कहानी-बटवारा:लेखिका-आरती पांड्या

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Batwara

बटवारा

    चूल्हे पर रोटियाँ सेकते सेकते फौजिया सामने फर्श पर बैठे अपने पोते पोतियों को थाली में रोटी और रात का बचा सालन परोसती जा रही थी और साथ ही बगल में रखी टोकरी में भी रोटियाँ रखती जा रही थी ताकि खाविंद और बेटों के लिए समय से खेत पर खाना भेज सके l तभी उसकी सास की आवाज़ सुनाई पड़ी “ अरी खस्मनुखानिये , आज मैनू दूध रोट्टी मिल्लेगी की नै ?”

    सास की पुकार पर फौजिया ने जल्दी से पास रखे कटोरदान में से दो बासी रोटियां निकाल कर एक कटोरे में तोड़ कर गुड़ में मीन्सीं और उसमें थोड़ा पानी और गर्म दूध डाल कर अपनी बगैर दांत वाली सास के खाने लायक लापसी बना कर पास बैठी अपनी बेटी को कटोरा थमा दिया l “ जा दे आ बुड्ढी नू” l  कटोरा तो पकड लिया रज़िया ने लेकिन जाते जाते अम्मी को ताना ज़रूर दे गई “ जब तू ताज्ज़ी रोटी सेक रही है हुण बेबे नू बास्सी रोटी किस वास्ते देंदी ?”

  फौजिया ने कोई जवाब ना देकर गुस्से से बेटी को घूरा और वहां से जाने का इशारा किया तो रजिया बडबडाती हुई चली गई l  फौजिया ने अपनी बड़ी बहू सलमा को आवाज़ देकर खेत में खाना पंहुचाने को कहा और जल्दी जल्दी सरसों का साग और कच्ची प्याज फोड़ कर रोटियों के साथ टोकरी में रख कर टोकरी एक तरफ सरका दी l रज़िया को अपनी दादी के प्रति अम्मी के दोगले व्यवहार से बहुत चिढ़ है लेकिन उसका कोई वश नहीं चलता है इसीलिए हर रोज़ अपनी अम्मी से छिपा कर वो दादी के लिए कुछ ना कुछ खाने का ताज़ा सामान लेजाकर चुपचाप उसे खिला देती है और दादी भीगी आँखों और भरे गले से अपनी पोती को दुआएं देती रहती है l आज जब रज़िया नाश्ते का कटोरा लेकर बेबे के पास गई तो वो अपनी फटी कथरी पर बैठी अपने सामने एक पुरानी मैली सी पोटली खोलकर उसमें कुछ टटोल रही थी पर उसकी आँखें अपनी पोती के इंतज़ार में दरवाज़े की तरफ ही गड़ी हुई थीं l रजिया ने रोटी का कटोरा बेबे  को पकडा कर अपने दुपट्टे के खूंट में बंधे तीन चार खजूर निकाल कर झट से तोड़ कर कटोरे में डाले और बेबे  को जल्दी से रोटी ख़त्म करने को कहा तो बेबे  की बूढी आँखों में खजूर देख कर चमक आगई और उसने कटोरा मुंह से लगा लिया l तभी रजिया की नज़र खुली पोटली पर पड़ी जिसमें किसी बच्ची की लाख की चूड़ियाँ , चांदी की पतली सी हसली और पैरों के कड़े एक छींटदार घाघरे और चुनरी में लिपटे रखे हुए थे l बेबे ने एक हाथ से पोटली पीछे सरकानी चाही तो रज़िया ने पूछा “ बेबे ! आ की ?”

      पोती के सवाल को पहले तो बेबे ने टालना चाहा  मगर रजिया के बार बार पूछने पर  लाख की लाल चूड़ियों को सहलाती हुई बोली “ ये म्हारी सच्चाई, म्हारो बच्पण छे री छोरी ”  दादी को अलग ढंग से बात करते सुन कर रजिया को थोड़ी हैरानी हुई और उसने हंस कर पूछा “अरी बेबे आज तू केसे गल्लां करदी पई ?” बेबे ने चेहरा उठाया तो आँखों में आंसू डबडबा रहे थे l कुछ देर रुक कर बोली , “ आज मैं तैनू सच्च दसां पुत्तर l” और फिर बेबे ने जो बताया उसे सुनकर रज़िया का कलेजा काँप उठा और वो बेबे से लिपट कर रोते हुए बोली , “बेबे , मैं तैनू जरूर त्वाडे असली टब्बर नाल मिल्वाइन l तू ना घबरा l” और अपने आंसू पोंछती हुई वो खाली कटोरा लेकर आँगन नें आगई l   

