जले जब पांव अपने तब कहीं जाकर समझ आया – डॉ अनिल त्रिपाठी
ग़ज़ल जले जब पांव अपने तब कहीं जाकर समझ आया जले जब पांव अपने तब कहीं जाकर समझ आया घने ...
ग़ज़ल जले जब पांव अपने तब कहीं जाकर समझ आया जले जब पांव अपने तब कहीं जाकर समझ आया घने ...
सावन की मन मानी है ये सावन की मन मानी है ये आग भरा इक पानी है ये बारिश...