कहानी : 16वें साल की कारगुजारियां – पूनम अहमद
16वें साल की कारगुजारियां
कैफेकौफी डे में पहुंच कर सौम्या, नीतू और मिताली कौफी और स्नैक्स का और्डर दे कर आराम से बैठ गईं. नीतू ने सौम्या को टोका, ‘‘आज तेरा मूड कुछ खराब लग रहा है… शौपिंग भी तूने बुझे मन से की. पति से झगड़ा हुआ है क्या?’’
‘‘नहीं यार… छोड़, घर से निकल कर भी क्या घर के ही झमेलों में पड़े रहना? कोई और बात कर… मेरा मूड ठीक है.’’
‘‘ऐसा तो है नहीं कि तेरा खराब मूड हमें पता न चले. हमेशा खुश रहने वाली हमारी सहेली को क्या चिंता सता रही है, बता दे? मन हलका हो जाएगा,’’ मिताली बोली.
म्या ने फिर टालने की कोशिश की, लेकिन उस की दोनों सहेलियों ने पीछा नहीं छोड़ा. तीनों पक्की सहेलियां थीं. शौपिंग के बाद कौफी पीने आई थीं. तीनों अंधेरी की एक सोसायटी में रहती थीं. सौम्या ने उदास स्वर में कहा, ‘‘क्या बताऊं, निक्की के तौरतरीकों से परेशान हो गई हूं… हर समय फोन… हम
लोगों से बात भी करेगी तो ध्यान फोन में ही रहेगा. पता नहीं क्या चक्कर है… सोएगी तो फोन को तकिए के पास रख कर सोएगी. 16 साल की हो गई है. चिंता लगी रहती है कि कहीं किसी लड़के के चक्कर में तो नहीं पड़ गई.’’
‘‘अरे, इस बात ने तो मेरी भी नींद उड़ाई हुई है… सोनू का भी यही हाल है. टोकती हूं तो कहता है कि चिल मौम, टेक इट इजी. मैं बड़ा हो गया हूं. बताओ, वह भी तो 16 साल का ही हुआ है. कैसे छोड़ दूं उस की चिंता. कितना समझाया… हर समय मैसेज में ध्यान रहेगा तो पढ़ेगा कब? पता नहीं क्या होगा इन बच्चों का?’’ नीतू बोली. तभी वेटर कौफी और स्नैक्स रख गया. कौफी का 1 घूंट पी कर नीतू मिताली से बोली, ‘‘हमारा तो 1-1 ही बच्चा है… तू तो पागल हो गई होगी 2 बच्चों की देखरेख करते… तेरी तानिया और यश भी तो इसी उम्र से गुजर रहे हैं.’’ मिताली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हां, यश 16वां साल पूरा करने वाला है. तानिया उस से 2 ही साल छोटी है.’’
‘दोनों पागल कर देते होंगे तुझे? मैं तो निक्की पर नजर रखतेरखते थक गई हूं. रात में कई बार उठ कर चैक करती हूं कि क्या कर रही है. पता नहीं इतनी रात तक क्या करती रहती है, कब सोती है. आजकल तो बच्चनजी की यह पंक्ति बारबार याद आती है कि कुछ अवगुन कर ही जाती है चढ़ती जवानी…’’ सौम्या ने कहा. नीतू ठंडी सांस लेते हुए बोली, ‘‘सोनू का तो फोन चैक भी नहीं कर सकती. लौक लगाए रखता है. देख लो, अभी 16-16 साल के ही हैं ये बच्चे और नाच नचा देते हैं मांबाप को.’’ मिताली के होंठों पर मुसकराहट देख कर नीतू ने कहा, ‘‘तू लगातार क्यों मुसकरा रही है? क्या तू परेशान नहीं होती?’’
‘‘परेशान? मैं? नहीं, बिलकुल नहीं.’’
‘‘क्या कह रही हो, मिताली?’’
‘‘हां, माई डियर फ्रैंड्स. मैं तो यश और तानिया के साथ मन ही मन 16वें साल में जी रही हूं.’’
‘‘मतलब?’’ दोनों एकसाथ चौंकी.
‘‘मतलब यह कि बच्चों के साथ फिर से जी उठी हूं मैं… मैं बच्चों की हरकतें देखती हूं तो मन ही मन 16वें साल की अपनी कारगुजारियां याद कर हंसती हूं.’’
सौम्या मुसकरा दी, ‘‘मिताली ठीक कह रही है. अब हम मांएं बन गई हैं तो हमारा सोचने का ढंग कितना बदल गया है. मां बनते ही हम अपनी साफसुथरे चरित्र वाली मां की छवि बनाने में लग जाती हैं.’’
मिताली हंसी, ‘‘मैं तो यह सोचती हूं कि मेरे पास तो आज के बच्चों जितनी सुविधाएं भी नहीं थीं, फिर भी उस उम्र का 1-1 पल का भरपूर लुत्फ उठाया.’’
‘‘तेरा कोई बौयफ्रैंड था?’’ सौम्या ने अचानक पूछा.
‘‘हां, था.’’
नीतू चहकते हुए बोली, ‘‘यार थोड़ा विस्तार से बता न.’’
‘‘ठीक है, हम तीनों उस उम्र की अपनीअपनी कारगुजारियां शेयर करती हैं और हां, ये बातें हम तीनों तक ही रहें.’’ थोड़ी देर रुक कर मिताली ने बताना शुरू किया, ‘‘मेरे सामने वाली आंटी का बेटा था. खूब आनाजाना था. मम्मी घर पर ही रहती थीं. जब वे बाहर जाती थीं तो मैं घर पर अकेली होती थी. बस उस समय के इंतजार में दिनरात बीता करते थे. वह भी अकेले मिलने का मौका देखता रहता था.’’ सौम्या ने बेताबी से पूछा, ‘‘बात कहां तक पहुंची थी?’’
‘‘वहां तक नहीं जहां तक तू सोच रही है,’’ मिताली ने प्यार से झिड़का.
‘‘मम्मी के घर से बाहर जाते ही एक लवलैटर वह पकड़ाता था और एक मैं. थोड़ी देर एकदूसरे को देखते थे और बस. उफ, जिस दिन मम्मी घर से बाहर नहीं जाती थीं वह पूरा दिन बेचैनी में बीतता था.’’
‘‘फिर क्या हुआ? शादी नहीं हुई उस से?’’ सौम्या ने पूछा.
मिताली हंसी, ‘‘नहीं, जब पापा ने मेरा विवाह तय किया तब वह पढ़ ही रहा था. मैं उस समय उदास तो हुई थी, लेकिन शादी के बाद अपनी घरगृहस्थी में व्यस्त हो गई पर
बेटे यश के हावभाव, रंगढंग देख कर अपनी पुरानी बातें जरूर याद कर लेती हूं. फिर मुझे बच्चों पर गुस्सा नहीं आता. जानती हूं एक उम्र है जो सब के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है. बच्चों पर नजर तो रखती हूं, लेकिन उन की रातदिन जासूसी नहीं करती,’’ फिर नीतू से पूछा, ‘‘तेरा क्या हाल था?’’
‘‘सच बताऊं? तुम लोग हंसेंगी तो नहीं?’’
‘‘जल्दी बता… नहीं हंसेंगी,’’ सौम्या ने पूछा.
‘‘मुझे तो उस उम्र में बहुत मजा आया था. जब मैं स्कूल से साइकिल पर निकलती थी, स्कूल के बाहर ही एक लड़का मेरे इंतजार में रोज खड़ा रहता था. अपनी साइकिल पर मेरे पीछेपीछे हमारी गली तक आ कर मुड़ जाता था. कड़ाके की ठंड, घना कुहरा और मेरे इंतजार में खड़ा वह लड़का… आज भी कुहरे में उस का पीछेपीछे आना याद आ जाता है.’’
‘‘फिर क्या हुआ?’’
‘‘कुछ नहीं. 2 महीनों तक साथसाथ आता रहा, फिर मुड़ जाता. मुझे बाद में पता चला उस का लड़कियों को पटाने का यही ढंग था. मैं अकेली नहीं थी जिस के पीछे वह साइकिल पर आता था. तब मैं ने उसे देखना एकदम छोड़ दिया. कभी रास्ता बदल लेती, कभी किसी सहेली के साथ आती. धीरेधीरे उस ने आना छोड़ दिया. मजेदार बात यह है कि फिर मुझे उस का एक दोस्त अच्छा लगने लगा, जिस के साथ मैं ने कई दिनों तक आंखमिचौली खेली. उस के बाद भी मेरा एक और गंभीर प्रेमप्रसंग चला.’’
सौम्या हंस पड़ी, ‘‘मतलब 16वां साल बड़ी हलचल मचा कर गया… 1 साल में 3 अफेयर.’’
‘‘हां यार, तीसरा कुछ दिन टिका, फिर मेरी संजीव से शादी हो गई,’’ और फिर तीनों हंस दीं. कौफी और स्नैक्स खत्म हो गए थे. तीनों का उठने का मन नहीं हो रहा था. फिर कौफी का और्डर दे दिया.
मिताली ने कहा, ‘‘सौम्या, चल अब तेरा नंबर है.’’
सौम्या ने ठंडी सांस ली और फिर बोलना शुरू किया, ‘‘अब सोच रही हूं कि बहुत कुछ किया है उस उम्र में शायद इसीलिए निक्की पर ज्यादा पहरे लगाती हूं मैं… आकर्षण था, प्यार था, जो भी था, मैं भी उस उम्र के एहसास से बच नहीं पाई थी. हां, प्यार ही तो समझी थी मैं उसे, जो मेरे और उस के बीच था. काफी बड़ा था से. मेरी एक सहेली का रिश्तेदार था. जब भी आता मैं बहाने से उस के घर जाती. वह भी समझ गया था. बातें होने लगीं. मैं उस से शादी के सपने देखती, मेरी सहेली को अंदाजा नहीं हुआ. कभीकभी बाहर अकेले आतेजाते… बातें होने लगीं. संस्कारों की दीवार, मर्यादा की लक्ष्मणरेखा सब कुछ सलामत था. पर कुछ था जो बदल गया था और वह अच्छा लगता था. लेकिन जब एक दिन सहेली ने बातोंबातों में बताया कि वह शादीशुदा है, तो मैं घर आ कर खूब रोई थी. बड़ी मुश्किल से संभाला था खुद को,’’ फिर सौम्या कुछ पल चुप रही और फिर जोर से हंस पड़ी, ‘‘फिर मुझे 1 महीने बाद ही कोई
और अच्छा लगने लगा.’’ वेटर खाली कप उठाने आ गया था. सौम्या ने बिल मंगवाया.
मिताली ने कहा, ‘‘देखा, इसीलिए मुझे अपने बच्चों पर गुस्सा नहीं आता. हम सब इस उम्र से गुजरी हैं. इस उम्र के उन के एहसास, शोखियों, चंचलता का आनंद उठाओ, उन्हें बस अच्छाबुरा समझा कर चैन से जीने दो. आजकल के बच्चे समझदार हैं, जब भी उन पर गुस्सा आए अपनी यादों में खो कर देखो, बिलकुल गुस्सा नहीं आएगा. एक बार नौकरी, घरगृहस्थी के झंझट शुरू हो गए तो जीवन भर वही चलते रहेंगे, बाद में उम्र के साथ दुनिया कब आप को बदल देती है, पता भी नहीं चलता. इस उम्र में बच्चे दूसरी दुनिया में ही जीते हैं. उसी दुनिया में जिस में कभी हम भी जीए हैं, उन्हें इस समय संसार के दांवपेचों की न तो कोई जानकारी होती है और न ही परवाह. उन्हें चैन से जीने दें और खुद भी चैन से जीएं, यही ठीक है.’’
‘‘हां, ठीक कहती हो मिताली,’’ नीतू ने कह कर पर्स निकाला.
वेटर बिल ले आया था. तीनों ने हमेशा की तरह बिल शेयर किया. फिर उठ गईं. बाहर आ कर सौम्या अपनी कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गई. मिताली और नीतू भी बैठ गईं. तीनों चुप थीं. शायद अभी तक अपनेअपने 16वें साल की कुछ कही कुछ अनकही कारगुजारियों में खोई हुई थीं.