रज़िया 18-19 साल की एक संजीदा और समझदार लड़की है जो अपने अनपढ़ परिवार की मर्ज़ी के खिलाफ जाकर अपनी एक सहेली की मदद से आठवीं तक की पढ़ाई कर चुकी है और अब उसी सहेली अफशां के स्मार्ट फोन के ज़रिये  फेसबुक और व्हाट्सएप जैसी आधुनिक दुनिया की बातों के बारे में भी जान गई है l यूँ तो रज़िया के अब्बू और तीनों भाई उसका घर से निकलना पसंद नहीं करते हैं पर अफशां चूँकि गाँव के सरपंच अजिबुर्रहमान की बेटी है इसलिए उसके घर जाने की बंदिश रजिया पर नहीं है l अफशां लाहौर के एक कॉलेज में पढ़ती है और छुट्टियों में ही घर आती है इसलिए उससे मिल कर शहरी फैशन और वहां के रहन सहन के बारे में जानने की उत्सुकता रज़िया को अफशां के घर लेजाती है l 

   रज़िया के अब्बा चार भाई और तीन बहनें थीं जिनमे से सबसे बड़ी बहन का पिछले साल इंतकाल हो गया l बाकी दो बहनें अपने अपने परिवारों के साथ आसपास के गाँवों में रहती हैं और चारों भाई इसी गाँव में पास पास घर बना कर रहते हैं l हालाँकि इनकी बीवियां एक दूसरे को ज़रा भी पसंद नहीं करती हैं मगर खेतों का बटवारा अभी तक नहीं हुआ है इसलिए सभी भाई एक साथ खेतों में काम करते हैं और उनकी बीवियों को जग दिखाई के लिए अपनेपन का नाटक करना पड़ता है l सभी भाइयों के बच्चे अंगूठा छाप हैं क्योंकि उनके खानदान में पढ़ाई लिखाई को कुफ्र माना जाता है l रज़िया ने अफशां की मदद से जो थोड़ी किताबें पढ़ लीं हैं उसकी वजह है रज़िया का मंगेतर जहीर, जो चाहता था कि निकाह से पहले रजिया थोड़ा लिखना पढ़ना सीख ले l वह खुद भी बारहवीं पास करके पास ही के क़स्बे में नौकरी करता है और साथ ही आगे की पढ़ाई भी कर रहा है l वह हमेशा रज़िया को आगे और पढ़ने के लिए कहता रहता है लेकिन रजिया के अब्बू उसे किसी स्कूल में भेजने के खिलाफ हैं इसलिए अफशां से ही जो भी सीखने को मिल जाता है उसी से रजिया तसल्ली कर लेती है l

      आज बेबे की बातें सुनने के बाद रजिया ने मन ही मन तय किया कि वो हर हाल में अपनी बेबे को उसके अपनों से मिलवा कर रहेगी , इसके लिए चाहे उसे अपने खानदान से लड़ाई ही क्यों ना करनी पड़े l मगर सिर्फ तय कर लेने से तो काम बनेगा नहीं , उसके लिए कोई राह भी तो निकालनी पड़ेगी l तभी रजिया को अफशां के फोन पर देखे फेसबुक के देश विदेश के लोगों का ख्याल आया और वो तुरंत अफशां के घर की तरफ लपक ली l

          सुबह सुबह रजिया को आया देख कर हैरान अफशां ने आने की वजह पूछी तो रजिया उसके कंधे पर सिर रख कर सिसकने लगी l अफशां उसे अपने कमरे में लेगई और आराम से बैठा कर उसकी परेशानी की वजह पूछी l तब रजिया ने अपनी बेबे का पूरा इतिहास उसके सामने रख दिया l  “ बाजी ,  बेबे हिदुस्तानी हैं l” रजिया की बात सुन कर अफशां ने हंस कर कहा कि पाकिस्तान में बसे आधे से ज़्यादा लोग हिन्दुस्तानी ही हैं क्योंकि बटवारे के वक्त वे लोग यहाँ आकर बसे हैं l “ ना बाजी ! बेबे साडे मज़हब दी नही हैगी ” और फिर रजिया ने बेबे की पूरी आपबीती अफशां को सुनाई l

