संस्मरण : कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन – प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी
बचपन गांव में पैदा हुआ था...बहुत बड़ा घर था.मोटी मोटी मिट्टी की दीवारों पर भारी भारी लकड़ियों और पटरों पर...
बचपन गांव में पैदा हुआ था...बहुत बड़ा घर था.मोटी मोटी मिट्टी की दीवारों पर भारी भारी लकड़ियों और पटरों पर...
બાળપણ હિંચકાને ઠેસ મારી, ઉપર નીચે.. આવર્તન, કૂદકો મારી "કોઈ" સાથે બેઠું. આગળ પાછળ આંદોલન, અમે..તો પુરજોશમાં ઝૂલતાં'તા... કલાત્મક કડાં...
दिन बचपन के दिन लौटा दे मेरे बचपन के कोई याद आते हैं दिन बचपन के दिन बचपन के...
Book Review We cannot count how many times we get the piece of advice "You can be...
नदियों का जल प्रतिक्षण प्रतिपल, करता कल कल, हो चिर चंचल बहता निश्छल, नदियों का जल। हिम अंचल से, निकल...
उजाले उन सबकी यादों के इसमें कत्तई संदेह नहीं कि अपने देश में वैचारिक स्वतंत्रता पिछले कुछ महीनों से चरम...
सावन की मन मानी है ये सावन की मन मानी है ये आग भरा इक पानी है ये बारिश...
પાણી રે પાણી પાણી રે પાણી રૂપ તારું કેવું? ગિરિશખરે હિમાચ્છાદિત સફેદ શીતળતાનું શિવલિંગ ભોળા અમરનાથ સ્વરુપ, પાણી રે...
ज़िन्दगी के पन्नों से ... ग़म और ख़ुशी या ख़ुदा! ज़िन्दगी इतने ग़मों से न भर देना जो हम अपनों...
मुक्तक अंबर से छत की मुंडेर पर आते हो जन-जन को सावन के गीत सुनते हो सच कहती हूँ बहुत...