Jise dekho wohi insan hai sard sard yahan जिसे देखो वही इंसां है सर्द-सर्द यहां – अशोक हमराही

3

जिसे देखो वही इंसां है सर्द-सर्द यहां

जिसे देखो वही इंसां है सर्द-सर्द यहां
सुब्ह की धूप पे जमने लगी है बर्फ़ यहां

हर शहर आज हैं जंगल बने इंसानों के
ढूंढता फिर रहा ख़ुद को हर एक शख़्स यहां

शाम की तरह हैं ढलते हुए चेहरे दिखते
बुझे – बुझे से गुलाबों पे जमीं गर्द यहां

कहते हैं इस शहर में रात नहीं होती है
तभी तो चांदनी रहती है ज़र्द – ज़र्द यहां

भूख इंसान को रोटी की नहीं दौलत  की
रिश्ते नाते भी हैं लगते सभी को क़र्ज़ यहां

  • अशोक हमराही

 

3 thoughts on “Jise dekho wohi insan hai sard sard yahan जिसे देखो वही इंसां है सर्द-सर्द यहां – अशोक हमराही

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *