कहानी:साँझ की वो उजास-आरती पांड्या

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Sanjh ki wo ujas

साँझ की वो उजास

  घर की छत पर जाड़े की धूप सेंकते हुए विनय बाबू ने पत्नी को पुकार कर जल्दी से ऊपर आने को कहा तो सुषमा धोती के पल्ले से हाथ पोंछती और जल्दी जल्दी सीढ़ियाँ चढ़ती हुई आकर चारपाई पर धम्म से बैठ गई और अपनी तेज़ साँसों को सहेजते हुए झुंझला कर बोली ,” कौनसी आफत आगई थी जो पुकार पुकार कर हमारा तरकारी काटना दुश्वार कर दिया l” पत्नी की चढ़ी हुई त्योरियाँ देख कर विनय बाबू ने खीसे निपोरते हुए कहा ,” इतना गुस्सा क्यों हो रही हो ? अकेले धूप सेंकने में मजा नहीं आरहा था तो तुम्हें आवाज़ दे दी कि तनिक तुम भी आकर सुस्ता लो धूप में l जब देखो तब काम में ही लगी रहती हो l”

   पति के मनुहार भरे स्वर से सुषमा का गुस्सा पिघलने लगा तो एक गहरी सांस लेकर बोली , “हमारी तकदीर में सुस्ताना लिखा ही कहाँ है जो धूप सेकें और आराम करें l” पत्नी की आवाज़ में झलकती थकान से परेशान विनय वर्मा ने अपनी कुर्सी सुषमा के पास खींचते हुए धीरे से कहा , “सुषमा तुमसे  कितनी बार कहा है कि कोई महरी रख लो ,अब तुम्हारी उम्र दिनभर घर के कामों में लगे रहने की नहीं है l तुम्हें आराम की ज़रूरत है l”

पति की तरफ एक तुच्छ दृष्टि डालते हुए सुषमा ने जवाब दिया , “ तो हमें कौनसा शौक है दिनभर झाड़ू पोंछा करने का ! अब कोई ढंग की कामवाली मिले तभी तो रखेंगे ना l” पति देव ने अपनी गहरी नज़र से पत्नी के जवाब को तौलते हुए कहा कि मुहल्ले में सभी के घरों में तो महरियाँ काम करने आती हैं फिर  उन्हीं में से किसी को अपने घर में भी काम पर रखने में क्या दिक्कत है ? अपने घरेलू निर्णयों में  पति की ज़रूरत से ज़्यादा दखलंदाज़ी देख कर सुषमा ने जवाब दिया कि घर के मामलों में अपने  बचकाने सुझाव देकर समय बर्बाद करने की कोशिश विनय को नहीं करनी चाहिए , क्योंकि उसे इन  महरियों के बारे में कुछ मालूम नहीं है l सब चालाक और कामचोर हैं और साथ ही नज़र बचते ही घर का सामान भी गायब कर देती हैं l विनय ने फिर भी पत्नी को समझाने की अपनी कोशिश नहीं छोड़ी और कामवाली बाई को रखने पर ज़ोर देते रहे तो परेशान होकर सुषमा झटके से उठी और धढ़धढ़ करती हुई नीचे उतर गई l  

    विनय शर्मा एक अवकाशप्राप्त प्रोफेसर हैं और सुषमा भी हाल ही में एक स्कूल की प्रधानाचार्या के पद से रिटायर हुई हैं और अब समाज सेवा के काम में अपना खाली समय व्यतीत करती हैं l ये लोग लखनऊ की एक नई कालोनी में अपना मकान बनवाकर वहाँ बस गए हैं और अपने चढ़ते बुढ़ापे का आनंद ले रहे हैं l शर्मा दंपत्ति की दो बेटियाँ और एक बेटा है जो कि अपने अपने परिवारों के साथ दूसरे शहरों में रहते हैं l बेटियाँ कई बार आग्रह कर चुकी हैं कि लखनऊ छोड़ कर वो दोनों अपनी बेटियों के साथ आकर रहें मगर अपना घर छोड़ कर लड़कियों के घर में रहना एक आम भारतीय माता पिता की तरह ही विनय और सुषमा को भी पसंद नहीं है l ‘ यहाँ अकेले पड़े हुए हो , अपने बेटे और बहू के पास जाकर क्यों नहीं रहते हो ? बहू से बनती नहीं है क्या ?’ विनय के कई मित्रों ने जब यह पूछा तो विनय ने साफ कह दिया कि उनकी पत्नी और वो अपने बच्चों पर आश्रित होकर रहना पसंद नहीं करते हैं इस लिए अपने घर में अपने ढंग से एक स्वतंत्र जीवन जीते हैं l उनकी इस स्पष्टवादिता के बाद बाकी सभी के मुंह बंद हो गए लेकिन बेटा सागर और बहू सपना अक्सर ही उन दोनों से मुंबई आकर उनके साथ रहने का आग्रह करते रहते थे l साथ ही अपनी परेशानी का भी बखान करते थे कि कैसे उन दोनों को अपने साल भर के बेटे विवान को पड़ौसियों के पास छोड़ कर काम पर जाना पड़ता है क्योंकि कोई अच्छी और ईमानदार आया वहाँ नहीं मिल रही है l अगर मम्मी जी मुंबई आजाएंगी तो विवान की ठीक से देखभाल होजाएगी l अपने एकलौते पोते के कष्ट को सुनकर विनय की इच्छा हुई कि वो बेटे की बात मान कर लखनऊ से अपना नाता तोड़ कर मुंबई वासी हो जाएँ मगर सुषमा ने यह कह कर जाने से इंकार कर दिया कि मुंबई में विवान की आया बन कर रहना उसे मंजूर नहीं है l अगर बेटे और बहू से बच्चा नहीं पाला जारहा है तो उसे यहाँ लखनऊ में हमारे पास छोड़ दें , हम उसे खूब प्यार से पालेंगे , लेकिन हम अपना घर और अपनी पहचान छोड़ कर किसी के आश्रित नहीं होंगे l विनय को पत्नी की ज़िद उस समय अच्छी नहीं लगी थी पर बाद में जब अपने कई मित्रों को अपने बच्चों के घर पर उनके आश्रित होकर और उनकी इच्छानुसार रहते देखा तब  विनय को अपनी आज़ाद ज़िंदगी बहुत प्यारी लगने लगी थी और उन्होने अपनी पत्नी के निर्णय को मन ही मन सराहा था l

    इस नए इलाके में आकर रहने के साथ ही आसपास के लोगों से नए संबंध भी जुडने लगे और वक्त अच्छा कटने लगा पर कभी कभी सुषमा को घर का सूनापन खलने लगता और उसका मन चाहता कि मुंबई जाकर विवान के बचपन का और उसकी शैतानियों का पूरा आनंद उठाए लेकिन अपनी स्वतंत्र जीवनशैली को छोड़ कर बेटे के घर जाकर रहना भी उसे मंजूर नहीं था l सब कुछ होते हुए भी घर का खालीपन कभी कभी काटने को आता था l जब तक नौकरी थी तब तक समय का पता ही नहीं चलता था लेकिन अवकाश प्राप्ति के बाद से समय जैसे काटे नहीं कटता है इसीलिए विनय के लाख कहने पर भी बहाने बहाने से नौकरानी रखने के उसके सुझाव को वो टाल जाती है और घर के कामों में व्यस्त रहकर मन को बहलाने की कोशिश करती रहती है l

      मगर अब अक्सर काम करते करते सुषमा को थकान होने लगती है और कई बार चीज़ें हाथ से गिर पड़ती हैं या कई बार गॅस चूल्हा जलता हुआ छूट जाता है l एक दिन ऐसे ही रसोई की सफाई करते हुए जब सुषमा का पैर फिसल गया तब उसने तय किया कि इससे पहले कि शरीर की कोई हड्डी पसली टूटे अब उसे अपनी मदद के लिए नौकरानी रख ही लेनी चाहिए और उसी शाम को मुहल्ले के बगीचे में घूमते हुए उसने अपनी कुछ परिचित महिलाओं से किसी अच्छी महरी को अपने यहाँ भेजने का आग्रह कर के नौकरानी रखने के अपने निश्चय को दृढ़ कर लिया l

अगले ही दिन से काम करने वालियों का सुषमा के घर पर आना शुरू हो गया मगर सुषमा को सभी में कुछ ना कुछ कमी नज़र आती रही l कोई बच्ची थी तो कोई ज़्यादा उम्र की थी , कोई फैशन की पुतली थी तो किसी के कपड़ों से बदबू आरही थी l