     विभाजन के समय बेबे तेरह चौदह साल की बच्ची थी और राजस्थान के एक गाँव में रहती थी l उसे अपने गाँव का नाम पता तो अब याद नहीं है लेकिन इतना ज़रूर याद है कि उसके गाँव में मोर  बहुत थे और उसी बात के लिए उसका गाँव मशहूर था l परिवार में अम्मा बापू के अलावा तीन भाई और एक बहन थे l बहन और भाइयों के नाम उसे आज भी  याद हैं l बंसी , सरजू और किसना तीन भाई और बहन का नाम लाली  l  उसका बापू कालू राम गाँव के ज़मींदार के खेतों में काम करता था और अम्मा भी कुंअरसा ( ज़मींदार ) के घर में पानी भरने और कपडे भांडी धोने का काम करती थी l अपने छोटे बहन भाइयों को लछमी ( बेबे ) सम्हालती थी l बापू ने  पास के गाँव में लछमी का रिश्ता भी तय कर दिया था l लछमी का होने वाला बिनड़ा चौथी जमात में पढता था और उसकी परीक्षा के बाद दोनों के लगन होने की बात तय हुई थी  l उसी दौरान देश का विभाजन होने की खबर आई और चारों तरफ हडकम्प सा मचने लगा l उसके गाँव से भी कुछ मुसलमान परिवार पाकिस्तान जाने की तैयारी करने लगे l लछमी के बापू ने उसकी ससुराल वालों से हालात सुधरने के बाद लगन करवाने के लिये कहा तो लछमी के होने वाले ससुर ने कहा कि ब्याह बाद में कर देंगे पर सगाई अभी ही करेंगे l

       सगाई वाले दिन हाथों में मेंहदी लगा कर और नया घाघरा चोली पहन कर लछमी तैयार हुई l अम्मा ने फूलों से चोटी गूंथी तो लछमी घर के एकलौते शीशे में बार बार जाकर खुद को निहारने लगी l  आँगन में ढोलक बज रही थी और आसपास की औरतें बधाइयां गा रही थीं l फिर उसकी होने वाली सास ने लछमी को चांदला करके हंसली और कड़े पहनाये और हाथों में लाल लाल चूड़ियाँ पहनाकर उसको अपने कलेजे से लगा लिया l घर में गाना बजाना चल रहा था तब माँ की आँख बचाकर लछमी अपने गहने कपडे अपनी सहेलियों को दिखाने के लिए झट से बाहर भाग गई और दौड़ती हुई खेतों की तरफ चली गई l बहुत ढूंढा पर उसे वहां कोई भी सहेली खेलती हुई नहीं मिली पर खेतों के पास से कई खड़खडों  में भर कर लोगों की भीड कहीं जाती हुई ज़रूर दिखाई दी l लछमी वापिस लौटने लगी तभी किसी ने उसे पुकारा l उसने पलट कर देखा तो उसकी सहेली फातिमा एक खडखड़े में बैठी उसे आवाज़ दे रही थी l लछमी दौड़कर उसके पास गई और उससे पूछने लगी कि वो कहाँ जा रही है ? तब फातिमा ने बताया कि वो पाकिस्तान जा रही है और अब वहीँ रहेगी l लछमी अपनी सहेली से बिछड़ने के दुःख से रोने लगी तभी फातिमा के अब्बू जमाल चचा ने लछमी को झट से हाथ पकड़ कर अपने खडखड़े में बैठा लिया और कहा कि जब तक चाहे वो अपनी सहेली से बात करले फिर वह उसे नीचे उतार देंगे l खडखड़ा चल पड़ा और दोनों सहेलियां बातें करते हुए गुट्टे खेलती रहीं l बीच बीच में जमाल बच्चियों को गुड़ के लड्डू खिलाता जा रहा था l इन्ही सबमें वक्त का पता ही नहीं चला और घर जाने का ख्याल लछमी को तब आया जब जमाल चचा ने उसे अपने खडखड़े से उतारकर दूसरी ऊंट गाडी में बैठा दिया l

  उसने चारों तरफ निगाह घुमाई तो देखा कि वो अपने गाँव से बहुत दूर रेगिस्तानी रास्ते में है और वहां ढेर सारी भीड़ गाँव से उलटी दिशा में चली जा रही है l लछमी यह देख कर ऊंट गाड़ी से कूदने लगी तो  गाडी में बैठे दाढ़ीवाले आदमी ने उसका हाथ कस कर पकड़ लिया और फिर एक रस्सी से उसके हाथ पैर बाँध कर अपनी अम्मा के पास बैठाते हुए बोला कि वह उसको अपने साथ पाकिस्तान ले जा रहा है क्योंकि उसने जमाल को पूरे तीस रुपये देकर लछमी को खरीदा है और अब वह उसकी  बीवी है l लाचार लछमी पूरे रास्ते रोती रही पर ना उस आदमी को रहम आया ना ही उसकी बूढी अम्मा को l  

    गफूर नामक वह आदमी भी राजस्थान के किसी गाँव से ही आया था l  पकिस्तान पंहुच कर इस गाँव में उसने अपना डेरा डाल दिया और धीरे धीरे अच्छा पैसा कमाने लगा l आते ही गफूर ने यह मकान और कुछ खेत यह सोच कर  ख़रीद लिये कि उसकी गिनती गाँव के रईसों में होने लगेगी और लोग उसकी इज्ज़त करेंगे l मगर जिसे अपना असली मुल्क समझ कर वह आया था वहां तो उसे हमेशा परदेसी का ही दर्जा दिया गया और अपनी इस घुटन और  झुंझलाहट को वह अमीरन यानि लछमी पर उतारता था l दिन भर उसकी माँ अमीरन को मारती पीटती रहती और रात को गफूर अपना तैश उस बच्ची पर निकालता l उसकी सास ने पहले तो उसे डरा धमका कर गोश्त पकाना सिखाया और उससे भी मन नहीं भरा तो माँ बेटे ने कई दिनों तक भूखा रख के उसे ज़बरदस्ती  गोश्त खिलाना भी शुरू कर दिया और आखिर उसको लछमी से अमीरन बनाकर ही दम लिया l जब तक अमीरन बीस की हुई तब तक तीन बच्चे जन चुकी थी l धीरे धीरे खानदान बढ़ता गया और अमीरन  के अन्दर की लछमी मरती गई l

     अमीरन (लछमी) के बच्चे छोटे छोटे थे तभी गफूर की मौत हो गई और लछमी की परेशानियां और भी बढ़ गईं क्योंकि अकेली औरत जान कर गाँव वालों ने उसके खेतों पर कब्ज़ा करने की कोशिश तो शुरू कर ही दी, साथ ही कई लोगों ने उसको अपनी हवस का शिकार भी बनाना चाहा और जब एक दिन खेत में काम करते समय बगल के खेत वाले अब्दुल ने उसको धोखे से पकड़ कर उसके साथ ज़बरदस्ती करनी चाही  तो अमीरन के अन्दर की राजस्थानी शेरनी जाग गई और उसने घास काटने वाले हंसिये से अब्दुल की गर्दन काट डाली l गाँव में उसकी इस हरकत से हंगामा मच गया और उसको पंचायत में घसीट कर ले जाया गया लेकिन लछमी डरी नहीं और उसने साफ़ साफ़ कह दिया कि जो भी उसके खेतो की तरफ या उसकी तरफ बुरी नज़र डालेगा उसका वो यही हश्र करेगी l कुछ लोग उसकी इस जुर्रत के लिए उसे पत्थरों से मारने की सज़ा देने की बात करने लगे और कुछ लोगों ने गाँव से निकाल देने की सलाह दी लेकिन गाँव के सरपंच ने , जो एक बुजुर्गवार थे , फैसला अमीरन के हक़ में करते हुए गाँव वालों को चेतावनी दी कि कोई भी इस अकेली औरत पर ज़ुल्म नहीं करेगा वरना उस आदमी को सज़ा दी जाएगी l

    सरपंच की सरपरस्ती के कारण लछमी अपनी मेहनत से अपने बच्चों को पालने लगी l बड़ा बेटा अकरम जब खेतों में अम्मी की मदद करने लायक हो गया तो लछमी को थोड़ा आराम मिला l लेकिन उसे हमेशा इस बात का अफ़सोस रहा कि उसके अपने बच्चों ने भी कभी अपनी अम्मी का साथ नहीं दिया l कितनी बार उसने अपने बेटों की खुशामद करी कि एक बार उसे हिन्दुस्तान लेजाकर उसके भाइयों से मिलवा दें लेकिन उनलोगों की निगाहों में तो अम्मी के नातेवाले सब काफिर थे और काफिरों से नाता रखना उनके मज़हब के खिलाफ है l इसलिए हर बार बेटों ने उसके अनदेखे परिवार वालों को दो चार गालियाँ देते हुए लछमी ( अमीरन ) को काफिरों के पास जाने की जिद छोड़ देने को कहा l  अमीरन ने गाँव वालों से भी कई बार खुशामद करी कि उसे हिन्दुस्तान भिजवाने का कुछ इंतज़ाम करवा दें l कुछ लोगों ने तो उसकी बात पर कान ही नहीं दिए लेकिन गफूर के एक दूर के रिश्तेदार कादिर ने पास के एक गाँव से दो लोगों को लाकर उसके सामने खडा कर दिया और बोला “परजाई तेरे प्रा नू ले आया l” पहले तो अमीरन उनको देख कर खुश हो गई लेकिन जैसे ही उसने उन दोनों के नाम पूछे तो कादिर का झूठ  खुल गया क्योंकि उन नकली भाइयों ने अपने नाम जाकिर और हशमत बताये l बस फिर क्या था अमीरन ने झाड़ू से पीट पीट कर तीनों को घर से बाहर निकाल दिया और कादिर को दोबारा इस तरफ आने पर जान से मार देने की धमकी दे दी  l 

