कहानी: झुनझुना – पूनम अहमद

0
image

झुनझुना

आत्मनिर्भर बनने के  भाषण ने नेताओं जैसे गुणों वाले मेरे  घर के तीन तेज बुद्धि वालो को और सयाना बना दिया,भाषण का असर किसी और पर हुआ हो न हुआ हो,इन तीन सयानों के चेहरे की चमक देखने वाली थी,मैं चुप रही,कोरोना टाइम में चौबीस घंटे सबको झेल झेल कर इनकी नस नस और पहचानने लगी हूँ,रात दिन देख रही हूँ सबको,सरकार सा हो गया है घर मेरा,करना धरना कम,शोर ज्यादा।मुझे अपना अस्तित्व किसी मूर्ख,गरीब जनता जैसा लगता है एक जरुरी काम बताती हूँ,तो दस जगह ध्यान भटकाने की कोशिश करते हैं,कोशिश रहती हैकि कोई जिम्मेदारी इनके ऊपर न आये,हाउस हेल्प नहीं है तो घर के  कामों में कम से कम हाथ इन्हे बटाना पड़े। मयंक कहने लगे,रीना,वैसे सब काम मैनेज हो ही रहा है न,अब तो तुम पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गयी हो,अब तो तुम्हे आशाबाई की भी जरुरत नहीं लगती न,प्राउड ऑफ़ यू,डिअर। ”

मैं फुफकारी,”उसके बिना हालत खराब है मेरी,चुपचाप काम किये जा रही हूँ तो इसका मतलब यह नहीं कि बहुत अच्छा लग रहा है,तुम तीनों तो किसी काम को हाथ तक नहीं लगाना चाहते,पता नहीं कैसे इतने सॉलिड बहाने देते हो कि चुप ही हो जाती हूँ।‘’

मलय को अचानक कुछ याद आया,”मॉम,आपको पता है कि विपिन की मॉम घर पर ही पिज़्ज़ा बेस बना लेती हैं,कल इंस्टाग्राम पर विपिन ने पिक डाली तो मैंने उससे पूछा था कि सब शॉप्स तो बंद है,तुम्हे पिज़्ज़ा बेस कहाँ से मिल गया,मॉम,उसने इतना गर्व से बताया कि उसकी मम्मी को पिज़्ज़ा बेस घर पर बनाना आता है। ”

मैंने उसे घूरा तो उसने टॉपिक बदलने में ही अपनी भलाई समझी,पर उसने मेरी दुखती रग तो छू ही दी थी, मैं शुरू हो गयी,” तुम लोग हाथ मत बटाना ,बस मुझे यह बता दिया करो कि और घरों में क्या क्या बन रहा है,मलय ,उससे यह पूछा कि उनके घर में भी कोई घर के कामों में हेल्प कर रहा  है या नहीं ! या बस माँ को ही आत्मनिर्भर बनाना है सबको ?”

मौली कम सयानी थोड़े ही है,एक कुशल नेता की तरह मीठे स्वर में मौके की नजाकत देख कर कहा,”मलय ,मॉम कितना काम कर रही हैं आजकल,देखते हो न! अब ऐसे में उनसे पिज़्ज़ा बेस भी बनांने की ज़िद न करो,मेरे भाई,जो मॉम बनाती हैं,ख़ुशी ख़ुशी खा लो,उनके हाथ में तो इतना स्वाद है,जो भी बनाती हैं,अच्छा ही होता है। मॉम,आपको जिस चीज में मेहनत कम लगे,वही बनाया करो,हम तो वर्क फ्रॉम होम में फंसकर आपकी हेल्प भी नहीं कर पाते ,लव यू,मॉम ,”कहते कहते उसने मेरे गाल चूम लिए,और मैं एक गरीब जनता की तरह फिर सबके झांसे में आकर ,सब भूल दुगने जोश से काम करने  लगी।मौली ने एक झुनझुना पकड़ा ही दिया था.लॉक डाउन शुरू होने पर मेरे मूर्ख बनने की जो प्रक्रिया शुरू हुई,वह ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रही,मैं बार बार इन सयानी बातों में फंसती हूँ .तीनो ने मुझे काफी समझाया,एक भाषण काफी नहीं था आत्मनिर्भर बनने का,तीन और सुने। मयंक उनमे से हैं जो ऐसे भाषण को काफी गंभीरता से लेते हैं,जो कह दिया गया,बस वही करेंगें,बुद्धि गयी तेल लेने,कई बार सोचती हूँ,इतना ध्यान अगर अपने पिता जी के भाषणों पर दिया होता तो पता नहीं आज क्या बन गए होते,सेल्स की नौकरी में कमा खा तो अभी भी रहे हैं पर पिता जी के भाषण तो बेकार गए न,उन्हें तो मयंक को डॉक्टर बनाना था,आज लगता है अगर टी वी पर भाषण में सुनते कि डॉक्टर बनना है तो मेहनत शायद कर लेते,पर पिताजी की बात में टी वी के भाषण जैसा दम थोड़े ही था । मुझ पर ऐसे भाषणों का असर कहाँ होता है,मुझे तो रोज बढ़ती महंगाई में खींच तान कर घर का बजट देखना पड़ता है.मैं समझ गयी कि मुझे आत्म निर्भर बनाने के लिए तीनों एड़ी चोटी का जोर लगा देंगें।

मुझे कोई शौक नहीं आत्मनिर्भर बनने का,नहीं हो रहा है मुझसे अब अकेले घर का काम,मुझे आशाबाई भी चाहिए,इन लोगों की हेल्प भी चाहिए,एक तो घर में  रह रह कर  सबका हर समय कोई न कोई शौक जागा रहता है जिसे पूरा मुझे करना होता है। एक दिन मलय ने कहा,मॉम,चलो,घर की सेटिंग कुछ चेंज करते हैं,एक ही चीज एक तरह से देख देख कर बोर हो गए। ”

मैंने कहा,”हाँ,क्यों नहीं,चलो,झाड़ू ले आओ,सामान इधर उधर हटेगा तो नीचे की सफाई भी हो जायगी,वरना सामान रोज तो हटता नहीं है। ”

फौरन एक नेता की तरह पलटी मार दी महाशय ने,”मॉम,इससे तो आपका काम और बढ़ जायेगा,छोड़ो,फिर कभी करते हैं।‘’

”नहीं,नहीं,काम क्या बढ़ना,तुम हेल्प करवा रहे हो न !”

”मॉम। कुछ काम याद आ गया अचानक,लैपटॉप पर बैठना पड़ेगा,फिर कभी करते हैं,सेटिंग इतनी भी बुरी नहीं है। ”

मौली को एक दिन कहा ,”आज तुम डिनर बना लेना,पता नहीं मन नहीं हो रहा है कुकिंग का,बोर हो गयी रात दिन खाना बना बना कर। ”

मौली ने अपनी मनमोहक मुस्कान से कहा ,’हाँ,मॉम,बना लूंगी ,’फिर उसने मेरी कमर में बाहें डालीं और मेरे साथ ही लेट गयी,कहा,”लाओ ,मॉम,आपकी कमर दबा दूँ?”मैं झट से उलटी हो गयी ,”हाँ,दबा दो ,” यह मौका छोड़ दूँ,इतनी मूर्ख तो नहीं हूँ मैं,ऐसे दिन बार बार तो आते नहीं कि कोई कहे, आओ,कमर दबा दूँ, कुछ ही सेकण्ड्स बीते होंगें,मैं सुखलोक में पहुंची ही थी कि मौली का मधुर स्वर सुनाई दिया,मॉम,जब आपको ठीक लगे,एक शार्ट कट मारोगी ?

”क्या,बोलो,बेटा। ”

”किसी दिन सिर्फ मटर  पुलाव बनाओगी?रायता मैं बना लूंगी,बहुत दिन हो गए,मलय तो आपको बनाने नहीं देता ,पूरा खाना चाहिए होता है उसे तो।‘’

”हाँ,ठीक है,बना लूंगी। ”

बेटी इतने प्यार से अपना काम धाम छोड़ कर मेरे साथ लेटी थी,मैं तो वारी वारी जा रही थी उस पर मन ही मन ,थोड़ी देर बाद वह अपने रूम में चली गयी,उसकी फ्रेंड का फोन था,जाते जाते बोली,टेक रेस्ट,मॉम । ”

थोड़ी देर बाद मैंने यूँ ही लेटे लेटे मौली को सरप्राइज देने का  मन बना लिया कि मैं ही आज मटर पुलाव बना लूंगी,उसकी पसंद का,खुश हो जाएगी। और मैंने डिनर में सचमुच  खुद  ही सब बना लिया,बीच बीच में मौली आ कर हेल्प ऑफर करतीरही,मैं मना करती रही थी। डिनर टेबल पर सबको हॅसते मुस्कुराते देख  मुझे अचानक याद आया कि अरे,आज तो मेरा कुकिंग का मूड ही नहीं था,मौली पर जिम्मेदारी सौंपी थी डिनर की और मैं ही उसके लिए मटर पुलाव,रायता और मलय के लिए स्टफ्ड पराठे बनाने में जुट गयी,ओह्ह,मूर्ख जनता फिर ठगी गयी,फिर मुझे मीठी मीठी बातों में फंसा लिया गया। मुझे गुस्सा आ गया,कहा,”मैं तुम लोगों से बहुत नाराज हूँ,कोई मेरी हेल्प नहीं करता,बस,सबसे डायलॉग मरवा लो,मर जाउंगी काम करते करते,तुम लोग बस लाइफ एन्जॉय करो। ”

मयंक  ने मुझे रोमांटिक नजरों से देखते हुए कहा,”मेरी रीनू हम लोगों से गुस्सा हो ही नहीं सकती,अभी तो यह टेस्टी पुलाव खाने दो,अचानक मुझे याद आ गया,एक बार ऑफिस में कपिल पुलाव लाया था,इतना बेकार था,सारे चावल के दाने चिपके हुए थे,और एक आज तुम्हारा बनाया हुआ पुलाव,देखो,कैसे खिला खिला है  एक एक दाना ,वाह,खाना बनाना कोई तुमसे सीखे,सच बताऊँ,जो भी बनाती हो,शानदार  होता है,वाह,एक्सीलेंट।”

बस,हूँ तो एक नारी ही न,तारीफ़ सुनकर सब भूल गयी,दिल किया,अपनी  जान निसार कर दूँ सब पर,इतराते हुए पूछ बैठी,कल क्या खाओगे?क्या बनाऊं ?”

मलय ने मौका नहीं छोड़ा,फरमाइश सबसे पहले की,”मॉम,छोले भठूरे। ”

”ओके,बनाउंगी। ”  

फिर मौली कह बैठी,”मॉम,मेरी हेल्प तो नहीं चाहिए होगी न?कल मेरी कई वर्कशॉप्स हैं दिन भर। ”

मेरा मुँह तो उतरा,फिर एक सयाने ने सब संभाल लिया,मलय ने कहा,”मैँ करवा सकता हूँ हेल्प,पर लंच टाइम में,तब तक आप मेरी हेल्प का वेट कर पाओगी,मॉम ?”