 बहरहाल महरी खोज अभियान असफल रहा और सुषमा घर के सारे काम पहले की तरह ही करती रही l तभी एक दिन दोपहर में कालोनी के चौकीदार पुताली राम ने दरवाजे की घंटी बजाई तो दरवाजा खोलने पर पुताली के साथ एक सरल , सौम्य और साफ सुथरी युवा लड़की को देख कर सुषमा ने तुरंत उसका नाम पूछा तो पुताली राम ने मेमसाब से तारीफ बटोरने के इरादे से जवाब दिया ,” मेमसाब , जब से आप ने कहा था हम तबही से आपके लिए अच्छी नौकरानी ढूंढ रहे थे l आज यह पार्वती बोली कि इसको काम चाहिए तो हम इसे यहाँ ले आए मेडम जी l  बहुत सीधी और ईमानदार है ये , हमारे जुगौली गाँव में ही रहती है l इसका आदमी ….. “ पुताली के व्याख्यान को बीच में ही रोक कर सुषमा ने पुताली से जाकर अपनी ड्यूटी करने को कहा और पार्वती को घर के अंदर लेजाकर उससे उसके बारे में पूछने लगी, “ कहीं और भी काम करती हो ?” पार्वती ने जवाब नहीं दिया बस नहीं में अपना सिर हिला दिया l “तो क्या पहली बार काम ढूंढ रही हो ?” सुषमा ने पूछा तो इस बार भी पार्वती ने हँडिया सा सिर हिला कर हाँ कह दिया l सुषमा ने फौरन पूछा , “ गूंगी हो क्या ?” “नहीं मम्मी जी” पार्वती ने हड़बड़ाकर जवाब दिया तो सुषमा ने उसकी पीठ पर प्यार से थपकी मारते हुए , बगैर डरे अपने बारे में बताने को कहा और फिर तो जैसे पार्वती अपनी कहानी बताने के लिए उतावली सी हो गई और कहने लगी कि उसे तो बचपन से ही पढ़ने का और पढ़ कर टीचर बनने का शौक था , लेकिन उसके बाबू की इतनी आमदनी नहीं थी कि उसको पढ़ा सकें तो छोटी उम्र में ही एक अधेड़ शराबी का कर्ज़ उतारने के लिए उसके साथ पार्वती की शादी कर दी l उसका आदमी मजदूरी करता है और जो भी कमाता है उससे शराब पीकर नशे में घर आता है तो उसे और उसके बच्चों को खूब पीटता है l

  सुषमा ने हैरानी से उस बच्ची सी लगने वाली स्त्री से पूछा , “ कितने बच्चे हैं तेरे ?” पार्वती कुछ देर तक चुप रही जैसे अंदर ही अंदर कुछ रोकने की कोशिश कर रही हो , मगर फिर सिसकी लेकर बोली , “मम्मी जी , एक लड़का और एक लड़की थे l लड़का छह साल का था l पिछले साल नहीं रहा l अब पाँच बरस की एक बिटिया है पूजा , पता नहीं वो भी कब तक जिंदा रहेगी l” और बात खत्म करके पार्वती मुंह दबा कर रोने लगी l सुषमा ने उसे अपने कलेजे से लगा कर चुप कराया और उससे उसके बेटे के बारे में पूछने लगी तब  पार्वती ने बताया कि उसके बेटे को पीलिया हो गया था l बहुत झाड़ फूंक करवाया लेकिन वो नहीं बचा l सुषमा ने हैरानी से पूछा , “ अरे ! झाड फूँक क्यों करवाया ? डाक्टर को दिखाना चाहिए था l पार्वती रोते रोते बोली कि उसने तो अस्पताल ले चलने को कहा था पर उसके आदमी ने कहा कि अंग्रेजी इलाज करवाने के लिए उसके पास पैसा नहीं है l पल्ले से आँसू पोंछते हुए पार्वती कहने लगी , “ मम्मी जी , जिस दिन हमारा करन खतम हुआ उसी दिन से हमने तय कर लिया था कि अब हम भी काम करेंगे और अपनी पूजा को कभी मरने नहीं देंगे मगर पहले हमारा आदमी हमें  काम करने के लिये मना करता रहा इसी लिए इत्ते दिन निकल गए l पर अब हमने तय कर लिया है कि कुछ भी हो जाए लेकिन हम काम जरूर करेंगे और अपने पैरों पर खड़े होंगे l” सुषमा ने पार्वती के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे दिलासा देने की कोशिश करी और कहा कि अब से पूजा की देखभाल की ज़िम्मेदारी सिर्फ पार्वती की नहीं है बल्कि आज के बाद पूजा की हर ज़रूरत का ख्याल सुषमा रखेगी l पार्वती भौचक्की सी अपनी मम्मी जी को देखने लगी और फिर उनके पैरों पर गिर पड़ी , तब सुषमा ने उसे उठाया और  उसे लेकर किचन में गई और डिब्बे में से निकाल कर रोटी सब्जी खाने को दी तो पार्वती संकोच से बोली , “ मम्मी जी यह रोटी हम घर ले जाएंगे , पूजा को खिला देंगे l”  

