धारावाहिक उपन्यास भाग 17 : सुलगते ज्वालामुखी

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धारावाहिक उपन्यास

सुलगते ज्वालामुखी

लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश

प्रेम ऐसी भावना है जो व्यक्ति में अथाह उर्जा का संचार करती है जिससे उस व्यक्ति में असीम शक्ति व साहस का भंडार स्वतः ही प्रस्फुटित होता है और मान अपमान जाति विराबदी की भी समस्त बेड़िया° ध्वस्त हो जाती हैं। प्रेमी हृदय में सिर्फ प्रेम की उद्दाम तरंगे होती है जिन्हें समझना व अनुभव करना सामान्य जन के लिए लगभग असम्भव होता है।

डा. रोहित अब विजया को सुन्दर व भाव भीने उपहार देने लगे। विजया भी इन उपहारों से खुश हो जाती। इस बार वैलेन्टाइन डे पर डा.रोहित विजया के लिए चेन व लाकेट लेकर आये जिस पर आइ लव यू लिखा था।

डा. रोहित ने विजया के गलेक में लाकेट पहनाया तो उनके होठ विजया आइ लव यू गुनगुना उठे। विजया बोली- ‘‘मेरे पास भी आपके लिए कुछ हैं।’’

‘‘ये तो मेरा सौभाग्य है।’’ रोहित ने कहा।

विजया ने पर्स से लाल डिब्बी निकाली जिसमें लाल सफेद नगों से दिल बना हुआ था।

‘‘क्या मैं इसे पहना सकती हू° आपको’’? विजया ने पूछा तो डा. रोहित ने दाहिने हाथ की अनामिका उंगली विजया की ओर बढ़ा दी।
विजया ने उन्हें अंगूठी पहना दी और नजरे नीची कर ली। डा. रोहित ने उसे गले लगाया और बोले-

‘‘मुझसे शादी करोगी?’’

प्रत्युत्तर में विजया मुस्करा दी।

डा. रोहित के प्रेम को सम्बल मिल गया था और उनके हृदय की उड़ान स्काईलार्क को भी पछाड़ रही थी।

डा. विजया से छूटते ही रोहित डा. सुनीता के पास पहु°चे और सारा किस्सा एक सा°स में कह डाला फिर सुनीता के पैरों पर झुकते हुए बोले- ‘‘आन्टी! अब आप सब के आशीर्वाद की आवश्यकता है।’’

‘‘जिन्दगी के फैसलों में इतनी जल्दीबाजी ठीक नहीं! विजया को इतना समय और दो रोहित कि वह स्वयं आकर मुझे इस रिश्ते के लिए मनाए’’ डा. सुनीता ने कहा।

‘‘ठीक है मैं स्वयं भी विजया पर कोई निर्णय थोपना नहीं चाहता हू°।’’ रोहित ने कहा।

‘‘मैं ये खबर मेरी मम्मी डा. चित्रा से भी बता दू° तब तुमसे बात करू°गी। अभी तुम जाकर अपने घरवालों से भी बात कर लो।’’ सुनीता ने कहा।

डा. सुनीता ने अपनी मा° डा. चित्रा से विजया के प्रेम प्रसंग के विषय में बताया। वे सुनीता को गले लगाते हुए बोली-

‘‘बहुत दिनों बाद मेरी झोली में कोई खुशी तो आई। मैं जल्द से जल्द विजया की शादी अपनी आ°खों से देखना चाहती हू°।’’

‘‘मम्मी! आपका सपना जल्दी पूरा होगा प्लीज मुझ पर विश्वास करिये।’’ सुनीता ने समझाया।

जिस तरह रात के बाद दिन होता है, ठीक वैसे ही डा. सुनीता का टूटा हुआ विश्वास डा. रोहित व विजया के प्रेम के रूप में दृढ़ आकार ले रहा था। फिर भी वे निःशब्द सी विजया के प्रस्ताव की प्रतीक्षा कर रहीं थीं। लगभग दो हफ्ते ही बीते थे कि विजया रात्रि इमरजेन्सी ड्यूटी से लौटते ही सीधा सुनीता के कमरे में गई। डा. सुनीता सोने की तैयारी में थी तभी विजया उनके बेड पर बैठ गई और प्यार से बोली- ‘‘मा°! इतनी जल्दी आप सोती नहीं हैं! कहीं आपकी तबियत में गड़बड़ तो नहीं?’’

सुनीता विजया का सिर सहलाने लगी।

‘‘क्या बात है बेटा! आखिर मम्मा पर इतना प्यार आने की कोई तो वजह होगी? अब सस्पेंस खत्म कर! और बता क्या बात है?’’ सुनीता ने कहा तो विजया मा° की गोद में सिर रखे लेटी रही फिर बोली-

‘‘माम! मैं और रोहित पिछले दो वर्षों से प्रेम करते हैं और शादी करना चाहते हैं!’’

