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1- कश्मीरी औरत


कश्मीरी औरत माँ बनने से घबराती है
गर बेटा पैदा हुआ
तो
आतंकवाद का शिकार होगा
गर बेटी पैदा हुई
तो
बलात्कार का शिकार होगी

कश्मीरी औरत माँ बनने से घबराती है

    

2 – फ़र्क

दीवारों पर
चलती मकड़ी
देख रही थी मुझे
और मैं उसे।
हम दोनों में
फर्क इतना ही था-
वह आजादी से
बुन रही थी जाल
अपने रहने के लिए
और मैं-
सामाजिक बंधनों
की जाल में फँसी
तलाश रही थी
अपना अधिकार।

           

3- बजट

माँ जब तुम
खुद भूखी रहकर
अपने हिस्से के
खाने के पैसे बचाकर
मेरी स्कूल की फीस भरती थी
तब मैंने जाना
घर का बजट
क्या होता है।

4- पालतू जानवर


हे नारीवादी चिंतक
गर्डा लर्नर
तुम्हारी याद आती है।
सोचती हूँ
तो तुम्हारा यह कहना
शत- प्रतिशत
सच लगता है
मनुष्य ने जब
जानवरोँ को
बनाया होगा पालतू
तब से
पुरुष को
हुआ होगा अहसास
गर्भधारण में
अपनी भूमिका का।
देखा होगा उसने जब
पशुओं में
नर द्वारा
जबरदस्ती संभोग करना
तब से पुरुष को
आया होगा विचार
स्त्री के बलात्कार का।
आखिर स्त्री भी तो
पुरुष के लिए
पालतू जानवर ही है।

5- औरतों का मालिक


क्या तुमने कभी
सोचा व समझा है?
‘वर्ग की सत्ता’
और
‘ औरतों का दमन’
बहुत करीब से
है जुड़ा।
जो जमीन का
फैक्ट्री का
या
चाहे जिस जगह का भी
होता है मालिक,
वहीं पर
वह बन जाता है
वहाँ की औरतों का मालिक।

6- जीना और जिलाना


माँ कराह रही थी
बाबा चिंतित थे
असहाय बिन कपड़े
मैं कूद पड़ी
इस खतरों भी दुनिया में
माँ के हाथों में तड़पती।
बांध दिया गया
मेरा शरीर
मानों उम्रभर के लिए।
मैं चिपकी
माँ के छाती से
असहाय, कमजोर।
धीरे से बुआ ने
बाबा के कान में पूछा-
” बारात रखनी है या लौटानी?”
बाबा ने कहा-
” लौटानी है।”
बुआ ने दी
तम्बाकू की पुड़िया
कहा माँ से-
” रख इसे बिटिया के मुंह में।”
माँ घबराई
विरोध का मतलब-
माँ, बिटिया की जान को खतरा
या
घर से निकाला जाना।
सीने से चिपकाए
भागी अस्पताल से
जीना उसे भी था
और
जिलाना मुझे भी।

7- मुंबई के लोग


कुछ इस तरह से जीते हैं, मुंबई के लोग।
दौड़ते हैं बेतहाशा मुंबई के लोग।
सोचे भला कैसे कभी औरों के लिए
खुद की ही नहीं रख पाते हैं खबर, मुंबई के लोग।
घर में अंधेरा और मनमें भी अंधेरा है
उजालों से हैं दूर कितने मुंबई के लोग।
सोते हुए फुटपाथ पर भी अपनी ऑंखों में
महलों के स्वप्न पालते हैं मुंबई के लोग।
जिंदगी जीने का भी कोई तो सबब है
पर यूं ही जिए जाते हैं मुंबई के लोग।
कोरोना संक्रमण काल के इस दौर में भी
सारी मुसिबतों को मात देते जाते हैं मुंबई के लोग।

डॉ अनिता ठक्कर

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