  सुषमा के मन में इस लड़की को देख कर ना जाने कहाँ का प्यार उमड़ रहा था कि झट से डिब्बे में रखी सारी रोटियाँ और सब्जी निकाल कर एक कागज़ में लपेट कर उसे देते हुए बोली , “ यह घर लेजाना पर पहले तू थोड़ा सा खाले और सुन , कल सुबह से काम पर आजाना और साथ में पूजा को भी ले आना , तू जब तक काम करेगी , वो मेरे साथ खेलती रहेगी l’’ पार्वती को मम्मी जी से इतने अपनेपन की आशा नहीं थी इसलिए जाने से पहले झुक कर उसने सुषमा के पैर छूए और बोली , मम्मी जी , आज मालूम पड़ा कि माँ कैसी होती है l” पार्वती चली गई तो सुषमा उसके बारे में सोच  सोच कर ही दुखी होती रही l

   अगले दिन सुबह आदतन  झाड़ू उठा कर सुषमा ने जैसे ही घर की सफ़ाई शुरू करनी चाही कि दरवाजे की घंटी बजी l तब याद आया कि आज से तो पार्वती काम पर आने वाली है l दरवाजा खोला तो पार्वती ने हाथ जोड़ कर नमस्ते करी और तभी उसकी साड़ी पकड़ कर खड़ी चार पाँच साल की एक प्यारी मगर बहुत क्मज़ोर बच्ची ने झुक कर सुषमा के पैर छू लिए l सुषमा ने पूजा को उठाकर कलेजे से लगा लिया और फिर माँ और बेटी के साथ अंदर आकर  पूजा को एक दो खिलौने खेलने के लिये पकड़ा कर वो पार्वती को घर का काम समझाने लगी l तब तक बातचीत की आवाज़ सुन कर विनय भी वहाँ आगए और पूजा को देख कर उससे बातें करने लगे l

   अब तो रोज़ सुबह पार्वती और पूजा के आते ही पार्वती अपने काम में लग जाती और शर्मा दंपत्ति पूजा के साथ बतियाने और  खेलने में मगन हो जाते l विनय अपने बच्चों के सम्हाल कर रखे हुए खिलौने निकाल कर पूजा को देते और उसे कहानियाँ सुनाते तो सुषमा उसे कुछ ना कुछ खाने पीने को देती रहती l इतनी देख भाल का नतीजा जल्दी ही दिखाई देने लगा और पूजा के चेहरे पर सेहत की रौनक नज़र आने लगी l एक दिन सुषमा ने शर्मा जी से कह कर अपनी सिलाई मशीन स्टोर रूम से निकलवाई और बैठ कर पूजा के लिए नई फ़्राकें सिल डालीं l एक बच्चे के घर में आ जाने से मानो उस बूढ़ी दंपत्ति को नई ज़िंदगी मिल गई थी l पार्वती अपने भाग्य को सराहती थी जो उसे इतने अच्छे लोगों का सहारा मिल गया था लेकिन आस पड़ौस के लोग एक नौकरानी की बेटी के लिए शर्मा दंपत्ति के इस अनोखे प्रेम को देख कर बहुत हैरान थे l जितने मुंह उतनी बातें होने लगी थीं l कोई कहता कि इस नौकरानी ने बुड्ढे बुढिया पर कोई काला जादू करवा दिया है l किसी दिन इनका रुपिया पैसा लेकर भाग जाएगी तब पछताएंगे l कुछ लोगों ने तो विनय शर्मा पर ही चरित्रहीन होने का आरोप लगा डाला l लेकिन इन सारी अफवाहों से बेखबर विनय और सुषमा अपनी नन्ही सी गुड़िया के साथ मगन रहते थे l

