आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (23)
इसी वर्ष नमन प्रकाशन ने सुरेंद्र तिवारी के संपादन में 20वीं सदी की महिला कथाकारों की 10 खंडों में कहानियां छापी। मेरी कहानी “आईरिस के निकट” खंड 8 में छपी। इन खंडों में कहानियाँ इकट्ठी करने में और उन्हें जन्मतिथि के अनुसार व्यवस्थित करने में सुरेंद्र तिवारी ने बहुत मेहनत की थी। वे अब इस दुनिया में नहीं है पर उनका यह उपहार साहित्य जगत में सदैव याद किया जाएगा।
मुम्बई पर बहुत कुछ लिखने की इच्छा थी लेकिन फिलवक्त तो उस पर एक सफरनामा ही लिखकर इति कर ली। मेरा यह सफरनामा “मुम्बई भारत की शान” रायपुर की पत्रिका पाण्डुलिपि में प्रकाशित हुआ। जिसके लिए संपादक जयप्रकाश मानस ने मुझसे रचना आमंत्रित की थी। इस रचना से वे इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने मुझे रायपुर में प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा आयोजित प्रेमचंद जयंती समारोह में 31 जुलाई 2011 को आमंत्रित किया। यह समारोह छत्तीसगढ़ पुलिस के महानिदेशक विश्वरंजन जी के द्वारा आयोजित किया जा रहा था ।जिन्हें नक्सलवादियों से सुरक्षा के लिए जेड सुरक्षा दी गई थी। विश्वरंजन जी रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी के नाती हैं। लिहाजा मुझे स्टेशन पर लाल बत्ती वाली पुलिस गाड़ी लेने आई और ट्रेन से सामान भी पुलिस ने उतारा ।मेरी बुआ और उनकी बहू कवयित्री नीता श्रीवास्तव भी मुझे लेने आई थी। भोली भाली बुआ पुलिस देखकर डर गईं और मुझसे लिपट कर रोने लगीं “क्या किया है तूने जो पुलिस पकड़ कर ले जा रही है ।”
हम सबका हँसते-हँसते बुरा हाल था।
होटल में कमरा मुझे भोपाल से आई पत्रकार जया केतकी से शेयर करना था ।वह भी इसलिए कि वह अपनी साक्षात्कार की पुस्तक “फेस टू फेस” के लिए मेरा साक्षात्कार ले सके। इस पुस्तक के लिए उसने मशहूर साहित्यकारों के साक्षात्कार ले लिए थे जिनमें से अधिकतर भोपाल के थे। सफर की थकान की वजह से मैंने जया से क्षमा मांगते हुए कहा
” क्या मैं लेटे-लेटे आपके प्रश्नों का उत्तर दे सकती हूं?”
” दीजिए न, बल्कि यह तो अविस्मरणीय साक्षात्कार होगा ।”
“हां ,देखिए न आपके प्रश्नों की मेरी तैयारी भी तो नहीं है।
” हां, इंस्टेंट उत्तर रहेंगे आपके।”
वह रात 1:30 बजे तक मेरा साक्षात्कार लेती रही। अंतिम प्रश्न में मैं सो चुकी थी ।जया ने वह प्रश्न सुबह चाय के समय पूछा।
समारोह के सम्मान सत्र का सँचालन जिसमें मुझे प्रमोद वर्मा स्मृति साहित्य सम्मान दिया जाना था युवा पत्रकार डॉ संजय द्विवेदी ने किया। समारोह शाम तक चला,संजय मुझे और जया को छोडने होटल आये,इन दिनो वे भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी विश्व विद्यालय में प्रोफसर हैं।
दूसरे दिन मैं बुआ के घर आ गई। पुराने किस्से मेरे बचपन की यादें बाबूजी अम्मा सभी को तो बुआ ने याद कर ढेरों बातें बताई। तरह-तरह के व्यंजन ।आवभगत ऐसी कि जैसे कोई वीआईपी आ गया हो।अगले दिन रिचा संस्था ने मेरे सम्मान में कवि गोष्ठी का आयोजन किया । बुआ सुबह से ही साड़ी सिलेक्ट करती रहीं।
“कौन सी पहनूं। मेरी सेलिब्रिटी बिटिया का सम्मान हो रहा है। बुआ को भी तो रुतबे से जाना होगा।” समारोह में जैसे पूरा रायपुर का साहित्यिक वर्ग उलट पड़ा। सभी अखबारों की कवरेज मिली।
उसी वर्ष 16 से 21 दिसंबर को थाईलैंड में प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान छत्तीसगढ़ द्वारा आयोजित चतुर्थ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के लिए मुझे निमंत्रित किया गया। जयप्रकाश मानस ने कहा “आ रही हैं न। सृजन श्री सम्मान आप की बाट जोह रहा है।” मैंने हामी भर दी।
कथाबिम्ब में एक कॉलम आमने-सामने निकलता है ।जिसमें लेखक का साक्षात्कार और एक कहानी छपती है। इसमें प्रकाशित महिला लेखकों के साक्षात्कारों का संग्रह “महिला रचनाकार अपने आईने में “संग्रह डॉ अरविंद के संपादन में भारत विद्या इंटरनेशनल कोलकाता से प्रकाशित हुआ जिसमें मेरा भी साक्षात्कार था “खुद के कटघरे में।”
इन दोनों साक्षात्कारों की किताबों में छपे साक्षात्कारों ने मुझे चर्चित कर दिया और साक्षात्कार लेने के विभिन्न प्रस्ताव मेरे पास आने लगे ।अब तक 26 लोगों हिंदी और मराठी के लेखक, रंगकर्मी, संपादक, पत्रकार ,कवि द्वारा साक्षात्कार लिए जा चुके हैं जिनका संकलन शीघ्र ही नमन प्रकाशन से “रूबरू हम तुम” नाम से प्रकाशित होगा।इस पुस्तक का संपादन वरिष्ठ कहानीकार,संपादक विकेश निझावन कर रहे हैं।
क्रमशः