       वक्त गुज़रता गया और धीरे धीरे चारों बेटों ने खेती बारी पूरी तरह से सम्हाल ली और लछमी को पुराने बेकार सामान की तरह घर के एक कोने में पटक दिया l रही सही कसर बहुओं ने अपनी सास की दुर्दशा करके पूरी कर दी l धीरे धीरे चारों बेटे अलग अलग घर बसा कर रहने लगे और माँ को बड़े बेटे के पास छोड़ गए l तब से लछमी अकरम के परिवार के साथ रह रही है और उनलोगों के द्वारा किये जाने वाले अपमान को सह रही है l लेकिन दुःख के इस अँधेरे में रज़िया उसके लिए उम्मीद की किरन बन कर हमेशा उसके साथ खड़ी रहती है l

    सारी बात सुनकर अफशां ने रजिया से पूछा , “ रज्जो ! हुण त्वाडे दिमाग विच की चलदा प्या मैनू दस l” तब रजिया ने उससे पूछा कि क्या वो बेबे की मदद करने के लिए फेसबुक पर बेबे के परिवार वालों को ढूँढने की कोशिश करेगी ? अफशां ने जवाब दिया कि बगैर नाम पता जाने फेस बुक पर किसी को ढूँढना मुश्किल है और बेबे को अपने भाइयों के पूरे नाम भी मालुम नहीं हैं l यह भी ज़रूरी नहीं है कि बेबे के परिवार वाले  लोग फेसबुक पर हों l रजिया यह सुन कर निराश हो गई तब अफशां ने कुछ सोच कर लछमी की पूरी कहानी और मोर गाँव का ज़िक्र करते हुए एक लेख फेसबुक पर पोस्ट किया और साथ ही लोगों से प्रार्थना करी कि इस बारे में कोई भी जानकारी होने पर तुरंत सूचित करें l

   पोस्ट डाले कई दिन बीत गए लेकिन किसी का कोई जवाब नहीं आया l अफशां निराश हो गई और रजिया से बोली कि शायद बेबे को उसके परिवार से मिलवाना संभव नहीं होगा l मगर रजिया ने उम्मीद नहीं छोड़ी और अफशां को दोबारा लोगों से अपील करने को कहा जिस पर अफशां ने एक बार फिर लोगों से मदद की अपील करी l

     रजिया के गाँव से चार पांच सौ किलोमीटर दूर बीकानेर के एक दफ्तर में बैठे मनीष राठौर ने जब अपने  फेसबुक के पन्ने पर लछमी की कहानी पढ़ी तो उसका ध्यान सबसे पहले मोर गाँव ने खींचा और उसने फ़ौरन अपने मित्र संजय मेघवाल को फोन मिलाया जो मूल रूप से मोर गाँव का रहने वाला है l  “संजय ! तूने फेसबुक पर लछमी की कहानी देखी ?” संजय ने शायद जवाब नहीं में दिया क्योंकि मनीष ने उसे बताया कि कहानी किसी लछमी नाम की महिला से सम्बंधित है जो मोर गाँव से पार्टीशन के समय गायब हुई थी l “यार जल्दी से पढ़ पूरा किस्सा , हो सकता है तेरे पापा या दादाजी इस औरत को जानते हों l” मित्र के आग्रह पर संजय ने पूरा किस्सा फेसबुक पर पढ़ा तो उसे ख्याल आया कि बहुत पहले दादू ने एक बार ज़िक्र तो किया था अपनी किसी रिश्तेदार के गायब होने का l

      दफ्तर से शाम को घर पंहुचने पर संजय ने अपने दादू को लछमी की कहानी के बारे में बताया तो किशन चंद मेघवाल तुरंत पलंग पर सीधे बैठ गए और खुश होकर चिल्लाए “म्हारी बीरी मिली गई l” दादू से इस प्रतिक्रया की उम्मीद संजय को हरगिज़ नहीं थी l उसने दादू को तकिये से टिका कर बैठाते हुए पूछा कि क्या लछमी उनकी बहन का नाम है ? किशनचंद ने आंसू पोंछते हुए हामी भरी और बताया कि वो उस समय करीब पांच वर्ष के रहे होंगे इसलिए ज़्यादा कुछ याद नहीं है पर उस दिन घर में खूब रौनक थी , उनको लड्डू खाने को मिले थे और घर में गाना बजाना हो रहा था लेकिन कुछ देर बाद ही शोर मचने लगा की लछमी गायब हो गई है और मासा रोने लगी थी l सबने बहुत ढूंढा लेकिन बीरी  कहीं नहीं मिली l मासा ने तो इसी दुःख में बिस्तर पकड लिया और जल्दी ही स्वर्ग सिधार गई l परिवार वाले भी धीरे धीरे बीरी को भूल गए l “ के संजय बेटा म्हारी बात हो सके छे बीरी से ?” किशन चंद ने पोते से पूछा l  “पता करता हूँ दादू” संजय ने जवाब दिया और फिर से फेसबुक पर लछमी की कहानी पर नज़र दौडाने लगा तो नीचे एक व्हाट्स ऐप्प नंबर दिखाई दिया l संजय ने तुरंत उस नंबर पर मेसेज करके अपना फोन नंबर भेजा और विडियो कॉल करने को कहा l इसके बाद उसने यह खबर मनीष को दी और फिर अपने पापा और मम्मी को बताने गया l पापा तो खबर सुन कर खुश हो गए लेकिन माँ ने एक सवाल खडा कर दिया l  “तुम्हें क्या मालुम कि यह असली लछमी हैं या आतंकवादियों की नई  चाल ? तुम्हारे पास क्या सबूत है कि वो औरत बाबूजी की बहन ही है l जानते तो हो कि आजकल ना जाने कितने धोखेबाज़ झूठी कहानियां बना कर लोगों को लूटते रहते हैं l तुम तो इन चक्करों से दूर ही रहो बेटा l”