  कुछ महीने बीत गए और अब तो रोज़ घर जाते समय पूजा का रोना और सुषमा के पीछे छिप कर घर वापिस ना जाने की ज़िद करना शुरू हो गया था l इच्छा तो उन दोनों की भी होती थी कि पूजा को अपने पास रोक लें लेकिन पराये बच्चे को किस अधिकार से रोकें ! विनय ने सुझाव दिया कि पार्वती को अपने घर के पीछे बने आउट हाउस में रहने को बुला लें मगर पार्वती बता चुकी थी कि उसका पति नशे में गाली गलौच और मार पीट करता है इसलिए सुषमा ने इस सुझाव को नहीं माना और पूजा यथावत अपनी माँ के साथ आती और उसी के साथ वापिस चली जाती l

   एक दिन सुबह जब पार्वती और पूजा आईं तो पूजा के सिर पर मैली सी पट्टी बंधी हुई देख कर सुषमा ने पूजा को प्यार से झिड़क कर कहा , “ तेरी शैतानी बहुत बढ़ती जारही है पूजा l अब यह चोट कहाँ से लगाकर आई है ?” पार्वती झट से बोली कि खेलते हुए सीढ़ी से गिर पड़ी तभी सिर फट गया लेकिन पूजा ने सुषमा के कान में फुसफुसाकर बताया ,”मम्मी जी , अम्मा झूठ कह रही हैं , हम गिरे नहीं थे बाबू ने लकड़ी से मारा था हमको और अम्मा दूनों को l” सुषमा ने यह सुना तो पार्वती के पास जाकर उसके हाथ और पैर देखने लगी और उनपर पड़े नील और चोट के निशान सच्चाई ज़ाहिर कर  गए l तब सुषमा ने तय कर लिया कि वो अब उस राक्षस के साथ इन माँ और बेटी को नहीं रहने देगी l उसने पार्वती से कहा कि आज ही वो अपना सामान लेकर उनके यहाँ रहने के लिए आजाए l पार्वती यह सुन कर सोच में पड़ गई फिर बोली कि उसका आदमी यहाँ आकर रोज़ तमाशा करेगा और कालोनी में फिजूल की बातें बनेंगी l “ मम्मी जी, हम जैसे भी वहाँ गुजारा कर लेंगे पर आप पूजा को अपने पास रख लीजिये नहीं तो वो जनावर नसे में हमारी बिटिया को किसी दिन मार ही डालेगा l”

   और इस तरह पूजा अब शर्मा दंपत्ति के साथ उनके घर में रहने लगी और पार्वती ने उसी कालोनी में कुछ और काम भी पकड़ लिए , जिससे उसका अधिक समय अब वहीं बीतने लगा l बीच बीच में जब भी समय मिलता तो वो अपनी बेटी से मिलने आजाती थी l दिन आराम से बीत रहे थे और अब तो पूजा पास के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने भी जाने लगी थी l तभी एक दिन मुंबई से सागर का फोन आया कि वो कुछ दिनों के लिए सपरिवार लखनऊ आरहा है l यह खबर मिलते ही विनय और सुषमा के मन  दुगनी स्फूर्ति और खुशी से भर गए और वो दोनों  पार्वती के साथ मिल कर घर की सफाई करने में जुट गए और एक एक चीज़ को चमकाना शुरू कर दिया l सुषमा ने बाज़ार जाकर विवान के लिए ढेरों खिलौने और कपड़े खरीदे और किचन में सागर और सपना की पसंद की हरेक चीज़ लाकर भर दी ताकि वे दोनों जो भी खाने की  फरमाइश करें वह सामान सुषमा के किचन में तैयार मिले l पार्वती से सुषमा ने सागर का बंद कमरा खुलवा कर उसकी अच्छी तरह सफाई करवाई और बच्चों के आने वाले दिन उनके कमरे में ताज़े फूलों को गुलदानों में सजाकर रख दिया l पूजा बड़ी हैरानी से घर में चल रहे सफाई अभियान को देख रही थी, आखिर पूछ ही बैठी , “ मम्मी जी , कौन आरहा है ?”  सुषमा ने उसे बताया की उनके बेटे बहू और पोता विवान कुछ दिनों के लिये आरहे हैं l सुषमा ने उसे यह भी समझाया कि विवान पूजा का छोटा भाई है इसलिए उसके साथ पूजा को मिलजुल कर और प्यार से रहना होगा l पूजा ने यह सुन कर बड़ी ज़ोर से गर्दन हिला कर बात मनाने की हामी भरी लेकिन पार्वती ने मम्मी जी से अनुरोध किया कि जब तक भैया जी और भाभी जी यहाँ रहेंगे तब तक वो पूजा को अपने घर ले जाया करेगी क्योंकि हो सकता है कि उन लोगों को पूजा का इस तरह यहाँ रहना अच्छा ना लगे l

