी होगी।’ ’तो बुआ ने क्या किया?’ श्रेया ने बेचैनी से पूछा था। ’करेंगी क्या, मुझे बहाने से तुम्हारे घर भेज दिया इन सबको लेकर। मैं उनके सामने से तो हट गई, लेकिन छिपकर सारी बातें सुनी हैं। उसकी शादी तय हो गई है। बार-बार मम्मी से कह रही थी, मुझे नहीं करनी ये शादी। प्लीज, मेरे पेरेंट्स को समझा दीजिए… और भी जाने क्या-क्या।’

मणि की आँखें गुस्से से जल रही थीं। ’… और दीदी, उस वक़्त पापा वहीं खड़े थे। चुपचाप, जैसे वहाँ हो ही नहीं।’

फूफू ने तटस्थ्ता ओढ़ी थी, लेकिन बुआ ने विनी का मुँह धुलाकर उसे पानी पिलाया था। बहुत देर तक समझाती भी रही थीं।

श्रेया उस दिन जब मणि को छोड़ने बुआ के घर आयी तो विनी की शादी का कार्ड मेज पर पड़ा था। फूफू सोफे पर उदास बैठे थे। उनके कंधे पर यही आसमानी शाल पड़ा था। शायद विनी देकर गई थी।

श्रेया ने उस वक़्त सोचा था कि तूफ़ान गुज़र गया है, लेकिन दो महीने बाद मणि ने बताया था ’दीदी, विनी फिर आई थी और पापा के कंधे पर सर रखकर देर तक रोती रही थी। उसका शराबी पति उसे बहुत तंग करता था, पापा उसे घर छोड़ने गए हैं।’

श्रेया फिर से चिंतित हो गई। कहीं विनी वापिस आ गई तो क्या होगा? वो बुआ को देखती, लेकिन उसकी पथरायी आँखों में कुछ नज़र नहीं आता था।

दिन गुज़रते गए। एक दिन मणि ने आकर बताया कि विनी नहीं रही। वो डाँस परफोरमेंस देकर लौटी तो पति से कुछ झगड़ा हुआ। वो रोती हुई विनी को छोड़कर घर बंद कर बाहर चला गया। दो दिन तक घर बंद रहा और जब ताला तोड़ा गया तो विनी की लाश मिली। श्रेया बुआ के घर गई तो उसने सुना, फूफू रो रोकर बुआ से कह रहे थे, ’जब वो दुनिया में थी तब उसके साथ रह नहीं सकता था, लेकिन जब वो दुनिया से जा रही थी, उस वक़्त भी मैं उसके साथ नहीं था। इसके लिए खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा। तुमने उसका  चेहरा देखा होता सुमन, कितना दर्द लेकर गई है वो!’ फूफू हिचकियाँ ले रहे थे, बुआ की आँखों में भी आंसू थे; अपने लिए, फूफू के लिए या फिर विनी के  लिए? ये वो नहीं जान सकी, लेकिन उसने ये देखा था कि उस वक़्त बुआ  फूफू की पीठ पर हाथ फिराती जा रही थीं … और मणि, उसकी आँखें जाने कैसी हो रही थीं।

उसी साल मणि ज़िद करके हॉस्टल चली गई। फिर बाहर ही रही। छुट्टियों में भी घर आने से बचती। होस्टलवासी मणि आखि़रकार फेलोशिप लेकर विदेश चली गई। बुआ लगातार उसे वापिस आने और शादी करने की चिट्ठियां भेजती रहीं। इस बार तो श्रेया से भी कह बैठी, ’मणि को समझाओ श्रेया, शादी करने को तैयार ही नहीं होती। एक से बढ़कर एक लड़के ढूंढें, लेकिन मना कर दिया। उससे बात करके देखो, वहां कोई पसंद है तो उसी से शादी कर ले। उसे समझाना बेटा। ये जीवन ऐसे नहीं चलता।’

श्रेया जानती है, मणि को वो कभी नहीं समझा पाएगी। वो क्या, उसे अब कोई नहीं समझा पाएगा।

आज इतने सालों बाद इस नीली शाल ने कितनी यादें ताज़ा कर दीं। फूफू और बुआ से उसने कभी विनी के बारे में बात नहीं की और ना ही कभी करेगी। वो नहीं चाहती बुआ के जख़्म कभी ताज़ा हों, इसीलिए वो इस शाल को किसी ज़रूरतमंद को देगी और प्रार्थना करेगी ’विनी की आत्मा को शांति मिले और मणि के मन को सुकून मिले।’

फ़्लाइट आ गई थी। उसने नीली शाल लपेटकर वापिस पैकेट में रख दी और उठ खड़ी हुई।

राजुल जानी मानी साहित्यकार हैं। नाटक, रूपक, वृत्तचित्र, रिपोतार्ज, कविता, कहानी, अनुवाद (अंग्रेजी-हिंदी) आदि सभी विधाओं में लेखन कर रही हैं।

– राजुल

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