जले जब पांव अपने तब कहीं जाकर समझ आया – डॉ अनिल त्रिपाठी
ग़ज़ल जले जब पांव अपने तब कहीं जाकर समझ आया जले जब पांव अपने तब कहीं जाकर समझ आया घने ...
ग़ज़ल जले जब पांव अपने तब कहीं जाकर समझ आया जले जब पांव अपने तब कहीं जाकर समझ आया घने ...
जड़ें गावों में थीं लेकिन शहर में आबोदाना था जड़ें गावों में थीं लेकिन शहर में आबोदाना था उन्ही कच्चे...
मृगजळ मन वेडे गुणगुणते हे आयुष्याचे गाणे। त्या समजावू मी कैसे , मृगजळ आहे, नव्हे तराणे ।।धृ।। तू येता...