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कहानीकार: सविता चड्ढा

मैं पिछले 10 साल से इस अस्पताल में नर्स हूं । कई मरीज आए गए लेकिन ये रात का मरीज मोहन… मैं उसके बारे में सोचना नहीं चाहती लेकिन उसकी सोच एक पल के लिए भी मुझसे अलग नहीं हुई । मैं उसकी तरफ से ध्यान हटाना चाहती हूं क्योंकि मेरी ड्यूटी खत्म होने वाली है। मैं घर जाने की तैयारी करने लगती हूं तभी वार्ड बॉय आकर कहता है “डेनियल सिस्टर 10 मिनट बाद आएंगी, आप 10 मिनट के बाद ही जाना ।”
मैं 10 मिनट व्यतीत करने के लिए आपसे ही दो बातें कर लेती हूं।
जब भी कोई मरीज छुट्टी लेकर अस्पताल से जाता है और अगले दिन उसके बिस्तर पर दूसरा मरीज देखती हूं तो मन को एक पल अजीब सा लगता है । लेकिन दूसरे ही क्षण स्वयं को संभालती हूं और नए मरीज को गुड मॉर्निंग कह कर काम शुरू कर देती हूं । मेरी ड्यूटी सुबह 8:00 बजे शुरू होती है और शाम 8:00 बजे तक रहती है। इस बीच मुझे सभी काम करने होते हैं ,मरीज को दवा देना, उसका ब्लड प्रेशर चेक करना, ताप देखना, इंजेक्शन देना, बोतल बदलना ,सुबह स्पंज करना , कभी-कभी मरीज के कपड़े भी बदलना और उससे जुड़े सारे काम । घर में मुझे कितना काम करना होता है इसके बारे में क्या बताना। पूरे घर को संभालती हूं ।अभी मेरी शादी नहीं हुई लेकिन जिम्मेदारी जो उठा ले ,बस उसी की होकर रह जाती है। मैंने भी जोश में आकर, एक बार अपने घर की जिम्मेदारी उठा ली, बस तबसे वृद्ध माता-पिता और एक छोटे भाई की देखभाल का सारा काम मुझे ही करना होता है। भाई, भाभी को लेकर घर से चला गया है। अस्पताल में स्वचालित मशीनों को देख कभी-कभी वह मुझे अपना ही रूप लगती हैं जिन्हें अपनी मर्जी से नहीं, दूसरों की मर्जी से चलना होता है । मशीन की तरह घर से अस्पताल ,अस्पताल से घर , क्या यही एक युवा लड़की का जीवन होता है ?
मैं इस अस्पताल के क्वार्टर में नहीं रह सकती। इसके कई कारण है । सिस्टर डेनियल अभी तक नहीं आई । सुबह की ड्यूटी के बाद मुझे 9:00 बजे तक घर पहुंचना होता है क्योंकि मेरी ड्यूटी 8:00 बजे खत्म हो जाती है लेकिन कोई आए तब जाऊं ना ‌ । अब किससे झगड़ा करो, दूसरों को खुद ही सोचना चाहिए । घर समय से ना पहुंचुं तो मां-बाप ऐसे घूरते हैं जैसे मैं कोई बहुत बड़ी गलती करके आई हूं।वास्तव में उनका कोई कसूर नहीं, हमारे पड़ोसी ही ऐसे हैं ।अगर मैं 9:00 बजे तक पहुंच जाऊं तो ठीक, नहीं तो लोगों की निगाहें खाड़ी युद्ध में चल रही मिसाइलों से कम नहीं होती । मैं उन्हें भी झेलती हूं , बहुत लोग झेलते हैं शायद तभी उनकी जीत होती है ,पता नहीं जीत होती है या वह हार होती है। अब सुबह के 8:30 बज गए हैं और मेरी जगह आने वाली डेनियल सिस्टर अभी तक नहीं आई। अभी कोई आएगा और कहेगा 10 मिनट और प्लीज, तो मुझे रुकना पड़ेगा ।
