धारावाहिक उपन्यास भाग 02 : सुलगते ज्वालामुखी
धारावाहिक उपन्यास
सुलगते ज्वालामुखी
लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश
दशहरे की छुट्टिया° होने वाली थी, वेदान्त का पूरा गु्रप इकट्टा था जब वेदान्त ने कहा- ‘‘इस बार दशहरे की छुट्टियों में कला गा°व का प्रोग्राम बनाते हैं। सुना है बहुत अच्छा पिकनिक स्पाट हैं।’’
वेदान्त के इस प्रस्ताव का सबने समर्थन किया, किन्तु देशराज ने पूछा- ‘‘ये प्रस्ताव तो अच्छा है लेकिन हम वहा° तक जायेंगे कैसे?’’
इसका उत्तर सुनीता ने दिया- ‘‘वेदान्त, देशराज, सुनीता, यशोदा व मुशीरा के घर मेरे घर के आस पास ही है। अतः मैं इन लोगों को लेकर ठीक ग्यारह बजे अपनी गाड़ी से वहा° पहु°च जाऊ°गी।’’
मैं बस से पौंने ग्यारह बजे तक वहा° पहु°च जाऊ°गा इलियास ने कहा।
लखनऊ फैजाबाद रोड पर लखनऊ के एक किनारे स्थित कला गा°व वास्तव में भारतीय कला संस्कृति व संस्कार के अनोखे मिश्रण का सार्थक प्रयोग है। निश्चित समय पर सभी एक साथ वहा° पहु°चे तो सुनीता व मुशीरा ने सभी के टिकट लिए तब तक देशराज व वेदान्त कला गा°व के बाहरी दृश्यों के फोटोग्राफ व सेल्फी लेते रहे।
प्रवेश द्वार पर सभी आगन्तुकों के मस्तक पर रोली टीका लगा कर मृदंग व ढोल वाद्यों से सज्जित महिलाओं ने गुड़ के छोटे टुकड़े खिला कर व घड़े का शीतल जल पिला कर अतिथियों का स्वागत किया तो वेदान्त बोले ‘‘अब लग रहा है कि हम सचमुच किसी गा°व में आ गये हैं।’’
‘‘ये तो सिर्फ शुरुआत है पूरा गा°व तो देखिये पहले’’ फिर कुछ कहें। देशराज ने जोड़ा।
यदि प्रारम्भ अच्छा है तो आगे भी अच्छे अनुभव ही होंगे, इस बार सुनीता बोली।
थोड़ा आगे बढ़े तो बैल गाड़ी, हल बैल व गा°व की फूसनुमा छत का घर देख कर सभी अभिभूत हुए बिना न रह सके। झोपड़ीनुमा कक्ष में पड़ी दो चारपाइयों में से एक पर देशराज, वेदान्त, व इलियास बैठ गये तो दूसरी पर सुनीता, मुशीरा व यशोदा।
गुलाबी शलवार सूट और गुलाबी पिन से से ब°धे बालों में सुनीता गुलाबी परी सी लग रही थी और देशराज उसे कनखियों से एकटक देख रहे थे। मुशीरा खान भी नीले फ्रिलदार टाप व काली जीन्स में ब्यूटी क्वीन से कम नहीं लग रहीं थीं और वेदान्त की नजरे भी पल पल उसी पर टिक जातीं। बातों बातों में एम.एससी. के बाद की योजनाओं पर चर्चा चल पड़ी।
मैं तो एम.बी.बी.एस. ही करू°गी। मेरा बचपन से ही डाक्टर बनने का सपना है’’ सुनीता पाण्डे ने कहा। उसके माता पिता भी डाक्टर थे सपना तो अच्छा है किन्तु नीट व पी.एम.टी. निकालना ‘‘आसान नहीं हैं मुशीरा ने तर्क दिया।
‘‘देखेंगे यदि नहीं हुआ तो बहुत से डोनेशन वाले कालेज तो है ही।’’
लेकिन वे तो बहुत अधिक डोनेशन लेते हैं?
हा° यार। पर वो सब तो मम्मी पापा का हेडेक है वे लोग मैंनेज कर
लेंगे।
फिर तो तू लकी है यार।
तभी देशराज बोले ‘‘भई हमें तो सिविल सर्विसेज में ही ट्राइ करना है। देश तो नौकरशाह ही चलाते हैं?
सुनीता और बाकी सब देशराज के तेवर देख कर ह°स पड़े। वेदान्त बोले- ‘‘तुम सच कहते हो।’’
यशोदा भी चुप न रह सकी-‘‘मुझे टीचिंग लाइन पसन्द है पीएच.डी. करके कहीं भी प्रवक्ता हो जाऊ°गी बस! इतना ही भविष्य है अपना।’’
अब वेदान्त की बारी थी-‘‘मुझे तो छोटी बहन की शादी का खर्चा भी जुटाना है। डिग्री प्रवक्ता के साथ कोचिंग भी चलाऊ°गा।’’
इल्यिास जो इतनी देर से सबकी सुन रहे थे बोले- ‘‘अरे भाई कल की सोच में हम अपना आज क्यू° बरबाद करें, जो भी रास्ता मिलेगा उसी पर चल देंगे लेकिन अभी मेरे पेट में चूहे दौड़ रहे हैं और सामने चाय वाले की दुकान है। मैं उसे चाय के लिए बोल कर आता हू°।’’
यशोदा भी इलियास के साथ खड़े होते हुए बोली- ‘‘मैं भी चलती हू° तुम्हारे साथ।’’
चायवाला छः चाय व तीन प्लेट पकोड़े दे गया।
इधर उधर की बातों के साथ चाय पकोड़े खत्म हुए। फिर सबने कठपुतली नृत्य देखा तो वेदान्त बोले- ‘‘अरे वाह! लैला मंजनू, शीरी फरहाद, और सलमान ऐश्वर्या की नकल जितनी आकर्षक है उतनी ही मनोरंजक भी!’’
‘‘अभी तुमने सा°प नेवले की टक्कर तो देखी ही नहीं सुनीता ने कहा।
सा°प व नेवले की लड़ाई में दोनों के पैंतरे देख सुनीता व मुशीरा उछल उछल जातीं। कभी सा°प नेवले को पटकता तो कभी नेवला सा°प को। फिर सब लोग पारम्परिक लोक गीत सुनाने वाली महिलाओं के गीत सुन कर सीमेंटेड स्टेज पर गये। जहा° भोजपुरी और फिल्मी गीतों पर सभी खूब झूमें नाचे और अनेकों फोटों व सेल्फिया° भी लीं। अब तक ढाई बज चुके थे, इसीलिये सभी भोजन कक्ष में गये और पंगत में बैठ गये। यहा° आकर देशराज ने कहा- ‘‘पहलीबार शहर में ठेठ गा°व का आनन्द आ रहा है।’’
‘‘यहा° का खाना भी हमारे ग्रामीण परिवेश से मिलता जुलता है।’’ वेदान्त बोले।
भोजन समाप्त होने के बाद सुनीता कहने लगी ना भई! खाने का मजा ही अलग था। घी चुपड़ी चूल्हे की रोटी, तड़के वाली दाल, देशी छाछ, चटनी, भात और अन्त में कंडो पर पकी देशी खीर का मजा ही अलग था। इसके सामने तो फाइव स्टार भी बेकार है।’’
‘‘और बैल गाड़ी से पूरे कलागा°व की सैर भी नहीं भूलेगी!’’ यशोदा ने कहा।
वेदान्त, देशराज व इलियास तीन तीन कुल्हड़ मट्ठा पी गये। सुनीता मुशीरा व यशोदा ने तरह-तरह के पोज बना कर फोटो खिचवायें। अब तक शाम के पा°च बज चुके थे, इसलिए सब सुनीता की कार में वापसी के लिए बैठ गये और इलियास सबसे विदा ले कर बस के लिए चले गये।
सबको उनके घरों पर छोड़ते हुए सुनीता शाम छः बजे घर पहु°ची। घर में घुसते ही वह मा° चित्रा से लिपट गई। ‘‘सारी! मम्मी थोड़ा लेट हो गई हू°।’’ उसने कहा तो चित्रा उसे गले लगाते हुए बोलीं- ‘‘कोई बात नहीं बेटा! पिकनिक वगैरह में इतना लेट चलता हैं!’’
मा° का सन्तान के प्रति उदारमना होना स्वाभाविक है। डा. चित्रा पांडे ममतामयी जननी के साथ डाक्टर भी थी अतएव बेटी के लिए आधुनिक विस्तृत सोच से परिपूर्ण थी।
जीनत की दिनचर्या बेहद व्यस्त थी। सुबह सात से तीन बजे तक नर्सरी स्कूल में शिक्षण कार्य करती। शाम थोड़ी देर आराम करके माता के साथ घर का काम करवा कर रात्रि नौ से बारह बजे तक एम.ए.की परीक्षा की तैयारी करती। कभी-कभी समय निकाल कर मुशीरा व यशोदा को फोन भी कर लेती। जिससे सभी का हालचाल भी मालूम हो जाता।
मधुकर भारती देशराज के गहरे दोस्त थे। सजातीय होने के कारण अक्सर वे अकेले में ही एक दूसरे से खुल कर बातें करते। संयोग से उस दिन देशराज व मधुकर लेक्चर हाल में अकेले ही गपशप कर रहे थे। वे
दोनों खिड़की के पास बैठे थे और हाल की खिड़की की तरफ उनकी पीठ थी। उसी समय वेदान्त लाइब्र्रेरी से लौट रहे थे। उन्होंने देशराज को पीछे से पहचान लिया और जिज्ञासावश खिड़की के दरवाजे से सट कर खड़े हो गये। उन्होंने सुना कि देशराज कह रहे थे-
‘‘यार! मधुकर हमने सवर्णों की बहुत गुलामी की है। हमारे माता पिता पुरखों का इन लोगों ने तरह तरह से शोषण किया। लेकिन अब हमें इन पर हुकूमत करनी है। बाबा साहब आरक्षण के जरिये इसका रास्ता दे गये हैं।’’
‘‘हा° ये सच है कि हमारी सिधाई व अज्ञानता का ब्राह्माणों व ठाकुरों ने सदियों नाजायज फायदा उठाया है। लेकिन तू इतनी जल्दी तैश में न आया कर। मधुकर बोले ‘‘मगर क्यों? हम आपस में बात कर रहे हैं?’’ देशराज ने चिन्ता जताई।
‘‘वो इसलिए कि अगर वेदान्त को तेरे इरादों की जरा भी भनक लग गई तो न तो वो तुझे अपने नोट्स देगा और ना ही तुझे अपने साथ रखेगा।’’
इससे क्या हो जायेगा?
क्यों कि उसी के नोट्स से तेरे नम्बर आते है और उसी के राशन से तेरा पेट भरता है। आखिर वो तुम्हे अपना दोस्त भी तो मानता है, मधुकर ने देशराज को समझाया।
‘‘अरे भई पंडितों से हमारी दोस्ती कब से होने लगी?’’ देशराज ह°सते हुए बोले।
‘‘साथ-साथ रहते हों साथ में पढ़ाई करते हों और एक ही गा°व से हो तुम दोनों तो ये दोस्ती नहीं तो क्या है? मधुकर हैरान थे।
सुनो! वो मिश्रा और हम महार दोनों अपनी मजबूरी निभा रहे हैं! पहले का वक्त होता तो वह हमारा छुआ भी न खाता। लेकिन बाबा साहब
की दयादृष्टि से आज वे हमारे बराबर है तो कल हमसे नीचे पायदान पर होंगे, देशराज ने कहा। ‘तुम ऐसी बाते न सोचा करो’। ये मधुकर थे।
देशराज की बातें सुन कर वेदान्त के पैरों तले जमीन हिल गई। देशराज के मन में सवर्णों के लिए भरे हुए जहर की गहराई बेहिसाब थी। लेकिन इससे पहले कि देशराज व मधुकर पीछे घूम कर वेदान्त को देख पाते, वेदान्त वहा° से हट कर दूसरे लेक्चर हाल में चले गये।
वेदान्त के मस्तिष्क में देशराज के शब्द विद्युत करंट की तरह चुभ रहे थे। वेदान्त हैरान थे कि एक ही गा°व के विद्यालय में साथ-साथ पढ़ाई की, हमेशा जिसकी हर तरह से सहायता की बी.एस.सी. व एम.एससी में कमरे का किराया व राशन का पैसा कभी नहीं लिया। उसी के मन में इतना जहर सिर्फ मेरी जाति के कारण? क्यों? इसकी उन्हें स्वप्न में कल्पना तक न थी।
धीरे-धीरे वेदान्त अक्सर ही देशराज की टोह लेने लगे। जब भी वह मधुकर से घुलमिल कर बाते करते दिखते तो वेदान्त छिपकर उनकी बातें अवश्य सुनते। जल्दी ही वेदान्त ये समझ गये कि देशराज अति जातिवादी है एवं सवर्ण विरोधी भी हैं।
क्रमशः