तुम्हारे बिन है ज़िन्दगी ऐसे – राजुल
तुम्हारे बिन है ज़िन्दगी ऐसे
तुम्हारे बिन है ज़िन्दगी ऐसे
कोई सीलन भरा हो घर जैसे
जहाँ न धूप कभी आती है
न कभी ओस गुनगुनाती है
तुम्हारे बिन है ज़िन्दगी ऐसे
भरा जालों से हो कमरा जैसे
जिसकी छत से है सभी कुछ दिखता –
पर वो तारों का आसमान नहीं
तुम्हारे बिन है ज़िन्दगी ऐसे –
ठंडी हो चाय की प्याली जैसे
जिसकी सुबहे हैं रात भर थकी पलकों की तरह
जिसकी शामें हैं निचोड़े हुए कपड़ों की तरह
कभी भी रात में जो आँख ये खुल जाती है –
तो हाथ ढूँढता रहता है तुम्हे सिरहाने
किसी की बात कभी दिल को जो लग जाती है –
तो ये लगता है कि आओगे अभी समझाने
कहाँ गए वो पल जो साथ-साथ जीते थे
कहाँ गए वो पल जो बूँद-बूँद पीते थे
राजुल
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बहुत ही सुन्दर अहसास
कहां गए वो पल जो बूंद बूंद पीते थे