कमरा नंबर 225 यानी कि मोहन के कमरे से लगातार घंटी बज रही है ,सोचती हूं जाऊं या नहीं। रात को इसी लड़के ने मुझे बहुत परेशान किया था । मेरे सारे कपड़े खून से भर गए थे, जब इसने मेरे ही सामने एक गिलास तोड़कर, अपने सर और चेहरे को बुरी तरह जख्मी कर लिया था । उस वक्त रात का 1:00 बजा था । यहां रात और दिन में कोई विशेष अंतर नहीं रहता । मरीज वैसे ही आते जाते हैं। उनके रिश्तेदार पार्कों में बिछे रहते हैं । कुछ पटरी पर ही सो जाते हैं ।तीसरी और चौथी मंजिल पर होटलनुमा कमरे हैं, जहां टेलीविजन , फ्रिज से लेकर सारी सुख सुविधाएं हैं ।वहां के लोगों के साथ डाक्टर और स्टाफ का रवैया नरम होता है । पैसा है ही ऐसी चीज। लोग अपने आपको ,अपने ईमान को , पैसों के आगे इतना गिरा लेते हैं कि उन्हें कुछ और दिखाई ही नहीं देता। गिर जाने के बाद मनुष्य की आंखें जमीन में धंसी रहती है। मैंने देखा है गरीब और बेसहारा अस्पताल में कैसे दुख पाते हैं । कई कई घंटे जमीन पर तड़पते रहते हैं । मैं माथा पकड़ कर बैठ जाती हूं । मुझे अपने तीनों चाचा याद आ गए जिन्होंने अपने बड़े भाई यानी मेरे पिताजी की जीवन भर की कमाई ,प्यार दिखाकर उनसे हड़प ली थी और फिर कभी उनकी सुध नहीं ली। अगर मेरी जगह भी लड़का होता तो पता नहीं मेरे पिताजी की क्या दुर्दशा होती । कभी-कभी ऐसा लगता है कि मर्दों को पैसे का लोभ कुछ अधिक ही होता है। मेरी दो चाची, अपने-अपने पतियों की परवाह ना कर हमारे घर आती जाती रहती हैं और अपना दोष ना होते हुए भी मेरे पिता से माफी मांगती है। मेरी सबसे छोटी चाची थोड़ी अलग स्वभाव की हैं। विश्व के सभी लोग अलग-अलग तरह के होते हैं , पर कुछ बातें सब में सामान्य रूप से होती हैं , जैसे भूख सबको लगती है, रोना और हंसना सबको आता है ,सैक्स की समझ सब रखते हैं। लेकिन किसी को भूख ज्यादा लगती है, किसी को कम ,इसके पीछे भी कई कारण है । रोना और हंसना सभी को आता है, लेकिन कहां हंसना है, कहां केवल मुस्कुराना है, कहां रोना है ,किस बात पर रोना है और ऐसी बात नहीं करनी है जिससे दूसरों को रोना पड़े, बहुत कम लोग जानते हैं । सैक्स व्यक्ति के पैदा होते ही राक्षस की तरह मनुष्य के भीतर प्रवेश कर जाता है । शरीर बढ़ने के साथ-साथ वह भी बढ़ने लगता है। शरीर की मृत्यु के बाद ही शायद…. हां… मुझे लगता है एक शरीर की मृत्यु के बाद भी यह मरता नहीं बल्कि किसी दूसरे शरीर में घुस जाता है। तभी तो कहीं कहीं इसकी आती हो जाती है मुझे तो ऐसा लगता है कि संसार में कुछ खराब चीजें कभी नहीं मरती, अविश्वास ,अहंकार और सेक्स।
225 नंबर के अंदर से आवाज़ आ रही है। उसके कमरे के बाहर उसकी मां बैठी हुई है ।वह भी डर के मारे अंदर नहीं जा रही । घोर कलयुग है, मां बेटे से डर रही है । शायद मां अपने बेटे का खून से भरा बिगड़ा चेहरा नहीं देख सकती। मैं भले ही मां नहीं हूं पर मैं महसूस कर सकती हूं, जिस बच्चे को गोद में लेकर मां ने बड़ा किया हो, उसके सर में यदि एक जूं भी पड़ जाए तो मां रात रात भर जाग कर उसके सिर की सफाई करती रहती है। भले ही उसे आंखों से कम दिखाई दे ।अपनी नींद ,अपना सुख, अपने बच्चों पर न्योछावर कर देती है और आज उसी के सामने उसके जवान बेटे ने अपने सिर को जगह-जगह घायल कर लिया है।
मैं गुस्से से 225 नंबर कमरे का दरवाजा खोलती हूं, सामने क्रोध से नथुने फुलाए मोहन लेटा हुआ है । मुझे लगता है कि अगर उसके बाजू में खून चढ़ाने की नली नहीं होती तो वह मुझे मार बैठता। जो अपना सज्जन नहीं वह दूसरों का क्या होगा। मैं चुपचाप अंदर आ जाती हूं, दरवाजा बंद कर देती हूं। उसके पास आकर देखती हूं कि खून उसके चेहरे पर जमा है, सिर पर पट्टियां बंधी है ।रात को टांके लगाकर पट्टी करने में आठ लोगों ने उसे पकड़ा था। कई थप्पड़ लगाने पड़े थे । उसके शरीर में बल्ला की शक्ति थी ।शराब है ही ऐसी चीज जिसके अंदर भी गई, उसको सब कुछ बहा ले गई । मैं उससे पूछ बैठती हूं तुम्हें क्या चाहिए,वह मुझे घूरने लगता हैै…. ऊपर से नीचे तक, उसकी नजरें किसी एक्स-रे मशीन से कम नहीं लग रही। लगता है मेरा शरीर नहीं रहा, उसकी निगाहें मुझे चीर रही थी “शराब के साथ तुम अभी प्यार करते हो ,उसे छोड़ क्यों नहीं देते “,मैंने बड़ी मुश्किल से यह वाक्य बोला, वह चुप रहा।
रात को मोहन की मां ने कहा था ” मुझे याद है शराबी आंखों की स्वामिनी थी वह। 2 वर्ष पूर्व कृष्णा और मोहन का मेल हुआ था। कृष्णा का परिवार गरीब था ।वैसे तो यह सब गरीब है ,हर किसी को कुछ ना कुछ चाहिए । इच्छाओं का अधूरा रह जाना भी गरीबी से कम नहीं होता लेकिन मैं जिस गरीबी की बात कर रही हूं वह दूसरी तरह की है। जब घर में कमाने वाला कोई भी ना हो और खाने वाले कई जोड़े हाथ हो तो वह परिवार गरीब ही होता है ,भले ही ईश्वरीय देन शरीर सबके पास है लेकिन शरीर का दुरुपयोग तो उचित नहीं और उचित उपयोग के लिए….। खैर मैं गरीबी की बात कर रही थी गरीबों की शायद दुनिया ही अलग होती है। उनके लिए समाज के नियम भी उनके अपने बनाए होते हैं। उनके लिए विज्ञान की कोई अहमियत नहीं होती। उनके लिए समाज और कानून के कोई मायने नहीं होते। लोग क्या कहेंगे उसका ध्यान भी उन्हें बहुत कम रहता है और यही लोग सदैव कुछ ना कुछ कहते भी रहते हैं।
