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गोरी हैं चकोरी
 


गोरी हैं चकोरी
काहे फिरें इत ओरी
हैं तो बहुत ही भोरी
काहे इत चली आई हैं
पिया श्याम को बतातीं
और खुद ही लजातीं
जैसे दिया बिन बाती
कैसे प्रीत ये जगाई है
सब काम छोड़ आईं
मनकामना जगाई
काहे लाज नाहीं आई
कैसी कामिनी ये गोरी हैं
हट करें हैं सयानी,
सारी उसकी दीवानी
माने चांद है उसी का,
लिए हाथ में कटोरी हैं|
 


 
छंद


 
सखा संग स्याम जो आए रए,
सखियन संग आए रई सखी राधा
रंग अबीर उड़ावत गिरधर,
खुद को छिपाए रई सखी राधा
     कि रंग लगाए रए कान्हा,
तो लुकछिप जाए रई सखी राधा
जो नीर न डारो कान्हा ने
काहे नीर बहाए रई सखी राधा
 
 
पहिराये रई हरी को चुनरी
और राधा बनाए रई सखी राधा
श्री हरि ने मूंद लई अंखियां,
कान्हा को सजाए रई सखी राधा
अंखियां न कान्हा खोल रए,
और निरखत जाए रई सखी राधा
राधा-राधा हरि होए रए,
कान्हा होए जाए रई सखी राधा
 
 
 
स्याम जो छेंड़ें गोपिन को तो
 जल जल जाई रई सखी राधा
तोड़ दई गगरी मोरी,
वाए गारी सुनाए रई सखी राधा
मौंह मोड़ लियो नाहि बात करै,
सखी से बतलाए रई सखी राधा
छैल ने जो बरजोरी करी तो,
खड़ी रिसियाय रई सखी राधा
 
 


 
ना पुकारो हमें


 
ना पुकारो हमें, हम ना मिल पाएंगे
आंख अब आंसुओं से भिगोना नहीं
देखो फिर ना कभी याद करना हमें
सों है तुमको हमारी कि रोना नहीं
बैठे हो, तुम क्यों यूं सिर झुकाए हुए
हम तो दिल में तुम्हारे कहीं ना कहीं
हम तुम्हारे तुम्हारे रहेंगे सदा
तुम हमारे हमारे कि हो या नहीं।
 
 


 
भ्रम 

श्याम कब से बैठी थी
तुम्हारी राह तकती
थक गई थीं अंखियां 
पंछी जाने लगे थे,अपने घोंसलों में,
सभी गैयां भी तो चल दी थीं, 
अपने घरों की ओर,गौ धुली उड़ातीं।

उस धुंधलके के बीच,
जब पक्षियों का कलरव थम गया था,
गायों की रुनझुन शांत हो चली थी,
पेड़ भी सभी मौन थे 
और वो मेरे माथे की,
गोल लाल बड़ी बिंदिया सा सूरज 
जैसे उतर जाने को आतुर था, 
यमुना के उस शीतल आंचल में 
तब, चुपके से, बिना किसी आहट,
तुम आए थे ना श्याम? 

चौंक गई थी मैं! 
याद है मुझे श्याम,
कैसा सजा दिया था
तुमने, मुझे दुल्हन सा 
टांक दिए थे सितारे,
मेरी आसमानी चुनरी पर 
और चांद का टीका लगाया था
तुमने मेरे माथे पर 
तुम्हारे श्यामल रूप का प्रतिबिंब था
मेरे चेहरे पर 
और तुम्हारे कारे नैयनों में
अपना रूप देख,
लजा गई थी खुद ही। 
सुर्ख हो गया था
मेरा चेहरा लाज से, 
और तुमने कहा था,
कि चलो आज फिर से
वो बचपन वाला खेल खेलते हैं 
छिप जाता हूं मैं,
और तुम मुझे ढूंढो।

पर मैं बावरी,
कहां समझ पाई,
छलिया, तुम्हारे उस छल को 
छिप गए थे तुम, और
मैंने तुम्हें कितना खोजा श्याम 
कदम्ब की हलचल में,
यमुना की कलकल में, 
मुरली का तानों में,
कोयल के गानों में, 
हर जगह तो खोजा,
पर तुम कहां मिले 
तभी से खोज रही हूं,
तुम्हें श्याम और देखो तो, 
        आकाश में छाने लगी है
             भोर की लाली 
          यमुना के आंचल से
         झांकने लगा है सूरज, 
पक्षियों के मद्दम कलरव का स्वर 
   फिर से पड़ रहा है कानों में,
पर कहां गए तुम श्याम?

तब से जन्मों बीत गए हैं जैसे,
तुम्हें खोजते खोजते 
आज तक पछता रही हूं,
कि क्यों छिपने दिया तुम्हे मैंने 
कभी कभी सोचती हूं,
कि मेरे श्याम, तुम आए भी थे?
या मेरी ही प्रेम भरी
अंखियों का भ्रम था कोई 

या ओ शाम! तू ही तो नहीं आ गई थी
मेरी श्याम बन के मुझे छलने 
और तूने ही रात की चादर ओढ़े,
टांक दिए थे अपने सितारे
मेरे आंचल में 
और लगा दिया था, 
चांद का टीका मेरे माथे पर।
 
 


 
धीरे-धीरे गाना बादल
 


धीरे-धीरे गाना बादल
धीरे-धीरे गाना बादल,
धीरे लेना अंगड़ाई
चमचम-चमचम चमके बिजुरी,
धूप सुनहरी शरमायी

दीवाने ये बादल देखो,
जब हिचकोले खाते हैं
आसमान की खिड़की पर तब,
सात रंग खिल जाते हैं

अभी अभी पछुवा ने छेड़ा,
छेड़ रही अब पुरवाई
धीरे-धीरे गाना बादल,
धीरे लेना अंगड़ाई

सन सन सन सन चलें हवाएं,
मनमानी मस्तानी सी
भीगा-भीगा हर मन झूमें,
मौसम लिखे कहानी सी

पपिहा पीहू पीहू, पीहू बोले,
प्यार भरी है रुत आई
धीरे-धीरे गाना बादल,
धीरे लेना अंगड़ाई

घन-घनघोर घटाएं काली,
बदरा जब छा जाते हैं
चंदा आंख मिचौली करता
और तारे शरमाते हैं

बैरी उमड़-घुमड़ कर डोलें,
कैसी है ये रुसवाई
धीरे-धीरे गाना बादल,
धीरे लेना अंगड़ाई

भीगी-भीगी धरती झूमें,
सावन में तरुणाई सी
धानी-धानी चूनर ओढ़े,
इक दुल्हन सकुचाई सी

सजनी चढ़ी है डोली जैसे,
और बजी है शहनाई
धीरे-धीरे गाना बादल,
धीरे लेना अंगड़ाई

बिजुरी चमक चमक, चम चमके
और गोरी घबराये रे
काली रात न बीते पिय बिन,
नागिन सी डस जाए रे

सखियां सारी करें ठिठोली,
मन ही मन हैं इतराईं
धीरे-धीरे गाना बादल,
धीरे लेना अंगड़ाई

धीरे-धीरे गाना बादल,
धीरे लेना अंगड़ाई
चमचम-चमचम चमके बिजुरी,
धूप सुनहरी शरमायी

1 thought on “कवयित्री: सुषमा सिंह

  1. बहुत ही सुन्दर कविता का संग्रह है। हिंदी काव्य को और आगे बढ़ाते रहें।

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