   विनय को पार्वती की बात सही लगी और उन्होने अपनी सहमति इस विषय में जाता भी दी ,लेकिन सुषमा का सोचना कुछ और था l “ विनय, यह घर और ज़िंदगी हमारी है , इसे हम अपनी इच्छा के अनुसार जीएंगे l हमारे बच्चों को हमारे लाइफ स्टाइल के बारे में बोलने या उसमें दखलंदाज़ी करने का कोई हक नहीं  है l” “सुषमा” विनय ने अपनी बात रखते हुए समझाया , “ बच्चे थोड़े दिनों के लिए आरहे हैं तो उनका दिल क्यों दुखाना चाहती हो ? हमारी सोच अलग है , हम पूजा को अपनी बच्ची की तरह मानते हैं पर सागर और खास करके सपना को यह अच्छा नहीं लगेगा कि अपनी नौकरानी की बेटी को और अपने पोते को हम एक दर्जा दें l पार्वती की बात मान लो और पूजा को थोड़े दिनों तक उसके घर ही जाने दो, ताकि हमारे बच्चों के मन में कोई फांस ना चुभे l”

  मगर सुषमा अपने फैसले पर डटी रही और बोली , “ मैंने अपने बेटे को जैसी शिक्षा दी है उसके अनुसार उसको पूजा का यहाँ रहना बुरा नहीं लग सकता है और रही बात बहू की तो अगर उसे कोई परेशानी हुई तो मैं उसे समझा दूँगी , तुम परेशान मत हो l पूजा यहाँ  हम सबके साथ ही रहेगी l”

 शर्मा जी के बच्चे मुंबई से आए तो घर में खुशियों की चहल पहल मच गई l सुषमा ने अपने बच्चों की खातिर और आवभगत में कोई कसर नहीं रखी l अपने पोते को गोद में लेकर और पूजा का हाथ पकड़ कर सारे मुहल्ले का चक्कर लगा कर सबसे विहान को मिलवा कर लाई और फिर पूरा परिवार बतियाने बैठ गया l विनय ने पार्वती और पूजा को अपने बेटे बहू से मिलवाया और बताया कि पूजा उन्हीं लोगों के साथ रहती है तो यह सुन कर सागर बहुत खुश हुआ और बोला कि अच्छा है इस बच्ची के रहने से उन दोनों का अकेला पन दूर होगया होगा पर सपना तुरंत बोली , “ पापा , सागर और मैं तो आप लोगों को कब से कह रहे हैं कि हमारे पास आकर रहिए पर आप लोग लखनऊ छोड़ना ही नहीं चाहते हैं और अब अकेलेपब को दूर करने के लिए अपना पोता होते हुए भी एक नौकरानी की बेटी को पाल रहे हैं l”

   वहाँ आते हुए सुषमा के कानों में बहू की बात पड़ गई तो उसने पास आकर कहा ,” सपना  , मैं जानती हूँ कि तुम लोग हमें बहुत दिनों से अपने पास आकर रहने को कह रहे हो मगर बात यह है बेटा कि इस उम्र में अब अपना शहर और अपनी शख्सियत छोड़ना बहुत मुश्किल लगता है l रही बात इस बच्ची पूजा की , तो इसे हमने अपने पास इंसानियत के नाते रखा था क्योंकि इसका शराबी बाप एक  तो इसकी देखभाल ठीक से नहीं करता था और ऊपर से मारपीट भी करता था l यह बच्ची अपने घर जाने से डरती थी l पर इस  नौकरानी की बच्ची से हमें इतना प्यार हो गया की हमने इसे अपने पास ही रख लिया  l कम से कम इस बहाने एक गरीब बच्ची की अच्छी परवरिश हो जाएगी तो बड़ी होकर यह अपने पैरों पर खड़ी हो सकेगी l इसकी  माँ की तरह इसे भी इसका बाप किसी अधेड़ शराबी के गले नहीं बांध सकेगा l बेटा , तुम विवान और पूजा को एक ही तराजू में तौलने की गलती मत करो l विवान हमारे दिल का टुकड़ा है और पूजा हमारे बुढ़ापे की साँझ को रौशनी देने वाली उजास है l”