कृष्णा का ब्याह उससे बिना पूछे किसी सब्जी की दुकान चलाने वाले से कर दिया गया था जो रिश्तेदार जरूरत पड़ने पर उनसे दूर थे अचानक कृष्णा की शादी पर उनके संग हो गए थे । मेरे सामने ही शादी वाले दिन मोहन कृष्णा से मिलने आया था उस दिन कृष्णा और मोहन की अंतिम मुलाकात की तीसरे दिन कृष्णा की जलकर मृत्यु हो गई थी उस घटना के बाद से ही मोहन का दिमागी संतुलन लड़खड़ा गया । दिमाग है ही क्या दिल और दिमाग या तो एक ही होते हैं या इनका कोई गहरा संबंध है, धर्म का रिश्ता होगा , तभी तो भी धर्म के रिश्ते आजकल खून के रिश्तो से अधिक दूर तक साथ निभाते हैं।
दिल और दिमाग में यूं तो एक हाथ का फासला है पर यह आपस में बहुत गहरा रिश्ता रखते हैं और यदि यह दोनों मिलकर चलें तो इन दोनों का मेल मनुष्य की जीत और सफलताओं के लिए अचूक बाण हो सकता है।
पिछली रात किसी की शादी में मोहन ने खूब शराब पीकर हुड़दंग किया कई मेहमानों को मारा-पीटा खुद भी घायल हो गया। इसके पागलपन को देख इसके कुछ रिश्तेदार इसे अस्पताल ले आए जहां नींद के किसी इंजेक्शन का इस पर कोई असर नहीं हुआ। पूरा अस्पताल इसने सर पर उठा लिया। डॉक्टरों से लेकर सभी को गालियां दी । इसके एक रिश्तेदार ने जब इस को गालियां दी कि तुम जैसा कमीना हमारे घर पर कलंक है, कब मरेगा
…..तो बस मोहन ने पास ही पड़ा एक गिलास उठाया दीवार पर मार कर तोड़ा और अपने सिर और चेहरे को जख्मी कर लिया। खून से सारा बिस्तर भर गया। डर के मारे कोई इसके पास नहीं आया ।मां दूर खड़ी रोती रही और 4 वार्ड बॉय आए, उन्होंने इसे पकड़ा ,दो चार उसे थप्पड़ लगाए, तब जाकर यह पकड़ में आया था। सारी रात मोहन की मां उसकी कहानी कहती रही और मैं सुनती रही ।
मैंने देखा मोहन मुझे अब भी घूर रहा था। उसे देख मैंने मोहन से पूछा” क्या चाहिए, कब से तुम चिल्ला रहे हो ,अब कहो मेरी ड्यूटी खत्म होने वाली है ।”मुझे एक सिगरेट ला दो ‌ । मोहन ने मेरा हाथ पकड़ लिया मुझे सचमुच उस पर दया आ रही थी। उसका चेहरा गंदा लग रहा था । मैं खुद पर काबू रख मुस्कुराती हूं “अभी मैंने सिगरेट पीना शुरू नहीं किया, जब शुरू करूंगी तो मैं तुमको दे दूंगी ।”
वह मुस्कुराया ” तुम तो खुद एक सिगरेट हो ,सफेद चख कपड़े पहने, ऊपर से नीचे तक, मेरे होठों से लग जाओ।” उसने मुझे अपने पास खींचना चाहा अब उसका खून से भरा चेहरा उसे दयनीय तो बना ही रहा था । ऐसी बातें सुनकर मुझे उससे घृणा भी हुई ।मैंने जबरदस्ती मुस्कुराहट बनाए रखी ।खेंे
मैं उसकी गिरफ्त में थी, मैंने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा “कोशिश करती हूं, उसने मेरा हाथ छोड़कर थप्पड़ मेरे मुंह पर दे मारा ।।
मैं तिलमिला कर रह गई।” क्यों मारा तुमने मुझे” मैंने उसका गिरेबान पकड़ लिया।
” क्यों कहा…. तुम तो मेरी सिगरेट हो सफेद चख । शराब तो खुद ब खुद मर गई जलकर, सिगरेट तुझे तो मैं नहीं छोडूंगा।” वह छत की तरफ देखकर बड़बड़ा रहा था। मैं डर कर बाहर भाग आई। उसकी मां मेरे सामने रोती रही । मेरे आगे हाथ जोड़ने लगी, “मेरे बेटे को बचा लो बेटी ,तू उससे शादी कर ले। हम सारी उम्र तेरी गुलामी करेंगे। यह बहुत जिद्दी है , अगर इसने तेरे बारे में सोच लिया ,तो अब यह सारी उम्र तुझे भूलेगा नहीं ।”
