नरेश शांडिल्य के ग़ज़ल संग्रह ‘अपनी तलाश में’ की समीक्षा:शायरा चाँदनी पाण्डेय
ग़ज़ल संग्रह ‘अपनी तलाश में’
- अपनी तलाश में (ग़ज़ल संग्रह )
- लेखक : नरेश शांडिल्य
- पृष्ठ संख्या : 112
- मूल्य : ₹220/=
- अयन प्रकाशन, महरौली, दिल्ली
- समीक्षिका : शायरा चाँदनी पाण्डेय (कानपुर)
शायरी की शोभा और मेयार को महफूज़ रखती ग़ज़लें
नरेश शांडिल्य !!! यूँ तो हिंदी साहित्य का जाना पहचाना नाम और चिर परिचित चेहरा रहा लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता उनके अंदर छिपी लेखन की बहुमुखी प्रतिभा ने उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को उर्दू अदब का ग़ज़लकार भी बना दिया।
यूँ तो उनके बारे में लिखने के लिए एक पूरी किताब कम पड़ जाए, उनके गरिमामय व्यक्तित्व का आंकलन समय-समय पे आपके मार्फ़त लिखी तमाम किताबों से होता रहा और हम सब उनकी साहित्यिक विधाओं से दो चार होते रहे। नुक्कड़ नाटक , गीत , दोहे ग़ज़लें, कविताएँ, छंद उनकी पसंदीदा विधाएँ रहीं । इस से पेश्तर भी उनकी ग़ज़ल पर पहली किताब “मैं सदियों की प्यास” आई और आहिस्ता-आहिस्ता शायरी से उनकी मुहब्बत दिन ब दिन बढ़ती चली गयी।
आइये यहॉं बात करते हैं उनकी ग़ज़ल की नई किताब “अपनी तलाश में ” की
ग़ज़ल की तमाम ख़ासियत और ख़ुशबु को समेटे ” अपनी तलाश में ” अपने आप में ग़ज़लों का एक अदभुत संग्रह है। और उनकी अदबी हैसियत का दर्पण भी, जो उनको तमाम किताबों की सोहबत से मयस्सर हुआ । आपके हौसलों की नज़्र आपके ही चार मिसरे ……….कि …………
पिंजरे में क़ैद है तो है पिंजरे में पर तो रख !!यूँ आसमाँ की राह में अपना सफ़र तो रख !!वो ताज ख़ुद ही चल के तेरे सर पे आएगा काँधों पे हौसलों से ज़रा अपना सर तो रख !!!!!
उनकी शायरी से ही उनकी शाइस्तगी, उनका अंदाज़े गुफ्तगू और ग़ज़ल के लिए उनकी दीवानगी का परिचय प्राप्त होता है ।
इस किताब के द्वारा दौरे-जदीद में वो एक ऐसे शायर के रूप में उभरे हैं जहाँ एक और उन्होंने फ़िक़्र की अदायगी बरक़रार रक्खी तो दूसरी ओर प्रतीकों और बिम्बों का बखूबी इस्तेमाल करके शायरी की शोभा और मेयार को भी महफूज़ रक्खा है । हिंदी भाषा और उर्दू ज़बान पर उनका मुकम्मल इख़्तियार होने की वजह से उन्होंने हिंदी भाषा को पूरी तरज़ीह देते वक़्त यह भी ख़याल किया कि ग़ज़ल अपना ज़बानी वजूद क़ायम रख सके।
ताज़ा तरीन दमघोटू माहौल पर जब उनकी क़लम सिसकती है तो मौजुदा मंज़रे आम का दृश्य लिख बैठती है।
क्या ख़बर थी अबकि ऐसे भी बहारें आएँगी !!कोयलें सिसकी भरेंगी कोपलें मुरझायेंगी !!
कहीं और आपके अंदर का शायर मौजूदा हालात की मुख़ालफ़त करते हुए इंक़लाबी शेर कहता है ।
अजब गुस्सा है सड़कों पर, तने हैं हाथ परचम से कोई मुँह पर सियासत के तमाचा जड़ने वाला है।
तलाशो कुछ नए सोते, निकालो कुछ नए नालेवो अरसे से रुका पानी यक़ीनन सड़ने वाला है ।
उनके अश्आर में बला की सादगी है । छोटी बह्र में कही हुई ग़ज़लें और उनके अश्आर अपने अंदर समन्दर की अथाह गहराई समेटे हुए हैं।
मुहब्बत के मुआमले में उनकी वफ़ापरस्ती उनकी शायरी की मार्फ़त छलक ही उठती है । बात चाहे महबूबा से इश्क़ की गुफ्तगू की हो या ईश्वरीय सत्ता की इबादत की हो, उनके पाक़ तसव्वुरात उनकी शायरी में झलक कर उनकी वफ़ादारी का परचम लहराते हैं।
न लैला सी न शीरी सी न ही तू हीर जैसी है ।जो सदियों से है इस दिल में, तू इस तस्वीर जैसी है। किसी के वास्ते कुछ हो न हो बेशक़ तेरी क़ीमत मगर मेरे लिए तो तू किसी जागीर जैसी है ।
नरेश शांडिल्य जी के व्यक्तित्व की कई ख़ूबियों को हम उनकी ग़ज़लों में पाते हैं।शायर अपने बनाये हुए शायरी के माहौल का ख़ुद प्रतिनिधि होता है । वो मुहब्बत का लिहाज़ रखते हुए भी अपने स्वाभिमान के खेमे से बाहर नहीं आते और एक अना परस्त इंसान की तरह नए नए तरीक़ों से अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराते हैं। एक सच्चे शायर की तरह वो भी अपने स्वभाव को छुपा नहीं सके और उनका स्वाभिमानी होना कई जगह उभर कर आया है ।
अना ही मर गयी अपनी तो फिर हम में बचेगा क्या ?अना से ही जो रीता हो वो इस दुनिया को देगा क्या ?ग़रीबी को फ़क़ीरी की तरह ओढ़ा है ख़ुद हमने ये तुम जानो कि अब हमसे तुम्हें आख़िर मिलेगा क्या ?………………………………………
तुम हमे देर से मिले वर्ना !!!हमको मिलते न ये सिले वर्ना !!!
हाज़िर है ये सर मेरा !!जो करना है कर मेरा !!दर-दर भटका तो जाना तेरा दर है दर मेरा !!
मैं उनकी सच्चे दिल से की गयी पक्की शायरी पे तहे दिल से मुबारकबाद देती हूँ । ज़बान-ओ-बयान की सादगी और साफ़गोई के कारण अवाम-ओ-ख़्वास दोनों हलक़ों में उनकी शायरी सराही जायेगी !!!
मैं सदके जाऊँ उसकी भी हिम्मत पे बार बार मैंने सुना शरीक़ है वो भी तलाश में !!!!
मौजूदा दौर में नरेश शांडिल्य जी जितने कामयाब और शौहरतयाफ़्ता दोहाकार हैं, आने वाले दौर में वो उस से भी ज़्यादा पुख़्तगी के साथ ग़ज़ल की दुनिया में अपना नाम रोशन करेंगे ।
मेरी तमाम दुआएँ और नेक ख़्वाहिशें उनके अदबी सफ़र के साथ हैं और दुआ है कि उनकी ग़ज़लों की किताबों और मेयार में और ज़ियादा इज़ाफ़ा होता रहे जिस से हम सब जल्द से जल्द रूबरू होते रहें ।
आमीन !!!
- शायरा चाँदनी पाण्डेय (कानपुर )