   माँ की बात में दम तो था लेकिन संजय का मन कह रहा था कि एक बार इस कहानी की सच्चाई जाननी ज़रूरी है l उधर पाकिस्तान में अफशां ने जैसे ही संजय मेघवाल का सन्देश और फोन नम्बर देखा तो वो रजिया के घर की तरफ दौड़ी l रजिया की भाभियाँ और अम्मी आँगन में बैठ कर गेंहू साफ़ कर रही थीं l अफशां को अपने घर आया देख कर वे सब चौंक गईं और अफशां उनलोगों को इतना हैरान देख कर अपने आने की वजह उनलोगों को बताने ही वाली थी कि तभी बेबे की कोठरी से निकलते हुए रजिया की नज़र अफशां पर पड़ी और वो ‘अफशां बाजी’ चिल्लाती हुई दौड़ कर उसके पास आई और उसका हाथ पकड़ कर बहाने से उसे छत पर ले गई l अफशां ने उसे बताया कि वो बेबे की बात उनके भाई से करवाने के लिए यहाँ आई है इसलिए अभी बेबे के पास चलना ज़रूरी है l

    रजिया ने मारे ख़ुशी के अफशां के हाथ पकड कर उसको नचा डाला और फिर उसे लेकर बेबे के पास गई l फौजिया ने बेटी को अफशां के साथ बेबे के पास जाते हुए देखा तो वो लपक कर आई और रजिया से बोली कि बेबे की कोठरी  में तो बहुत गर्मी है इसलिए अफशां को बैठक में लेजाकर बैठाए l उस पर अफशां ने कहा कि वो बेबे से ख़ास किस्म के शीरमाल बनाने के बारे में पूछने आई है l फौजिया ने झट से कहा कि शीरमाल बनाना तो उसको भी आता है वही सिखा देगी लेकिन रजिया ने अम्मी को परे करते हुए कहा कि अफशां शीरमाल के बारे में बेबे से पूछना चाहती है इसलिए वो बीच में ना पड़े और फिर दोनों सहेलियां दौड़ कर बेबे के पास पंहुच गईं l अफशां ने रजिया से कोठे का दरवाज़ा बंद करने को कहा और फिर शुरु हुआ बरसों से बिछड़े भाई और बहन का वार्तालाप जिसमें बातें तो कम हुई लेकिन दोनों तरफ से आंसू ज़्यादा बहे l बेबे फोन में दिखाई दे रहे सफ़ेद बालों वाले बूढ़े के चेहरे में अपने छोटे से किसना को ढूंढ रही थी और किशन चंद मेघवाल अपनी जर्जर बूढी बहन की हालत देख कर दुखी हो रहे  थे l फिर बेबे से फोन लेकर अफशां ने संजय से कहा कि अगर वह लोग बेबे को हिन्दुस्तान बुलाना चाहते हैं तो उसके लिए उन लोगों को ही कोशिश करनी होगी क्योंकि यहाँ बेबे के बेटे इस मामले में उसकी कोई मदद नहीं करेंगे l संजय ने उसे कहा कि वह बेबे को भारत लाने का सारा प्रबंध होते ही अफशां को सूचित कर देगा l  

      अफशां को काफी देर से बेबे की कोठरी में दरवाज़ा बंद करके बैठे हुए देख कर रजिया की छोटी भाभी ने फ़ौरन अपनी सास के कान भरे और दरवाज़ा खुलवाने को कहा l फौजिया दनदनाती हुई आई और दरवाज़े पर लात मार कर रजिया से दरवाज़ा खोलने को कहा तो झट से अपना फोन कुरते की जेब में डालकर अफशां बेबे से शीरमाल की रेसिपी पूछने लगी और रजिया ने दरवाज़ा खोल दिया l

