मैं बरस-बरस बरसूं रोज़-रोज़ : आशा चंपानेरी
मैं बरस-बरस बरसूं रोज़-रोज़ मैं बरस-बरस बरसूं रोज़-रोज़ नित नवीन रंग-ढंग से तुम पर हर रोज़ आसमां से ......
मैं बरस-बरस बरसूं रोज़-रोज़ मैं बरस-बरस बरसूं रोज़-रोज़ नित नवीन रंग-ढंग से तुम पर हर रोज़ आसमां से ......
બાળપણ હિંચકાને ઠેસ મારી, ઉપર નીચે.. આવર્તન, કૂદકો મારી "કોઈ" સાથે બેઠું. આગળ પાછળ આંદોલન, અમે..તો પુરજોશમાં ઝૂલતાં'તા... કલાત્મક કડાં...
दिन बचपन के दिन लौटा दे मेरे बचपन के कोई याद आते हैं दिन बचपन के दिन बचपन के...
सावन की मन मानी है ये सावन की मन मानी है ये आग भरा इक पानी है ये बारिश...
मुक्तक अंबर से छत की मुंडेर पर आते हो जन-जन को सावन के गीत सुनते हो सच कहती हूँ बहुत...
पुलकित है क्षितिज देख सावन की छाँव पुलकित है क्षितिज देख सावन की छाँव रोका रथ ऋतुओं ने फूलों...
पाऊसकाळी कधी पाखरू उदास होते मन भिंगुळते क्वचित उसवते, फांदीवरती ठाव मिळुनही स्थिरावया घाबरते श्याम धवळ तळमळते. तेच पाखरू आनंदुनि...