‘‘हम तेरे लिए रोहित से अच्छा दूल्हा ढूढ़ कर लायेंगे।’’

‘‘माम! डियर वह मेरे लिए जान दे देगा! मैं भी उसके बिना नहीं रह पाऊ°गी।’’ विजया ने कहा।

विजया के कातर नेत्र देख सुनीता ह°सते हुए बोलीं- ‘‘ठीक हैं! कल सुबह उसे चाय पर बुलालो मैं उससे बात करू°गी।’’

अगले दिन सुबह साढ़े आठ बजे डा. रोहित विजया की नानी डा.चित्रा व डा. सुनीता के साथ डाइनिंग टेबिल पर थे। डाइनिंग टेबिल आद्दाुनिक व पाश्चात्य व्यंजनों से सजी हुई थी। सुनीता ने डा. रोहित को प्लेट लगा कर दी फिर डा. चित्रा से उसका परिचय कराते हुए बोली-

‘‘मम्मी! ये डा. रोहित है विजया के क्लासमेट और दोस्त। ये विजया से शादी करना चाहते हैं। आप इनसे बात कर लीजिए और दोनों की मंगनी की तारीख भी तय कर दीजिए।’’

डा. रोहित विजया की नानी से पहले तो घबरा रहे थे। लेकिन जब डा. चित्रा ने उन्हें प्यार से अपने पास बैठाया तो वे आश्वस्त हुए।

‘‘बेटे अब तुम मेरे नवासे हो! अगले हफ्ते मैं तुम्हारी मंगनी एवं पन्द्रह दिनों के अन्दर तुम दोनों की शादी करा देना चाहती हू°!’’ चित्रा ने कहा।

‘‘जी नानी जी! रोहित ने चरण स्पर्श कर समर्थन किया क्या तुम्हारे मम्मी पापा इस रिश्ते के लिए तैयार हैं?’’ चित्रा ने पूछा।

‘‘मेरे माम डैड रोड एक्सीडेंट में गुजर गये थे तब मैं तीन साल का था। मुझे मेरी मौसी ने पाला है जो इलाहाबाद में रहती हैं’’, रोहित बोला।
‘‘फिर तुम उन्हें परसों ही आने के लिए फोन कर दो!’’ चित्रा ने कहा।

‘‘जी नानी जी! मेरी उनसे बात हो चुकी है और वे कल सुबह ही यहा° पहु°च रही हैं! मैं उन्हें आपसे मिलवाने लाऊ°गा!’’ ये रोहित थे।
डा. रोहित की मौसी प्रभादेवी से मिलकर चित्रा एवं विजया दोनों के ही चेहरे खिल उठे।

‘‘मैं कौशाम्बी प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाचार्या के पद से रिटायर हो चुकी हू°। आपकी तुलना में मेरा जीवन बेहद सादा व निम्न आर्थिक स्तर का हैं’’, प्रभादेवी ने कहा।

‘‘बेटी! पैसों से कोई बड़ा नहीं होता! इन्सान के कर्म उसे महान बनाते हैं! डा. रोहित हमें बता चुके हैं कि इसकी अच्छी परवरिश के लिए तुमने विवाह नहीं किया, अपने बच्चों का मोह नहीं किया। तुम्हारा ये त्याग बहुत बड़ा है बेटा!’’ चित्रा उन्हें समझा रही थी।

‘‘आन्टी! रोहित ही मेरा सर्वस्व हैं, इसकी खुशी में ही मेरी खुशी है!’’ प्रभा देवी ने कहा।
‘‘बेटी अब से तीन दिन बाद रविवार को मंगनी और अगले रविवार को दोनों की शादी का निश्चय किया है’’, डा. चित्रा ने कहा!

‘‘आन्टी! इतनी जल्दी सारा इन्तजाम करना मुश्किल होगा।’’ ये प्रभादेवी थीं।

‘‘प्रभा बेटा। आप जरा भी परेशान न हो! हम दोनों तरफ का सारा सामान और दूसरे बन्दोबस्त यहीं कर लेंगे’’ चित्रा ने कहा।

तीन दिन बाद बेहद सादे समारोह में डा. रोहित व डा. विजया की सगाई हो गई। डा. सुनीता, विजया व रोहित के घनिष्ठ मित्र ही इस समारोह में आमंत्रित थे।

डा. रोहित एवम् डा. विजया के साथ निम्न व उच्च आय वर्ग भी एकात्मता के सूत्र में ब°ध चुके थे। डा. सुनीता ने रोहित व विजया दोनों को हीरे की अ°गूठिया° पहनवाई। प्रभादेवी ने भी विजया को अपनी तरफ से सोने की अ°गूठी भेंट की।

‘‘जीवन में पहली बार दौलत की इतनी चकाचैंध देख कर मैं हैरान हू°। क्या तुम मेरे साथ सादगी पूर्ण जीवन बिता पाओगी?’’ रोहित ने विजया से पूछा।

‘‘ये सवाल अब बेमानी है। हम रिश्ते में ब°ध चुके हैं! प्लीज बी पाजिटिव! मैं तुम्हें चकाचैंध की आदत डलवा दू°गी!’’ विजया ने कहा।

प्रभादेवी इस रिश्ते से बेहद खुश थी किन्तु रोहित की बेचैनी व असमंजस उनकी समझ से बाहर था। विजया और उसकी दोस्तों के साथ प्रेमपगे ह°सी मजाक के साथ डिनर करके डा. रोहित अपनी मौसी प्रभा देवी के साथ घर आ गये।

क्रमशः

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