  अपनी सास की बात का कोई जवाब सपना ने नहीं दिया और वहाँ से उठ कर चली गई l सब कुछ सामान्य ढंग से चलता रहा l फिर एक दिन किसी खिलौने को लेकर विवान और पूजा में झगड़ा हो गया और पूजा खिलौना विवान के हाथ  से छीन कर भागने लगी तो विवान ने उसे धक्का देकर गिरा दिया l पूजा रोती हुई मम्मी जी के पास पंहुच गई और विवान रोता हुआ जाकर अपने दादाजी की गोद में बैठ कर पूजा की शिकायत करने लगा l पूजा की शिकायत सुन कर सुषमा ने पहले तो उसे समझाया और उसे विवान की बड़ी बहन बता कर उसे अपने छोटे भाई से प्यार का व्यवहार करने को कहा, उसके बाद दोनों बच्चों की दोस्ती करवाने के इरादे से वो पूजा को लेकर विवान के पास आई l विवान अपनी दुश्मन के साथ अपनी दादी को देख कर ज़ोर ज़ोर से रोकर पूजा की शिकायत करने लगा तो सुषमा ने पहले तो उसे चुप करवाया फिर उसके गालों पर हल्के थपकी देकर पूजा को धक्का देकर गिराने के लिए प्यार से झिड़का तो वीवान ने फुकका फाड़ कर रोना शुरू कर दिया और बेटे के रोने की आवाज़ सुन कर सपना दौड़ती चली आई l अपनी माँ को देखते ही सिसक सिसक कर विवान ने अपनी दादी और पूजा की शिकायत करना शुरू कर दिया जिसे सुनते ही सपना की त्योरियां चढ़ गईं और उसने अपनी सास को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया l सुषमा और विनय ने बहू को सच्चाई बतानी चाहिए पर उसने एक नहीं सुनी और बोली कि उसने उनके घर आकर ही बहुत बड़ी गलती करी है l विनय ने बहू को समझाने की लाख कोशिश करी लेकिन सपना उन दोनों के ऊपर नौकरानी की बेटी को अपने पोते से ज़्यादा अहमियत देने का दोषारोपण करती हुई अपने बेटे को गोद में उठा कर पैर पटकती हुई वहाँ से चली गई और शर्मा दंपत्ति बात का बतंगड़ बनते देख सिर पकड़ कर बैठ गए l

    अपने कमरे में जाकर सपना ने उस दो कौड़ी की नौकरानी की वजह से मम्मी जी द्वारा विवान को डांटने का किस्सा जब सागर को सुनाया तो सागर ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा , “ सपना , मेरी मम्मी कभी किसी के बीच में भेद भाव नहीं करती हैं और जिसे तुम डांटना कह रही हो वह मम्मी का समझाने का तरीका है l वो विवान को समझाना चाहती होंगी कि बच्चों को आपस में हिलमिल कर खेलना चाहिए l जब मैं और मेरी बहनें कभी आपस में लड़ते थे तो मम्मी इसी तरह हमारी गलती का एहसास करवाती थीं l तुमने अपने बेटे से पूछा कि उसने क्या किया था जो मम्मी ने उसे डांटा ?” सपना ने मुंह बना कर जवाब दिया कि अपने बेटे के रोने से ही वो समझ गई थी कि उसने कुछ नहीं किया था l तभी विवान बड़ी मासूमियत से बोला , “ नईं मम्मा , जब वो मुझे टोय नहीं दे रही थी तो मैंने उसे एक ज़ोर का धक्का मारा था और जब वो रोने लगी तो मैंने टोय उससे छीन लिया l” और अपनी बात कहने के बाद अपनी जीत की खुशी जताते हुए विवान हंसने लगा l

