शायर: काशिफ़ अदीब मकनपुरी
हक़ीक़त क्या है ये समझा चुकी है
हक़ीक़त क्या है ये समझा चुकी है
तेरी तस्वीर सब बतला चुकी है
तुम्हारी बात से ये लग रहा है
हमारी बात तुम तक आ चुकी है
बहुत था नाज़ जिस पर बाग़बाँ को
कली वो शाख़ पर मुरझा चुकी है
मोहब्बत कुछ नये करतब दिखाकर
क़यामत ही क़यामत ढा चुकी है
कोई चमका है तारा आस्मां पर
किसी की ताबनाकी जा चुकी है
तुम्हारा झूट पकड़ा जा चुका है
हक़ीक़त आईना दिखला चुकी है
हमारे वास्ते क्यूँ हो परीशाँ
हमारी फ़िक्र मन्ज़िल पा चुकी है
किसी के पांव की गर्दिश ही काशिफ़
किसी को बेड़ियां पहना चुकी है
कौन अच्छा है या बुरा जाने
कौन अच्छा है या बुरा जाने
ये मोअम्मा तो बस ख़ुदा जाने
हम तो आपस में बस झगड़ते थे
हम में ये प्यार कब हुआ जाने
हर घड़ी उसके साथ हो लेकिन
उसके बारे में कोई क्या जाने
लोग तेरी हसीन आखों को
दिल की दुनिया का रास्ता जाने
फूल को शाख़ से जुदा करके
तुमको क्या मिल गया ख़ुदा जाने
तू हसीं है या है तिरी तस्वीर
ये हक़ीक़त तो आईना जाने
कब मेरे दिल में घर है कर बैठा
तेरी यादों का क़ाफ़िला जाने
तेरे बारे में सब पता है मुझे
ख़ुदको तू जितना पारसा जाने
भूल की नफ़रतों के पैकर को
हम मोहब्बत का देवता जाने
ये भी इक इत्तफ़ाक है काशिफ़
कब हुआ उनसे राब्ता जाने
बनने वाली ही थी नफ़रत की कहानी दुनिया
बनने वाली ही थी नफ़रत की कहानी दुनिया
दौड़ कर अहले मोहब्बत ने बचा ली दुनिया
इसमें बस आप ही बस आप नज़र आते हैं
मैं ने दुनिया से अलग अपनी बनाई दुनिया
आपने अपना बताया है मुझे जिस दिन से
दे रही है मुझे आ आके बधाई दुनिया
यूँ ही करते नहीं सब लोग मोहब्बत मुझ से
प्यार का धन है लुटाया तो कमाई दुनिया
ये है गिरगिट की तरह रंग बदलती अपना
लाल पीली कभी नीली कभी धानी दुनिया
नफ़रतों का है हर इक सम्त अन्धेरा फिर भी
प्यार से देखो नज़र आयेगी प्यारी दुनिया
कभी तन्हाई में हंसता हूं कभी रोता हूं
तेरी यादों की हसीं एक बना ली दुनिया
तू मुझे भूल न पायेगी क़यामत तक भी
दे के जाऊंगा तुझे ऐसी निशानी दुनिया
माँ के कदमों को जो चूमा तो लगा ये काशिफ़
माँ के कदमों में सिमट आई है सारी दुनिया
सच है कि इस बहार के आगे ये कुछ नहीं
सच है कि इस बहार के आगे ये कुछ नहीं
लेकिन हमारे प्यार के आगे ये कुछ नहीं
मऐ का ख़ुमार ठीक है अपनी जगह मगर
तेरे दिये ख़ुमार के आगे ये कुछ नहीं
शाहों के ताज वाक़ई बेहद हसीन हैं
लेकिन जमाले यार के आगे ये कुछ नहीं
चाहे जहाँ करे न करे मुझ पे एतबार
इक तेरे एतबार के आगे ये कुछ नहीं
मजबूरियाँ हमारी हों रुसवाई का सबब
हाँ तेरे इख़्तियार के आगे ये कुछ नहीं
कलियां बहार फूल चमन और वादियां
महबूब के दयार के आगे ये कुछ नहीं
जितना भी अपने सर को उठायें ये नफ़रतें
काशिफ़ अदीब प्यार के आगे ये कुछ नहीं
न किसी भी ग़म के बदले न किसी ख़ुशी के बदले
न किसी भी ग़म के बदले न किसी ख़ुशी के बदले
तुझे ज़िन्दगी मिली है मेरी ज़िन्दगी के बदले
मेरी जुर्रतों की कोई नहीं क़द्र करने वाला
तुझे मिल रहे हैं तमग़े तेरी बुज़दिली के बदले
तुझे आज तक भी शायद ये ख़बर नहीं कि मैं ने
है चुकाई कितनी क़ीमत तेरी दोस्ती के बदले
मेरी आरज़ू का हासिल तेरे लब की मुस्कुराहट
हैं क़ुबूल मुझको सब ग़म तेरी इक ख़ुशी के बदले
मुझे फ़िक्र है जज़ा की न ही ख़ौफ़ है सज़ा का
रहे मुझसे बस तू राज़ी मेरी बन्दगी के बदले
वो लगा रहे हैं मुझ पर जो तरह तरह की तोहमत
लिये जा रहे हैं मुझसे किसी दुश्मनी के बदले
तेरा फ़र्ज़ है ये काशिफ़ तू वक़ार उसका रक्खे
तुझे लोग जानते हैं तेरी शायरी के बदले
ऐ मेरे यार वक़्त लगता है
ऐ मेरे यार वक़्त लगता है
प्यार है प्यार वक़्त लगता है
प्यार में सब्र भी ज़ुरुरी है
होगा इज़हार वक़्त लगता है
दिल में ऐसे जगह नहीं मिलती
मेरे सरकार वक़्त लगता है
रंग अपना दिखायेंगे इक दिन
गुल हों या ख़ार वक़्त लगता है
उनकी ज़ुल्फ़ों कि जाल में मुजरिम
हो गिरफ़्तार वक़्त लगता है
तेरे पीछे चलेगा ख़ुश हो कर
सारा संसार वक़्त लगता है
पारसा ऐसे कैसे हो जाए
इक गुनहगार वक़्त लगता है
मुझसे मिलने को मेरे ख़्वाबों में
तुझको हर बार वक़्त लगता है
लोग जिसकी मिसाल देते रहें
हो वो किरदार वक़्त लगता है
क्या हुआ क्यूँ उलझ गये काशिफ़
होंगे अशआर वक़्त लगता है
तितली कँवल गुलाब की रंगत में पड़ गये
तितली कंवल गुलाब की रंगत में पड़ गये
जब से हुज़ूर आपकी सोहबत में पड़ गये
तुमको तो होशियार समझते थे हम मगर
तुमको ये क्या हुआ कि मोहब्बत में पड़ गये
हम इसलिये भी और तरक़्क़ी न कर सके
भोले से चेहरे देखे मुरव्वत में पड़ गये
ख़ुद हमने अपना साथ बहुत दूर तक दिया
आख़िर में हम भी अपनी ज़ुरुरत में पड़ गये
तुमने ज़रा सी बात को जब तूल कर दिया
जितने भी अक़्लमन्द थे हैरत में पड़ गये
जंगल में कोई आदमी आया ज़ुरूर है
क्यूँ जानवर भी बुग़्ज़ो अदावत में पड़ गये
उस दिन से अपने वारे न्यारे ही हो गये
जिस दिन से तेरे कूचऐ उल्फ़त में पड़ गये
इज़हारे इश्क़ जब से किया है ज़बान से
काशिफ़ अदीब तुम भी क़यामत में पड़ गये