     बीकानेर में अपने घर में बैठे किशन चंद मेघवाल ने पोते से पूछा कि उनकी बीरी को भारत लाने   का प्रबंध कैसे किया जाएगा ? संजय ने अपने दादू को हौसला देते हुए कहा कि वह जल्दी ही भारतीय विदेश मंत्रालय में इस बारे में पत्र लिखेगा और दादू को उनकी बीरी से मिलवाने का प्रयत्न करेगा l

  कुछ महीनों के प्रयास के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय से बात करके अमीरन उर्फ़ लछमी के भारत लौटने का प्रबंध करवा दिया और सरकारी हुक्म होने के कारण बेबे के बेटे उसके भारत जाने में कोई रुकावट नहीं डाल सके मगर अपनी माँ को धमकी ज़रूर दे दी कि अगर वो हिन्दुस्तान गई तो बेटे वापिस उसको अपने घर में कभी नहीं आने देंगे l अपने देस जाने की ख़ुशी में बेबे ने बेटे की बात पर कोई ध्यान ही नहीं दिया और अपने टीन के बक्से में सफ़र पर ले जाने का सामान रखने लगी l नियत दिन पर रजिया अपनी बेबे को लेकर अपना वादा पूरा करने के लिए चल पड़ी l उसके अब्बू ने तो साथ चलने से इनकार कर दिया इसलिए अफशां ने अपने अब्बा से गुजारिश करी तो अजिबुर्रहमान अमीरन और रजिया को लेकर कराची रेलवे स्टेशन पंहुच  गए l  वहां पंहुचने पर पता चला कि दूतावास की तरफ से भारत जाने का प्रबंध केवल लछमी के लिये  किया गया है इसलिए और कोई उसके साथ नहीं जा सकता है l रजिया ने बेबे की उम्र का हवाला देते हुए साथ जाने की इजाज़त मांगी लेकिन पाकिस्तान सरकार ने अनुमति नहीं दी l निराश रजिया ने भीगी आँखों से अपनी बेबे को रुखसत किया और अफशां के अब्बा के साथ अपने गाँव वापिस आ गई l अफशां द्वारा बेबे के आने की सूचना  मिलने पर संजय और उसके पापा अमृतसर के लिए रवाना हो गए l  

     इतना लंबा सफ़र अकेले तय करने में लछमी को बहुत घबराहट हो रही थी l तब उसके साथ सफ़र कर रही एक महिला ने उससे बातें करनी शुरू करीं और बेबे की कहानी सुनने के बाद उसने रास्ते भर बेबे की पूरी देखभाल करी और अमृतसर पर लछमी के परिवार वालों को उसे सौंप कर ही वहां से गई l अमृतसर स्टेशन पर कुछ रेलवे अधिकारियों के अलावा  प्रेस के संवाददाता और संजय एवं उसके पिता बरसों से बिछुड़ी लछमी की प्रतीक्षा में फूलों के गुलदस्ते लेकर खड़े थे l संजय और उसके पिता ने आगे बढ़ कर लछमी के पैर छूकर जब अपना परिचय दिया तो लछमी ने आँखें मिचमिचाते हुए उन दोनों को पहचानने का प्रयास किया और फिर दोनों को कलेजे से लगा कर सिसकने लगी l

  कुछ और घंटों की यात्रा पूरी करने के बाद जब लछमी अपने राजस्थान पंहुची तो इतने लम्बे सफ़र से उसका तन तो थका हुआ था किन्तु अपनी धरती पर पाँव रखने की ख़ुशी ने उस थकान को मन पर हावी होने ही नहीं दिया और घर के दरवाज़े पर अपनी प्रतीक्षा करते अपने किसना को देख कर तो उसके पैरों में जैसे पंख लग गए और उसने अपने किसना को कलेजे से ऐसे चिपका लिया जैसे अब वो अपने भाई से कभी अलग नहीं होगी l घर के अन्दर पंहुचने पर संजय की माँ ने भी अपनी बरसों से बिछड़ी बुआ सास के पाँव छुए और उसका सत्कार किया l चाय नाश्ता करते हुए  जब लछमी ने बंसी , सरजू और लाली के बारे में पूछा तब किशन चंद ने बताया कि बंसी भैया का दो वर्ष पहले केंसर से देहांत हो गया और उनके बच्चे जयपुर में कारोबार करते हैं l सरजू भैया मोर गाँव में ही रहते हैं और लाली अपने परिवार के साथ कोटा में रहती है l

   मोर गाँव का नाम सुनते ही लछमी ने गाँव जाने की रट पकड ली l तब किशन चंद ने कुछ दिनों बाद गाँव ले चलने का आश्वासन देकर अपनी बीरी को शांत किया l लेकिन पंद्रह दिन निकल गए और अपनी अपनी व्यस्तताओं के चलते किसी का भी गाँव जाना नहीं हो सका l लछमी के अन्दर भी अब कभी कभी अमीरन अपना सिर उठाने लगती और उसे अपने बच्चों और विशेष रूप से रजिया की याद सताने लगती मगर संकोच वश वो किसी को इस विषय में कुछ नहीं बताती थी l  अचानक मार्च के महीने से दुनिया का माहौल एक दम बदल गया और हर तरफ कोरोना का डर व्याप्त हो गया l तब अमीरन ने लछमी को अपने टब्बर की तरफ से लापरवाह हो जाने के लिए फटकार लगाईं और उसने संजय से कहा कि वह उसकी बात एक बार रजिया से करवा दे l संजय ने तुरंत फोन मिलाया तो अफशां ने अगले दिन बेबे के परिवार से बात करवाने का वादा किया l

  अगले दिन अफशां ने रजिया के घर पंहुच कर बेबे से सबकी बात करवानी चाही तो बेबे की बहु और पोता बहुएं तो काम के बहाने इधर उधर खिसक गईं और रजिया के भाई खेतों पर थे l  रजिया ने फोन अफशां के हाथ से लेकर अपनी बेबे से बात करने लगी तो बेबे भी खूब चटखारे ले कर अपने भाई और उसके परिवार के बारे में बताने लगीं  l तभी रजिया का अब्बा अकरम वहां आगया और जब उसे पता चला कि रजिया फोन पर बेबे से रूबरू है तो उसने बेटी के हाथ से फोन छीनकर अपनी माँ को दोबारा फोन ना करने की हिदायत देते हुए कहा कि वो अब पाकिस्तान वापिस आने के बारे में सोचे भी ना क्योंकि इस परिवार के लिए वो मर चुकी है l फिर अकरम ने फोन काटा और अफशां के हाथ में थमा कर वहां से चला गया l रजिया अपने अब्बू के व्यवहार से दुखी होकर रोने लगी तो अफशां ने उसे दिलासा देते हुए कहा कि उसे जब भी बेबे से बात करनी हो तो अफशां के घर आकर आराम से बात कर सकती है l

   अपने बेटे के ज़हर बुझे शब्दों से आहत लछमी फोन हाथ में पकडे निश्चल बैठी रह गई l यह देख कर संजय ने उसे बड़े प्रेम से समझाते हुए कहा कि ‘काका अपनी माँ के यहाँ आजाने से दुखी होकर ऐसे बोल रहे होंगे असलियत में नाराज़ नहीं होंगे ‘ उसकी बात सुन कर लछमी ने अपने आंसू तो पोंछ लिए लेकिन मन ही मन वो जानती थी कि अकरम ने जो भी कहा है उसका एक एक शब्द सच्चा है l अब सीमा पार लछमी का कोई टब्बर नहीं है l जीवन की यह कैसी विडम्बना है कि जिस परिवार में जन्म लिया वह अब अपना होकर भी अपना नहीं है और जो नाता ज़बरदस्ती जुड़ा था लेकिन अधिक अपना था उसे मानने से उसके अपने बेटे ने ही इनकार कर दिया l कहाँ जाए अब अमीरन का चेहरा ओढ़े यह लछमी l यह परिवार अब उसके भाई और बच्चों का है जिस पर उसका कोई अधिकार नहीं है और जिन पर अधिकार बनता है उन्होंने तो उसको जीते जी ही मार दिया है  l वो अब जाए तो कहाँ जाए ? इस बटवारे ने केवल ज़मीनें ही नहीं बांटी हैं बल्कि रिश्तों के भी टुकड़े टुकड़े कर दिए हैं l

   मन ही मन कुछ तय करने के बाद लछमी ने किशन चंद से बात करी और कहा कि अब वो अपना बाकी जीवन अपने गाँव में ही बिताना चाहती है इसलिए उसको जल्द से जल्द गाँव भेजने का प्रबंध करवा दिया जाए l बीरी की इच्छा पूरी करते हुए लछमी को लेकर किशनचंद मोरगाँव गए और वहां अपने पैत्रिक घर के एक हिस्से में लछमी के रहने का प्रबंध करवा कर लौट आये l और लछमी के गाँव जाने के पूरे एक महीने बाद आज सुबह सुबह गाँव से सरजू भइया का फोन आया कि बीरी सुबह सुबह परलोक सिधार गई l

      आजीवन जो धरती उसे नसीब नहीं हुई उसने अंत में अपने अंक में उसे समेट लिया था l  

  • लेखिका-आरती पांड्या
लेखिका-आरती पांड्या

2 thoughts on “कहानी-बटवारा:लेखिका-आरती पांड्या

  1. Emotional and sensitive characterisation. Batwara is the saddest part of our history. Very beautifully told it is a touching story,portraying the suffering of those who were part of the massacre

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