Raat ko aaftaab dekha hai रात को आफ़ताब देखा है – अशोक हमराही
रात को आफ़ताब देखा है
रात को आफ़ताब देखा है, सहर में माहताब देखा है या उन्हें बेनक़ाब देखा है या उन्हें बेहिजाब देखा है
कोई कांटा नहीं है राहों में फूल ही फूल हैं निगाहों में चांदनी सो रही है बाहों में ख़ूबसूरत ये ख़्वाब देखा है
आंखों में नूर भी सितम भी है लब पे आतिश भी शबनम भी है हुस्न की आंच ज़रा नम भी है ऐसा उनपे शबाब देखा है
गर न मुझसे उन्हें गिला रहता फिर तो जारी ये सिलसिला रहता रात दिन जो खिला-खिला रहता एक ऐसा गुलाब देखा है
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अशोक हमराही
ख़ूबसूरत अहसासात…….. बस गर के नीचे लगा नुक़्ता हटा लीजिए.
वाह बेहतरीन नज़्म 💐🙏🏻
🌹🌹
LAJAWAAB ASHOKJI
Khoobsoorat …