मैंने थोड़ा झींकते हुए कहा,मुझे किसी से कोई उम्मीद ही नहीं है कि मुझे हेल्प मिलेगी,ये कोरोना टाइम मेरी जान लेकर ही रहेगा,कोरोना से भले ही बच जाऊं,ये काम मुझे मार डालेगें।बस, तुम लोग सुबह लैपटॉप खोल लिया करो,बीच बीच में सोशल मीडिया पर घूम लिया करो,दोस्तों से बातें कर लिया करो,बस,यही करते हो तुम लोग। ”

इतने में दूसरे सयाने ने माहौल में बातों की जादू की छड़ी घुमाने की कोशिश की,मयंक बोले,”तुम बहुत दिन से नयी वाशिंग मशीन लेने के लिए कह रही थी न,आजकल सेल चल रही है,मैंने देख ली है,चलो,तुम्हे दिखाता हूँ ,आओ,लैपटॉप लाता हूँ ,” कहकर मयंक उठे,बच्चे भी नौटंकी करने लगे,कहा.मॉम ,देखो,पापा कितना ध्यान रखते हैं न,आपके लिए नयी वाशिंग मशीन आ रही है। ”

मैँ क्या कहती,मुझे तो ऐसे ही घुमा दिया जाता है जैसे कि आजकल जनता किसी भी बात पर अपना हक़ जताने की कोशिश करे और उसे कोई झुनझुना हर बार पकड़ा दिया जाए,मैँ आजकल इन्ही झुनझुनों में घूमती  रहती हूँ ,वाशिंग मशीन का आर्डर दे दिया गया,आजकल कहीं बाहर तो निकल ही रहे हैं तो सब कुछ ऑनलाइन ही तो आ रहा है,बस काम करते रहो,कहीं आना जाना नहीं,मेरे फ़्रस्ट्रेशन की कोई सीमा नहीं है आजकल,कब आशाबाई आएगी,कब मैँ चैन की सांस लूंगी, गुस्सा और तब बढ़ जाता है जब मैँ कहती हूँ कि आशाबाई को बुला लेते हैं,तीनों एक सुर में कहते हैं,कि अरे,बिलकुल सेफ नहीं है उसे बुलाना,तुम हमें बताओ किस काम में उसकी हेल्प चाहिए ,मैँ बताती हूँ तो सब गायब,ये आजकल मेरी हालत मुझे तभी तो मूर्ख जनता की तरह लगती है कि जैसे ही आवाज उठाती हूँ,झुनझुने पकड़ा दिए जाते हैं।तीनो ऐसे सयाने हैं कि घर के काम नहीं करने,बस,मौली तो मुँह बिसूर कर कहती है,मॉम!कहाँ आदत है,इतने काम !”

काम न करने पड़ें,इसके लिए सारे पैंतरे आजमाए जा रहे हैं,वाशिंग मशीन आ गयी,सबको लगा कि मैँ अब कुछ दिन तो उसमे लगी रहूंगी,खुश रहूंगी,पर कितने दिन!काम थोड़े ही कम हो गए मेरे ! एक दिन रात को मैंने अत्यंत गंभीर स्वर में कहा ,”कल सुबह उठते ही मुझे तुम तीनों से जरुरी बात करनी है। ”

स्वर की गंभीरता पर तीनो चौंके ,क्या हुआ?अभी बता दो। ”

”परेशान हो चुकी हूँ,सुबह ही बात करेंगें,मैँ कोई नौकर थोड़े ही हूँ कि दिन रात बस काम ही करती रहूं ”कहकर मैँ पैर पटकते हुए सोने चली गयी,अभी दस ही बजे थे,पर आज मैँ बहुत थक गयी थी।

