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लिखें भी तो क्या लिखें इस दौर की हम दास्ताँ

लिखें भी तो क्या लिखें इस दौर की हम दास्ताँ
हो कलम डूबा लहू में शब्द हों घायल जहां

जो जला सकती थीं शम्मे प्यार की इस दौर मेँ
खो गयी आंधी में वो पागल हवा जाने कहाँ

क्या ख़बर थी आएंगी तन्हाईयाँ भी साथ साथ
हमने दुनिया से अलग कर तो लिया अपना मकाँ

बंद कमरों में नहीं आएगी सूरज की किरण
रौशनी दरकार हो तो खोल दो सब खिड़कियाँ

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