तू सुमन सा खिल सदा – दिव्या त्रिवेदी

0
Untitled-2 copy

“तू सुमन सा खिल सदा”

है मार्ग गर दुष्कर तो क्या,
है सम्मुख शिखर तो क्या।
हो काल गर प्रतिकूल भी
तू सुमन सा खिल सदा।।

न ठाह इक सुख की मिले
हो यात्रा अनवरत तो क्या
न हार कभी भी हौसला,
तू सुमन सा खिल सदा।।

न हो सके चिरायु तो क्या
हो वक्त चाहे अल्प तेरा।
जा, फैल इक सुवास सा,
तू सुमन सा खिल सदा।।

माना कि तेरा हक है दूना
मिले अगर ऊना तो क्या।
स्वल्प में भी बन बड़ा,
तू सुमन सा खिल सदा।।

धर अधर मुस्कान इक,
रख अलग पहचान इक।
प्रतिकूल में अनुकूल सा,
तू सुमन सा खिल सदा।।

दिव्या त्रिवेदी
16/04/2020
ये मुक्तकलोक साहित्यिक समूह के लिए लिखी गई थी, जो चित्र आधारित प्रतियोगिता थी ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *