चलें फिर आज उजालों की तरफ़ – अशोक हमराही
चलें फिर आज उजालों की तरफ़ फ़िज़ा में रंग नज़ारों में जान आई है सहर ये आज फिर नए...
चलें फिर आज उजालों की तरफ़ फ़िज़ा में रंग नज़ारों में जान आई है सहर ये आज फिर नए...
और एक साल दिए जाता हूँ अपनी यादों के दरीचे से फिर और एक साल दिए जाता हूँ...