“मैं उससे बात करती हूं”… मां मोहन के कमरे में चली गई और मैं भारी कदमों से अपने केबिन में आ गई ।
अब मुझे घर जाने की कोई जल्दी नहीं है ।मैं सोचती हूं रोज रोज नए मरीज ,उनके गंदे कपड़े ,समाज की घूरती निगाहें ,इससे अच्छा है मैं इसी एक मरीज को ठीक कर दूं। मुझे क्या है, मुझे सिगरेट कहता है औरत है ही क्या, एक सिगरेट ही तो है जो खुद अपने लिए नहीं , दूसरों के लिए ही बनी है। दूसरा कोई भी हो सकता है तो मोहन क्यों नहीं। मैं नर्स हूं यह जानकर कई घरों ने मुझे अस्वीकार कर दिया ।क्या नर्सों का दिल नहीं होता? क्या सेवा भर करने से मैं गंदी हो जाती हूं ? गंदगी तो दिमाग में भरी है ।

जिसे सब शरीर में सबसे महत्वपूर्ण कहते हैं । उसे गंदगी भरे दिमाग कभी पसंद नहीं आए । लोग बाहर ही देखते हैं। विचारों की गंदगी कोई पारदर्शी ही पढ़ता है। बहुत कम लोग जानते हैं अंदर और बाहर में अंतर होता है। दोनों को परखना चाहिए लेकिन।
मैं मोहन और उसकी मां के दरवाजा खोलने की प्रतीक्षा कर रही हूं। एक-एक पल मुझे भारी लग रहा है। मैंने देखा मोहन की मां मेरी ओर आ रही है। मेरी सांस रुक जाती है , मां कहती है” अंदर जा तुझे बुला रहा है ।” कमरे में पहुंचते हो वह शरारत से मुस्कुरा रहा है। उसे अपने सर से रिसते खून की कोई परवाह नहीं है । वह सीधे-सीधे मुझ से पूछता है” मुझसे शादी करोगी।”
” एक शर्त पर” मैं उसके पास आ जाती हूं ।
“कहो “उसने मेरा हाथ फिर पकड़ लिया ।।
मैं उसका हाथ अपने सर पर ले गई और दूसरे हाथ से उसके चेहरे को छूकर पूछा” तुम शराब को बिल्कुल भूल जाओगे और……. उसने मेरा वाक्य पूरा किया सिगरेट को हमेशा याद रखूंगा।’
” मेरी भी एक शर्त ” मोहन ने अब मुझे अपने साथ सटा लिया था ।
“कहो ” मैंने नजरें झुका दी। उसने कहा” तुम नौकरी छोड़ दोगी, सिर्फ मुझे देखोगी। मैं बीमार हूं।”
उसका चेहरा मेरे चेहरे के बहुत करीब है ….”सोचूंगी पर तुम ठीक तो हो जाओ ।” अचानक मुझे लगा वह काफी कमजोर हो गया है । उसका चेहरा पीला लगने लगा , थोड़ी देर पहले वह केवल एक रोगी था ।अचानक बहुत अपना लगने लगा और अपना लगते ही उसका खून से भरा गंदा और भद्दा चेहरा मुझे बुरा नहीं लग रहा था। मैंने फिर एक बार पूछा “तुम शराब को बिल्कुल भूल जाओगे ना”
उसने मेरे माथे पर चुंबन देकर स्वीकृति दी। अब उसका खून से भरा चेहरा मुझे कतई भद्दा और बुरा नहीं लग रहा मैंने आत्मसमर्पण कर दिया।
सिगरेट उसके होंठों में सुलग रही थी ।

1 thought on “कहानी: सिगरेट

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