  अपने बेटे के इकबाले जुर्म से आहत सपना सिर झुका कर बैठ गई तब सागर ने उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा , “ सपना , अगर तुमने वहाँ दोनों बच्चों का पक्ष सुन लिया होता तो बात बिगड़ती नहीं और वैसे भी हम लोग यहाँ थोड़े दिनों के लिए आए हैं और वो बच्ची यहाँ उनके पास हर वक्त रहती है और शायद उसकी वजह से ही मम्मी पापा को अकेलेपन का एहसास नहीं होता है तो फिर हम क्यों उनकी ज़िंदगी में अशांति फैलाएँ l”

पति की बात सुनते ही सपना ने फिर अपना राग अलापना शुरू कर दिया कि ‘लखनऊ छोड़ कर यह लोग मुंबई क्यों नहीं आजाते हैं ? वहाँ आकर अपने पोते के साथ रहेंगे तो किसी पराये बच्चे को पास रखने की ज़रूरत ही नहीं होगी l’ सागर ने फिर पत्नी को शांति से समझाया कि ‘मम्मी और पापा की व्यक्तिगत ज़िंदगी में अपनी दखलंदाज़ी करने का हम लोगों को कोई अधिकार नहीं है l’ “वैसे भी तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे सास और ससुर तुम्हारी प्राइवेसी में दखल देने के लिए तुम्हारे घर में आकर नहीं रहना चाहते हैं l” सागर ने पत्नी को छेड़ते हुए कहा तो सपना की इच्छा हुई कि अपने पति को अपनी सफाई में कुछ तीखी बातें सुना दे पर ना जाने क्यों रुक गई और बोली , “ आई एम सॉरी सागर l पता नहीं क्यों मैं उस वक्त विवान का रोना सुन कर इतनी सेल्फ़िश हो गई कि मम्मी और पापा की कोई बात सुनी ही नहीं l तुम ठीक कह रहे हो उनकी पर्सनल लाइफ में हमे इंटर फेयर नहीं करना चाहिए l मैं अभी जाकर उनदोनों से माफी मांगती हूँ l”

  एक पल भी गवाएँ बगैर सपना सीधी अपने सास और ससुर के पास पंहुची और दोनों से माफी मांगते हुए बोली , “ पापा मम्मी , प्लीज़ मुझे माफ कर दीजिये l अपने बेटे के मोह में बिना सोचे समझे ना जाने आपसे क्या क्या कह दिया l” सुषमा ने बहू को गले से लगाते हुए जवाब दिया , “ बेटा , मैं तुम्हारी जगाह होती तो शायद मैं भी ऐसे ही रियाक्ट करती l हमारे लिए यही काफी है कि तुम्हें इस बात का अहसास हो गया कि हम गलत नहीं हैं l” सारे शोर शराबे के बीच बहुत देर से दुबक कर खड़ी   पूजा भी झट से सपना के पास आकर उसके हाथ पर टहोका देकर बोली , “ बिबान को समझा देना कि हम  उसकी बड़ी बहन हैं इसलिए वो हमसे कभी लड़ाई ना करे l” तनाव भरे माहौल में सभी पूजा की इस मासूम सी फरमाइश पर हंस पड़े और सपना ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे वचन दिया कि उसका छोटा भाई कभी भी उसके साथ लड़ाई नहीं करेगा l यह सुनते ही खुश होकर पूजा विवान को आवाज़ देती हुई वहाँ से भाग कर उसके कमरे की तरफ चली गई l और सपना भी उसके पीछे पीछे अपने कमरे में आ गई और विवान को पूजा के साथ प्यार से खेलने की ताकीद करने लगी l

  दिन बीतने लगे और सागर वगैरा के वापिस मुंबई जाने का दिन भी आ पन्हुचा l बच्चों के जाने की बात सोच सोच कर सुषमा की आँखें बात बात में बरसने लगीं तो सागर ने अपने मम्मी और पापा से  भी साथ चलने को कहा जिस पर विनय ने जल्दी ही मुंबई आने का वचन दिया l तब सपना ने तुरंत पूजा को भी अपने साथ मुंबई लेकर आने का न्योता देते हुए कहा , “ मम्मी जी , मुझे अब समझ में आगया है कि विवान अगर आपके दिल की धड़कन  है तो पूजा आपकी आँखों की रौशनी है इसलिए अपनी इस रौशनी के साथ ही हमारे यहाँ आईयेगा l”   

लेखिका – आरती पांड्या

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