मुझे आहट मिली कि तीनो बच्चों के रूम में ही बैठ गए हैं,मैंने सोच लिया था कि कल मैँ  तीनों को कोई काम न करने पर बुरी तरह  डांटूंगी,लड़ूंगी,चिल्लाऊंगी,हद होती है कामचोरी की और मैँ फिर जल्दी सो भी गयी, सुबह उठी तो भी मुझे रात का अपना गुस्सा और शिकायतें याद थीं,बेड पर लेटे लेटे सोचा कि आज बताती हूँ सबको,कोई हेल्प नहीं करेगा तो मैं अकेले भी नहीं करने वाली सारे काम,हद्द होती है,सेल्फिश लोग ! तीनो अभी सोये हुए थे,मैंने जैसे ही लिविंग रूम में पैर रखा,मेरी नजर कार्नर के शेल्फ पर रखी अपनी माँ की फोटो पर पड़ी,मेरी आँखें चमक उठी,पास में जाकर फोटो को निहारती रह गयी,ओह्ह्ह,किसने रखी  यह मेरी प्यारी माँ की इतनी सुंदर फोटो यहाँ पर ! मैं फोटो देखती रही,यह इन लोगों ने लगायी है रात में,मेरी अलमारी में रहती है ये,बेचारे वहां से कैसे निकाल कर लाये होंगें कि आहट से मेरी आँख भी नहीं खुली। मैंने फ्रेश होकर अपनी माँ को फोन मिला दिया और बताया कि रात को उनकी फोटो कैसे तीनों ने सरप्राइज में लगा दी है। माँ को बहुत ख़ुशी हुई,तीनो को खूब प्यार और आशीर्वाद कहती रहीं,मैं सब भूल अब माँ  से  इन तीनों की तारीफ़ क्यों किये जा रही थी,मुझे एहसास ही नहीं हुआ। मैं चाय पी ही रही थी कि तीनों उठे,मैंने उन्हें थैंक्स कहा,वे मुस्कुराते हुए फ्रेश होकर अपने काम में बिजी हो गए। ब्रेकफास्ट मैंने उन तीनो की पसंद का ही बनाया जिसमे मुझे एक्स्ट्रा टाइम लगा तो मुझे फिर अपने पर गुस्सा आने लगा,मेरा ध्यान फिर इस बात पर गया कि फिर मुझे रात में नाराज देख कर मां की फोटो का एक झुनझुना पकड़ा दिया गया है,अभी बताती हूँ सबको,चालाक लोग!कैसे मेरा गुस्सा शांत किया,कितने तेज हैं सब ,बताती हूँ अभी,मैंने सीरियस आवाज़ में कहा,”आओ सब,जरा बात करनी है मुझे। ”

तीनों ने आते हुए एक दूसरे को देख कर इशारे किये,मेरी आँखों से कुछ छुपा नहीं रहा,फिर मौली और मलय को मैंने मयंक को कुछ इशारा करते हुए देखा,मुझे पता है कि मेरे गुस्से से बचते हैं तीनों,क्योकि वैसे तो मुझे जल्दी गुस्सा नहीं आता पर जब आता है तो मैं काफी मूड खराब करती हूँ। हम चारों बैठ गए,मैंने रूखी आवाज में कहा,सब सामने ही रखा है,खुद ले लो,मेहमान तो हो नहीं कोई कि परोस परोस कर सबकी प्लेट लगाऊं,और मुझे तुम लोगों से यह कहना है कि अब से —–

मयंक ने मेरी बात पूरी नहीं होने दी,बहुत भावुक होकर कहा,”नहीं,पहले मुझे बोलने दो,रीनू,हम तीनों ने सोचा है कि हम हर बार कुछ भी खाने से पहले इतनी मेहनत करके हमें खिलाने वाले को,तुम्हे,थैंक्स कहा करेंगें ,थैंक यू ,रीनू,कितना करती हो तुम हम सबके लिए ! बिना किसी की हेल्प के इतने काम करना आसान नहीं है। वी लव यू ,रीनू। ”

”थैंक यू,मॉम,”बच्चों ने भी इतने प्यार से कहा कि मैं रोते रोते रुकी।मन में आया,मैं ही ओवर रिएक्ट तो नहीं कर रही थी,बेचारे खाने से पहले मुझे थैंक्स बोल रहे है,किसके घर में यह सब होता है,ओह्ह्ह,कितने प्यारे हैं तीनों। देखते ही देखते मैं उन सबको प्यार से हर चीज सर्व कर रही थी,मेरी जुबान से शहद टपक रहा था,मुझे फिर लच्छेदार बातों का एक झुनझुना पकड़ा दिया गया था,इसका एहसास मुझे बाद में फिर हुआ। मूर्ख जनता सी मैं एक बार फिर ठगी गयी थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *