ज़िंदगी ले आई है ये किसके सामने मुझे – ज्योति ‘किरण’ सिन्हा

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ज़िंदगी ले आई है ये किसके सामने मुझे

ज़िंदगी ले आई है ये किसके सामने मुझे
लग रहे हैं झूठे अब तो सारे आईने मुझे

फ़िक्र के सागर में हम तो उम्र भर डूबे रहे
लफ़्ज़ों की ये सीपियाँ लाये हो उलेचने मुझे

बन के सबसे आइना, मिलती हूँ मैं ख़ुलूस से
क्यूँ उठा लाते हैं पत्थर, लोग तोड़ने मुझे

चाहती हूँ बांधना किस्मत को मुठ्ठियों में जब
बस लकीरें हाथ की लगती हैं काटने मुझे

आसमाँ छूने को कब से पंख मेरे हैं खुले
मेरे ही वहमों गुमाँ लगते हैं रोकने मुझे

जानी मानी शायरा – कवियित्री  ज्योति ‘किरण’ सिन्हा

संक्षिप्त परिचय :- 

मध्य प्रदेश के जावालि ऋषि नगरी जबलपुर में २८ अक्टूबर १९६२ को जन्मीं ज्योति किरण सिन्हा के पिता स्वर्गीय श्री विशम्भर नाथ श्रीवास्तव स्वयं एक कुशल निबंधकार और पत्रकार थे। जबलपुर के होम साइंस कॉलेज से पढ़ीं लेखिका विद्यार्थी जीवन से ही सामाजिक, सांस्कृतिक, खेलकूद की गतिविधियों से सलंग्न हैं और अनेक पुरूस्कार प्राप्त किये।

विवाहोपरांत लखनऊ की गंगा जमुनी तहज़ीब से प्रभावित हो हिंदी उर्दू काव्य लेखन प्रारम्भ किया। गीत ग़ज़लों के दो काव्य संकलन “अनकहे एहसास ” और धड़कनों के नक़्शे पा प्रकाशित हो चुके हैं . .

बहु आयामी व्यक्तित्व की लेखिका पिछले तीन दशकों से कई सामाजिक ,सांस्कृतिक और साहित्यक संस्थाओं से जुडी हैं और साहित्य कला संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए अनेकों कार्यशालएं और कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं। विभिन्न समसामयिक विषयों पर आधारित काव्यात्मक नृत्य नाटिकाओं का लेखन और मंचन किया जिनमें अस्मिता , दास्ताने -दिल , ‘पावन धरती -निर्मल गंगा” प्रमुख हैं . आकाशवाणी, दूरदर्शन लखनऊ , N DTV ,इंडिया टी वी , ETV बी बी सी ,सनराइज रेडियो ( UK ) से कवितायें ,कहानियां और कई इंटरव्यू प्रसारित हो चुके हैं. .कई सम्मानों के साथ अनेक पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन देश विदेश में कई कविसम्मेलनों,मुशायरों में सफल काव्य पाठन। लेखन स्वान्ताय सुखाय हेतु।


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